आसमान में सुबह से ही हल्की धूप और बूंदाबांदी वाला दृश्य था। वो मेरी पढ़ाई के दिन थे। 15 अगस्त, 1975 राष्ट्रीय छुट्टी का दिन था, फिर भी मैंने फिल्म देखने के लिए कोचिंग क्लास का बहाना करके घर से बंक मारा था। मिलन टाकीज सांताक्रुज (मुम्बई ) के बाहर की भीड़ देखने लायक थी। अमिताभ बच्चन की क्रेज बढ़ने के दिन थे वो... ब्लेक मार्केटियरों की आवाज हर भीड़ के साथ सुनाई देती थी- 'बॉलकोनी 80, स्टाल 50...' यह वो रेट था जो खिड़की पर 15 और 10 रुपये वाले टिकटों का दाम होता था। एक स्टाल का टिकेट ब्लैक में मुझे भी मिल गया था, तबतक हाल के अंदर मौसी (लीला मिश्रा) और जय( अमिताभ) के बीच वीरू( धर्मेन्द्र) के लिए बसंती ( हेमा मालिनी) से शादी के रिश्ते का प्रस्ताव देनेवाला दृश्य देखकर दर्शक ठहाके लगा रहे थे।
दरअसल फिल्म की लंबाई बड़ी होने से शो शुरू होने के समय मे बदलाव किया गया था। मैटिनी शो का टाइम 12 बजे की जगह 11.15 का कर दिया गया था। मैं काफी फिल्म छोड़ बैठा था। उस शाम को दोस्तों के बीच आजादी के झंडे फहराए जाने की चर्चा की बजाय हम मित्र फिल्म ‘‘शोले‘‘ के संवादों की गर्मागर्म चर्चा कर रहे थे। कोई कह रहा था- 'टाइम पास' कोई कह रहा था- 'शो-शो'। फिल्म को ‘हिट‘ कहने वाला बंदा सिर्फ मैं था- जिसकी आधी फिल्म छूट गई थी! दूसरे दिन फिल्म ‘फ्लॉप है‘ जैसी चर्चा अंग्रेजी के अखबारों के रिव्यू में पढ़ा तो मैं सन्न रह गया था।
अगले दिन शनिवार को ट्रेड पत्रिकाओं में फिल्म के लेखक सलीम-जावेद का जॉइंट विज्ञापन पेज था...‘‘ शोले 1 करोड़ का बिजनेस हर टेरिटरी में जरूर करेगी।‘‘ यह लेखक जोड़ी तबतक कई हिट फिल्में दे चुकी थी। तब ना इनके अलगाव की किसी को आशंका थी कि वे अलग भी हो सकते हैं, ना ही यह अनुमान लगाया जा सकता था कि इन दोनों लेखकों के बेटे सलमान (पुत्र सलीम खान) और फरहान (पुत्र जावेद अख्तर) भविष्य के स्टार होंगे। खैर, इनके दावे जो ट्रेड पत्रिकाओं में छपे थे, वे सच नहीं डबल सच साबित हुए थे। बाद के कुछ ही दिनों में फिल्म ने एक करोड़ नहीं... 2 करोड़ की कमाई प्रति टेरिटोरी किया था।
फिल्म रिलीज होने के 3 दिनों तक सभी टीम के सदस्य सकते में थे। अमिताभ बच्चन को रमेश सिप्पी (फिल्म के डायरेक्टर) ने कॉन्टेक्ट किया- 'लगता है फिल्म का क्लाइमैक्स बदलना पड़ेगा।' अमिताभ को फिल्म में मरने के दृश्य पर लोगों का कहना था कि वो दर्शकों को पसंद नहीं है। निर्माता जी पी सिप्पी ने कहा क्लाइमैक्स बदलकर फिल्म चलाई जा सके तो मैं डिस्ट्रीब्यूटरों को बात कर लूंगा। कैमरा मैन द्वारिका द्विवेचा ने और आर्ट डायरेक्टर ने सहमति दिया कि वे फिरसे शूटिंग के लिए उसी लोकेशन पर चलने के लिए तैयार हैं। ‘‘शोले‘‘ की पूरी शूटिंग बंगलोर (कर्नाटक) के पास रामनगर में सेट बनाकर की गई थी।
यहां ढाई साल तक फिल्म का नकली रामगढ़ शोले के वीरू(धर्मेन्द्र), जय( अमिताभ बच्चन), ठाकुर (संजीव कुमार), बसंती (हेमा मालिनी), राधा (जया बच्चन), और गब्बर सिंह( अमजद खान) के कारनामों का स्थल बना हुआ था। यहां का कंक्रीट पहाड़ीनुमा क्षेत्र छोड़कर सब नकली सेट था- जो फिल्म रिलीज तक ज्यों का त्यों सम्भाला गया था। सबने बैग बांध लिए... चलने के समय शनिवार की शाम को रमेश सिप्पी ने मन बदल लिया, अमिताभ को बोले ‘क्यों ना एक दो दिन और देख लें।‘ तय हुआ 3 दिन यानी मंडे (सोमवार) तक देख लिया जाए। और मंडे की शाम तक डिस्ट्रीब्यूटरों के फोन आने लगे कि फिल्म रफ्तार पकड़ रही है। सबकी जान में जान आयी थी। अमिताभ ने यह बात बाद में अपने एक इंटरव्यू में बताया था।
लोगों का अनुमान था कि लोगों की माउथ पब्लिसिटी ने दर्शकों को थियेटर पर खींचा था। शायद मैं भी उन्ही लोगों में एक था जो दोस्तों को बोलते थे- ‘वाह! क्या फिल्म बनी है‘ और, ‘‘शोले‘‘ ने दूसरे हफ्ते से थियेटरों पर ‘‘शोले‘‘ भभकने शुरू कर दिए थे। आगे की बातें इतिहास है। यह फिल्म एक ही थिएटर में 25 हफ्ता यानी- सिल्वर जुबली का रिकॉर्ड बनाई और एक ही थियेटर (मिनर्वा-मुम्बई) में लगातार 5 साल चलने का रिकॉर्ड बनाने वाली फिल्म साबित हुई। कमाई के लिए बताते हैं कि जिस फिल्म को बनाने में तीन करोड़ खर्च हुआ था, उस फिल्म ने 10 सालों में अपनी लागत का दस गुना कमाई कर लिया था। इस फिल्म से जुड़ी कई और भी खबरें रही हैं मसलन- अमजद खान के लिए कहा गया था कि ‘‘शोले‘‘ उनकी पहली फिल्म थी, ऐसा नहीं था वह पहले 4-5 फिल्में कर चुके थे। सबसे ज्यादा पेमेंट लेनेवाले फिल्म के स्टार अमिताभ बच्चन ने ‘शोले‘ का पारिश्रमिक सिर्फ एक लाख पाया था। इतनी बड़ी हिट फिल्म का पेमेंट आज के स्तरों की तूलना में कुछ नहीं था।
बहरहाल ‘‘शोले‘‘ 15 अगस्त की आजादी के दिन रिलीज हुई एक ऐसी फिल्म है जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक नायाब तोहफा है। यह तारीख(15 अगस्त) और यह फिल्म (‘शोले‘ ) भारत के इतिहास में अमर धरोहर बन चुकी है।