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कला का एक मंदिर ढह गया! अपनी पूरी क्लासिक इरा में दिलीप साहब ने कभी राजनीतिक संरक्षण नहीं लिया!

कला का एक मंदिर ढह गया! अपनी पूरी क्लासिक इरा में दिलीप साहब ने कभी राजनीतिक संरक्षण नहीं लिया!
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पिछले कुछ घंटों से जब से दिलीप  साहब का पार्थीव- शरीर सुपुर्द-ए-खाक हुआ है, सोशल मीडिया पर लोगों के रिव्यू पढ़- पढ़कर कभी हैरानी हो रही है, कभी मन में गुस्सा आ रहा है कि कैसे लोग झूठे किस्से लिखकर उनसे अपनी नज़दीकी जता रहे हैं। बॉलीवुड के सारे स्टार्स दिलीप साहब के लिए कुछ न कुछ लिखे हैं जो कहीं न कहीं से उठाया हुआ ही लग रहा है। मेरी फेसबुक वाल पर तीन ऐसे लोगों के कमेंट आए हैं- जिसे मैं उनके दिल का सच मानकर यहां कोट करना चाहूंगा। अभिनेता सुरेन्द्रपाल ने लिखा है- “कला का एक मंदिर ढह गया! “बात मन को छू गई- सच है यह! लेखक- अभिलाष अवस्थी ने लिखा है- “वो पूरे जीवन मे कभी भी किसी का राजनीतिक संरक्षण नहीं लिए... हमेशा नेहरू गांधी परिवार से प्रभावित थे!”

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यह भी सच है। लेकिन सबसे मजेदार सच लिखा है जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार गम्भीर श्रीवास्तव ने-  “आज सब पत्रकार दिलीप साहब से अपनी नज़दीकी दरसा रहे हैं। लेकिन, मैं तो एकही बार मे धकिया उठा था। सुरेश वाडेकर के एक सम्मान समारोह में दिलीप साहब अतिथि थे। मायापुरी के पत्रकार शरद राय के साथ मुझे वहां शामिल होने का मौका मिला था। दिलीप साहब को मिलने की चाहत में पत्रकारों पर पोलिस का डंडा फड़काना देखकर मेरा मन आजतक फिर किसी स्टार से मिलने को नहीं हुआ।“ वाकई यह सोच और तीनो कोट भले ही तल्ख हों, आज के बॉलीवुड का सच ऐसा ही है जो दिलीप साहब के समय से ही शुरू हुआ था।

हम भी चाहते हैं श्रद्धांजलि में ट्रेजिडी किंग द्वारा उनके पूरे कैरियर में की गई 60 फिल्मों के नामों की संख्या गिना दूं (वो तो आपने कई जगह पढ़ भी लिया होगा!)। यह बताना चाहता हूं कि सभी स्टार्स उनके बाद के दशकों में उनकी कॉपी किये हैं। या- उनकी पैदाइस और उनके पाकिस्तान के पुस्तैनी घर की चर्चा करना चाहता हूं- जो म्यूजियम नहीं बन सका। या फिर- उनके नाम बदलने और उनके ’बाप’ ना बन पाने की घटना का जिक्र करना चाहता हूं , पर यह लिखने का मन नहीं हो रहा है।

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यह  तो उनकी अपनी ऑटोबायग्रॉफी  ‘क्पसपच ानउंतरू जीम ेनइेजंदबम ंदक जीम ेींकवू’ में दर्ज है। ये सब कुछ लिखना दिलीप साहब की विदाई की बेला में छोटे शब्द लग रहे हैं। आगे के पन्नों पर यह सब पढ़ेंगे भी आप। उनसे होने वाली मुलाकातों में मेरे अपने संस्मरण भी हैं। 'मायापुरी' पत्रिका की चार पीढ़ियों की खबर भी उनके पास हुआ करती थी। आखिर में अमूल के ताजे विज्ञापन का जिक्र करते हुए हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहेंगे- ळंदहं इीपए श्रंउनदं इीए। कउप इीपए टपकींजं इीए भ्ंत। स्मंकमतरू क्प्स्प्च् ज्ञन्ड। त्(1922-2021) शत शत नमन!

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