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Birth Anniversary Kishore Kumar : अजीब दास्तान किशोर कुमार खंडवेवाला की

मैंने किशोर कुमार गांगुली (वह खुद को किशोर कुमार खंडवेवाला कहलवाना पसंद करते थे) के बारे में जितनी कहानियाँ सुनी हैं, उनसे पूरी एक किताब बन सकती है जिसे मैं ‘द मैनी’ कह सकता हूँ...

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By Ali Peter John
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Birth Anniversary Kishore Kumar

मैंने किशोर कुमार गांगुली (वह खुद को किशोर कुमार खंडवेवाला कहलवाना पसंद करते थे) के बारे में जितनी कहानियाँ सुनी हैं, उनसे पूरी एक किताब बन सकती है जिसे मैं ‘द मैनी’ कह सकता हूँ. वे एक प्रबुद्ध तथा विलक्षण व्यक्तित्व के थे! उनके बारे में आपको बताने को मेरे पास बहुत कुछ है जिनमें कुछ मेरे अनुभव हैं और कुछ उनकी बतकही है. अपने अनुभवों को साझा करने के लिए न जाने क्यों उन्होनें मुझे नाचीज को चुना.

मैं पहली बार उनसे मिलने अपने वृद्ध संपादक के साथ गया था जिसे विलक्षणता के सम्राट द्वारा आमंत्रित किया गया था. हम शनिवार दोपहर बिल्कुल 2ः00 बजे जुहू स्थित उनके बँगले ‘गौरीकुंज’ पहुँचने के लिए दौड़ पड़े थे. उन्होनें हमें चेताया था, ‘दो बजे जरूर पहुँच जाना क्योंकि उसके बाद मेरी मुलाकात शनि देव के साथ है’, इसीलिए हमने अपना काम पहले ही पूरा कर लिया और दो बजने में पंद्रह मिनट अभी बाकी थे, तभी हम ‘गौरी कुंज’ पहुँच गए. हमने गेट की घंटी बजाई, घंटी की आवाज एक अंतिम संस्कार के जुलूस के दौरान चर्च की घंटी की आवाज की तरह थी! हमने एक दूसरे की ओर देखा पर कुछ कहा नहीं. इससे पहले की हम कुछ समझ पाते, परिसर से विभिन्न प्रकार के संगीत की आवाज आने लगी. इतने में हमने देखा कि एक लंबी ग्रे दाढ़ी और चमकदार वस्त्र में एक क्रिश्चन प्रीस्ट सीढ़ियों से नीचे उतर आया. हम भौचंक्के थे कि ये हो क्या रहा है. तुरंत ही लगभग पंद्रह विशाल कुत्तों की भीड़ हम पर भौंकने लगी और हम पूरी तरह से डर गए थे. बूढ़े पुजारी ने अपना दाहिना हाथ उठाया और सब कुत्ते वापस अपने केनेल में चले गए. फिर उन्होनें मुझसे पूछा कि मैं किससे मिलना चाहता हूँ.

मैंने अपनी काँपती हुई आवाज में उत्तर दिया, ‘किशोर कुमार गांगुलीश् से. उन्होंने कहा कि शोर कुमार, मुझें नहीं पता. उन्होनें कहा मैं दो सौ बाईस वर्ष और बाईस दिन का हूँ लेकिन मैं आपसे छोटा हूँ और मैं आपसे अधिक स्पष्ट रूप से देख और सुन सकता हूँ. मैं परम पूज्य पिता ग्रेगरी लोबो हूँ. यह सेंट जेम्स कैथेड्रल है. हाँ, मैंने सुना है कि एक पुराना गायक था, जिसे आप ‘शोर कुमार’ कह रहे हैं. यहाँ रहा करता था लेकिन उसको मरे हुए पांच सौ साल हो चुके हैं. उनके शरीर को मेरे गिरजाघर के नीचे दफनाया गया है. वो अब भी आता है, हर रात मुझसे मिलने आता है और कुछ गाने गाता है जो मुझे समझ में नहीं आते और फिर मुझे गले लगाकर चला जाता है. आप अंदर आ सकते हैं और मैं आपको कुछ अच्छी दाख-मदिरा दूंगा जो यीशु ने दी है. हम इसे और नहीं झेल पा रहे थे. हम वहाँ से भागना चाहते थे. हम जानते थे कि यह किशोर कुमार ही हैं जो एक विचित्र भूमिका निभा रहे हैं. हमने उन्हें अपने कैथेड्रल में छोड़ने का फैसला किया और इस डरावने खेल से भागकर पास के सांताक्रूज स्टेशन पर पहुँचने का सोचा लेकिन उससे पहले सभी कुत्ते एकमत से हम पर भौंके जैसे हमें गुडबॉय कर रहें हों. इसके साथ ही ग्रे फिगर ने कहा कि, ‘कृपया फिर से आएं. आज रात ‘शोर’ फिर आएगा, मैं उसे तुम्हारे बारे में सब कुछ बताऊंगा और देखूंगा कि वह कैसी प्रतिक्रिया देता है. वह कभी-कभी पागल आदमी हो जाता है. हमने दो सौ बाईस वर्ष के अतिपूजनीय, अति सम्मानित ग्रेगरी लोबो के साथ के अपने अनुभवों को किसी से नहीं बताया. 

अगली बार किशोर कुमार गांगुली ने ‘गौरी कुंज’ में उनकी बर्थडे पार्टी का मुझे निमंत्रण भेजा. निमंत्रण स्मार्ट बेदाग, सफेद कपड़े पहने एक आदमी द्वारा और जिसकी अंग्रेजी, कुछ अजीब तरह की थी, जो मैंने कभी नहीं सुनी थी, द्वारा लाया गया. मैंने अपने पहले भयानक अनुभव के बावजूद ‘गौरी कुंज’ जाने का फैसला लिया. लुंगी और कुर्ता पहने किशोर कुमार और हाथ में फूल की माला लपेटे हुए. उन्होनें एक विशाल माला मेरे गले में डाल दी और कहा,‘पार्टी छोड़ने तक इसे पहने रहें, नहीं तो शनिदेव रुष्ट हो जाएंगे’ मैंने तय किया कि इस बार उनके निर्देश फॉलो करने में कोई गलती नहीं करूंगा. उसके बाद वे मुझे अपने साथ ले गए और मुझे एल सहगल की सैकड़ों तस्वीरें दिखाईं और मुझे एक ग्रामोफोन भी दिखाया, जिसे उन्होंने कहा था ‘बाबा आदम के जमाने का’ पृथ्वी पर पहले इंसान के लिए’. मैं इसका कोई मतलब नहीं निकाल सका. एक दो ड्रिंक पीने के बाद केवल एक चीज याद रही कि रात का खाना स्वादिष्ट था. एक गोरे आदमी ने अपनी विदेशी अग्रेजी मुझे आधी रात से पहले घर पहुंचने की पेशकश की क्योंकि ‘किशोर दा’ ने उसे मुझे चेतावनी देने को कहा था कि अगर मैं समय पर घर नहीं पहुँचा तो कुछ नुकसान होगा. मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था और घर पहुंच गया. लगभग उसी समय आधी रात से पांच मिनट पहले और अजीब तरह से बिजली चमकने लगी. अगली सुबह उन्होनें उस आदमी को सफेद रंग में मेरे घर भेजा क्योंकि वह माला मुझसे वापस चाहते थे. यह सब कुछ बहुत अजीब था लेकिन बिल्कुल सच.

मैं उनसे बार-बार मिलता रहा. हर बार उन्होनें मुझसे मेरा पूरा नाम पूछा क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं होता था कि ‘अली पीटर जॉन’ किसी का नाम हो सकता है. उन्होंने मेरे नाम पर आधारित फिल्म बनाने का वायदा भी किया था. लेकिन जब उन्हें पता चला कि मनमोहन देसाई ‘अमर अकबर एंथोनी’ नाम की फिल्म बना रहे थे, तो उन्होनें वायदा तोड़ दिया. 

एक शाम किशोर ने मुझे अपनी चारों पत्नियों के बारे में बताया. सबसे पहले अपनी पहली पत्नी रूमा गुहा ठाकुरता के बारे में बताया, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि ‘खंडवा के एक भोले- भाले आदमी के लिए वह बहुत अंग्रेज थी’! उन्होंने कहा कि वे अलग हो गए थे, लेकिन उनके मन में उनके लिए आज भी उतना ही सम्मान था क्योंकि वह उनके पहले बेटे अमित की माँ थीं. फिर उन्होनें अपनी दूसरी पत्नी ‘मधुबाला’ के बारे में बताया कि, ‘वह एक स्वर्ग से उतरी एक सुंदरी की तरह थीं जो स्वर्ग से इस लोक में आई थीं.’ और उन्हें ईश्वर ने स्वर्ग में जल्द से जल्द बुला लिया क्योंकि संभव है कि, स्वर्ग में सुंदरियों की कमी थी! अपनी तीसरी पत्नी ‘योगिता बाली’ के बारे में बात करते हुए उन्हें उनके साथ की पहली रात याद आई. उन्होनें रात में छत के नीचे कई मानव खोपड़ियों को नाचते देखा और वह डरकर अधमरी हो गईं थीं. कुछ ऐसे ही कारणों से उनके साथ भी शादी टूट गई और उसके बाद योगिता ने मिथुन चक्रवर्ती से शादी कर ली. किशोर ने कहा,‘मैं उसे और भी खूबसूरत आदमी दिलवा सकता था. उसने उस काले और बदसूरत बंगाली में क्या पाया?” अंत में अपनी चैथी पत्नी ‘लीना चंदावरकर’ के बारे में कहने के लिए उनके पास सभी अच्छे शब्द ही थे. उन्होनें कहा कि वह एकमात्र महिला थीं जिन्होंने उन्हें प्रेरणा दी, उनके अच्छे गुणों की तारीफ की और हिम्मत बढ़ाई. उन्हें उपहार में सुमित नामक एक पुत्र भी दिया

उसने अपनी सभी पत्नियों को ‘बंदरिया’ (बंदर) कहा. इसका कारण उन्होंने बताया कि वे सभी शादी से पहले मूल रूप से बांद्रा के रहने वाली थीं. लेकिन इसका असली कारण केवल उनका बहुत करीबी और विश्वासपात्र दोस्त अब्दुल ही जानता था क्योंकि जब भी वह उन्हें ‘बंदरिया’ कहते, वह हँस दिया करता था. 

उन्होनें उस समय की यादें भी साझा की जब उन्होंने अपनी यूनिट एक फिल्म की शूटिंग के लिए लोकेशन से दूर बुला लिया था और स्वयं देर से पहुँचे लेकिन जब आए तो उन्होंने उन सभी को एक पिकनिक और बेहतरीन खाने-पीने की चीजें परोसी और हर यूनिट के सदस्य को घर ले जाने के लिए उपहार भेंट किए गए. उन्हें वह वक्त भी याद आया जब उन्होनें अपने निर्माताओं को पहचानने से इंकार कर दिया था और एक बार तो उन्होनें अपनी आवाज खो जाने का नाटक तब तक किया जब तक कि उनके सेकरेट्री ने यह स्पष्ट नहीं कर दिया कि पैसा पहुँच गया है.
उन्होंने घर की अंदरूनी, विशेष रूप से दीवारों के रंग बदल दिए और अवांछित मेहमानों विशेष रूप से ‘आयकर वाले सालों’ से बचने के लिए अपने घर के दरवाजों की दिशा बदल दी. 

उन्हें अपने मन मुताबिक फिल्में बनाने का शौक था और अपनी फिल्मों का निर्माण, निर्देशन तो किया ही साथ ही साथ उसमें अभिनय भी किया, संगीत भी बनाया, गीत लिखे और संपादन भी किया. वे कहते थे कि अगर कोई नहीं देखेंगा हमारी फिल्में तो हम ही खुद बैठ कर देखेंगे, ये दुनिया पागल है और ये समझते हैं कि मैं पागल हूँ. देखेंगे एक दिन कौन सच में पागल है. वह अपने जीवन के अंत के लिए मजाक थे कि ‘हम तो ऐसे ही चले जाएंगे और किसको सच भी नहीं लगेगा.’ कुछ ऐसा ही हुआ जब उनकी नींद में ही मौत हो गई. वह अक्टूबर माह की एक रात थी. किसी को सही में विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अब नहीं रहे. उसका शरीर दो दिन के लिए रखा गया था लेकिन वह शरारती और रहस्यमय मुस्कान अभी भी बरकरार थी और उनकी तरह ही एक राज बना हुआ था. इसी मुस्कान के साथ उनकी यह इच्छा भी थी कि बंबई शहर से बहुत दूर उनके गाँव खंडवा के शांत खेतों में उनका अंतिम संस्कार किया जाए, जहाँ उनका जन्म हुआ था.

जिंदगी के आखिरी दिन और दम तक वो जल्दबाजी करते थे, मजाक करते रहते थे और जिंदगी के गीत गाते रहे और जिस दिन वो गुजर गए, उनके बड़े भाई, अशोक कुमार ने कहा था, ‘अभी उसे मरा हुआ मत समझना, वो कभी भी उठ कर हम सब का मजाक बना सकता है. मगर ऐसा हो न सका. लेकिन किशोर कुमार खांडवेवाला न तब मरा था न कभी मरेगा...

गीतः अजब है दास्ताँ तेरी ऐ जिन्दगी 
अजब है दास्ताँ तेरी ऐ जिन्दगी 
कभी हँसा दिया रूला दिया कभी 

कली खिलने न पाई थी कि शाख ही उजड़ गई 
अभी जरा से थे कि हम से प्यारी माँ बिछड़ गयी
ओ आसमां बता किया हमने थे क्या 
जो मिली ये सजा  
लड़कपन में ही ये दुनिया लूटी 

तुम आईं माँ की ममता लिए तो मुस्कुराए हम 
कि जैसे फिर से अपने बचपन में लौट आए हम 
तुम्हारे प्यार के इसी आँचल तले फिरसे दीपक जले 
ढला अँधेरा जगी रोशनी 

मगर बड़ा ही संगदिल है ये मालिक तेरा जहां 
यहाँ माँ बेटों पे भी लोग उठाते हैं उँगलियाँ 
कली ये प्यार की झुलस के रह गई
हर तरफ आग थी 
हँसाने आई थी रुलाकर चली

फिल्म-शरारत
कलाकारः-किशोर कुमार, राजकुमार और मीना कुमारी
संगीतकार-शंकर-जयकिशन
गीतकार-शैलेन्द्र
गायकः-मोहम्मद रफी  

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