कभी-कभी मुझे लगता है कि यह माइंडसेट है जिसने सुभाष घई को वो शोमैन बना दिया है जिसे अभी भी जाना जाता है
,
भले ही उन्होंने कुछ वर्षों से कोई फिल्म नहीं बनाई
,
लेकिन उन्हें एक एजुकेशनिस्ट के रूप में अधिक जाना जाता है जिन्होंने अपना मन और दिल अपने प्रोजेक्ट व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल को सबसे अच्छा बनाने में लगा दिया है
,
और वह अपनी इसी पहल के कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आज भी जाने जाते हैं।
यह उनके दिमाग की ताकत थी
,
जिसने उन्हें अभिनय के कोर्स के लिए एफटीआईआई में शामिल कराया। यह उनके दिमाग की ताकत थी
,
जिसने उन्हें इस काबिल बनाया
,
की वह एक मिडिल क्लास फैमिली का एक लड़का एक उत्कृष्ट छात्र बन गया
,
जो
“
देवदास
“
में दिलीप कुमार के प्रदर्शन पर एक निबंध भी लिख सकता था। यह उनके दिमाग की ताकत थी जिसने उन्हें एक अभिनेता के रूप में बनाया था। यह उनके मन की ताकत थी जिसने उन्हें एहसास दिलाया कि वह एक अभिनेता के रूप में सफल नहीं होंगे
,
लेकिन वह फिल्म निर्माता बनकर सफल हो सकते हैं। यह उनके दिमाग की ताकत थी जिसने उन्हें एक लेखक और अंततः एक शानदार निर्देशक और निर्माता के रूप में और आखिरकार एक शोमैन के रूप में सफल बनाया। यह उनके दिमाग की ताकत थी जिसने उन्हें जीवन के अलग क्षेत्रों में आसानी से अपने एम्पायर का निर्माण करने के लिए एक बेहतरीन फिल्म स्कूल बनाने के निर्णय लेने में मदद की।
यह उनके दिमाग की ताकत थी जिसने उन्हें उनकी प्रगति में सफलता दिलाई। कुछ साल पहले जब उनकी बड़ी फिल्में जैसे युवराज
,
किसना
,
ब्लैक एंड व्हाइट और आखिरकार कांची भी बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिटी
,
तो कई लोगों को लगा कि महान शोमैन को विदाई देने का समय आ गया है
,
लेकिन जब उनके आलोचक और पक्षपाती इतिहासकार उनके बारे में लिखने में व्यस्त थे
,
तो वह खुद को जानने के लिए एक प्राइवेट कोर्स कर रहे थे और यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि वह फिल्म बनाने में कहां और क्या गलत कर रहे हैं। उन्हें एहसास था कि वह एक शोमैन हो सकते हैं
,
लेकिन एक सुपरमैन नहीं जो जितना चाहे उतना काम कर सकता है। उन्होंने नई लाइफ जीने और हजारों लोगों को नया जीवन देने के लिए कुछ नए सबक सीखे। उन्होंने कहा कि मन की ताकत ही भविष्य की ताकत हैं।
जब वह ध्यान कर रहे थे और अपने मन को मजबूती से इस्तेमाल करने की कला का अभ्यास करने की कोशिश कर रहे थे
,
तो उन्हें मेरे इंडियन एक्सप्रेस के एक दोस्त अमोल शेटगे ने एक स्क्रिप्ट दी
,
जो स्पोट्र्स के रूप में एक मराठी फिल्म बनाना चाहते थे। घई जिन्होंने इससे पहले
“
वल्लू
“
और
“
सनाई चैघड़े
“
जैसी मराठी फिल्में बनाई थी और उनके पास बहुत ही पॉजिटिव एक्सपेरिएंस भी थे
,
और उन्हें खास तौर पर इस विषय से प्यार भी था
,
क्योंकि इस विषय के कारण वह मन की ताकत
,
सकारात्मकता और हार के जीतने की इच्छाशक्ति के बारे में खुलके बात करते थे
,
जो किसी भी स्तर के
,
किसी भी तरह के
,
खेल खेलने वाले
,
किसी भी खिलाड़ी के लिए प्रमुख गुणों में आता था।
घई न केवल अमोल शेटगे द्वारा प्रस्तुत की गई फिल्म
’
विजेता
’
के लिए सहमत हुए
,
बल्कि उनको अपनी पसंद के कलाकारों और यहां तक कि तकनीशियनों
,
संगीतकारों और गीतकारों के साथ फिल्म बनाने की आजादी भी दी। एक निर्देशक को एक गंभीर फिल्म बनाने के लिए और क्या चाहिए
?
हालांकि यह फिल्म छः महीने से भी कम समय में पूरी शूट हो गई थी।
सुभाष घई इस फिल्म को लेकर इतने उत्साहित हो गए थे कि वह इसे प्रोमोट करने के लिए हर मंच का उपयोग कर रहे थे।
28
फरवरी को
,
डब्ल्यूडब्ल्यूआई का ग्राउंड उत्साह के साथ भरा था
,
और इसका कारण
“
विजेता
“
के ट्रेलर और संगीत की लॉनिं्चग थी। यह फंक्शन ऑफिशियली तौर पर शाम
4
ः
30
बजे ऑडिटोरियम में शुरू होना था
,
लेकिन यह देर से और बाद में शुरू हुआ था और किसी ऐसे व्यक्ति की वजह से जो डब्ल्यूडब्ल्यूआई की स्थापना के समय से ही यहाँ आयोजित हर कार्यक्रमों में भाग ले रहे थे।
हालांकि घई श्रीमती अंजलि भागवत के आइडियल ऑकेशन के लिए एक आइडियल चीफ गेस्ट के रूप में उनके शामिल होने के लिए काफी उत्साहित थे। श्रीमती भागवत भारत की एकमात्र ऐसी महिला हैं जिन्होंने भारत के लिए विश्व कप जीता हैं।
इस कार्यक्रम की शुरुआत टीम को मंच पर लाने के साथ हुई और इस इवेंट की हाईलाइट अवधूत गुप्ते द्वारा गाया गया गीत था
,
जो रोहन-रोहन की टीम द्वारा कंपोज़ किया गया था। इस सब के बीच अधिक दिलचस्प यह वही गीत था जिसे डब्ल्यूडब्ल्यूआई के संगीत वर्ग के छात्रों द्वारा प्रस्तुत किया गया था जो लगता है कि वे अपने हर प्रयास के साथ इसे और अधिक बेहतर और आत्मविश्वासी बना देते हैं। जब भी मैं डब्ल्यूडब्ल्यूआई के छात्रों द्वारा किए गए प्रदर्शन को देखता हूं
,
तो मैं भावनाओ से भर जाता हूँ।
श्रीमती भागवत ने कहा कि उनके पास अपनी ट्रेनिंग के दौरान कोई फॉर्मल ट्रेनिंग या माइंडसेट ट्रेनिंग जैसी कोई चीज नहीं थी
,
लेकिन वे तब भी वल्र्ड चैंपियन बना सकी और देश के लिए विश्व कप जीत
सकी हैं
,
लेकिन इस तरह की कुछ बेहतर मदद के साथ
,
वह बहुत अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच सकती थी और अधिक कठिन लक्ष्यों को चुनौती दे सकती थी। श्रीमती भागवत जो शायद पहले फिल्म इवेंट में शामिल हुई थीं
,
उन्हें फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ करने का सम्मान दिया गया था।
सुभाष घई इस फिल्म के ट्रेलर और संगीत की प्रतिक्रिया से काफी उत्साहित दिखे थे और कहा कि वह
6
मार्च को इस फिल्म के रिलीज होने का इंतजार कर रहे थे।
दुर्भाग्य से
,
इस महान अवसर पर अमोल शेटगे को नहीं देखा गया था
,
क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। मुझे याद है कि जब वह द एक्सप्रेस में एक फोटोग्राफर थे
,
तो वे मुझसे पूछते थे कि क्या मैं उन्हें सुभाष घई से मिलवा सकता हूं। मुझे नहीं पता कि मैंने उसके अनुरोध को पूरा किया है या नहीं। लेकिन मैं बहुत खुश हूं कि उन्होंने जो कुछ भी चाहा था
,
वह किया है और जो अब सुभाष घई के पसंदीदा में से एक बन गए है और जल्द ही पूरे महाराष्ट्र और क्या पता पूरी दुनिया में लाखों लोगों की पसंदीदा भी बन जाएगे।
प्रोडयूसर राहुल पुरी और उनके सहयोगियों
,
सुरेश पाई और आशीष घरड़े की टीम को मेरी शुभकामनाएं