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शोर्ट फिल्म ‘अल्मारियां’ करने के बाद इंसान के तौर पर मुझमें काफी बदलाव आया है: प्रणव सचदेव

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शोर्ट फिल्म ‘अल्मारियां’ करने के बाद इंसान के तौर पर मुझमें काफी बदलाव आया है: प्रणव सचदेव

‘जिंदगी डॉट कॉम’, ‘अगर तुम साथ हो’ जैसे टीवी सीरियल, हद दिल्लीवुड, माया 2, अनफ्रैंड जैसी वेब सीरीज के साथ कई विज्ञापन फिल्मो में अभिनय कर चुके प्रणव सचदेव इन दिनों ‘एफएनपी मीडिया’ की जिया भारद्वाज निर्देशित नई लघु फिल्म ‘अल्मारियां’ को लेकर चर्चा में है। धीरे-धीरे चर्चा का केंद्र बिंदू बनती जा रही इस लघु फिल्म में प्रणव सचदेव के साथ राजेश शर्मा व सुप्रिया शुक्ला भी अभिनय कर चुकी हैं. दिल्ली में जन्में और दिल्ली के हंसराज हंस कालेज से पढ़ाई करने वाले प्रणव सचदेव अभिनेता होने के साथ साथ ‘एलसीएम इंटरटेनमेंट’ नामक प्रोडक्शन हाउस के सहसंचालक हैं. जिसके तहत वह नाटको का निर्माण व निर्देशन, फिक्शन कार्यक्रम वगैरह बनाते रहते हैं। वह अब तक पंद्रह नाटकों का निर्देशन व उनमें अभिनय कर चुके हैं। प्रस्तुत है प्रणव सचदेव से हुई बातचीत के अंषः

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लघु फिल्म अल्मारियांसे जुड़ना कैसे हुआ?

मैं अजय कृष्णन द्वारा लिखित ‘कमिंग आउट‘ नामक एक लघु नाटक का निर्देशन करता था। लेकिन मैं अक्सर सोचा करता था कि इस नाटक की कहानी पर तो फिल्म बननी चाहिए। मेरे दिमाग में इस कहानी को फिल्म पटकथा में परिवर्तित कर इसे व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुॅचाने का विचार हिलोरे मारता रहता था। जिया उन बेहतरीन लेखकों में से एक हैं, जिन्हें मैं जानता रहा हूं। इसलिए मैंने सामग्री के साथ उनसे संपर्क किया। उन्होंने अजय कृष्णन द्वारा लिखित ‘कमिंग आउट‘ नामक एक लघु नाटक पर फिल्म पटकथा लिखी। फिर उन्होंने मुझे इसमें बेटे का किरदार निभाने का अवसर दिया।”

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लघु फिल्म अल्मारियांके अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

फिल्म ‘अलमारियां’ से पहले मैं बार्डरलाइन होमोफोबिया था। मैंने लघु फिल्म ‘अल्मारियां’ मेरे साथ होने से पहले मैं सीमा रेखा होमोफोबिक था। एक सीधा आदमी होने के नाते, मेरे पास यह स्वीकार करने के लिए अनुग्रह की कमी थी कि समानांतर आख्यान मौजूद हैं और इससे जुड़े रहना चाहिए। भूमिका के लिए मेरी तैयारी शारीरिक से अधिक आंतरिक थी, न केवल एक अभिनेता के रूप में बल्कि एक इंसान के रूप में मुझे बहुत सारी आत्म -परामर्श करनी पड़ी और समलैंगिकता के विषय पर खुद को शिक्षित करना पड़ा। मैं कम सहानुभूति रखने वाला था और पहले इस मुद्दे के प्रति एक बहुत ही स्वच्छ दृष्टि रखता था, मुझे नहीं पता कि मैंने एक अभिनेता के रूप में कैसा प्रदर्शन किया है, लेकिन मैं निश्चित रूप से इस फिल्म को करने के बाद एक व्यक्ति के रूप में परिवर्तित महसूस करता हूं।

सुप्रिया शुक्ला और राजेश शर्मा के साथ काम करना कैसा रहा?

सुप्रिया जी के साथ काम करने के लिए एक ट्रीट है। वह सबसे सहायक और सबसे प्यारी सह-अभिनेत्रियों  में से एक हैं, जिनसे मैं मिला हूं। वह गो शब्द से दृश्यों की कमान में थी। राजेश जी पूरी तरह से पेशेवर हैं और वर्षों और वर्षों के अनुभव के साथ आते हैं। मैं उनसे इसलिए जुड़ा, क्योंकि वह भी थिएटर से ताल्लुक रखते हैं। शुरुआत में मैं उनके साथ काम करने को लेकर थोड़ा नर्वस था, लेकिन उन्होंने पूरी प्रक्रिया को बहुत ही सुखद बना दिया।

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क्या लघु फिल्मों का भविष्य है?

हम माइक्रोवेव पीढ़ी हैं। हम सब कुछ बहुत जल्दी चाहते हैं। आज लोग लंबी फिल्मों की बजाय लघु फिल्में ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं। दर्शकों का ध्यान दिन पर दिन छोटा होता जा रहा है। ऐसे में लघु फिल्मों का भविष्य उज्ज्वल है। अब जरुरत है कि कम समय में बेहतरीन कहानी पेश की जाए। देखिए, लघु फिल्में नाश्ते की तरह हैं। यह मनोरंजन की एक त्वरित खुराक है। लॉकडाउन ने केवल डिजिटल क्रांति को गति नही दी, बल्कि इस दौरान हजारों की संख्या में लघु फिल्में बनी हैं। इसलिए लोगों में छोटी, कुरकुरी और जूसियर सामग्री के लिए अधिक भूख विकसित हुई है।

जिया भारद्वाज के निर्देषन में काम करने के अवसर कैसे रहे?

हम एक दूसरे से कॉलेज के जमाने से परिचित है। जिया एक बेहतरीन सहयोगी, रचनात्मक सहयोगी और मेरी सबसे अच्छे दोस्तों में से एक है। वह अपने अभिनेताओं को बेहद प्यार और सहज महसूस कराती है। मैं उनके विचारों की स्पष्टता से ईर्ष्या करता हूं और वास्तव में अपने दिल की गहराई से आशा करता हूं कि मुझे उनके द्वारा बार-बार निर्देशित होने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस माध्यम की उनकी सौंदर्य बोध और समझ असाधारण रूप से बिंदु पर है और उनकी फिल्मों में उनके लिए एक महान काव्यात्मक गुण है। वह निश्चित रूप से आने वाले समय में एक ताकत होगी।

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