युद्ध विषयक बहुत सी फिल्में सिनेमा के पर्दे पर आई हैं। बॉयो पिक कथानक भी आते रहे हैं लेकिन, युद्ध में शहीद हुए किसी ‘परमवीर चक्र’ विजेता की फिल्म बड़ी निष्पक्षता के साथ और सम्पूर्ण एकाग्रता के साथ बनकर आयी हो और अंत मे रुला देती हो, ऐसा पहली बार लगा है- ‘शेरशाह’ को देखकर!
करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन कम्पनी और काश एंटरटेनमेंट ने मिलकर युद्ध का हूबहू नजारा ओटीटी (अमेजॉन प्राइम वीडियो) पर ला दिया है। फिल्म के निर्देशक हैं विष्णु वर्धन। कहानी करगिल युद्ध मे शहिद हुए परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी बटालियन की है जो 17000 फिट की ऊंचाई पर तथा पॉइन्ट 4875 रेंज पर पाकिस्तान को हराकर वहां भारत का तिरंगा लहराए थे। तब देश के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। पाकिस्तान ने उस रेंज पर कब्जा कर रखा था जिसे वापस पाना भारतीय सेना के लिए प्रतिष्ठा का विषय था। कैप्टन विक्रम बत्रा का इस मुहिम में कोड नाम था- ‘शेरशाह’।
फिल्म के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की कहानी उनकी टीनएज उम्र से शुरू होती है। दो बड़ी बहन और एक भाई के साथ पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में रह रहे एक अध्यापक बाप और सरल मां का बेटा अपने हक को पाने के लिए बड़ा अग्रेसिव रहता है। टेलीविजन पर धारावाहिक ‘परमवीर चक्र’ देखकर उसको सेना में जाने का जुनून सवार होता है। अपनी कॉलेज मित्र-गर्ल फ्रेंड डिम्पल चीमा (कियारा आडवाणी) के साथ शादी करने के सपने देखने वाला 24 साल का नवजवान ‘13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स’ में लेफ्टिनेंट पद पर पोस्टेड होता है। फिर शुरू होती है पाकिस्तान परस्त दहसतगर्दों को उनको बैरक से बैरक में घुसकर उड़ाने की मुकाबलेबाजी! पॉइंट 4875 के वॉर तक कैप्टन बन चुके विक्रम के लिए लड़ाई ‘दिल मांगे मोर’ के जुमले के साथ चलती रहती है... तिरंगे में लिपटी उनकी लास के साथ पालमपुर आने तक।
फिल्म की खूबसूरत फोटोग्रॉफी के लिए कमलजीत नेगी की तारीफ करनी चाहिए जन्होने दुर्गम स्थलों को बारीकी से कैद किया है। फिल्म को लिखा है संदीप श्रीवास्तव ने। पटकथा ढीली है लेकिन एक्टरों (शिव पंडित निकतिन धीर, हिमांशू आदि) ने संभाल लिया है।संगीत काम चलाऊं है जो जॉन एस ईदुरी ने तैयार किया है। सिद्धार्थ मल्होत्रा को और मेहनत करने की जरूरत थी। करण जौहर एक रोमांटिक मूड के व्यक्ति हैं और युद्ध विषय पर पर एक सुलझी हुई फिल्म दिए हैं, बधाई!