12 नवम्बर 1940 को स्टार एक्टर जयंत (ज़कारिया खान) के घर एक नया मेहमान आया। उस नन्हें मुन्ने का नाम रखा गया, अमज़द। मात्र 11 साल की उम्र में ही उस बालक ने पहली बार कैमरा फेस किया, फिल्म का नाम था नाज़नीन और ये बात है सन 1951 की। उस दौर में पिता जयंत ने चाहा कि वो अपने बेटे का भी कोई स्टेज नाम रखें जैसे उन्होंने अपना रखा था।
नाम तय हुआ नीरज, फ़िल्म मिली अब दिल्ली दूर नहीं। उस समय अमज़द की उम्र मात्र 17 साल थी। यह फिल्म राज कपूर ने बनाई थी और इसका डायरेक्शन अमर कुमार के हाथ था। लेकिन नीरज बने अमज़द खान किसी ख़ातिर में नहीं लिए गए।
पर उनका थिएटर में काम करना रेगुलर हो गया। उन्होंने इसी बीच के आसिफ के असिस्टेंट के रूप में भी काम करना शुरु कर दिया। सन 60 में के आसिफ की फिल्म लव एंड गॉड में वो असिस्टेंट के रूप में थे और उन्हें छोटा सा रोल भी मिला था। पर अपनी आदत से मजबूर के आसिफ ने फिल्म पूरी करने में ज़रूरत कहीं ज़्यादा वक़्त लगा दिया और फिल्म अगले दशक के लिए टल गई।
इस दौरान वह जम के थिअटर करते रहे। कॉलेज टाइम में ही अमज़द इतने दबंग थे कि सब उन्हेंड दादा कहते थे। लेकिन बॉलीवुड में काम करना उनके लिए इतना आसान न रहा। या ये लिखना ज़्यादा अच्छा है कि वह ख़ुद फिल्मों में काम को लेकर कोई ख़ास इंटरेस्टेड नहीं थे। साल 1973 में, यानी अपनी उम्र के 33वें वर्ष में उन्होंने हिन्दुस्तान की क़सम फिल्म में छोटा सा रोल किया जो ख़ासा नोटिस में भी आया, पर उसके बाद काम को लेकर कोई भागादौड़ी उन्होंने नहीं की।
दो साल और बीते, सलीम खान और जावेद अख़्तर की आने वाली फिल्म रमेश सिप्पी से बना रहे थे। उन्हें एक ऐसे विलन की तलाश थी जो खूँखार और सर्कास्टिक दोनों लगे। जिसकी आवाज़ में दम हो। उन्होंने इस रोल के लिए डैनी को चुना।
एमजीआर डैनी चाहते हुए भी यह रोल न कर सके क्योंकि वह एक अन्य फिल्म के लिए अफगानिस्तान जा रहे थे। तब निराश परेशान सिप्पी यूँहीं थिएटर देखने पहुँच गए। स्टेज पर जब अमजद खान की एंट्री हुई तो वह आर्मी यूनिफार्म के साथ दाढ़ी बढ़ाए डायलॉग बोल रहे थे।
रमेश सिप्पी को पहली ही नज़र में अपना गब्बर मिल गया। सिप्पी ने वहीं अमजद को संक्षिप ऑडिशन के लिए ऑफिस बुलाया। अमजद खान भी होशियार थे, वह सेम यूनीफॉर्म में कमर में बेल्ट फंसाए पहुँच गए सिप्पी के ऑफिस, जब रमेश सिप्पी ने उनसे डायलॉग बुलवाया तो उन्हें अमजद की आवाज़ नहीं जमी। लेकिन सलीम जावेद की जोड़ी के लिए अमजद परफेक्ट मैच थे।
फिर जब फिल्म रिलीज़ हुई और 3 दिन के बाद हिट होनी शुरु हुई तो अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी और जया बच्चन के होते हुए भी पहली बड़ी फिल्म करते अमजद खान सारी तारीफें बटोर ले गए। गब्बर यानी अमजद खान के डायलॉग इस कदर हिट हुए कि कितने ही कॉमेडियन और स्टेज परफॉर्मर्स ने सालों अपना घर चलाया।
शोले में गब्बर के कुछ ऐसे डायलॉग प्रस्तुत जो कभी न भुलाए जा सकेंगे
कितने आदमी थे?
वो दो और तुम तीन, फिर भी वापस आ गये, खाली हाथ, का सोच कर आये थे कि सरदार बहुत खुस होगा, साबाशी देगा क्यों?
अरे ओ रे साम्भा, कितना इनाम रखे है रे सरकार हम पे? पूरे पचास हज़ार, सुना!
क्योंकि यहाँ से पचास पचास कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो माँ कहती है कि सोजा बेटे सोजा, सोजा वर्ना गब्बर सिंह आ जायेगा! और ये तीनों हरामजादे, हमारा नाम पूरा मिट्टी में मिला दिए.
कितनी गोली हैं इसमें? छः.. बहुत नाइंसाफी है. अब इस पिस्तौल में तीन ज़िन्दगी कैद हैं और तीन मौत, देखें किसे क्या ,मिलता है.
अब तेरा क्या होगा कालिया
जो डर गया, समझो वो मर गया
होली कब है? कब है होली?
गब्बर के ताप से तुम्हें एक ही आदमी बचा सकता है, ख़ुद गब्बर
बहुत मज़ा आयेगा, बड़े दिनों बाद कोई मिला है जो इतनी बात कर सके, बहुत मजा आयेगा.
बहुत याराना लगता है
ये रामगढ़ वाले अपनी छोकरियों को कौन चक्की का आटा खिलाते हैं.
जब तक तेरे पैर चलेंगे, तब तक इसकी साँसे चलेंगी
दुनिया की किसी जेल की दीवार इतनी पक्की नहीं है कि गब्बर को बीस बरस रोक सके
ये हाथ हमको दे दे ठाकुर
तू क्या मुझे मरेगा ठाकुर, तेरे हाथ तो पहले ही काट के फेंक चुका हूँ मैं
यूँ तो शोले ने अमजद खान को पहली ही बड़ी फिल्म से सीधे इंडस्ट्री की टॉप सीट में पहुँचा दिया था पर बहुत कम लोग जानते हैं कि शोले से काफ़ी पहले अमजद खान को दूरदर्राशन की रामायण के रचियेता डॉक्टर रामानंद सागर कास्ट कर चुके थे. उन्होंने भी अमजद को पहली बार थिएटर में ही देखा था और वह अमजद खान की डायलॉग डिलीवरी के कायल हो गये थे. उनकी फिल्म में अजमद खान का रोल गुंडे के राईट हैण्ड का था. फिल्म का नाम था ‘चरस’. लेकिन चरस से ज़रा पहले शोले रिलीज़ हो गयी और अमजद खान स्टार बन गये.
लेकिन ये अमजद की शराफत थी कि उन्होंने रामानंद सागर की फिल्म को पूरा करने से मना नहीं किया और न ही अपने लेस-इम्पोर्टेन्ट रोल को लेकर कोई आपत्ति दर्ज की.
लेकिन रामानंद सागर भी ऐसे नेकदिल आदमी थे कि उन्होंने न सिर्फ अमजद खान के पहले से तय महनताने में इजाफ़ा किया बल्कि उनका छोटा सा मामूली करैक्टर भी बदल दिया और अमजद खान को इंटरनेशनल ड्रग लार्ड दिखा दिया. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर कामयाब रही.
अमजद खान यूँ तो पूरी इंडस्ट्री से ही बहुत अच्छे से मिलते जुलते थे. उनकी सबसे ही दोस्ती थी. बल्कि किन्हीं दो स्टार्स में अगर अनबन हो गयी है तो अमजद खान बीच-बचाव कराने में भी माहिर माने जाते थे.
बताया जाता है कि राजकुमार संतोषी फिल्म दामिनी से मिनाक्षी शिशाद्री को निकालने का मन बना चुके थे. कारण बहुत अजीब था कि राजकुमार संतोषी का दिल मिनाक्षी पर आ गया था और जब उन्होंने मीना को प्रपोज़ किया तो वह नहीं मानी. मिनाक्षी उन्हें उस नज़र से पसंद नहीं करती थीं. बस इतनी सी बात पर राजकुमार संतोषी ने फिल्म की लीड हीरोइन को ही रिप्लेस करने की ठान ली.
तब अमजद खान ने अपना दादा वाला किरदार निभाते हुए दोनों के बीच सुलह करवाई और राजकुमार को उनकी ग़लती का एहसास दिलाया. इस तरह दामिनी पूरी हुई और रिलीज़ के बाद मिनाक्षी की लाइफ की सबसे बड़ी फिल्म साबित हुई.
यूँ तो अमजद शैला से शादी कर तीन बच्चे भी कर चुके थे लेकिन फिर भी उनका दिल एक्ट्रेस कल्पना अय्यर पर आ गया. दोनों शादी भी करना चाहते थे लेकिन अमजद को वक़्त रहते ही समझ आ गया कि इस तरह ब्याह कर लेने से उनका अपना घर टूट जायेगा और बच्चे परेशान हो जायेंगे. बस उन्होंने शादी का इरादा किनारे कर दिया लेकिन आख़िरी दम तक कल्पना को गाइड किया, उनका सपोर्ट किया.
अमजद खान के सबसे ख़ास दोस्तों में अमिताभ बच्चन थे. अमिताभ के साथ उन्होंने दर्जनों फ़िल्में कीं और शुरुआत की फिल्मों में जहाँ वह दोनों हीरो और विलन रहते थे, वहीं बाद में ‘दोस्ताना’ या लावारिस में दोस्त और बाप बेटे भी बने. दोनों की दोस्ती की मिसालें दी जाती थीं.
शोले के बाद मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, गंगा की सौगंध, सुहाग, राम बलराम, याराना, नसीब, लावारिस, सत्ते पे सत्ता, कालिया, मिस्टर नटवर लाल, आदि फिल्मों में दोनों ने संग काम किया
अमजद खान यूँ तो कोम्मेर्शियल फिल्मों में ही नज़र आते थे पर चेंज के लिए उन्होंने सत्यजीत रे की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में ऐसा अभिनय किया कि आलोचकों ने भी जमकर तारीफ की. वहीं गुलज़ार की फिल्म मीरा में उन्होंने बादशाह अकबर का किरदार निभाया. यह फिल्म उतनी चल न सकी फिर भी अमजद खान के करैक्टर को पसंद किया गया.
बहुत से लोग पीठ पीछे अमजद खान के भारी भरकम शरीर का मज़ाक बनाते थे पर इसके पीछे का भी एक दुखद कारण था. 1976 में अमजद खान एक भयंकर एक्सीडेंट से गुज़रे थे. उनकी कई पसलियाँ टूट गयी थीं और फेफड़ों में धंस गयी थीं. वो ऊपर वाले के बहुत शुक्रगुज़ार होते हैं कि इतने बुरे एक्सीडेंट के बाद भी वह बच गये.
यहाँ से ही अमजद खान का वजन बढ़ता चला गया और वह एक समय इतने मोटे हो गये कि उन्हें सौ तरह की बीमारियों ने घेर लिया.
अमजद खान ख़ुद कहते थे कि ‘जो डर गया, समझो वो मर गया’
इसीलिए वो कभी अपनी हालत से डरे या घबराए नहीं. मात्र 51 साल की उम्र में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो ऐसे गिरे की फिर उठ न सके.
अपनी दमदार आवाज़, अपने जोरदार अभिनय और अपनी नेकनीयत के चलते अमजद खान को पूरी इंडस्ट्री ने आंसुओं से भीगी विदाई दी और अमिताभ बच्चन, उनके परम मित्र, सबसे ज़्यादा दुखी हुए थे.
पर कलाकार कभी मरते नहीं, कलाकार की कला हमेशा ज़िंदा रहती है और उनकी कला को दुनिया हमेशा सराहती रहती है.
Amjad Khan Family
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