Birthday Specia Dev Anand: देव जैसा ‘बॉस’ फिर कहाँ?

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By Ali Peter John
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Birthday Specia Dev Anand: देव जैसा ‘बॉस’ फिर कहाँ?

मैंने देव आनंद को उनके सभी अवतारों में देखा है और मेरा दावा है कि मैं अभी भी उन्हें पर्याप्त तरीके से नहीं जानता हूं.

देव साहब को बहुत से लोग जानते थे, लेकिन बहुत कम लोग यह जानते थे कि वह अपनी कंपनी, ‘नवकेतन फिल्म्स’ के लिए काम करने वालों के लिए एक बहुत ही प्यारे और केयर करने वाले एक दयालु ‘बॉस’ थे. जैसे उन्होंने फिल्म निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभा की खोज की थी, वैसे ही उनके पास अन्य छोटे शहरों के अलावा, मुंबई और दिल्ली में अपने ऑफिस में काम करने के लिए लोगों को खोजने की कला भी थी.

मुझे उन्हें अपने कर्मचारियों के साथ बातचीत करते हुए देखने का सौभाग्य भी मिला, जिनमें से अधिकांश ने उनके साथ तब तक काम किया जब तक कि वे बूढ़े नहीं हो गए थे या किसी बीमारी या किसी एक्सीडेंट का शिकार नहीं हो गए थे.

उनके लिए काम करने वालों की संख्या में ज्यादातर वह पुरुष और महिलाएं शामिल थीं, जो ‘नवकेतन फिल्म्स’ के निर्माण के दौरान उनसे जुड़े थे. उनका एक बिल्डिंग में सांताक्रूज में खैरा नगर में एक ऑफिस था, जो एक ट्रेन की तरह दिखता था और इसके सबसे अंत में उनका केबिन था, जिसमें उनके करीबी कर्मचारी पहली मंजिल पर एक ही ‘डिब्बे’ में विभिन्न क्यूबिकल कॉर्नर्स में बैठ कर काम करते थे. और उनमें से एक अमित खन्ना नाम का एक युवक था, जिसे देव साहब ने दिल्ली में अपने डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिस में देखा था और उसे करप्शन कंट्रोलर के पद पर प्रमोट किया गया था.  

 मिस्टर. पिशार्प्ती जैसे उनके वरिष्ठ कर्मचारी थे जो उनके अकाउंट मैनेजर थे जब से उन्होंने ‘नवकेतन फिल्म्स’ शुरू की थी और जिन्होंने न केवल उनके साथ काम किया था, बल्कि उन्होंने कभी किसी तरह की छुट्टी तक नहीं ली. उनके जूनियर और अन्य नियमित कर्मचारी भी थे. लेकिन एक वर्कर जिसे देव साहब ने कभी अपने ऑफिस से जाने नहीं दिया, वह उनके ऑफिस की रिसेप्शनिस्ट और उनकी सेक्रेटरी श्रीमती फर्नांडीस थी.

इस स्टाफ ने देव साहब को फॉलो किया, जब उन्होंने अपने कार्यालय को ‘आनंद’ में स्थानांतरित कर दिया, जहाँ उन्होंने अपना ‘पेंट हाउस’ और अपने डबिंग और रिकॉर्डिंग स्टूडियो का प्रबंधन किया, जिसे वी.के. सूद नामक एक अन्य देव भक्त द्वारा मैनेज किया गया था. पूरा ऑफिस देव साहब के पेंट हाउस के करीब स्थित था, ताकि वह कर्मचारियों के किसी भी सदस्य के लगातार संपर्क में रह सकें.

मैंने एक बार पूरे स्टाफ से पूछा कि वे बेहतर भविष्य के लिए देव साहब को छोड़ने के लिए तैयार क्यों नहीं थे और फर्नांडिस ने उन सभी की ओर से बोलते हुए कहा, “हम एक ऐसे बॉस को छोड़ने के बारे में कैसे सोच सकते हैं, जिसने हमेशा हमें समय पर भुगतान किया हो और जो काम हम करते हैं उसके चलते वह हम सभी से बहुत प्यार करते है, हम सब के अनुसार वह हर समय हमारे परिवारों के एक प्रमुख की तरह है.”

देव साहब के पास एक ड्राइवर था, जिसने उन्हें तब भी छोड़ने से इनकार कर दिया था जब वह बहुत बूढ़ा हो गया था और देव साहब ने उनसे सालों तक उनके परिवार को उनकी सैलरी भेजने के लिए एक पॉइंट बनाया था. और इस ड्राइवर की जगह प्रेम नामके ड्राईवर ने लेली थी, जिसने दुबई में नौकरी पाने का एक शानदार अवसर पाया था, जहाँ उसे जीवन की सभी सुख-सुविधाएँ मिलती. देव साहब, ने प्रेम को जाने की आजादी दी क्योंकि उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति जो जाना चाहता है उसे रोकना नहीं चाहिए. तीन महीने बाद, प्रेम बॉम्बे वापस आया और देव साहब से उसे फिर से अपने ड्राइवर के रूप में रखने के लिए कहा. वे ऐसे थे जो बॉस और ड्राइवर से ज्यादा दोस्त थे. कभी-कभी जब देव साहब रात में बहुत देर तक काम करते थे, तो वह प्रेम को तब तक ड्राइव करने को कहते थे जब तक उसका झुग्गी में स्थित घर नहीं आ जाता था क्यूंकि वह पहले अपने ड्राईवर के घर पहुचने कि जिमेदारी लेते थे और फिर वहा से खुद अपनी कार ड्राइव करके घर आते थे. देव साहब की मृत्यु के बाद प्रेम के लिए जीवन कभी भी एक जैसा नहीं रहा था और देव साहब के बिना रहने का सदमा उस पर इतना गहरा पड़ा था कि वह शराबी बन गया और नशे में वही सड़कों पर चलता पाया गया जहाँ उसे देव साहब का ड्राइवर कहा जाता था और तीन महीने बाद, मुझे पता चला की उसकी भी मृत्यु हो गई थी और उसके अंतिम शब्द ‘देव साहब, देव साहब’ थे.

अंत में देव साहब को एक आदमी के साथ कुछ बुरे अनुभव का सामना करना पड़ा, वह आदमी जिसने देव साहब ने वादा किया था कि वह उनकी डबिंग और रिकॉर्डिंग स्टूडियो की देखभाल करेंगा उस आदमी ने न केवल पैसे के लिए देव साहब को धोखा दिया था बल्कि अंधेरी के उपनगरीय इलाके में अपना रिकॉर्डिंग स्टूडियो खोला था. जब मैंने इसे देव साहब के नोटिस में लाया, तो उन्होंने कहा, “ठीक है, ठीक है, वो पैसे ही ले गया, मेरी तकदीर को थोड़े ही ले गया” देव साहब की मृत्यु के कुछ महीने बाद, उन्हें अपना नया रिकॉर्डिंग स्टूडियो बंद करना पड़ा था.

क्या वो देव साहब के साथ हेरा फेरी करने कि सजा थी?

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