जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गए

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By Siddharth Arora 'Sahar'
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जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गए

दिलीप कुमार का सामना जब संविधान निर्माता, उच्च-शिक्षित, इस देश की शान डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर से हुआ...

यह सिर्फ दिलीप कुमार का जहूरा और उनका अतुलनीय टैलेंट ही नहीं है जिसने उन्हें इतना बड़ा बनाया, बल्कि उनकी कमांड ज़िन्दगी के हर पहलु हर फील्ड में ही ऐसी है कि वो जो करते उसमें बॉस होते। लेकिन ये उनका पैशन और डेडिकेशन ही था जिसने उन्हें एक्टिंग फील्ड चुनने को मजबूर किया और जबकि यही टैलेंट उन्हें उस ऐश्वर्य और नाम से दूर भी कर सकती थी जो उन्होंने मेहनत से कमाया था और जिसके वो हक़दार थे। उनकी बहुत सी ख़ूबियों में से एक ख़ूबी ये भी थी और है कि वो महान से महान, बड़े से बड़े कद्दावर शक़्स के साथ बहुत बेहतरीन तरीके से अपनी बात रखते हैं।  - अली पीटर जॉन

दिलीप कुमार नेअम्बेडकर के दोस्तों से उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की

जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गए   दिलीप कुमार पंडित जवाहर लाल नेहरू के बहुत अच्छे दोस्त थे। दिलीप और नेहरू इतने करीब थे कि नेहरू को जब भी किसी कला के श्रेत्र से जुड़ी या किसी भी समाजिक मुद्दे से जुड़ी बात पर सलाह-मशवरा करना होता था तो वो दिलीप कुमार से बात करते थे।  कई बार तो दिलीप कुमार के साथ-साथ राज कपूर और देव-आनंद भी इस वार्ता में शामिल होते थे। सिर्फ नेहरू ही नहीं, बल्कि ऑपोज़िशन पार्टी के भी बहुत से ऐसे लीडर थे जिनसे दिलीप कुमार की दोस्ती थी और सब ही उनकी जानकारी और सूझबूझ की कद्र करते थे।

जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गएदिलीप कुमार तब औरंगाबाद के उसी होटल में रुके थे जिसमें डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर अपनी पत्नी सविता और कुछ क़रीबी दोस्तों के साथ ठहरे हुए थे। जब दिलीप कुमार को पता चला कि संविधान के निर्माता भी इसी होटल में ठहरे हुए हैं तो उन्होंने अम्बेडकर के दोस्तों से उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की।

दिलीप कुमार इस बात से इतने ख़फ़ा हुए कि बिना कुछ बोले अगले ही पल उठे और कमरे से बाहर चले गये

जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गएउन दोनों की मीटिंग अरेंज हुई और डॉक्टर अम्बेडकर ने वार्तालाप की शुरुआत ये कहकर की कि फिल्म इंडस्ट्री कोई बहुत अच्छी जगह नहीं है और यहाँ न अच्छे इंसान हैं और न ही उनमें कोई मोरल वैल्यूज़ बाकी हैं। इसके बाद डॉक्टर अम्बेडकर कुछ कहते इससे पहले ही दिलीप कुमार ने अपने अनोखे अंदाज़ में उन्हें टोकते हुए बताया कि आपके मन में फिल्म इंडस्ट्री की ग़लत इमेज बनी हुई है लेकिन डॉक्टर अम्बेडकर दिलीप कुमार की किसी बात को समझने को राजी ही नहीं थे और उन्होंने दिलीप कुमार को अनगिनत ऐसे मौके गिनाए जिनसे ये साफ़ साबित होता था कि फिल्म इंडस्ट्री में कोई बहुत अच्छे लोग नहीं बसे हैं। दिलीप कुमार इस बात से इतने ख़फ़ा हुए कि बिना कुछ बोले अगले ही पल उठे और कमरे से बाहर चले गये। चारों ओर सन्नाटा पसर गया।

डॉक्टर आंबेडकर ने साफ़ कह दिया कि वो अपने उसूल अपनी सोच पैसे मात्र के लिए बदल तो नहीं सकते

जब दिलीप कुमार की भेंट डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और वो गुस्से में उठकर चले गएडॉक्टर अम्बेडकर के दोस्तों ने उन्हें कहा भी कि उन्हें दिलीप कुमार को इस तरह नहीं कहना चाहिए था क्योंकि दिलीप एक अच्छा ख़ासा अमाउंट उनके सद्कार्यों के लिए डोनेट करते हैं पर डॉक्टर आंबेडकर ने साफ़ कह दिया कि वो अपने उसूल अपनी सोच पैसे मात्र के लिए बदल तो नहीं सकते। बात यहीं ख़त्म हो गयी मगर दिलीप कुमार की दलितों के मुखिया डॉक्टर अम्बेडकर के साथ हुई इस मुलाक़ात से ज़ाहिर तौर पर संतुष्ट न हुए। डॉक्टर अम्बेडकर उन शख़्स में से थे जिनके पास दर्जनों बहुमल्य डिग्री थीं, वो हाइली एजुकेडेटेड शख्स थे पर काश वो फिल्म इंडस्ट्री का अच्छा पहलु भी देख पाते, या देखने की कोशिश करते।

कौन जानता है कि अगर ये मुलाकात सकारात्मक मोड़पर ख़त्म हुई होती तो शायद पूरे विश्व के लिए, और ख़ासकर इस देश की फिल्म इंडस्ट्री के लिए कितनी अच्छी बात होती।

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