कुमार शानू का नाम पढ़ते ही हर संगीत लवर के ज़हन में ‘अब तेरे बिन जी लेंगे हम’ या ‘दिल है कि मानता नहीं’ बजने लगता है। फिल्म इंडस्ट्री में ढेरों सुपर डुपर हिट गाने देने वाले, पाँच फिल्मफेयर अवार्ड्स, अमेरिका से सम्मान में डॉक्टरेट डिग्री लेने वाले, पद्मश्री से सम्मानित होने वाले कुमार शानू उर्फ़ शानू दा अपने श्रोताओं के दिल में बसते हैं।
कुमार शानू के गाए गीत कल आज और आने वाले कल में भी रिलेवेंट ही रहेंगे। लेकिन कुमार शानू के लिए बॉलीवुड में पहली पारी खेलना इतना आसान नहीं था। पर हाँ, पर उनके पिता पशुपति भट्टाचार्य की बदौलत उनके सुर बहुत पक्के थे। दरअसल उनके पिता बिक्रमपुर जिले के (जो अब बांग्लादेश में है) जाने माने कम्पोज़र और गायक थे। उनकी बदौलत ही कुमार शानू का गला भी सुरीला रहता था।
केदारनाथ से कुमार शानू तक का सफ़र
पर अपने पिता के विपरीत, शानू दा फिल्मी गानों के ज़्यादा बड़े फैन थे, ख़ासकर किशोर दा में तो उनकी जान बसती थी। वह आठ साल की उम्र से ही तबला बजाया करते थे। इसके पीछे भी उनके माँ-पिता का ही आशीर्वाद था, उनके भाई-बहन सब संगीत में भी डूबे हुए थे। माँ-पिता क्लासिकल सिंगर्स थे। लेकिन कुमार शानू की ख्वाहिश थी कि वह बॉम्बे जाकर फिल्मों के लिए गाएं।
शाहरुख़ खान ने फिल्म ‘ॐ शांति ॐ’ में यूँ ही नहीं कहा कि अगर आप पूरी शिद्दत से किसी को चाहो तो सारी कायनात आपको उससे मिलवाने के लिए एक हो जाती है’
शानू दा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वह कुछ लड़कों के साथ मुंबई तो आ गये पर यहाँ काम मिलना भला कहाँ आसान था। ये बात अस्सी के चढ़ते दशक की थी। शायद आप जानते हों कि कुमार शानू का से नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है पर उन्हें घर में सब प्यार से शानू (Sanu) कहते थे सो उन्होंने गायन में भी अपना नाम शानू भट्टाचार्य ही रखा। आप बेहतर समझ सकते हैं कि मुंबई जैसे महंगे शहर में स्ट्रगल करने के लिए भी तो बहुत पैसा चाहिए और टैलेंट कितना ही हो, जबतक किसी जौहरी की नज़र न पड़ जाए तबतक तो टैलेंट भरोसे पैसा आता नहीं। पर शानू दा के साथ ऐसा नहीं हुआ। उन्हें हफ्ते भर के अन्दर ही एक होटेल में गाना गाने की जॉब मिल गयी। शाम के वक़्त वह किशोर कुमार के गाने गाया करते थे।
यूँ समझिये किशोर कुमार उनके दिल में बसते थे। शानू दा के बंगाली होने की वजह से भी उनका किशोर दा से अनोखा लगाव था। अब जब होटेल में गाने लगे तो ये बात एक-एक करके हर होटेल में फैलती चली गयी कि कोई नया लड़का है जो किशोर कुमार के गाने बहुत अच्छे गाता है। अमित कुमार से भी ज़्यादा इस लड़के की आवाज़ मिलती है।
जब ये बात आग की तरह फैली तो शानू दा के पास काम भी बढ़ने लगा, जब काम बढ़ा तो पैसा भी जमकर बरसा। जॉब की सैलरी से ज़्यादा तो उन्हें ‘नवाज़िश’ मिल जाती थी। बहुत से लोग तो सिर्फ उनका गाना सुनने के लिए होटेल में आने लगे थे।
पर ऐसा आख़िर कबतक चलता? सो शानू दा ने उन पैसों से अपने गानों को रिकॉर्ड करना शूरु कर दिया और कैसेट बनवाने लगे। इसी दौरान के रोज़ वेस्टर्न आउटडोर में भारत के सर्वश्रेष्ट ग़ज़ल गायक ‘जगजीत सिंह’ जी के कानों में उनकी आवाज़ पड़ी और उन्होंने तुरंत शानू दा को अपने पास बुला लिया। शानू दा जगजीत जी को देखकर हैरान रह गये। आख़िर होटेल्स-बार में उन्हीं की ग़ज़लें तो गाया करते थे।
जगजीत सिंह उन्हें अपने साथ ले गये और बातचीत के बाद उन्हें ‘आंधियां’ नामक फिल्म का एक गाना दिया जो शानू दा ने पूरी मेहनत से गाया। लेकिन वो फिल्म न बन सकी। पर जगजीत जी ने उनका साथ न छोड़ा, वह उन्हें मशहूर म्यूजिक डुओ ‘कल्याणजी-आनंदजी’ के पास ले गये। कल्याणजी ने जब आवाज़ सुनी तो उन्हें भी अच्छी लगी। कल्याणजी आनंदजी शुरु से ही कॉन्सर्ट ख़ूब करते थे। उन्होंने अपने कंसर्ट्स की ओपनिंग का जिम्मा शानू को दे दिया। साथ ही फिल्मों में काम को लेकर बोले “शानू, तेरा ये नाम जो है न भट्टाचार्य, इसका कुछ करना पड़ेगा, वो क्या है न तू जब बोलता है तो बंगाली टोन में बोलता है लेकिन गाता बिल्कुल साफ़ है, साफ उर्दू साफ़ हिन्दी में गाता है, लेकिन तेरे बंगाली सरनेम की वजह से तुझे गाना देने से पहले हर कोई सोचेगा कि तू कहीं बंगाली एक्सेंट में गाने लगा तो गाना ख़राब हो जायेगा, इसलिए तेरा नाम चेंज करते हैं। तू शानू कुमार कर ले” लेकिन फिर शायद उन्हें ये नाम बहुत कॉमन लगा, क्योंकि ज़्यादातर बंगाली सिंगर, हेमंत कुमार, किशोर कुमार, उनके बेटे अमित कुमार आदि यूँ ही अपना नाम लिखते थे, इसलिए उन्होंने कुमार को पहले और शानू को बाद में कर दिया और नाम बना ‘कुमार शानू’
एक रोज़ उन्होंने शानू दा को अपने यहाँ बुलाया। शानू दा ने देखा उस मीटिंग में तो सारे बड़े-बड़े लोग बैठे। कल्याणजी आनंदजी के अलावा प्रकाश मेहरा, गीतकार अंजान, आदि मौजूद थे। उनको एक कागज़ थमा दिया गया और पूछा “हिन्दी पढ़ लेते हो?”
शानू दा ने हिचकते हुए जवाब दिया “हाँ, थोड़ा बहुत तो पढ़ लेता है”
तो कल्याणजी बोले “इसे पढ़ो और गाओ” साथ ही आनंदजी और कल्याणजी ने हारमोनियम पर ट्यून देनी शुरु की। उन्हें लगा कि शानू अभी आधा-एक घंटा धुन समझने में, उसके हिसाब से लिरिक्स सेट करने में लगाएगा लेकिन शानू दा को ये गॉड गिफ्ट मिला है कि वह कोई भी ट्यून हो, कैसे भी लिरिक्स हों, तुरंत कैच करते हैं। इसीलिए शानू दा मात्र दस मिनट बाद ही गाने लगे और जब उन्होंने सुर पकड़ा तो उनका उस मीटिंग में गाया गाना रिकॉर्ड कर लिया गया।
कुछ समय बाद उन्हें स्टूडियो बुलाया गया और कहा गया कि “वही गाना जो तुमने उस रोज़ गाया था, वो अब प्रॉपर रिकॉर्ड करो और खुलकर गाओ, फुल थ्रोट गाओ, आवाज़ दबाना नहीं, जानते हो न किसको प्लेबैक दे रहे हो?”
शानू दा ने फिर हिचकते हुए पूछा “किसको?”
जवाब मिला “शहंशाह अमिताभ बच्चन को, उस रोज़ जो तुमने गाया था उसकी कैसेट बनाकर संजय दत्त ख़ुद अमेरिका लेकर गया क्योंकि अमिताभ वहीं शूटिंग कर रहे थे, उन्होंने तुम्हारी आवाज़ सुनी और कल्याणजी को तुरंत फोन करके कहा कि इसको मेरी फिल्म के सारे गाने दे दो, मुझपर इसकी आवाज़ सूट कर रही है”
शानू दा के तो पैरों से ज़मीन ही खिसक गयी, पर उन्होंने तुरंत ख़ुद को संभाला और जब वो गाना ‘मैं जादूगर, मेरा नाम गोगा” गाया तो पूरे स्टूडियो ने उनकी तारीफ की। वह फिल्म तो नहीं चली लेकिन केदारनाथ भट्टाचार्य को कुमार शानू के नाम से इंडस्ट्री में जगह ज़रूर दिलवा गयी।
उसी दौर में कुमार शानू को ख़बर मिली कि किशोर दा नहीं रहे। उनको हार्ट अटैक पड़ गया। ये क्षण कुमार शानू के लिए बिल्कुल असहनीय थे। उनकी दिली ख्वाहिश थी कि वो किशोर दा से ज़रूर मिलें। लेकिन उनका सोचना था कि किशोर दा का मूड न हो तो वह बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स से नहीं मिलते, भला उनसे क्यों मिलते? मगर शानू दा को एक आस थी कि जब वो स्टार सिंगर हो जायेंगे तो शायद उन्हें किशोर दा से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होगा, पर किशोर दा ही चले गये।
कुछ सालों बाद उनका किशोर दा के ड्राईवर कम असिस्टंट कम सबकुछ, अब्दुल से मिलना हुआ। अब्दुल से बातों ही बातों में उन्होंने अपनी अधूरी आस बताई तो अब्दुल कहाँ “शानू दा आपके लिए तो किशोर दा पूछते थे कि अब्दुल ज़रा पता करो ये कौन लड़का है जो मेरे गाने इतने अच्छे गाता है, इससे तो मिलना पड़ेगा लगता है”
अब्दुल की ये बात सुनकर कुमार शानू तो मानों फूले नहीं समाए। उन्होंने मन ही मन किशोर दा को नमस्कार किया और माना कि उनके आशीर्वाद के बिना उन्हें कामयाबी मिल ही नहीं सकती थी।
पर ये बाद की बात थी, कामयाबी अब कुमार शानू से बस एक कदम दूर थी।
उस दौर में ज्यादातर एक्शन फिल्में और उसी तरह का संगीत प्रचलित हो रहा था पर गुलशन कुमार जी ने ट्रेंड के विपरीत एक एल्बम बनाई जिसका नाम रखा ‘चाहत’। इसमें नदीम श्रवण का म्यूजिक था, समीर के लिखे गीत थे और कुमार शानू ने उन गानों को अपनी आवाज़ दी थी। जब महेश भट्ट ने ये गाने सुनें तो उन्होंने तय किया कि वह इसपर फिल्म बनायेंगे। ये अनोखा मौका था जब गानों के बेस पर फिल्म बन रही थी। महेश भट्ट ने बिल्कुल फ्रेश स्टार कास्ट राहुल रॉय और अनु अगरवाल को फिल्म में शामिल किया।
फिल्म यंग जेनेरेशन के चलते इतनी बम्पर हिट हुई कि क्या निर्देशक क्या निर्माता, सबके होश उड़ गये। पर फिल्म की कामयाबी की असल वजह बना उसका संगीत और कुमार शानू की बेहतरीन आवाज़। इस फिल्म में दस गाने थे और कमाल बात जानिए कि दस के दस सुपर हिट थे। उसकी कैसेट का तो ये आलम था कि ब्लैक में बिकती थी।
इस फिल्म की कैसेट का रिकॉर्ड आज तक कोई एल्बम न तोड़ सकी है और अब ऑनलाइन के दौर में, कभी तोड़ भी न पायेगी। इसकी दो करोड़ से ज़्यादा कैसेटस बिकी थीं।
आशिकी की बम्पर सेल के बावजूद कुमार शानू के मन में एक मलाल था कि इतने अच्छे गानों के बावजूद उन्हें साल होने को आया पर कोई अवार्ड नहीं मिला। वह फिल्मफेयर के गेस्ट बने बेस्ट मेल सिंगर केटेगरी में अपना नाम सुन ही रहे थे कि अनाउंस हुआ ‘द विनर इज़ कुमार शानू’
शानू दा इतने कांप गये कि स्टेज पर अवार्ड रिसीव करने के बाद एंकर के बुलाने पर भी माइक पर कुछ कहने को तैयार न हुए। वह नर्वस होने लगे थे, पर हमेशा की तरह, उन्होंने तुरंत ख़ुद को रिकवर किया और बस इतना बोले “मैं बस यही चाहता हूँ कि आप सबसे यूँ हर साल मिलना हो”
उनकी इस बात पर एंकर ने मज़ाक भी किया “मतलब हर साल आप ही को बेस्ट सिंगर अवार्ड मिले”
इस बात को एक अच्छा मज़ाक समझ सबने ठहाका लगाया पर कौन जानता था कि यह मज़ाक नहीं सच था।
कुमार शानू यहाँ से रातों रात स्टार बन गये। गाने उनके पास पहले भी आते थे, लेकिन अब कुछ यूँ हाल हुआ कि वह एक दिन में बीस-बीस घंटे रिकॉर्डिंग करने लगे। उन्हें अब पूरी-पूरी फिल्में मिलने लगीं। नदीम श्रवण की जोड़ी के साथ उन्होंने ‘साजन, फूल और कांटे, दिल है कि मानता नहीं, सड़क, सैनिक, जूनून, वक़्त हमारा है, दिल तेरा आशिक, आदमी खिलौना है, दामिनी, दिलवाले, आदि ऐसी बड़ी-बड़ी हिट फ़िल्में दीं और 90 के पूरे दशक में यूँ समझिए कि उन्होंने राज किया। उनका नाम ही ‘शहंशाह ऑफ मेलोडी म्युसिक’ पड़ गया।
नदीम श्रवण के अलावा उन्होंने अनु मलिक के साथ भी एक से बढ़कर एक फिल्में कीं जिनमें चमत्कार, इम्तिहान, विजयपथ, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, हम हैं बेमिसाल, अकेले हम अकेले तुम, दिलजले, सपूत, चाहत, जुड़वाँ आदि सुपरहिट फ़िल्में शामिल थीं।
जतिन ललित के साथ भी शानू दा ने कुछ ही फिल्मों में गीत गाए पर वो सारी फ़िल्में एक से बढ़कर एक रहीं। खिलाड़ी, राजू बन गया जेंटलमैन, कभी हाँ कभी न, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे, यस बॉस, कुछ कुछ होता है, गुलाम, संघर्ष, वास्तव, सरफरोश आदि ब्लाकबस्टर फिल्में इसमें शामिल हैं।
आनंद मिलिंद के साथ भी उनकी ट्यूनिंग अच्छी बैठी, जिगर, राजा बाबू, कुली नंबर वन, हीरो नंबर वन, गोपी किशन, रक्षक, चल मेरे भाई सरीखी इंटरटैनिंग फिल्मों में उन्होंने अपनी आवाज़ दी।
राकेश रौशन के भाई राजेश रौशन के साथ भी कुमार शानू ने काम किया और कोयला, कहो न प्यार है, क्या कहना सरीखी सुपर हिट एल्बम दीं।
म्यूजिक माइस्ट्रो पंचम दा यानी आरडी बर्मन के साथ भी उन्होंने ’1942 अ लव स्टोरी’ के एक से बढ़कर एक गीतों में अपनी आवाज़ दी।
इसके अलावा कोई ऐसा म्यूजिक डायरेक्टर नहीं हुआ, जिसके साथ उन्होंने काम नहीं किया।
फिल्म आशिकी के लिए सन 1991 में उन्हें पहला फिल्मफेयर मिला और उसके बाद हर साल, 1995 तक पाँच बार लगातार, उन्हें फिल्मफेयर से नवाज़ा गया।
आशिकी के गीत “अब तेरे बिन जी लेंगे हम” के बाद
1992 में फिल्म साजन के गीत “मेरा दिल भी कितना पागल है” के लिए उन्हें फिल्मफेयर मिला
फिर फिल्म दीवाना के गीत “सोचेंगे तुम्हें प्यार, करें कि नहीं” ने 1993 में उनका सम्मान बढ़ाया। यह तीनों गीत नदीम-श्रवण की कम्पोजीशन में थे।
1994 में फिल्म बाज़ीगर के गीत “ये काली काली आँखें” के लिए उन्हें चौथी बार लगातार फिल्मफेयर मिला, इस बार उनके संगीतकार अनु मलिक थे।
फिर उन्हें पंचम दा के म्यूजिक में सजी फिल्म 1942 अ लव स्टोरी के गीत ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ के लिए भी फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
ढलते दिनों का दौर
इस अवार्ड के दौरान कुमार शानू ने बड़ा दिल दिखाते हुए कहा कि “मुझे अच्छा लगता है कि फिल्मफेयर अवार्ड में मुझे इतना सम्मान मिलता है। ये पांचवी बार लगातार मुझे अवार्ड मिला है। मगर मैं चाहता हूँ कि और भी लोगों को अब चांस दिया जाए”
कुछ ऐसी ही बात कुमार शानू ने स्टेज पर कही जो शायद फिल्मफेयर ज्यूरी को इतनी बुरी लगी कि उन्होंने फिर कुमार शानू को अवार्ड देना ही बंद कर दिया।
वह उसके बाद लगातार सन 2000 उनके चार गाने नोमिनेट हुए पर उन्हें एक भी अवार्ड नहीं मिला। फिल्म परदेस के गीत ‘दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके चुपके’ पर तो उनके श्रोताओं ने भी ऑब्जेक्शन कर दिया कि उन्हें अवार्ड क्यों नहीं मिल रहा। पर फिल्मफेयर की तरफ से इसकी कोई सफाई कभी न सुनी गयी।
1994 में पंचम दा यानी आरडी बर्मन की मृत्यु पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री के लिए ही एक बड़ा आघात रही। लेकिन भारतीय फिल्मी म्यूजिक इंडस्ट्री के लिए सबसे दुःखद दिन 12 अगस्त 1997 था जब अंडरवर्ल्ड की दी हुई धमकी को सिरे से ख़ारिज करने वाले गुलशन कुमार जी को दिन दहाड़े गोली मार दी गयी। उनके सोलह गोलियां मारी गयीं और उनकी हत्या में नदीम श्रवण के नदीम सैफी का नाम भी हाईलाईट हुआ। नदीम सैफी तुरंत देश छोड़कर भाग गये।
कुमार शानू इन तीनों घटनाओं को म्यूजिक इंडस्ट्री और अपने कैरियर का सबसे बड़ा आघात मानते हैं।
फिर कुमार शानू कभी किसी से कुछ भी कहने से डरते नहीं थे, उन्होंने हमेशा वो कहा जो उन्हें सही लगा, जो सच था। एक समय इंडस्ट्री पर राज करने वाले कुमार शानू को ‘कहो न प्यार है’ जैसी सुपरहिट फिल्म में गाने के बावजूद काम कम दिया जाने लगा।
उन्हें कुछ वल्गर गीतों को गाने के लिए भी कहा गया, जिसपर उन्होंने कड़ा रिएक्शन दिया और सिरे से खारिज कर दिए। परिणाम स्वरुप उनकी डिमांड भी कम होने लगी।
शानू दा ने यह भी बताया कि “अब नया म्यूजिक बनता ही नहीं है, म्यूजिक पहले भी वेस्टर्न से उठाए जाते थे, लेकिन तब कम से कम अपना इनपुट तो डालते थे, अब तो बिल्कुल ही एक ट्यून उठा के उसका गाना बना दिया जाता है। इतने इंस्ट्रूमेंट यूज़ किए जाते हैं कि सिंगर कौन है क्या है उसकी कोई वैल्यू ही नहीं रह जाती”
नए सिंगर्स के लिए कुमार शानू बड़ी मज़ेदार बात बताते हैं कि “हम लोग पैसा लेकर गाना गाता था, अब क्या है कि पैसा देकर भी गाना गाते हैं, म्यूजिक डायरेक्टर के घर टीवी और पता नहीं क्या-क्या भिजवा दिया जाता है, अब म्यूजिक हिट नहीं होता, बल्कि सारा दिन हर तरफ बजा बजा के म्यूजिक हैमर किया जाता है, श्रोताओं को जबरदस्ती सुनाया जाता है”
जब उनसे पूछा गया कि आप यूँ वल्गर गानों के लिए मना कर देते हैं, सिंगर्स के लिए ऐसे कहते हैं, आपको डर नहीं लगता?
तब शानू दा गर्व से कहते हैं कि “अभी मेरे को इंडस्ट्री में इतना टाइम हो गया, कोई 19 हज़ार गाने गा लिया, अब भी डरूंगा तो लानत है ऐसी ज़िन्दगी पर।
उन्होंने यह भी समझाया कि अब संगीत में क्यों यादगार गाने नहीं बनते। कुमार शानू के शब्दों में “पहले वैम्प का एक गाना होता था, अब सारे गाने वैम्प के लिए ही बनते हैं, हीरोइन ख़ुद ही आइटम नंबर भी करने लगती है, कोई एक आधा अच्छा गाना बन जाए तो वो किसी फ़कीर पर या सपोर्टिंग कास्ट पर फिल्माया जाता है”
आशिकी को शानू दा अपना सबसे बड़ा ब्रेक मानते हैं। एक साक्षात्कार में उन्होंने यह भी ख़ुलासा किया कि “आशिकी 2 के लिए भी उन्हें फोन आया था, वह तैयार भी थे लेकिन फिर अन्दर ही अन्दर जाने क्या सेटिंग हुई कि उन्हें बताना भी ज़रूरी नहीं समझा”
पर साथ ही दोनों आशिकी की तुलना पर वह मुक्त कंठ से कहते हैं “आप देखिए, आज की आशिकी में अच्छे गाने हैं नो डाउट पर हिट कितना है? दो गाना, दो गाना है जो थोड़ा बहुत चला है लेकिन तब की आशिकी के दस में सात गाने सुपर हिट थे जो आज तक हिट हैं”
फिल्मों से दूर होने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि शानू दा कोई काम नहीं कर रहे थे। वह बताते हैं कि उनके पास आशिकी के बाद जितना काम नहीं था, उससे कहीं ज़्यादा अब कॉन्सर्ट के द्वारा काम रहता है। विदेशों में उनके शोज़ होते हैं। अमेरिका में तो - वह पहले ऐसे आर्टिस्ट हैं जिनके लिए – 31 मार्च को कुमार शानू डे मनाया जाता है।
यही नहीं, उन्होंने लन्दन की एक एल्बम में छः हिन्दी और एक स्पेनिश गाना भी गाया है। मलेशिया के प्रिंस नूर उनके बहुत बड़े फैन थे, जबकि न उन्हें हिन्दी आती थी और न ही वह हिन्दी फ़िल्में देखते थे, पर कुमार शानू और किशोर दा के गानों के वो बहुत बड़े फैन थे। उन्होंने जैसे-तैसे ईमेल के द्वारा कुमार शानू को कांटेक्ट किया और उनसे कहा कि वह उनके साथ किशोर कुमार जी के गीत रिकॉर्ड करके उन्हें ट्रिब्यूट देना चाहते हैं। किशोर दा का नाम सुनते ही कुमार शानू ने तुरंत हाँ कर दिया और उस एल्बम का नाम रखा गया ‘हम और तुम’।
शानू दा के यूँ तो बहुत किस्से हैं पर इस गीत के किस्से के साथ मैं समापन करूँगा कि सन 2005 के बाद ये बात ज़बरदस्ती थोपी जा रही थी कि कुमार शानू आदि नब्बे के दशक के सिंगर्स का समय अब गया, लेकिन यूपी बिहार में ख़ासकर कुमार शानू की फैन फोलोविंग की कमी तब भी नहीं थी, आज भी नहीं है।
उसी पृष्ठभूमि पर बनी यशराज बैनर तले आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में आयुष्मान के करैक्टर को कुमार शानू का बहुत बड़ा फैन दिखाया है और कुमार शानू ने उस फिल्म में बरसों बाद वापसी भी है। मज़ा देखिए, इस फिल्म के दो ही गाने सबसे पॉपुलर हुए हैं जिनमें एक मोनाली ठाकुर की आवाज़ में ‘मोह मोह के धागे’ है तो दूसरा है शानू दा और साधना सरगम के स्वरों में ‘तुमसे मिले दिल में उठा दर्द करा’
ये गीत इस बात का प्रमाण है कि क्वालिटी भले ही दबा दी जाए पर कभी पुरानी नहीं होती, कभी फ्लॉप नहीं होती।
हमारे एवरग्रीन, किंग सिंगर ऑफ नाइनटीज़, शानू दा को हम जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं देते हैं।
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'