समय समय पर कोई ज्ञानी या तपस्वी कामयाबी के नुस्खे बताता है लेकिन क्या कामयाबी या शौहरत हासिल करने का कोई नियमित फार्मूला हो सकता है ? हमारे तजुर्बे से हमें सिर्फ ये मालूम है कि कामयाबी और शौहरत सिर्फ उसी को मिलती है जिसमें हुनर हो, लगन हो, जिसको हम जुनून भी कहते हैं, मेहनत, हिम्मत, लोगो की मोहब्बत और किस्मत भी हो ।
और अगर इतने सारे सालों के बाद हमने एक आदमी को देखा है और पहचाना है और माना भी है जिसमें ये सब खूबियां है तो वो शख्स सुभाष घई हैं जिसको लोग शोमैन के नाम से भी जानते हैं। उनकी इन्हीं खूबियों ने आज उनको एक ऐसे शिखर पर पहुँचाया है जहाँ से सिर्फ आदमी ही नहीं, सिर्फ वक्त ही नहीं बल्कि कोई भी इंसानी या दैवी शक्ति हटा नहीं सकती। क्योंकि उसने ऐसे ऐसे काम किये हैं जिस पर ना सिर्फ इंसान गर्व कर सकता है
लेकिन वो सारी शक्तियां भी खुश हो सकती हैं क्योंकि उन्होंने उनके होने का गवाही दी है उनके होने का और उनकी शक्ति का परिचय भी दिया है।
ऐसा क्यों हुआ कि एक जवान आदमी दिल्ली के एक कोने से आकर ऐसा नाम कमाता है जो सारी दुनिया में पहचाना जायेगा? कुछ तो बात होगी इसमें और हमने एक छोटा सा प्रयास किया है उन कारणों को मालूम करने का ....
सुभाष घई एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे और उनका बचपन के दिन बहुत अच्छे नहीं थे लेकिन अगर कोई जुनून था तो वो था फिल्मों का और दिलीप कुमार कि अदाकारी का।
इस दुगने जूनून ने उनको पुणे के थ्ज्प्प् में पहुँचाया जहाँ पर उन्होंने एक्टिंग कोर्स में गोल्ड मेडल हासिल किया। इस दौरान उन्होंने एक अगर अजब कारनामा किया तो था दिलीप कुमार की ‘देवदास’ फिल्म पर एक नब्बे पन्नों का थीसिस लिखने का। जिसमें खास बात यह थी दिलीप कुमार की अदाकारी पर उनका विश्लेषण।
उस युवा के जुंनून ने उसे स्वप्न नगरी में पहुँचाया जहाँ पर उसके हुनर की पहचान बनी लेकिन कामयाबी उससे अब भी दूर थी और जब उसको लगा कि एक्टिंग में उसका कुछ होने वाला नहीं था, तब उसने फिल्म के स्क्रिप्ट्स लिखना शुरू किया और जिसकी बदौलत उन्हें कामयाबी हासिल हुई।
एक स्क्रिप्ट सुनाने के लिये वो मशहूर प्रोड्यूसर एन .एन.सिप्पी जी से मिले और सिप्पी ने उसमें दिग्दर्शक बनने की काबिलियत देखी और फिर उसने सिप्पी के लिये दो बहुत ही कामयाब फिल्में दिग्दर्शित की और फिर उसको कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। उसके बाद सुभाष घई एक बहुचर्चित और कामयाब नाम बन गये ।
लेकिन वो उस जुंनून का क्या कर सकता था जो उसे आगे और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करता जा रहा था ?
सन 1978 में उन्होंने अपना खुद का बैनर मुक्ता आर्ट्स की स्थापना की और फिर कामयाब फिल्मों का एक लंबा सिलसिला चला और वो युवा जो दिल्ली से बेनाम निकला था वो हिंदुस्तान का शोमैन बन गया और वो जो एक्टर बनने आया था बड़े बड़े एक्टरों को कैसे एक्टिंग करना वो सिखा रहा था और एक्टर्स उसकी बातों को सुनने और मानने लगे जिसमे उनके आयडल ‘दिलीप कुमार’ भी शामिल थे ।
कैसी कैसी फिल्में बनाई महान शोमैन ने!
कभी ‘कर्ज’ तो कभी ‘रामलखन’, कभी ‘हीरो’, तो कभी ‘खलनायक’, कभी ‘कर्मा’, तो कभी ‘विधाता’, कभी ‘क्रोधी’ तो कभी ‘किसना’, और कभी ‘त्रिमूर्ति’ तो कभी ‘ताल’ और कभी ‘सौदागर’। कभी कभी ऐसे भी हुआ जब उनकी फेवरिट फिल्में नाकाम और फ्लॉप भी साबित हुई, लेकिन उनका जुंनून जिन्दा रहा और आज भी जिन्दा है जब अब वो 78 के हो गये है।
उनकी फिल्मों की खासियत ये थी कि वो अनलिमिटेड एंटरटेनमेंट के साथ एक अच्छा मैसेज भी देते है। उनकी फिल्मों में कमाल की अदाकारी तो होती ही थी और संगीत ऐसा होता है कि जान देने का दिल करता है उनके दर्शकों को। उनकी फिल्मों में वो सब होता है जो एक फिल्म देखने वाला चाहता है और उनकी यादें अपने घर भी लेकर जाता है।
उनको अनगिनत अवाॅर्डस और आदर मिला है, लेकिन हम मानते हैं कि उनके लिये सबसे बड़ा अवाॅर्ड था जब रणधीर कपूर ने सबके सामने कहा था ,‘अगर राज कपूर की टक्कर में कोई शोमैन है तो वो सुभाष घई है।’
सुभाष घई न सिर्फ एक दिलदार फिल्ममेकर है बल्कि एक बड़े दिलवाला इंसान भी है। अपने स्टाफ की जैसे वो देखभाल करते हैं वो औरों को सीखने लायक है। उनकी पार्टीज आज भी लोगो को याद है और उनके आउटडोर के शूटिंग्स एक घरेलू मामला होता है जिसमें हर इंसान को ऐसे ऐसे अनुभव होते जो दिल को छू जाते और दिलों में रह जाते .....
एक मुकाम ऐसा आया जब उन्होंने बहुत नाम और पैसा बनाया। अगर उनकी जगह कोई और होता तो वो अपने पैसे किसी इंडस्ट्री या कारोबार में लगा सकता था। लेकिन उस जुनून का वो क्या करते जो उनका पीछा कर रहा था ? और सुभाष घई , द शोमैन ने वो किया जो आने वाले कई अरसों तक याद रखा जायेगा।
शाहजहाँ ने मुमताज के लिये ताज महल बनवाया था तो सुभाष घई ने अपनी रेहाना (मुक्ता ) के लिये व्हिस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल स्कूल बनवाया जो आज विश्व के दस सबसे बेहतरीन फिल्म स्कूलों में माना जाता है और अच्छी बात ये है कि उनकी बेटी मेघना घई पुरी पूरी शिद्दत सेे स्कूल को संभाल रही है और अपने पिता के ख्वाब को अनेक रंगों से हर पल सजाने की कोशिश में रहती है। क्या कभी सुभाष घई का जुनून कम या खत्म होगा ? हम उनको पचास साल से देख रहे हैं और हमें यकीन है कि उनका जुनून उनके जैसा हमेशा जवान रहेगा ।