टेढ़ी...सीधी...गोलमटोल...फिर भी

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By Mayapuri Desk
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टेढ़ी...सीधी...गोलमटोल...फिर भी

'-के. पी. सक्सेना

तीन बजे बोला था, बज गये चार साथ के ईरानी रेस्त्रां में रिकार्ड बज रहा था, मैं चैंक कर पसीने-पसीने हो गया, वाकई चार बज रहे थे, मुझे तीन बजे महबूब स्टूडियो बांद्रा में पहुंचना था, मैंने भी सोचा कि हटाओ, मैं हीरो हो गया हूं, स्टूडियो में लेट पहुंचने पर ही जरा हनक और जलवा बना रहता है, अभी लॉन में बाएं मुड़ा ही था कि, ढिशिम्! हन्टरवाली 77’ बिन्दु आ टकराई! तौबा ! गजब का हुस्न था, हन्टरवाली का जी में आया कि वहीं बेहोश हो जाऊं और हन्टर वाली मेरी हड्डियों पर दामन की हवा झलती रहे. गैलनों पसीना पोंछ कर आगे बढ़ा. अई अईयो एक निहायत झमाझम हसीन चीज, मेअकप से आरास्ता, नन्हें-मुन्ने कपड़ों में बिजलियां गिरा रही थीं. गनीमत यह कि जूते में रबर सोल था, वरना खाक हो गया था. पास से गुजरते एक छुट अय्ये से पूछा-“भाई साहब, वह जो सामने सजी-धजी बैठी हैं वह क्या चीज हैं और वहां क्यों रखी हुई हैं?”

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अगला मुझे देखकर चैंका और ताज्जुब नाल बोला-काए को बोम मारता है? आपुन लोग का अक्खा फिल्म लेन उनपर जान दियेला पड़ा है. उनको नई. जानता ? तुमेरा बुद्धि खलास रेखा जी हैं.”

मेरे जिस्म का सारा पसीना मोजों में आ गया, क्या नाम रखा है रखने वाले ने रेखा! यानी स्ट्रेट लाइन इस कदर गोल-मटोल और भरपूर चीज का नाम, रेखा? एटम-बम! क्यों नहीं रखा? “यके बदीगरे बिजली के पॉवर हाऊस-नुमा इस लड़की की दर्जनों फिल्में जहन में घूम गईं. ‘धरम करम’ वाली रेखा, कसम बाप मरहूम की, क्या ठस्के थे” क्या पोशार्के थी, बदन की एक-एक रग, एक- एक रेशा तड़प उठने को बेकरार. उन दिनों मेरा ब्लडप्रेशर नार्मल था, सो झेल गया. कितनों का दिल तड़प कर बनियान से बाहर उछल आया था, लंगता था आज महबूब स्टूडियो में जामेट्री पढ़ाई जा रही थी, पहले बिन्दु मिली” अब रेखा. शायद अब त्रिकोण और चैकोर भी मिलें! मैं रेखा पर ही ठहर गया, धीरे से कहा- “जय राम जी की, रेखा जी. आई एम के. पी. बाऊजी ऑफ ‘मायापुरी’ उस पाॅवर हाऊस ने मुस्करा कर देखा-“आपके पाई निहाल सिंह ऑफ लाहौर कहां हैं ?”

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‘छोले बेच रहे हैं, मैं तो फिलहाल आपकी मिठास देख रहा हूं. लगता है वीनू(विनोद मेहरा) की शादी की मिठाई अभी तक होठों से लगी है, आपजी को स्टूडियो की कसम, सच कहना. कैसी लगी मीना (विनोद की पत्नी) आपको ?” बहुत अच्छी है, सुबह की ओस जैसी ताजी उभरते सूरज की किरण जैसी उजली बहुत-बहुत चार्मिंग!

मुझे लगा कि रेखा कह रही है-ऐ दिल न मुझे याद दिला, बातें पुरानी.” हाय क्या दिन थे, इसी विनोद बेबी के साथ, खेर बीती ताहि बिसारिये” ‘सुना है जी कि आप घर से घर बनवा रही हैं. मेरा मतलब ‘घर’ फिल्म की रकम से!” “ठीक, बाऊजी, बांद्रा में समुद्र-तट पर एक शांत-सा मकान, काफी पैसा लग चुका है अब तक मगर मुझे खुशी है, कि मैं शान्ति से रह सकूंगी!

कसम पाई निहाल सिंह दी, आप भी अच्छा मजाक करती हैं. हाय! यह उम्र ये उमंगें और शान्ति? तोबा ! “घर” का वह रेप सीन देख कर बिजली के खम्भे तक तड़प उठे“ आप सही कहते हैं! वह वाकई बड़ा “टफ! सीन था. मगर आप जी दी किरपा नाल बढ़िया निपट गया.” “और वह अपने 6 फुटे लाला जी के बारे में क्या ख्याल है? यानी कि, बसयों ही, कौन लाला जी??

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हाय! फिल्मंा विच दो ही तो लाला कायस्थ भय्ये हैं. एक अपना शत्रु (दुश्मन नहीं) और दूसरा”? ओह ! अमितजी आप बड़े होपलेस आदमी हैं जी! ऐसे- प्यारे टांप स्टार को ‘लालाजी’ कह दिया.” सॉरी! मैं उसी यार के बारे में पूछ रहा हूं.” देखिये के. पी. बाऊजी, अटकल पच्चू मत लगाईये ! मेरा किसी से कुछ नहीं चल रहा है! और फिर अमित जी? वे तो अपनी जगह कला का एक चलते-फिरते मदरसा हैं.

“यह तो टाइम की बात है, बेबी सभी ग्रेट होते हैं, किरन कुमार और विनोद मेहरा भी ग्रेट थे, वैसे मुझे खुशी है डियर कि नवीं क्लास के आंगे न पढ़ने पर भी तुस्सी अंग्रेजी बड़े झपाके से बोलती हो, सुना है कि अमित जी के प्रभाव में आप भी पत्रकारों से कन्नी काटती हैं.”  “कन्नी काटती हूं? फिर आपसे बातें क्या मेरी नानी कर रही है? हां, मुझे बिना वजह की गपास्टक से चिढ़ हैं. अमित जी तो चैबीसों घंटे अपने काम में खोये रहते हैं..किसी पर प्रभाव डालने का सवाल ही नहीं उठता और फिर, वे अच्छे भले शादी शुदा, बाल-बच्चेदार हैं...”

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“न होते तो? खैर जाने दीजिये, दिल का यह मामला है कोई दिल्लगी नहीं. आगे क्या ‘नीयत’ है ?

‘नीयत’ यह मेरी आने वाली फिल्म है. ‘मशाल’, “मुकद्दर का सिकंदर’, ‘नटवर लाल’ और.‘नमकीन’,

‘क्या नमकीन?’ मैं चैंका. “अजी बाऊजी, ‘नमकीन’ मेरी कॉमेडी फिल्म है.”

सुना है आप जाती तौर पर बस यों ही हैं, एक साड़ी कई दिन पहनती हैं? न मेअकप...न ज्वेलरी?”

“जी हां. मैं पैसा बरबाद नहीं करती, घर बनवाना है...परिवार देखना है. पार्टियों वगैरह में मुझे कोई इन्ट्रेस्ट नहीं. मैं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं....!

“और जिंदगी का हमराज? आई मीन....

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“मैं इतनी उर्दू समझती हूं, बाऊ जी. अभी मुझे टॉप पर पहुंचना है... कुछ करना है...फिर बाकी सब भी हो जायेगा. समझ गये न ?!

“बहुत कुछ समझ गया, बेबी रब जी तुम्हारी मुरादें पूरी करें! जिंदगी मेंहदी हसन की गजल बनी रहे, जिन्हें तुम बहुत पसंद करती हो.

थेंक्यू, बाऊ जी ! कुछ चाय-शाय ?!

“अजी मोहतरमा, हमने पिया ही समझ लीजिये ...तौबा-तौबा! मेरा मतलब चाय पिया ही समझ लीजिये.

हम दोनों ठहाका लगा कर हंस पड़े. रेखा की हंसी ?...गोया कांच के ढेरों नाजुक गिलास फर्श पर एक झनाके से टूट गये हों !

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