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प्रधानमंत्री संग इस आर्टिस्ट ने भी दी रेडियो डे की बधाई, जाने कौन है गुइलमों मार्कोनी

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By Siddharth Arora 'Sahar'
प्रधानमंत्री संग इस आर्टिस्ट ने भी दी रेडियो डे की बधाई, जाने कौन है गुइलमों मार्कोनी
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दोस्तों आज विश्व रेडियो दिवस है। आज के युग में भले ही मोबाईल ने रेडियो को लगभग भूलने पर मजबूर कर दिया लेकिन आज से 30 साल पहले ये गैजेट हर घर का, हर परिवार का अभिन्न सदस्य हुआ करता था। रेडियो पर खबरें सुनी जाती थीं, रेडियो पर ही नए गाने सुने जाते थे। कौन सी फिल्म किस रोज़ आने वाली है ये सब जानकारी रेडियो ही देता था। आज की तारीख में रेडियो का नाम सुनते ही सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात सबसे पहले याद आती है। - सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'

जानिए कैसे आया रेडियो वजूद में

प्रधानमंत्री संग इस आर्टिस्ट ने भी दी रेडियो डे की बधाई, जाने कौन है गुइलमों मार्कोनीगुइलमों मार्कोनी (Guglielmo Giovanni Maria Marconi 25 April 1874 – 20 July 1937) इटालियन इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे लेकिन उनकी पहचान रेडियो ट्रैन्ज़्मिशन की खोज के लिए हुई। युवावस्था से ही मार्कोनी को विज्ञान और इलेक्ट्रिसिटी में रुचि थी। 1890 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने 'वायरलेस टेलीग्राफी' के आइडीया पर काम करना शुरू किया। यानी, इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ द्वारा इस्तेमाल किए गए तारों को जोड़े बिना टेलीग्राफ संदेशों को भेजने की कोशिश की। यह कोई नया विचार नहीं था; कई इंवेटर्स पिछले 50 से अधिक वर्षों से बिजलीचलित, एल्क्ट्रोमैग्नेटिक इनडक्शन और ऑप्टिकल (प्रकाश) सिग्नलिंग का उपयोग करते हुए वायरलेस टेलीग्राफ प्रौद्योगिकियों और यहां तक कि निर्माण प्रणालियों की खोज की थी, लेकिन कोई भी तकनीकी और व्यावसायिक रूप से सफल साबित नहीं हुआ था।

हेनरिक हर्ट्ज से एक अपेक्षाकृत नई खोज की, उन्होंने 1888 में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल के काम की स्टडी के आधार पर, विद्युत चुम्बकीय विकिरण का उत्पादन और पता लगा सकता है। उस समय, इस विकिरण को आमतौर पर 'हर्ट्ज़ियन' वेव्स (जिन्हें आप रेडियो में hw के नाम से देखते होंगे) कहा जाता था, और अब इसे आमतौर पर रेडियो तरंगों के रूप में जाना जाता है।

प्रधानमंत्री संग इस आर्टिस्ट ने भी दी रेडियो डे की बधाई, जाने कौन है गुइलमों मार्कोनी Henrich Hertz

हर्ट्स की थ्योरी पर बहुत लोगों ने आगे काम शुरू किया था जिनमें ऑगस्टो रीही ने भी हर्ट्स पर कुछ लेख लिखे थे। उन्हीं से इन्स्पाइअर्ड होकर मार्कोनी ने रेडियो टेलेग्राफी पर काम शुरु कर दिया। उस वक़्त मार्कोनी की उम्र कुल 20 साल थी जब वो अपने नौकर की मदद से प्रयोग शुरु कर दिए।

आखिर कामयाबी माँ के हाथों से मिली

1894 की गर्मियों के दिन थे जब गुइलमों ने खुशी-खुशी दूसरे कमरे में बैठी अपनी माँ को एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पकड़ाया और खुद अपने कमरे में जाकर घंटी बजाई (डेस्क बेल), नतीजा सुखद निकला और उनकी माँ को उस घंटी की आवाज़ उस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से आई जिसे इन्वेन्टर मार्कोनी ने रिसीवर का नाम दिया और जो यंत्र उनके पास था उसे पोर्टेबल ट्रांसमीटर कहा। अपनी खोज को और पुख्ता करने के लिए उन्होंने किसी किताब का एक पेज पढ़ना शुरु किया जो उनकी माँ को ज़रा-बहुत खड़खड़ाहट के बाद उनकी माँ को उनकी आवाज़ आने लगी।

प्रधानमंत्री संग इस आर्टिस्ट ने भी दी रेडियो डे की बधाई, जाने कौन है गुइलमों मार्कोनीबस यहाँ से मार्कोनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। और इस तरह, दिनों दिन अपडेट करते-करते वो समय भी आया जब रेडियो वेव्स डिफेंस फोर्सेस के लिए सबसे इम्पॉर्टन्ट हथियार हो गईं। ज़रा सोचिए अगर रेडियो न होता तो कैसे एक से दूसरी सेना टुकड़ी के बीच सपर्क स्थापित हो पाता।

इसलिए नोबेल पुरस्कार विजेता गुइलमों मार्कोनी को ट्रिब्यूट देते हुए ऑडिशा के इस आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने रेत पर उनकी इतनी खूबसूरत कलाकृति बनाई है।

दिग्गज नेताओं ने  भी दी रेडियो दिवस की बधाई

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेडियो दिवस की बधाई ट्वीट करके दी है।

उनके साथ-साथ नितिन गडकरी ने भी रेडियो दिवस की बधाई ट्वीट के माध्यम से दी।

ऑडिशा सरकार ने भी रेडियो दिवस की बधाई प्रेषित की। साथ ही अन्य कुछ नामी रेडियो जॉकीज़ ने भी रेडियो दिवस पर मुबारकबाद दी व शुक्रियादा किया।

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