दिलीप कुमार को श्रद्धांजलि देते हुए आशुतोष राणा ने अपने फेसबुक पेज पर व्यक्त किए अपने उद्गार By Mayapuri Desk 12 Jul 2021 in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर किसी भी अभिनेता को यदि प्रभावशाली होना है,तो भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए महानायक युग की शुरूआत करने वाले श्रद्धेय सर दिलीप कुमार साहब वैसे ही कलासाधक थे जिन्होंने भाषा-भाव को सिद्ध किया हुआ था, उनके मुँह से निकलने वाले शब्द दर्शकों को मात्र सुनाई ही नहीं देते थे बल्कि दिखाई भी देते थे। मैं जैसे-जैसे बड़ा होता गया और जब यह निश्चित हो गया की अभिनय ही मेरे जीवन का मार्ग बनाने वाला है तब श्रद्धेय दिलीप कुमार साहब के अभिनय को देखकर मुझे यह शिक्षा मिली की- अभिनेता के मुँह से निकलने वाले शब्द दिखाई देने चाहिए और अभिनेता के द्वारा लिया गया पॉज (सन्नाटा) दर्शक को सुनाई देने चाहिए तभी वह अभिनेता और उसके द्वारा अभिनीत चरित्र दर्शकों की चिरस्मृति में स्थान प्राप्त कर सकता है। किंतु हम आज के अभिनेता अक्सर इसका उल्टा करते हैं, हमारी कोशिश होती है की शब्द सुनाई पड़े और सन्नाटा दिखाई दे। इसलिए हमारा अभिनय महज क्राफ्ट तक ही सिमटकर रह जाता है वह कला के पायदान पर नहीं पहुँच पाता। श्रद्धेय सर दिलीप कुमार साहब से जुड़ा एक वाकया जिसने मेरी सिनेमाई यात्रा में पथप्रदर्शक का कार्य किया उसे आप मित्रों से साझा कर रहा हूँ। मेरी फिल्म ‘दुश्मन’ रिलीज हुई, मेरे किरदार को बहुत सराहना मिली, मुझे बेस्ट एक्टर इन नेगेटिव रोल के लिए फिल्म फेयर से लेकर लगभग सारे अवॉर्ड्स मिले। रातों रात गुमनाम सा आशुतोष एक नाम वाले आशुतोष राणा में बदल गया, मैं फिल्मी जलसों में बुलाया जाने लगा, ऐसे ही एक जलसे में अचानक सर दिलीप कुमार साहब से मेरी मुलाकात हो गई। जिनका अभिनय देखकर हम बड़े हुए हों, जिनको हमने अभी तक मात्र रूपहले पर्दे पर ही देखा हो, जिनकी कला के आप आत्मा से प्रशंसक हों, जिनकी कला आपके लिए प्रेरणा का कार्य करती हो जब वह शख्सियत वास्तविक जीवन में अचानक आपके सामने उपस्थित हो जाए तो आपके होश उड़ जाते हैं। मैं एक पल भी गँवाए बिना रोमांचित, सम्मोहित सा उनके पास गया झुककर उनके चरण स्पर्श किए और अभिभूत कंठ से अपना परिचय उन्हें देते हुए बोला- सर, मेरा नाम आशुतोष राणा है। मैं नवोदित अभिनेता हूँ, मैंने हाल ही में दुश्मन नाम की एक फिल्म की है जिसे महेश भट्ट सर और मुकेश भट्ट सर की विशेष फिल्मस ने प्रोडयूस किया है, तनुजा चंद्रा इसकी निर्देशक हैं। वे आँखों में किंचित मुस्कान लिए बहुत धैर्यपूर्वक मुझे देख और सुन रहे थे, फिर बहुत स्नेह से मेरा हाथ अपने हाथ में थामते हुए बोले- बर्खुरदार, मैंने आपका काम देखा है..आपके हुनर से इत्तफाक भी रखता हूँ, इसलिए आपको एक मशविरा देना चाहता हूँ। जो अभिनेता नहीं स्वयं अभिनय हैं ऐसे सर दिलीप कुमार साहब मेरा हाथ थामे हुए मुझे सराह रहे हैं, सलाह देना चाहते हैं, उन्होंने मेरा काम देखा हुआ है! यह सुनकर मेरे घुटनों में कंपकपी होने लगी, मेरी नाभि के पास से एक लहर सी उठी, मुझे लगा जैसे मेरे सिर के बाल खड़े हो गए हैं। वे मेरी मनःस्थिति को भली भाँति समझ रहे थे उन्होंने मुझे सहज करते हुए जो कुछ कहा वह मेरे आगे के जीवन, मेरी अभिनय यात्रा का मूल मंत्र बन गया, वे बोले- बर्खुरदार चाहे दिलीप कुमार हो या आशुतोष राणा, हम सभी अभिनेता खिलौना बेचने वाले जैसे होते हैं। हम सभी के पास एक निश्चित संख्या में खिलौने होते हैं। अब ये तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है की तुम अपने सभी खिलौनों को सिर्फ पाँच साल में बेंचकर अपनी दुकान बंद कर लेते हो, या तुम एकदम से नहीं बल्कि धीरे-धीरे अपने पास के खिलौनों को पचास साल तक लगातार बेचते रहते हो। दिलीप कुमार को दुनिया से इसलिए बेशुमार प्यार मिला क्योंकि दिलीप कुमार ने बहुत धीरे-धीरे करीब पचास-पचपन साल तक अपने खिलौनों को बेचा है। तुम काम जानते हो इसलिए मेरा मशविरा है की जल्दबाजी मत करना, बहुत जतन से काम करना, किसी दौड़ का हिस्सा मत बनाना। हो सकता है बीच में तुम्हारे पास बिल्कुल भी काम ना हो, कुछ काम तुम्हारे हाथ से छूट जाए लेकिन तुम जगह मत छोड़ना। अपनी चाल चलना और दुनिया से कहना- “मेरे पैरों में घुँघरू बंधा दे और फिर मेरी चाल देख ले।” ये कहते हुए उन्होंने स्नेह से मेरे सिर को सहलाया और चले गए। आज इस संयोग पर आश्चर्य होता है की मुझे सलाह देते हुए गाने की जो पंक्ति उन्होंने बोली थी वह उनकी फिल्म “संघर्ष” का गाना था और मुझे भी “संघर्ष” नाम की एक फिल्म करने का सौभाग्य प्राप्त है। श्रद्धेय दिलीप साहब ने जो कहा वह सिर्फ अभिनेताओं के लिए ही नहीं बल्कि हर सृजनशील व्यक्ति के काम का है। यदि इसे आज की मार्केटिंग की भाषा में समझें तो जितना महत्व प्रोडक्ट का होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण फर्म होती है। यह सत्य है की किसी प्रोडक्ट की गुणवत्ता किसी फर्म को खड़ा करने में सहायक होती है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब फर्म की विश्वसनीयता प्रोडक्ट को प्रतिष्ठा प्रदान करती है। प्रोडक्ट वही चलता है जिसमें बाजार की आवश्यकता, उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए लगातार बदलाव होता रहे और फर्म वही विश्वसनीय होती है जो लम्बे समय तक बिना डिगे अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रख सके। श्रद्धेय दिलीप कुमार साहब भारतवर्ष के ऐसे महान अभिनेता थे जिन्होंने अभिनय शास्त्र में वर्णित सभी परिभाषाओं को,अभिनय के सभी प्रकारों को बहुत सहजता के साथ अपनी कला में चरितार्थ करके बताया था। आज उनका पंच भौतिक शरीर भले ही इस संसार से चला गया है लेकिन दिलीप साहब जैसे कलासाधक की कला इस संसार के कलाप्रेमियों के हृदय में सदैव वर्तमान रहेगी.. भावपूर्ण श्रद्धांजलि। (नोटः आशुतोष राणा के फेसबुक पेज से साभार) #Paying tribute Dilip Kumar #let actor dilip kumar #Dilip sahib #Dilip Kumar-Ashutosh Rana #Ashutosh Rana on Facebook #Ashutosh Rana #RIP dilip kumar #Dilip Kumar #bollywood actor dilip kumar #legend actor dilip kumar #dilip sahab हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article