सिनेमा के पर्दे पर धर्म का चित्रांकन By Sharad Rai 23 Jan 2020 | एडिट 23 Jan 2020 23:00 IST in एडिटर्स पिक New Update Follow Us शेयर बॉलीवुड नगरी-मुंबई में महाराष्ट्र ‘नव निर्माण सेना’ (मनसे) ने खुद को हिन्दुत्ववादी बताने के लिए अपने पार्टी-झंडे को भगवा रंग दिया है। दूसरी राजनैतिक-पार्टियां - बीजेपी, शिवसेना, वामपंथी या मुसलिम समर्थक पार्टियों ने भी यही तरीका अपना रखा है। ऐसे में, हमारा ध्यान जाता है कि सिनेमा के पर्दे पर मात्र सवा दो-ढाई घंटे की फिल्म में कहानी को धार्मिक आवरण पहनाने के लिए फिल्मकार कितनी मुश्किलों से गुजरते होंगे? सिनेमा या टेलीवीजन के पर्दे पर चित्रांकित करते हैं, आइये एक नजर दौड़ाते हैं- मंदिर में किर्तन चल रहा है। वहां अभिनेता दिलीप कुमार भजन गा रहे हों या सलमान खान वहां माहौल ‘हिन्दुइजम’ का ही रहेगा। पात्र से नहीं, परिवेश से मालूम पड़ जाता है कि वहां हिन्दू-संप्रदाय के लोग हैं। फिल्म दर फिल्म धर्म और जातियता के इंप्रेशन के लिए फिल्मकारों ने यही रास्ता अपनाया है जो सबको बिना समय या दिमाग लगाये समझ में आ जाता है। होली, दीपावली, ईद या गुरूद्वारे के लंगर को बताने के लिए एक दृश्य ही काफी होता है। मुसलिम-महिला को अपना परिचय देने के लिए आइडेन्टी कार्ड बताने की जरूरत नहीं पड़ती, उनका बुक्रा ही काफी होता है। मुसलिम महिला मुंह पर नकाब या सिर पर कपड़ा और कानों में लम्बी इअरिंग पहने होती है और पुरुष के सिर पर टोपी या नमाज-अदायगी परिभाषित करती है कि वे किस धर्म से हैं। ऐसे ही क्रिश्चियन-परिवार के लिए या स्त्री पुरुष के लिए बने हुए फिल्मी- नियामक हैं। लड़की स्कर्ट पहने होगी (सेक्रेटरी टाइप करेक्टर) और पुरुष अल्कोहलिक (या शराबी) इस्टाइल में दिखेगा। फिल्म ‘विजेता’ और ‘जूली’ में बेहतरीन रूप में कैथलिक-परिवेश दिखाया गया था। हिन्दू लड़की सलवार-कमीज और दुपट्टा लिए हुए दिखाई जाती रही है। आजकल आधुनिकता दिखाने के लिए टांग या घुटना दिखाने का प्रचलन शुरू हुआ है और जींस पैंट और टी-शर्ट में लड़कियों को दिखाया जाना थोड़ा कन्फ्यूजिंग होता जा रहा है। मगर याद कीजिए पुरानी फिल्मों में साधना का मुसलिम लड़की का ‘मेरे महबूब’ रूप। फिल्मों में किन्नरों को बताने के लिए जो परंपरा बनी है, आजकल के किन्नर तो वही रूप ही अख्तियार कर लिए हैं। नेताओं के लिए सफेद ड्रेस कोड भी फिल्मों की ही देन कहा जा सकता है। आजकल हिन्दुओं को भगवा रंग और माथे पर खड़ा तिलक लगाने का जो पैटर्न दिया जा रहा है, यह परंपरागत हैं। बेशक आजकल पार्टियों ने राजनैतिक रंग चढ़ाने का जो प्रचलन शुरू किया है, वो परिवेश बताने के लिए नहीं, धर्म के नाम पर मतभेद पैदा करने के लिए किया जा रहा है। और पढ़े: ‘लव आज कल’ का ट्रेलर रिलीज, कार्तिक के साथ इंटीमेट हुई सारा #bollywood #Cinema #Dharam हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article