शास्त्रीय गीतों के शहजादे है ‘मन्ना डे’ By Mayapuri 24 Oct 2021 in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर मायापुरी अंक 16.1975 कहते हैं, संगति का असर जरूर रंग लाता है। यह कहावत गायक मन्ना डे पर बिल्कुल सही बैंठती है। पिता जी तो इन्हें वकील बनाना चाहते थे। लेकिन वह थे कि अपने चाचा गायक के. सी. डे.के पास बैठते तथा घंटों तक उनके अलाप सुनते रहते। उनकी गायन पर झूमने लगते। इनके चाचा अन्धे होते हुए भी अपने जमाने के नामी गायक थे। भक्ति संगीत में तो उनकी मास्टरी थी। इनके चाचा के गीत आज भी लोकप्रिय है। जब संगीत कानों से टकराता है, अजीब सुकून मिलता है। ‘तेरी गठरी’ में लगा चोर मुसाफिर जाग जरा तथा मन की आंखे खोल बाबा मन की आंखें खोल गीत के.सी.डे अद्धितीय गीतों में से हैं। इन्हें कौन भूल सकता है मन्ना डे को नियमित रूप से अपने पास आता देखकर चाचा के.सी.डे. ने उन्हें संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी तथा धीरे-धीरे शास्त्रीय गीतों का रियाज आरम्भ करवा दिया। चाचा को अपने भतीजे में कुछ गुण दिखाई दिए, अत: उन्होंने अपनी कला मन्ना डे को सौंपने के लिए साधना आरम्भ की। यह साधना अत्यंत सफल साबित हुई। के.सी.डे. का परिश्रम रंग लाया। बचपन में मन्ना डे कॉलेज की ‘संगीत प्रतियोगिता’ में भाग लेते और सदा प्रथम आते। लोगों ने इन्हें मुम्बई जाने को कहा। इस प्रोत्साहन से ये मुम्बई खिंचे चले आए। तथा खेमचन्द्र प्रकाश (संगीत कार) के सहायक हो गए। बाद में वहां से हट कर कई वर्षों तक संगीतकार सचिव देव वर्मन के सहायक बनकर रहे। सचिव दा के पास काफी समय तक संगीत का ज्ञान प्राप्त करके ये स्वतन्त्र रूप से संगीतकार बन गए। संगीतकार के रूप में मन्नाडे की सुप्रसिद्ध फिल्में हैं‘तमाशा’‘जान पहचान’‘श्री कृष्ण’‘जन्म’‘हम भी इंसान है’‘मन का मीत’‘महा पूजा’‘चमकी’‘शुक्र’‘रम्भा’‘शिव’‘कन्या’‘जय महादेव’‘गौरी पूजा’‘नाग’‘चम्पा’ आदि। फिल्म ‘नाग’‘चम्पा’‘तमाशा’ तथा ‘महा पूजा’ के गीत काफी लोकप्रिय हुए। मन्नाडे का नाम एक प्रसिद्ध संगीतकार के रूप में सामने आया पर यह क्षेत्र इन्हें जांचा नही और ये संगीत शैली को त्याग कर गायन क्षेत्र में उतर गए। मन्नाडे की आवाज को सर्वप्रथम संगीतकार सचिन देव बर्मन ने परखा तथा सर्वप्रथम उन्होनें फिल्म ‘मशाल’ के लिए प्रदीप का लिखा गीत ‘ऊपर गगन विशाल’ गवायां इस प्रथम गीत ने ही मन्नाडे को गगन की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया जहां इन्हें अपार ख्याति प्राप्त हुई। ‘मशाल’ चित्र के बाद इन्हें मिली। ‘कव्वाली’‘देख कबीरा’‘रोया, ‘बसंत बहार’‘तूफान’ और ‘दिया’‘दो बीघा’‘जमीन’‘चोरी चोरी’‘श्री 420’‘मदर इंडिया’ आदि छठे दशक में एक दौर ऐसा आया था जब मन्नाडे की लोकप्रियता के आगे अन्य गायकों का टिकना कठिन हो गया था। उस समय रेडियो पर मन्नाडे के गीत उसी तरह बजते रहते थे जैसे आजकल किशोर कुमार के गीत सुनाई देते हैं। ‘आजा सनम मधुर चांदनी में हम’ ये लेकर या अल्लाह या अल्लाह, दिल ले गई’ जैसे हल्के-फुल्के गीत तक के लिए मन्नाडे की आवाज ली जाती थी। मन्नाडे ने बहुत कम गाने गाये हैं पर जो भी गाए अच्छे ही गाए हैं। शास्त्रीय गीतों में तो इन्हें मास्टरी हासिल है। इनके गाए शास्त्रीय गीतों को सुनकर ऐसा आभास होता है मानों इन गीतों का जन्म मन्नाडे के लिए ही हुआ है, या फिर मन्नाडे ने 5 प्रतिशत अमर बना दिये हैं ऐसे ही कुछ अमर नगमें ये है ‘लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे’ (दिल ही तो है) ‘तुम गगन के चन्द्रमा’ (सती सावित्री) ‘झनक-झनक तोरी बाजे पॉयलिया’ (मेरे हूजूर) ‘पूछो न कैसे मैने रैन बिताई’ (मेरी सूरत तेरी आंखें) ‘छम छम छम बाजे रे पॉयलिया’ (जाने अनजाने) कई शास्त्रीय गीत हैं जो इनके मुक्त कंठ से अमर हो गये हैं फिल्म ‘मेरे हुजूर’ के गीत ‘झनक-झनक तोरी बाजे रे पॉयलिया’ पर तो इन्हें अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है, यह बात नही है कि मन्ना डे सिर्फ शास्त्रीय संगीत पर सधे गीतों को ही मधुर स्वर देते हैं। शास्त्रीय गीतों के अलावा भी सैकड़ों गीत ऐसे हैं जो अत्यन्त लुभावने लगते हैं। ‘कव्वाली’‘गीत’‘गजल’‘ठुमरी’‘ठप्पा’ आदि। हर क्षेत्र मे मन्नाडे आगे हैं। कव्वाली में देखिए ना तो कारवां की तलाश है तथा रोमांटिक गीत ‘ये रात भीगी भीगी’ मन्नाडे के लिए यह कहना जरूरी होगा कि भारतीय फिल्म संगीत में कव्वाली का मुहूर्त सर्वप्रथम इन्ही के कंठ से रोशन के सहयोग से फिल्म ‘बरसात की रात’में हुआ। मन्नाडे के बाद धीरे-धीरे सभी गायक कव्वाली के दौर में उतर पड़े। आज भी जो लोग मन्नाडे मे हैं वह किसी अन्य गायक में नही है। बाकी अन्य क्षेत्र के गीतों में ‘तू प्यार का सागर है’।‘कसमें वादे प्यार वफा’‘ऐ मेरी जौहर जबीं’‘ये कहानी है दिये की और तूफान’ को ‘तुझे सूरज कहूं या चन्दा’ जिन्दगी कैसी है पहेली ऐसे अनेक गीत हैं जो मन्ना डे के स्वर का बखान करते हैं, हर तरह के गीत इनके कंठ से अमर हो गए हैं। कुछ वर्ष पूर्व भी इन्ही के गीत, भाई जरा देख के चलो (मेरा नाम जोकर) ने धूम मचा दी थी। मन्नाडे ने करीब-करीब सभी गायक गायिकाओं के साथ गाने गाये हैं यहां तक कि बिल्कुल नए गायक शैलेन्द्र सिंह के साथ अपना स्वर देने में भी कोई आपत्ति नही उठाई। मन्नाडे की आवाज के साथ शैलेन्द्र सिंह कंठ से कंठ मिलाकर फिल्म बॉबी का ‘नां चाहूं सोना चांदी’ गीत गाया। वे अमर गीत बन गये। भारत सरकार ने इन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है। इतना सब होते हुए भी मन्नाडे कहते हैं कि सुर न सजे क्या गाऊं मैं #Manna Dey #about Manna Dey #Manna Dey article हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article