पहल दिलीप ताहिल ने की है मगर इसमें पसंद बहुतों की शामिल है! हर वह एक्टर जो पर्दे पर किसी महिला कलाकार के साथ शरीर-संपर्क जैसे दृश्य चित्रबद्ध कराने वाला है, डरा हुआ है। सब चाहते हैं एक ऐसा एग्रीमेन्ट बने जिसमें साफ लिखा हो कि शूट की स्वेच्छिकता क्या हो? आज शूटिंग किये, 10,20,30 वर्ष बाद कोई स्त्री कलाकार उठकर उस पुरूष कलाकार पर ‘यौनाचार’ का आरोप लगा दे... तब? तब, उस सभ्रांत कलाकार की सामाजिक अधोगति क्या होगी? अब, यह विचार करते हुए कलाकारों के अनुबंध बनेंगे।
दिलीप ताहिल को एक वेब-शो ‘होस्टेज’ की शूटिंग में बलात्कार का दृश्य-फिल्म बंद कराना था। उन्होंने करने से इंकार कर दिया। इस शो के क्रिएटिव इंचार्ज प्रसिद्ध फिल्मकार सुधीर मिश्रा हैं। दिलीप ताहिल का कहना था कि एग्रीमेंट में उस महिला कलाकार की सहमति दर्ज होनी चाहिए कि वह सहज है और बिना किसी दबाव के शूटिंग कर रही है। इस लिखित अनुच्छेद के बाद भी ताहिल हिम्मत नहीं जुटा सके कि वह दृश्य परफॉर्म करें। लिहाजा, उन्होंने कैमरे के सामने बोलते हुए उस महिला कलाकार का स्टेटमेंट दर्ज कराने की बात रखी-जिसमें उसको कहना पड़ा- वह बिना किसी दबाव के यह दृश्य कर रही है और सैट पर पूरी तरह सुरक्षात्मक व्यवस्था के बीच शूटिंग में हिस्सा ले रही है। इस दीपावली से फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह कलाकारों के काम करने के अनुबंध में नया ‘अनुच्छेद’ दर्ज किए जाने की परंपरा का श्रीगणेश हो रहा है। और, हो भी क्यों न? हर दिन #MeToo में एक नया नाम जो जुड़ता जा रहा है। कोई नाना पाटेकर , कैलाश खेर, आलोक नाथ, अनुमलिक, साजिद खान...जैसों के परिवार से बात करके देखे, तब पता चलेगा कि #MeToo का ‘बम’ बॉलीवुड की इस दीपावली पर कितना बड़ा धमाका बनकर सामने आया है। यहां सच-झूठ से हमारा तात्पर्य नहीं, हम नैतिकता-अनैतिकता की बात नहीं कर रहे हैं। हम उस व्यवस्था की ट्रांसपेरेन्सी को बताना चाहते हैं जो इस दीपावली-वर्ष से शुरूआत लेने जा रही है।
हैप्पी दीपावली !!!
- संपादक