Birthday Special Asha Parekh: एक नये रूप की प्रतिभा

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By Mayapuri
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Birthday Special Asha Parekh: एक नये रूप की प्रतिभा

यह लेख दिनांक  8-1-1978 मायापुरी के पुराने अंक 173 से लिया गया है!

हर मनुष्य के हृदय में रोमांस के निर्मल स्त्रोत बहा करते हैं, और वह उसमें डूब कर अपने थके मन और तन की प्यास बुझाता है, जीवन शायद अधूरा होता अगर इसमें रोमांस का गहरा नशा नहीं होता, रोमांस की दुनिया हमारी दुनिया से ज्यादा मुलायम होती है, जहां आठों पहर आदमी एक नर्म जमीन पर सफर करता महसूस करता है, यों आज की फिल्मों में रोमांस के लिए कोई विशेष स्थान नहीं फिर भी यह कोई नहीें कह सकता कि रोमांस का अस्तित्व ही समाप्त हो गया, जिस वक्त फिल्‍मों से रोमांस की धारा का स्त्रोत सूख जायेगा उस दिन शायद फिल्में प्राणहीन हो जायेंगी और उनका अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, आज चाहे मारधाड़ की फिल्मों का प्रचलन कितना ही तेज हो गया हो, लेकिन इन फिल्मों में भी हेमा मालिनी, परवीन बॉबी और जीनत अमान की इसीलिए जरूरत महसूस होती है, क्‍योंकि दर्शकों को सिर्फ एक्शन के दृश्यों से बांध कर नहीं रखा जा सकता, हालांकि फिल्म में रोमांटिक दृश्यों की योजना के बिना फिल्म अधूरी होती है!   

60 से 70 तक हिंदी फिल्मों की दुनिया में रोमांस के जिस स्त्रोत का विकास हुआ था, उसके विकास में अभिनेत्री आशा पारेख की चर्चा जरूरी है, और आशा पारेख की चर्चा के बिना हिंदी की रोमांटिक फिल्मों का इतिहास ही अधूरा रह जायेगा, सही तौर पर “दिल देके देखो” में शम्मी कपूर के साथ आशा पारेख की अभिनय-यात्रा शुरू होती है, इस फिल्म में एक मोहक नायिका के नशीले अंदाज से दर्शकों को परिचय मिलता है, बड़ी-बड़ी आंखें, मासूमियत में डूबा चेहरा, भोली आवाज और मदभरी चाल के साथ दर्शकों के दिलों में आशा पारेख को उतरते जरा भी देर नहीं लगी और यही कारण है, कि उनकी प्रायः हर फिल्‍म को भरपूर अधिक सफलता प्राप्त हुई. आशा पारेख की उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ  प्रमुख नाम हैं ‘दिल देके देखो’,‘घूंघट’, ‘छाया’, ‘जब प्यार किसी से होता है’,‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘तीसरी मंजिल’,‘दो बदन’, मेरी सूरत तेरी आँखे, ‘जिद्दी’,‘लव इन टोक्यो’ ,‘नादान’ ,‘आन मिलो सजना’,‘आया सावन झूमके’ ,‘महल’,‘कटी पतंग’,‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘हीरा’ और ‘उधार का सिंदूर’ आशा पारेख को बतौर अभिनेत्री नूतन और वहीदा रहमान की तरह संवेदनशील फिल्में नहीं मिली और उनको फिल्मों का कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा. लेकिन तात्कालिक तौर पर आशा पारिख ने अपनी फिल्मों के द्वारा अपनी रोमांटिक इमेज का जो सिक्का जमाया वह किसी भी दूसरी अभिनेत्री के लिए संभव नहीं हो सका यह आशा पारेख की बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है. 

‘घूंघट, ‘छाया’ तथा “जब प्यार किसी से होता है’ जैसी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में आशा पारेख की शोख अदाएं खूब उभरी, आशा की इन फिल्मों के दीवाने दर्शकों का हाल ही कुछ अजीब होता था. वह अपनी हर फिल्‍म में नर्तकी के तौर पर भी  सामने आई, आशा के पांवों में घुंघरूओं को छमछमाहट का जादू आज भी बाकायदा कायम है, जब भी पर्दे पर आशा पारेख अपने नायक के साथ रोमांटिक दृश्यों में आई, उन्होंने गजब ढा दिया, उनकी हर अदा में मस्ती का नशा था, उनके हर झटके के साथ दर्शकों का दिल बैठता था, उनकी हर मुस्कुराहट पर लोग आहें भरते और मासूमियत ऐसी कि आदमी कहीं का नहीं ही रह पाता. शायद ही किसी अभिनेत्री ने अपने दर्शकों को अपने रोमांटिक अंदाज से इस हद तक मोहित किया हो, आशा पारेख इस रूप में अपवाद ही कही जा सकती हैं,  ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के बाद जब रंगीन फिल्मों का दौर शुरू हुआ, तो इन रंगों में आशा पारेख का रूप कुछ निखर कर सामने आया “यादों की बारात” से पहले तक आशा पारेख नासिर हुसैन की हर फिल्‍म में नायिका रही हैं, और नासिर हुसैन की फिल्मों से अगर आशा पारेख को अलग कर दिया जाये तो शायद सभी फिल्में अधूरी ही रहेंगी, नासिर हुसैन ने अपनी फिल्मों में शुद्ध रूप में रोमांस की धारा बहाई है ,और रोमांस की उस धारा में डूबी आशा पारेख को दर्शकों ने अपने दिलों में बसाया, नासिर हुसैन की हर फिल्म हिट होती रही और हर फिल्म में आशा पारेख की मोहकता का नया रंग दिखाई पड़ता, आशा पांरेख की समकालीन जितनी भी अभिनेत्रियां रही हैं उनकी फिल्मों को वह सफलता नहीं मिली जो आशा की फिल्मों को मिली, अगर गौर से देखा जाए तो उन फिल्मों की सफलता में उस फिल्‍म के गीत-संगीत की अहम्‌ा् भूमिका मानी जायेगी, यह आशा पारेख के साथ अच्छा संयोग बैठा कि उनकी हर फिल्‍म का संगीत सुपर हिट हुआ और इसलिए आशा पारेख का व्यक्तित्व भी गीत-संगीत के रूप में ही घुलकर उतरा, बल्कि कभी-कभी तो लगता है, कि अगर उन चित्रों में आशा पारेख की भगिमाओं का योग नहीं हो तो वे अपना संपूर्ण प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह सफल नहीं हो पायेंगे!

आज एक रस्म चल पड़ी है, कि अमुक अभिनेत्री की फिल्‍म किसी अमुक हीरो के साथ ही चल सकती है, और इसीलिए निर्माता-निर्देशक एक बैतुके गठबंधन के चक्कर में पड़े हैं, लेकिन आशा पारेख ने अपनी फिल्मों में इन सीमाओं का हमेशा ही अतिक्रमण किया, देव आनंद, सुनील दत्त, शम्मी कपूर, मनोज कुमार, राजेश खन्‍ना, जॉय मुखर्जी, धर्मेन्द्र, नवीन निश्चल और जितेन्द्र जैसे प्रायः सभी नायकों के साथ आशा पारेख की फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनायी है, आज नायिकओं की अपनी पसंद होती है, और किसी भी नवोदित अभिनेता के साथ काम करने में उन्हें कठिनाई महसूस होती है, आशा पारेख अपने फिल्म करियर में हमेशा ही इन उलझनों से दूर रही और उन्होंने निष्पक्ष तरीके से सिर्फ अपने काम में ही दिलचस्पी ली. आशा पारेख से इसीलिए किसी निर्माता ने कोई शिकायत की हो यह सुनने में कभी नहीं आया, फिल्‍मी दुनिया का ग्लैमर किसी अभिनेता अथवा अभिनेत्री को अपने मायाजाल में इस तरह जकड़ लेता है, कि वह अपने नायित्व बोध को ही भूल जाता है, वह यह भूल जाता है कि जिस समाज में वह रहता है, उसके प्रति भी उसका कोई कर्तव्य है, लेकिन आशा पारेख इन मामलों में दूसरों से भिन्‍न व्यक्तित्व रखती हैं सामाजिक कार्यो में आशा पारेख की दिलचस्पी के बारे में सभी जानते हैं, सांताक्रुज (पश्चिम) में एक अस्पताल अपनी आर्थिक सहायता द्वारा उसे जो विकास दिया है, उसे भूल पाना इस उपनगर के निवासियों के लिए कभी संभव नहीं!   

इसके साथ ही फिल्मों में ख्याति प्राप्त करने के बाद भी आशा पारेख का रंगमंच के साथ जो उत्साह है, उसका परिचय हमें अक्सर मिलता रहता है. योगेन्द्र देसाई के साथ उनका गीति-नाट्य “अनार कली” को न केवल मंुबई बल्कि विदेशों के रंगमंच पर भी अपूर्व ख्याति मिली है, इसीलिए यह दोहराने की जरुरत नहीं कि आशा पारेख एक कुशल नर्तकी भी हैं, और उन्होंने अपनी नृत्यकला का परिचय न सिर्फ फिल्मों में बल्कि रंगमंच पर भी अभूतपूर्व ढंग से दिया है, इस सामाजिक दायित्व के बोध को बहुत कम आभनेत्रियां महसूस करती हैं, लेकिन आशा पारेख इस मामले में दूसरों से अलग हैं! 

आशा पारेख की फिल्मों में जहां हमें रोमांटिक अभिनय का चरम विकास मिलता है, वहां हम यह पाते हैं कि संवेदनशील फिल्मों से उनकी दूरी हमेशा कायम रही. यह बात नहीं कि उनमें नूतन और वहीदा जैसी संवेदनशोल अभिनेत्री के बीज मौजूद नहीं थे, ‘उपकार’,‘दो बदन’ और ‘कटी पतंग’ जैसी फिल्‍मों के द्वारा आशा पारेख ने गंभीर अभिनय की बानगी भी पेश की लेकिन निर्माताओं ने शायद फिल्‍मी बाग की मचलती तितली को इसके लिए अनुपयुक्त समझा, किन्तु राज खोसला कृत ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में आशा पारेख नए सिरे से अपने गंभीर अभिनय की यात्रा शुरु कर रही हैं, अब तक दर्शकों ने उन्हें ग्लैमर की तस्वीर के रूप में जाना-पहचाना है, लेकिन इस फिल्म के साथ ही आशा पारेख के भीतर छिपी एक नवोदित प्रतिभा का परिचय मिलेगा, आशा पारेख के नवोदित रूप को भी दर्शक पसंद करेंगे! इसमें कोई शक नहीं!  

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