सत्ता में होने पर किसी भी सरकार या उसके नेताओं के खिलाफ बोलना ज्यादातर ‘अपराध’ माना जाता है, यह तब भी सच था और अब भी सच है!देव आनंद एक ऐसे भारतीय थे, जो सच बोलने से कभी नहीं डरते थे, खासकर तब जब राष्ट्रहित के मामलों की बात आती थी, उन्हें ‘असंतोष की आवाज’ (द वॉइस ऑफ डिसेन्ट) या ‘विपक्ष की आवाज’ (द वॉइस ऑफ द आॅपजिशन) के रूप में जाने-जाते थे, और जब उनकी सोच के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा,”सत्ता में सरकार द्वारा किए गए गलत के बारे में सवाल पूछना लोकतंत्र में हर पुरुष और महिला का अधिकार है।”
उन्हें राज्यसभा में एक से अधिक बार सीट की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इस प्रस्तावों को ठुकरा दिया था कि,”मैं संसद जाना चाहूंगा, लेकिन अपनी आवाज बुलंद करने के लिए न की उस संख्या में शामिल होने के लिए, जिसके लिए दुनिया के हर कोने-कोने में बहुत सारे लोग इंतजार कर रहे हैं।” अली पीटर जाॅन
देव आनंद साहब वो थे जो किसी के सामने बोलने से नहीं हिचकिचाते थे, पीएम के सामने भी नहीं
श्रीमती इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान अपनी राय देने में देव आनंद सबसे आगे थे, वह तब इमरजेंसी के खिलाफ जोर से बोलने की हिम्मत रखते थे, जब श्रीमती गांधी की ताकत के आगे सब झुकते थे....
यह उस समय के दौरान था, कि देव आनंद ने न केवल सरकार के खिलाफ इंटरव्यू दिया था, बल्कि श्रीमती गांधी के बेटे संजय गांधी और उनके मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के बारे में भी बताया था। उन्हें संजय गांधी द्वारा खुद चेतावनी दिए जाने के बारे में बात की गई थी, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं रोक सकता था।
लेकिन उन्हें इसकी सजा मिलनी थी, उनकी सभी फिल्में जो इमरजेंसी के दौरान रिलीज हुईं और इसके बाद भी उन्हें सेंसर की कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जो सूत्रों के अनुसार उन्हें सबक सिखाने का एक तरीका था, लेकिन जो कुछ भी उन्हें डराने के लिए किया गया था, वह उन्हें सत्ता के खिलाफ अपनी राय देने से रोकने में विफल रहा था, इस तरह के व्यवहार के प्रतिशोध के रूप में देव ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी शुरू की जिसने पूरे देश में एक सनसनी पैदा कर दी थी, लेकिन पार्टी लंबे समय तक उन नेताओं के कारण नहीं चल सकी, जिन्होंने पार्टी शुरू करने के देव उद्देश्य को ही नहीं समझा था, और देव अंत तक विपक्ष की आवाज बने रहे थे.
अगर कोई और ऐसा स्टार था जो रूलिंग पार्टी के खिलाफ बोलने में कभी पीछे नहीं हटे थे, और ना ही रुके थे तो वह अमजद खान थे
यह नरीमन पॉइंट पर एयर इंडिया के सभागार में होने वाली सेंसरशिप पर एक पैनल चर्चा थी। चर्चा पैनल में कई एमिनेंट स्पीकर्स थे और अमजद उनमें से एक थे। तत्कालीन केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री श्री एच.के.एल.भगत मुख्य अतिथि थे। अमजद चर्चा में अपना पॉइंट बता रहे थे जब उन्होंने भगत को देखा और दर्शकों को बताया,”ये देखिये हमारे मंत्री जी सो रहे है, ये हमारी बात क्या समझेगे?” मिस्टर भगत गुस्से में आग बबूला थे, लेकिन तब एक शब्द भी नहीं कह सकते थे लेकिन वह कभी नहीं भूले कि कैसे अमजद ने उन्हें बेइज्जत किया था, और इसका परिणाम तब देखा गया जब अमजद ‘पुलिस चोर’ और ‘अमीर आदमी गरीब आदमी’ द्वारा निर्देशित दोनों फिल्मों का सेंसर द्वारा नरसंहार (मैसकर) किया गया।
अमजद अपनी फिल्म बनाने की चुनौती का सामना करना चाहते थे और उन्होंने ‘लंबाई चैडाई’ की घोषणा की, जिसे वह खुद और अपने दोस्त अमिताभ बच्चन के साथ बनाने की योजना बना रहे थे, लेकिन उनके एक्सीडेंट ने उन्हें रोक दिया और वह अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं कर सके क्योंकि वह केवल 47 वर्ष के थे.
क्या हमारे पास आज देव और अमजद जैसे योग्य और हिम्मत वाले लोग हैं.
अनु-छवि शर्मा