वरिष्ठ
निर्माता
आनंद
पंडित
के
अनुसार
महामारी
के
दौर
में
भी
फिल्म
उद्योग
ने
उम्मीद
के
साथ
नहीं
छोड़ा
,
साथ
ही
वेअपनी
मौजूदा
और
आने
वाली
फिल्मों
के
बारे
में
भी
जानकारी
दी
-
मायापुरी
प्रतिनिधि
इस तरह
2020
में
फिल्म
उद्योग
ने
अपने
सामने
आयी
चुनौतियों
का
सामना
किया
वरिष्ठ
निर्माता
आनंद
पंडित
ने
‘
सरकार
3’
और
‘
टोटल
धमाल
’
जैसी
फिल्मों
में
भागीदारी
की
है
और
उनकी
आने
वाली
फिल्में
हैं
द्वारा
अभिनीत
‘
द
बिग
बुल
’
और
अमिताभ
बच्चन
एवं
इमरान
हाशमी
द्वारा
अभिनीत
‘
चेहरे
’
।
इस
मुलाकात
में
उन्होंने
बताया
की
किस
तरह
2020
में
फिल्म
उद्योग
ने
अपने
सामने
आयी
चुनौतियों
का
सामना
किया।
शुरूआत
में
अपनी
आने
वाली
फिल्मों
के
बारे
में
उन्होंने
कहा
, ‘
द
बिग
बुल
’
एक
अपराधी
की
कहानी
है
और
जल्द
ही
डिजनी
प्लस
हॉटस्टार
पर
देखी
जा
सकेगी।
‘
चेहरे
’
एक
रोमांचक
फिल्म
है
और
इसके
प्रदर्शन
के
बारे
में
हम
जल्द
ही
फैसला
लेंगे।
इस
साल
महामारी
ने
सिनेमाघरों
को
विपदा
में
डाल
दिया
और
धीरे
-
धीरे
सुरक्षा
नियमों
का
पालन
करते
हुए
उन्हें
खोला
जा
रहा
है।
फिर
भी
कुछ
समय
तक
लोग
सिनेमाघरों
में
जाने
से
घबराएंगे।
ऐसा
स्वाभाविक
है
और
इसी
लिए
कई
बड़ी
फिल्में
किसी
न
किसी
ओ
टी
टी
मंच
पर
दिखाई
जा
रही
है।
महामारी
के
दौरान
में
जब
नयी
फिल्में
छोटे
परदे
के
जरिये
दर्शकों
तक
पहुंची
,
तो
इस
से
फिल्म
उद्योग
की
मदद
ही
हुई।
कुछ
फिल्में
खास
ओ
टी
टी
के
लिए
ही
बनायीं
जा
रही
हैं
और
कुछ
बड़े
परदे
के
लिए
पर
फिलहाल
कोविड
-19
के
कारण
निर्माता
किसी
भी
तरह
अपनी
फिल्मों
को
दर्शकों
तक
पहुँचाने
की
चेष्टा
कर
रहे
है।
कुछ
बड़े
परदे
का
चुनाव
करेंगे
और
कुछ
छोटे
परदे
से
ही
संतुष्ट
हो
जायेंगे।
मुझे
उम्मीद
है
की
जल्दी
ही
समय
बदलेगा
और
सिनेमा
घरों
के
मालिकों
और
प्रदर्शकों
के
हालात
और
बेहतर
होंगे।
बड़ी
फिल्में
बड़े
परदे
पर
फिर
लौटेंगी
और
दर्शक
एक
बार
फिर
बड़ी
संख्या
में
उन्हें
देखने
आएंगे।
उन्होंने
यह
भी
कहा
की
कुछ
भी
हो
जाये
सिनेमा
और
बड़े
पर्दे
का
गहरा
रिश्ता
कभी
नहीं
टूटेगा
क्योंकि
सिनेमा
घरों
ने
बड़ी
सी
बड़ी
चुनौती
का
सामना
किया
है
जैसे
की
‘
वीडियो
पायरेसी
’,
केबल
और
सेटेलाइट
टीवी
का
आगमन
और
अब
ओ
टी
टी
का
जोर
वे
कहते
हैं
,
सिनेमा
घर
महामारी
की
मार
भी
सह
जायेंगे।
इस
वक्त
जरुरत
है
की
हम
सभी
एक
दूसरे
का
साथ
दें
बजाय
इसके
की
आपस
में
टकराएं।
'अमित जी एक
पक्के
अनुशासनवादी
है' आनंद पंडित
‘
चेहरे
’
में
अमिताभ
बच्चन
के
साथ
काम
करने
के
अनुभव
के
बारे
में
उन्होने
कहा
,
अमित
जी
एक
पक्के
अनुशासनवादी
है।
उनके
आने
से
आप
अपनी
घड़ी
का
समय
नियमित
कर
सकते
हैं।
वो
सबके
समय
की
कद्र
करते
हैं
और
पोलैंड
में
कड़ाके
की
ठण्ड
के
बावजूद
वह
सबसे
पहले
सेट
पर
पहुँचते
थे
और
हर
शॉट
ऐसे
देते
थे
मानो
अपनी
पहली
फिल्म
कर
रहे
हों।
वे
किसी
पर
हावी
होने
की
कोशिश
नहीं
करते
और
एक
विद्यार्थी
की
तरह
निर्देशक
की
बात
सुनते
हैं।
लेकिन
उनकी
ऊर्जा
जादुई
है।
मुझे
याद
है
,
एक
शाम
उन्होंने
हम
सभी
के
साथ
बितायी
और
अपने
संघर्ष
के
किस्से
सुनाये।
मैंने
उनसे
निवेदन
किया
है
की
अपनी
आत्मकथा
लिख
कर
लोगों
को
और
अधिक
प्रेरित
करें।
अभिषेक
बच्चन
के
बारे
में
पंडित
कहते
हैं
,
वे
कोविड
-19
से
जीत
कर
‘
द
बिग
बुल
’
के
सेट
पर
लौटे
और
उनकी
इच्छाशक्ति
देख
कर
हम
दंग
रह
गए।
वे
बेहद
विनम्र
और
उदार
कलाकार
है
और
अपने
अथाह
कौशल
और
प्रतिभा
का
कभी
ढिंढोरा
नहीं
पीटते।
काश
मैं
इन
पिता
पुत्र
के
साथ
‘
त्रिशूल
’
और
‘
गॉडफॉदर
’
जैसी
फिल्में
बना
पाता।
हिंदी
फिल्म
उद्योग
में
दक्षिण
भारतीय
फिल्मों
के
पुननिर्माण
के
बढ़ते
चलन
के
बारे
में
उनका
कहना
है
,
ये
कोई
नयी
बात
नहीं
है।
एक
कामयाब
कहानी
के
प्रति
सभी
आकर्षित
होते
हैं
और
इसी
लिए
अपने
‘
अर्जुन
रेड्डी
’
के
इतने
रीमेक
देखे।
अक्षय
कुमार
की
‘
लक्ष्मी
बोम्ब
’
भी
एक
रीमेक
थी।
चालीस
और
पचास
के
दशक
में
भी
जैमिनी
और
प्रसाद
प्रोडक्शंस
क्षेत्रीय
फिल्मों
को
हिंदी
में
बना
रहे
थे।
दिलीप
कुमार
की
‘
आजाद
’
बनी
थी
1955
में
और
एक
तमिल
फिल्म
का
रीमेक
थी।
उनकी
राम
और
श्याम
और
आदमी
जैसी
बहुचर्चित
फिल्में
भी
रीमेक
ही
थी।
अस्सी
के
दशक
में
जीतेन्द्र
‘
हिम्मतवाला
’,
मवाली
,
तोहफा
और
जस्टिस
चैधरी
जैसे
रीमेक
में
काम
कर
रहे
थे।
मैं
भी
चाहता
हूँ
की
जल्द
ही
एक
बहुत
ही
मनोरंजक
रीमेक
बनाऊँ।
‘
चेहरे
’
फिल्म
के
दौरान
पंडित
का
रुझान
रोमांच
से
भरी
फिल्मों
की
तरफ
हुआ
और
अब
वह
ऐसी
ही
और
फिल्में
बनाना
चाहते
हैं।
उन्होंने
कहा
,
ऐसी
कहानियां
सचमुच
मुझे
आकर्षित
करती
है
जो
अंत
तक
दर्शकों
को
दुविधा
में
रखती
है।
मैं
चाहता
हूँ
की
नए
लेखकों
और
कलाकारों
के
साथ
मिलकर
एक
ऐसी
फिल्म
बनाऊं
जो
सबको
चकित
कर
दे।