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Siddharth Arora 'Sahar'

ताजा खबर: सुपरस्टार एक्ट्रेस श्री अम्मा यांगर अय्यपन के कुछ मज़ेदार किस्से बड़े मशहूर हैं। नहीं पहचाना? यह वही एक्ट्रेस हैं जिनके लिए ‘शोला और शबनम’ में अनुपम खेर दीवाने होते नज़र आए हैं और गोविंदा उन्हें मौके-मौके पर तंग करते नज़र आए थे।

यूँ तो बिमल रॉय का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। दो बीघा ज़मीन, सुजाता, बंदिनी, मधुमतीआदि सन 50 और 60 के दशक की वो फिल्में हैं जिन्हें देश ही नहीं दुनिया भर में ख्याति मिली है। बिमल रॉय जिन्हें तब इंडस्ट्री बिमल दा के नाम से बेहतर जानती थी; 1935 में आई

नवकेतन बैनर की नौवीं फिल्म में देव आनंद और उनके भाई विजय आनंद ने सोचा क्यों न अगली फिल्म के म्यूजिक के लिए सचिन देव बर्मन और शैलेन्द्र की जोड़ी को चुना जाए। इस फिल्म का नाम तय हुआ - काला बाज़ार (1960) अच्छा सचिन दा कितने गुस्से वाले आदमी हैं ये आप सब

1942 में वो कुल 9 साल की थीं जब उनके पिता, स्टेज के जानेमाने नाम, संगीत के चर्चित कलाकार दीनानाथ मंगेश्कर की मृत्यु हो गयी। वो दौर कुछ ऐसा था कि घर में पिता और दुनिया में हिटलर एक ही सी भूमिका बाँधे रखते थे। हिटलर का तो जानते ही हैं, दीनानाथ जी से भी उनके

उस पंद्रह अगस्त को देश आज़ाद हुए सिर्फ छः साल हुए थे, यानी वो साल 1951 था जब अगरतला, त्रिपुरा में बसी एक पंजाबी फैमिली में नया मेहमान आया था। इसका नामकरण हुआ – राजिंदर धवन। धवन फैमिली अपने दोनों बच्चों, अनिल और राजेंद्र धवन को लेकर कानपुर शिफ्ट हो गयी

भारतीय सिनेमा में एक दौर था जब कहते थे कि ये सिनेमा का नहीं, अमिताभ बच्चन का दौर है। कहा ये भी जाता है कि अमिताभ वो आँधी थे जिनके सामने सब उड़ जाते थे सिवाये एक के, और वो एक थे ‘ऋषि कपूर’ 4 सितंबर 1952 को जन्में, दरमियाने कद के, बेइंतहाँ खूबसूरत हमा

भारत में बनी मोस्ट कंट्रोवरशियल फिल्मों में से एक बैंडिट क्वीन शेखर कपूर की एक ऐसी फिल्म है जिससे कई बड़े नाम मिले थे। जो 1994 में इतनी वोइलेंट और रॉ थी कि उसे बैन करने की मांग उठने लगी थी। बैंडिट क्वीन ऐसी फिल्म थी जिसमें एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार ऐस

कहानी में वो दिखाना जो लोगों ने कभी सोचा भी न हो, मल्टीस्टारर फिल्में बनाना और एक्शन भी ऐसा रखना कि दर्शकों की दांतों तले उंगलियाँ दब जायें। फिर सबसे बड़ी बात, ऐसे लार्जर देन लाइफ करैक्टर्स जिनको देखकर हॉलीवुड के सुपर हीरोज़ भी शरमा जाएँ, अब तो आप समझ ही गय

सुशांत सिंह राजपूत अपनी ख़ुशमिज़ाजी और मासूमियत के चलते पूरी दुनिया के दर्शकों के बीच ही फेमस थे। यूँ एक्टर राजपूत का फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने का कोई इरादा नहीं था, सेवंथ रेंक वाले IITIAN रहे थे।  लेकिन जाने क्या हुआ कि चकाचौंध भरी ये दुनिया उन्हें आकर्षित

सन  1965 में जब फिल्म आरज़ू आई तो खासकर युवा दिलों को इस फिल्म से बहुत उम्मीद जगी। उम्मीद लगती भी क्यों न, उस दौर में राजेन्द्र कुमार और बॉलीवुड की रानी साधना, दोनों ही युवा दिलों की धड़कन हुआ करते थे। सिनेमा हॉल में फिल्म देखते हुए दर्शकों ने तब दिल ही

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