कुछ यादें राजश्री फिल्म के जन्मदाता स्व.ताराचन्द बड़जात्या के नाम By Mayapuri Desk 27 Sep 2021 | एडिट 27 Sep 2021 22:00 IST in एंटरटेनमेंट New Update Follow Us शेयर हिंसा, बलात्कार, अश्लीलता से भरपूर फिल्मों की परंपरा को तोड़ते हुए निर्मल, साफ सुथरी, पारिवारिक संवेदनशील फिल्मों का चलन शुरू करने वाले जाने माने निर्माता निर्देशक वयोवृद्ध ताराचन्द बड़जात्या अब हमारे बीच नहीं है। उनके जाने से जहाँ पारिवारिक फिल्मों के शौकीन दर्शकों के मन में ‘अब क्या होगा’ का सवाल उठने लगा है वहीं नये अभिनेता अभिनेत्रियों को इस बात का अफसोस होने लगा है कि वे ताराचन्द बड़जात्या की निगहबानी में अब कभी अपना कैरियर शुरू नहीं कर पायेंगे। स्वयं सात्विक विचारों के ताराचन्द बड़जात्या ने फिल्म निर्माण में भी सात्विकता की खुशबू रखी, उनका एक ही तर्क था, ‘बिना अश्लीलता या हिंसा के फिल्म नहीं चलती यह कौन कहता है’ अन्य निर्मातागण जहाँ अपनी जेबें भरने की गरज से यह कहते हुए सारा दोष दर्शकों के सर मढ़ते हैं कि “दर्शकों को ही फिल्मों में अश्लील सस्ता भौडापन- पसन्द है क्योंकि ज्यादातर दर्शक सड़क छाप होते है” वहीं ताराचन्द बड़जात्या दर्शकों की हमेशा इज्जत करते रहे, उनका कहना था, ‘दर्शक अन्त में क्लीन और अर्थपूर्ण फिल्में ही पसन्द करते है क्योंकि दर्शकों में विचार शक्ति बहुत होती है। फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से पहले जब राजश्री फिल्मों की एक लम्बी खामोशी का दौर चल रहा था तो एक मुलाकात के दौरान मैंने पूछा था, ‘अब आज के बदलते फिल्मों के स्टाइल में आपकी खामोशी आपकी हार नहीं है? वे व्यंग से मुस्कुराते हुए बोले थे, ‘यह खामोशी आने वाली ऊँचीं लहर या एक नये तूफान का इशारा है, अच्छी फिल्मों की कभी हार नहीं होती बल्कि युग को बदल-बदल कर अच्छी फिल्मों की तरफ लौटना पड़ता है।’ और वाकई राजश्री कृत अगली फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से फिल्म मेकिंग की धारा ही बदल गई, उन्हें अपने यकीन पर गर्व हुआ और गर्व हुआ उन्हें बड़जात्या के नये चराग निर्देशक सूरज बड़जात्या पर जिन्होंने राजश्री फिल्मों की परंपरा का परचम फहराये रखा। मैंने एक ब्यार ताराचन्द बड़जात्या जी से पूछा था, ‘आपने राजश्री फिल्म निर्माण कंपनी की शुरूआत क्या सोचकर की थी 7? इस पर वे बोले थे, ‘मैंने फिल्म इंडस्ट्री में एक वितरक के रूप में प्रवेश किया था देश की आजादी से पहले, फिर मैंने स्वतन्त्रता दिवस पन्द्रह अगस्त 1947 को अपनी फिल्म डिस्ट्रोब्यूशन संस्था की शुरूआत की लेकिन मैं बनी बनाई फिल्मों का वितरणु करके संतोष महसूस नहीं करता था क्योंकि मुझे उस तरह की फिल्मों का भीढ वितरण करना पड़ता था जो मुझे पसन्द नहीं थी । अपने इस असंतोष को मिटाने के. लिए ही मैंने 1962 को अपनी फिल्म निर्माण संस्था राजश्री फिल्म्ज की शुरूआत की और पहली फिल्म ‘आरती’ का निर्माण किया जो हिट साबित हुईं, मेरा अनुमान सही निकला कि दर्शक सिर्फ अच्छी फिल्म चाहते है और अच्छी फिल्में न सितारों की मोहताज होती है न बजट की।’ फिर तो बड़जात्या जी ने ‘दोस्ती’, ‘जीवन मृत्यु, ‘उपहार’, ‘सौदागरे’, ‘पिया का घर’, गीत गाता चल’, ‘चितचोर’, ‘तपस्या’, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’, ‘तराना’, ‘सावन को आने दो’, ‘नदिया के पार’,’सारांश’, ‘मैंने प्यार किया’ आदि जैसी पचास फिल्में बनाकर फिल्म इंडस्ट्री में एक स्वच्छ परंपरा की नीव डाली। उन्होंने कभी बड़े सितारों के नखरे सहन नहीं किये, वे कहते थे कि, ‘यहाँ अच्छे कलाकारों की कमी कहाँ है जो हमें किसी खास स्टार के पीछे भागना पड़े? नजर की ह॒द में कई संवेदनशील, संघर्ष करते कलाकार है जिन्हें बस सहारे और तराशने की जरूरत है ताराचन्द बड़जात्या के इस कथन के फलस्वरूप कितने ही नये कलाकार राजश्री फिल्म के सहारे उभर कर आये जैसे संजय खान (दोस्ती) सच्रिन सारिका (गीत गाता चल) अमोल पालेकर, जरीना वहाब (चितचोर) रंजीता (अखियों के झरोखें से) राखी (जीवन मृत्यु) अरूण गोविल (सावन को आने दो) रामेश्वरी (दुल्हन वही जो...) सलमान खान, भाग्यंश्री (मैंने प्यार किया) वगैरह । आज जो लगभग सभी फिल्में सुमध्ुर संगीत प्रधान होती है वह भी तराचन्द जैसे संगीत प्रेमी की राजश्री फिल्म द्वारा शुरू की गईं परंपरा है। उन्होंने अपनी प्रत्येक फिल्म में गीत संगीत को प्रधानता दी जो आज सभी फिल्मो में नजर आती है। उम्र के साथ साथ उनकी शारीरिक शक्ति कम होती जा रही थी। परन्तु फिल्म मेकिंग की उमंग को वे न छोड़ पाये थे न छोड़ना चाहते थे, उनका कहना था, ‘पहलेकी तरह अब शरीर में दम भले ही न रहा हो राजश्री फिल्म हमेशा अच्छी फिल्में पैदाकरती रहेगी बस इस एक जोश के चलते मैं मरते दम तक फिल्में बनाता रहूंगा। मैंउन नये चेहरों को निराश नहीं करूंगा जो राजश्री बैनर की फिल्मों से केरियर शुरूकरने के इंतजार में रहते है। में किसी सम्मान या पुरस्कार, एवार्ड के लिए फिल्मेंनहीं बनाता क्योंकि मेरा पुरस्कार मेरे दर्शकों के होठों की मुस्कान है, आँखों के आँसू है जोवे मेरी फिल्में देखते हुए लुटाते है। मैं दर्शकों के सुख, टुख और समस्याओं पर फिल्में बनाकर उन्ही को देता हूँ.. एवार्ड न भी मिले तो क्या है। वैसे उनकी फिल्में’आरती’ फिल्म “अंतराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में दिखाई गईं। ‘दोस्ती’ फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार में सम्मानित हुई, और ‘मैंने प्यार किया’ ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिये। अब यूँ तो राजश्री फिल्म के बैनर तले फिल्में बनती रहेंगी परन्तु फिर भी ताराचन्द बड़जात्या के संवेदनशील कृतियों की कमी खटकती रहेगी, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को धैर्य प्रदान करे। #Tarachand Barjatya #Tarachand Barjatya article #Tarachand Barjatya story #late Tarachand Barjatya #about Tarachand Barjatya #indian film producer Tarachand Barjatya #Rajshree films #Tarachand Rajshree हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article