हरिहर जेठालाल जरीवाला उर्फ़ हरिभाई को जानते हैं आप? नहीं! अच्छा तो संजीव कुमार को तो जानते ही होंगे, बस वही असल जिंदगी के हरिभाई जरीवाला थे।

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हरिहर जेठालाल जरीवाला उर्फ़ हरिभाई को जानते हैं आप? नहीं! अच्छा तो संजीव कुमार को तो जानते ही होंगे, बस वही असल जिंदगी के हरिभाई जरीवाला थे।

संजीव कुमार एक ऐसे कलाकार थे जिनके लिए कोई रोल नामुमकिन नहीं था। वो अपनी जवानी के दिनों में बुज़ुर्ग के रोल में आए तो अगली ही फिल्म में उसी हीरोइन के साथ रोमांस करते भी नज़र आए।

संजीव कुमार की फैमिली सूरत में थी जब 9 जुलाई 1938 को संजीव कुमार हुए। फिर मात्र 5 साल की उम्र में ही उनका परिवार कारोबार के सिलसले में मुंबई शिफ्ट हो गया और हरिहर जेठालाल का सारा ध्यान थिएटर और सिनेमा में लग गया। कहते हैं कि जब संजीव कुमार 22 साल के थे तभी से वह बुर्ज़ुर्गी वाले करैक्टर निभाने में माहिर हो गए थे। आर्थर मिलर के एक प्ले – all my sons में 65 साल के बुड्ढे बने थे और उनकी हकीकतन तब उम्र मात्र 22 साल थी। वहीं ए के हंगल के प्ले डमरू में वह 60 साल के बूढ़े बने थे जिसके छः बच्चे भी थे।

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संजीव कुमार को फिल्मों में भी उसी उम्र में ब्रेक मिला –हम हिन्दुस्तानी उनकी पहली फिल्म थी। संजीव कुमार IPTA और इंडियन नेशनल थिएटर से ट्रेंड हुए एक्टर थे। इस फिल्म में सुनील दत्त, जॉय मुख़र्जी, आशा पारेख, हेलेन, आघा और प्रेम चोपड़ा भी थे।फिर भी संजीव कुमार के अभिनय की तारीफ हुई। ये फिल्म 1960 में आई थी। इसके बाद संजीव कुमार को लीड रोल तक पहुँचने में 5 साल लग गए। 1965 में संजीव कुमार डबल रोल निभाते हुए फिल्म निशान में दिखे। इस फिल्म में उनके काम को सराहा गया। इसके बाद संजीव कुमार ने ‘अली बाबा चालीस चोर, पति पत्नी, स्मगलर, आदि कई फिल्में कीं पर कोई भी बड़ी हिट न हो सकी। साथ ही संजीव कुमार सपोर्टिंग रोल्स भी करते रहे।

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1968 में दिलीप कुमार, बलराज साहनी और वैजंतीमाला जैसी बड़ी स्टार कास्ट के सामने संजीव कुमार के छोटे से रोल को न सिर्फ नोटिस में लिया गया बल्कि जमकर तारीफ भी की गयी। खुद मरहूम दिलीप साहब ने संजीव कुमार के हुनर की जमकर तारीफ की और कहा ये एक्टर बहुत नाम कमायेगा। और ये बात दिलीप कुमार साहब ने सिर्फ कहने के लिए नहीं कही, मज़ा देखिए, सन 1974 में आई फिल्म नया दिन नई रात में 9 रोल्स का चलेंजिंग ऑफर पहले दिलीप साहब को मिला थालेकिन उनका बड़प्पन देखिए, उन्होंने कहा कि ये रोल आप हरिभाई से करवाएं, वो मुझसे बेहतर कर सकेंगे। संजीव कुमार ने वो नौ रोल इस ख़ूबसूरती से निभाये कि उनके फैन्स की भरमार हो गयी। यह तमिल फिल्म नवरात्री की रीमेक थी जिसमें संजीव कुमार वाले नौ करेक्टर शिवाजी गणेशन ने पहले निभाए थे। यूँ तो रीमेक करने के मामले में भी संजीव कुमार का कोई सानी नहीं, लेकिन उसका किस्सा आगे आयेगा।

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1974 से कहीं पहले, सन 1970 में खिलौना वो पहली फिल्म थी जिसने संजीव कुमार को पूरे देश में चर्चित कर दिया था। यह फिल्म भी रीमेक थी पर साउथ सिनेमा से नहीं बल्कि संजीव कुमार के घर, गुजरात से। मारे जेवू पेले पार नामक गुजराती फिल्म भी अच्छी हिट थी। इसी साल संजीव कुमार की सात फिल्मों ने खिलौना के सिवा एक और ज़बरदस्त फिल्म रिलीज़ हुई जिसका नाम था – दस्तक। यह फिल्म बेहतरीन साहित्यिक लेखक राजिंदर सिंह बेदी ने डायरेक्ट की थी। इस फिल्म के लिए संजीव कुमार नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया था।

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इसी फिल्म के लिए महान संगीतकार मदन मोहन को भी नेशनल अवार्ड मिला था पर उसका भी एक किस्सा है। लम्बे म्यूजिक कैरियर में एक भी अवार्ड न मिले होने के कारण मदन मोहन इतने निराश थे कि नेशनल अवार्ड लेने से ही मना कर दिया था पर तब संजीव कुमार उनके घर गए और उन्हें इस धमकी के साथ मनाया कि अगर आप नहीं चलोगे तो मैं भी अवार्ड लेने नहीं जाऊंगा।

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मदन मोहन जानते थे कि ये अवार्ड हरी के लिए कितना इम्पोर्टेन्ट है। फिर भी वो मेरी ख़ातिर अवार्ड छोड़ने को राज़ी है। तब वह दोनों ही संग-संग दिल्ली आए थे।

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इस फिल्म के बाद संजीव कुमार ने एक भारतीय-इरानी फिल्म सुबह और शाम की, जिसे देख गुलज़ार ने मन बना लिया कि कम से कम एक फिल्म में तो इस कलाकार को ज़रूर कास्ट करूंगा। असल में गुलज़ार 1971 में मेरे अपने डायरेक्ट कर चुके थे और अपनी अगली फिल्म परिचय और कोशिश बनाने की तैयारी में थे। लेकिन जब दोनों की मुलाकात हुई तो एक क्या, छः फिल्मों में इम्पोर्टेन्ट रोल दिया। फिल्म परिचय में वह जया बच्चन के पिता बने थे लेकिन कोशिश में वो दोनों पति पत्नी बने थे। फिल्म कोशिश के लिए फिर संजीव कुमार को नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया।

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इसके बाद तो संजीव कुमार के पास फिल्मों की झड़ी लग गयी। लीड एक्टर में हिट होने के बवजूद, संजीव कुमार ने कभी करैक्टर रोल प्ले करने से मना नहीं किया। बल्कि उन्हें तो अच्छा लगता था कि उन्हें एक से बढ़कर एक चलेंजिंग रोल मिलें। अनहोनी, मनचली, सीता और गीता, अग्नि रेखा, आदि फिल्में अच्छी हिट हुईं और संजीव कुमार साल में 8-8 फिल्में करने लगे। 1975 संजीव कुमार का सबसे अच्छा साल गया क्योंकि इसी साल मौसम, आंधी और शोले रिलीज़ हुई थी। यूँ तो संजीव कुमार अमिताभ संग फरार में भी थे और उनके रोल की तारीफ भी हुई थी लेकिन इन तीन फिल्मों ने उन्हें देश ही नहीं दुनिया में पहचान दिलवाई थी। आंधी के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था। वहीँ मौसम के लिए वो फिल्मफेयर में नोमिनेट हुए थे और शोले के ठाकुर बलदेव सिंह को तो आजतक लोग भुला न सके हैं।

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रमेश सिप्पी जब सारी कास्टिंग फाइनल कर चुके थे तब धर्मेन्द्र ने उन्हें अप्रोच की कि उन्हें ठाकुर का रोल दिया जाए। यहाँ सिप्पी मुसीबत में फंस गए। लेकिन फिर उन्होंने उपाए निकाला और कहा कि “धरम जी अगर आप ठाकुर बनेंगे तो मुझे संजीव कुमार को वीरू बनाना पड़ेगा, यूँ आप वीरू बनेंगे तो हेमा मालिनी के साथ आपके ज़्यादा सीन्स होंगे, वर्ना हेमा के साथ संजीव कुमार रोमांस करते नज़र आयेंगे” ये ट्रिक काम कर गयी और ठाकुर बलदेव सिंह बने संजीव कुमार अमर हो गए। मज़े की बात है कि संजीव कुमार शोले के लिए भी फिल्मफेयर में नोमिनेट हुए यानी 5 में से 3 नॉमिनेशन्स संजीव कुमार के पास थीं।

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संजीव कुमार यूँ तो अपने गंभीर अभिनय के लिए और नये नये गेटअप लेने के लिए जाने जाते थे लेकिन जब कॉमेडी की है तो उसमें भी पेट पकड़कर हँसने पर मजबूर कर दिया है। यह फिल्में थीं ‘बीवी ओ बीवी’ और गुलज़ार निर्मित ‘अंगूर’, मज़े की बात है कि अंगूर भी शेक्सपियर के प्ले कॉमेडी ऑफ एरर्स पर बनी एक तरह से रीमेक ही थी।

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रीमेक का मामला कुछ यूँ था कि जहाँ बॉलीवुड संजीव कुमार को एक से बढ़कर एक करैक्टर रोल देता था वहीं साउथ फिल्ममेकर्स अपनी तमिल-तेलुगु रीमेक के लिए संजीव कुमार को ही लीड रोल में देखते थे।

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ऐसी फिल्में कोई एक दो नहीं बल्कि दस हैं। जिनमें चंदा और बिजली, खिलौना, नया दिन नई रात, शानदार, ये है ज़िन्दगी, देवता, टक्कर, श्रीमान श्रीमती और राम तेरे कितने नाम शामिल है।

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1982 में द शो मैन सुभाष घई की बदौलत संजीव कुमार एक बार फिर दिलीप साहब के साथ स्क्रीन शेयर करते नज़र आए और इन दोनों एक्टर्स के सदके फिल्म सुपर दुबार हिट हो गयी।  इस फिल्म के लिए संजीव कुमार फिर फिल्मफेयर में नोमिनेट भी हुए।

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उनको जानने वाले कहते हैं कि हरिभाई कंजूस भी बहुत थे और बात करें उनके सपनों की तो संजीव कुमार अपने दो अधूरे सपने कभी पूरे ना कर सके। ना उनकी शादी हो पाई और न ही वो कभी मुंबई शहर में बंगला ले पाए।

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हेमा को उन्होंने कई बार प्रपोज भी किया लेकिन हरबार जवाब ना में ही आया। तीसरी बार अपने जिगरी दोस्त जितेंद्र को हेमा के पास अपने रिश्ते की बात करने के लिएभेजा। लेकिन यहाँ असल जिंदगी में फिल्मी किस्साहो गया। कहा जाता है कि जितेंद्र को हेमा पहले से पसंद थी और कामयाब सितारे वो बन ही चुके थे। बस फिर क्या था, लगे हाथ हेमा से मिले और प्रपोज कर दिया। हेमा मान भी गई लेकिन तभी धमेंद्र को अपना पत्ता साफ होने की भनक लग गई और हेमा के घर पर फोन घुमा दिया और जैसे-तैसे हेमा को मनाया और हेमा को उड़ा ले गए।

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इस बात से संजीव का दिल इस कदर टूटा कि देवदास से बन गए।

वहीँ सुलक्षणा पंडित उन्हें पसंद करती थीं पर संजीव कुमार चाहकर भी उन्हें पसंद नहीं कर पा रहे थे। एक रोज़, सुलक्षणा ने संजीव कुमार को प्रोपोज़ कर दिया पर संजीव कबूल न कर पाए और सुलक्षणा ने आजीवन अविवाहित रहने की कसम खा ली।

वो हमेशा कहते थे कि ‘मेरे परिवार में कोई भी ‘आदमी’ पचास साल पूरे नहीं कर पाया, मैं भी नहीं कर पाऊंगा।‘ उनके भाई भी छोटी उम्र में ही स्वर्गवासी हो गये थे इसलिए उनका डर लाज़मी था। अपने दूसरे भाई की मौत से तो वो और डर गए थे।

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मुंबई में एक बंगला लेना चाहते थे। कभी जगह पसंद नहीं आती थी तो कभी पैसे कम पड़ जाते थे। एक रोज़ उन्हें उनके दोस्त ने बढ़िया बजट में बांद्रा में एक बंगला दिखाया भी तो हरिभाई टाल गए। बोले कुछ समय बाद ले लूँगा। हेमा से प्यार के इज़हार इनकार के बावजूद उनकी दोस्ती बनी हुई थी। जब उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा तो उनके दोस्तों ने ही उन्हें संभाला था। उनके दोस्तों में मुख्य राजेश खन्ना, हेमा मालिनी, शर्मीला टैगोर, शशि कपूर, देवेन वर्मा, साउथ के शिवाजी गणेशन और नागी रेड्डी थे। सचिन पिलगावकर को भी वह बहुत मानते थे।

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हां एक और मजे की बात है, लेजेंड ‘गुरुदत्त’ का जन्मदिन भी नौ जुलाई को, संजीव कुमार के साथ ही आता है।

‘मुग़ल-ए-आज़म’ जैसी फिल्म के निर्माता निर्देशक के॰ आसिफ ‘लव एंड गॉड’ गुरुदत्त के साथ बनाना चाहते थे पर गुरुदत्त के ‘चल बसने’ के बाद उन्होंने संजीव कुमार के साथ फिल्म शुरु की लेकिन बदकिस्मती से, ये फिल्म पूरी होने से पहले ही के आसिफ और हरी भाई दोनों ही दुनिया छोड़ गए।

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वह कम से कम पचास साल से ऊपर जीना चाहते थे। अफ़सोस के कोई भी सपनापूरा ना कर सके। आख़िरकार एक दिन एक बंगला फाइनल हो गया, अमाउंट भी उनके बजट में था और बंगला भी उन्हें पसंद था, उसी दिन उनको हार्ट अटैक आ गया और वो चल बसे और अपने चाहने वालों के दिल में अपनी आवाज़ और हुनर हमेशा के लिए छोड़ गए...

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