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स्व
.
कवि शैलेन्द्र
की
नाम
याद
किया
जाता
है
,
तो
राजकपूर
को
अनेक
फिल्मों
के
गीत
कानों
में
गूंज
उठते
हैं,
यह
सच
है
कि राजकपूर
की
फिल्मों
को
गीतों
के
नए
तरानों
से
सजाया
तो
शैलेन्द्र
ने
ही
फिल्
मी
गीतकार
के
रूप
में
शैलेन्द्र
बहुत
ऊंची
चोटी
पर
पहुंच
गए
थे
,
पर
वस्तुतः
शैलेन्द्र
फिल्
मी
गीतकार
नहीं
बनना
चाहते
थे
वे
ऊंचे
दरजे
के
प्रगतिशील
कवि
थे
,
और
कवि
के
रूप
में
ही
अपनी
जिंदगी
बिताना
चाहते
थे
पन्ना
लाल
व्यास
राष्ट्रीय
एकता
की
भावना
को
जगाने
के
लिए
बंबई
के
फिल्
म
कलाकारों
ने
बड़ा
शानदार
जुलूस
निकाला
सन्
1948
की
बात
है
,
राष्ट्रीय
एकता
की
भावना
को
जगाने
के
लिए
बंबई
के
फिल्
म
कलाकारों
ने
बड़ा
शानदार
जुलूस
निकाला
,
इस
जुलूस
में
कवि
शैलेन्द्र
भी
शामिल
थे
.
उन्होंने
उस
दिन
उस
जुलूस
में
सजल
वाणों
के
साथ
अपना
एक
,
शानदार
गीत
‘
चलता
है
पंजाब
’
गाया ।
उस
गीत
ने
उस
जुलूस
में
अनोखा
समा
बांध
दिया
था
,
उस
गीत
से
राजकपूर
भी
अत्यंत
प्रभावित
हुए
और
उसी
दिन
उन्होंने
शैलेन्द्र
से
परिचय
किया
,
उस
समय
राज
साहब
‘
आग
’
बना
रहे
थे
.
और
उन्हें
एक
अच्छे
गीतकार
की
तलाश
भी
थी,
राज
साहब
ने
उनके
सामने
उस
फिल्म
के
लिए
गीत
लिखने
का
प्रस्ताव
रखा
।
प्रस्ताव
बड़ा
आकर्षक
था
.
पर
शैलेन्द्र
की
इच्छा
नहीं
हुई
कि
वे
फिल्
मी
गीतकार
बनें
.
पर
इस
घटना
के
बाद
उनकी
आर्थिक
परेशानियां
बढ़ती
चली
गई।
एक
के
बाद
एक
मुसीबतें
पैदा
होती
चली
गई,
उन्होंने
एहसास
किया
कि
भारत
जैसे
गरीब
देश
में
कवि
कोरी
कविताओं
से
अपने
परिवार
का
निर्वाह
नहीं
कर
सकता।
कवि
मन
हार
गया
और
आर्थिक
परेशानियों
से
हार
कर
वे
राज
साहब
के
पास
पहुंचे,
उस
समय
राज
साहब
‘
बरसात
’
फिल्म
का
निर्माण
कर
रहे
थे,
शैलेन्द्र
को
तुरंत
ही
अवसर
मिल
गया
और
“
बरसात
”
के
कोमल
गीतों
के
साथ
फिल्
मी
गीतकार
के
रूप
में
उस
फिल्म
प्रदर्शन
के
साथ
ही
विख्यात
हो
गए ।