Advertisment

बर्थडे: हरिवंश राय बच्चन ने नहीं चखी शराब लेकिन लिख डाली मधुशाला

मधुशाला जैसी अमर कृति लिखने वाले महान कवि हरिवंश राय बच्चन ने खुद तो कभी शराब चखी तक नहीं, लेकिन उन्होंने ऐसी कृति रच डाली जिसने उन्हें एक ऐसी शख्सियत बना दिया...

author-image
By Mayapuri Desk
New Update
हरिवंशराय बच्चन की वह कविता, जो आपको अंदर तक झकझोर देती है...

मधुशाला जैसी अमर कृति लिखने वाले महान कवि हरिवंश राय बच्चन ने खुद तो कभी शराब चखी तक नहीं, लेकिन उन्होंने ऐसी कृति रच डाली जिसने उन्हें एक ऐसी शख्सियत बना दिया, जिसकी जितनी तारीफ की जाए वो भी कम है। हरिवंश राय बच्चन यानी हरिवंश राय श्रीवास्तव, हिंदी साहित्य के मशहूर शख्सियतों में से एक नाम,  यानी बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता और हिंदी की सबसे अधिक लोकप्रिय रचना 'मधुशाला' के रचयिता। सीधे शब्दों में कहें तो हरिवंश राय बच्चन हिंदी के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक हैं। आज उनका जन्मदिन है। कुछ लोग उनके बारे में केवल इतना ही जानते हैं कि वह अमिताभ बच्चन के पिता थे लेकिन उनकी शख्सियत कभी किसी परिचय की मोहताज़ नहीं रही। उनकी कविताएं ही उनकी पहचान थीं और  वह खुद अपना वजूद थे।

publive-image

शब्दों से बयां किया हर पल

उनकी रचनाओं में वो जादू था कि वह अपने ग़म को अपनी आंखों से जाहिर नहीं होने देते थे लेकिन उनके शब्द ही हर लम्हे के गवाह थे। उन्होंने लिखा था...

दुख सब जीवन के विस्मृत कर, तेरे वक्षस्थल पर सिर धर, तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे सा छिपकर सोया था! मैं कल रात नहीं रोया था!

प्यार भरे उपवन में घूमा, फल खाए, फूलों को चूमा, कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था! मैं कल रात नहीं रोया था!

आंसू के दाने बरसाकर किन आंखो ने तेरे उर पर ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था? मैं कल रात नहीं रोया था!

publive-image

19 साल की उम्र में हुई शादी

हरिवंश राय का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ के एक गांव बाबूपट्टी में हुआ था। उनका पूरा नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था लेकिन बचपन में गांव वाले उन्हें प्यार से 'बच्चन' कहकर पुकारा करते थे। गांव में 'बच्चन' का मतलब 'बच्चा' होता था लेकिन बाद में हरिवंश 'बच्चन' के नाम से ही पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुए।

पढ़ाई की शुरुआत कायस्थ पाठशाला में करने वाले हरिवंश राय ने प्रयाग यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए किया और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश के प्रसिद्ध कवि डब्लू. बी. यीट्स की कविताओं पर शोध करके पीएचडी पूरी की। 1926 में 19 साल के हरिवंश राय जब जिंदगी के मायने खोज रहे थे तभी उनकी शादी 14 साल की श्यामा बच्चन से कर दी गई।

publive-image

तेजी बच्चन से की थी दूसरी शादी

लेकिन दुख का पहाड़ बच्चन पर पहली बार तब टूटा जब 1936 में श्यामा बच्चन की टीबी की बीमारी से मौत हो गई। इस दुख के झोंके से हरिवंश खुद को उबारने की कोशिश करने लगे। 1939 में उन्होंने 'एकांत संगीत' के नाम से एक रचना प्रकाशित की जिसमें उनका दुख और अकेलापन साफ दिखाई देता है। उन्होंने लिखा था...

तट पर है तरुवर एकाकी, नौका है, सागर में, अंतरिक्ष में खग एकाकी, तारा है, अंबर में

भू पर वन, वारिधि पर बेड़े, नभ में उडु खग मेला, नर नारी से भरे जगत में कवि का हृदय अकेला!

publive-image

मधुशाला ने बनाया लोकप्रिय

Click here- हरिवंशराय बच्चन की वह कविता, जो आपको अंदर तक झकझोर देती है...

श्यामा बच्चन के गुजर जाने के 5 साल बाद 1941 में हरिवंश ने 'तेजी सुरी' से दूसरी शादी की। तेजी रंगमंच और गायकी की दुनिया से ताल्लुक रखती थीं। बाद में हरिवंश और तेजी के दो बेटे हुए जिन्हें दुनिया अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन के नाम से जानती है।

बच्चन का सबसे पहला कविता संग्रह 'तेरा हार' 1929 में आया था लेकिन उन्हें पहचान लोकप्रिय कविता संग्रह 'मधुशाला' से मिली। इस रचना ने अपने जमाने में कविता का शौक रखने वालों को अपना दीवाना बना दिया था। इसमें खास तौर पर वह लोग शामिल थे जो कविता के साथ-साथ शराब का भी शौक रखते थे।

publive-image

खुद कभी शराब को हाथ नहीं लगाया

यह उस दौर का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला कविता संग्रह था लेकिन कहा जाता है कि हरिवंश राय बच्चन के पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव को लगता था कि इस कविता संग्रह से देश के युवाओं पर गलत असर पड़ रहा है और वह शराब की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वह हरिवंश की इस रचना पर नाराज भी हुए थे।

उस दौर में मधुशाला पढ़ने वालों को लगता था कि इसके रचयिता शराब के बहुत शौकीन होंगे लेकिन हकीकत तो यह थी कि हरिवंश राय ने अपने जीवन में कभी शराब को हाथ नहीं लगाया। बच्चन जब मधुशाला का पाठ करते थे तो लोग दीवाने हो जाते थे और इस मधुशाला का नशा दुनियादारी की मधुशाला से ज्यादा होता था।

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊंगा प्याला, पहले भोग लगा लूं तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला

publive-image

1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया

उनकी रचना 'दो चट्टाने' को 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उनकी कविता को इसी साल सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी नवाजा गया। साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए बच्चन को 1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

95 साल की उम्र में 18 जनवरी 2003 को हिंदी कविता के इस सुपुत्र ने मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनकी कविताएं आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल और ज़ुबान पर जिंदा हैं।

publive-image

Read More

Chitrangda Singh ने पीले कॉउचर में बिखेरा जलवा

अभिषेक बच्चन ने ऐश्वर्या राय का इस वजह के लिए जताया आभार

आलिया-विक्की का 80s डिस्को सेट पर ‘लव एंड वॉर’ शॉट,रणबीर नहीं दिखे साथ

'Zero Se Restart' का गाना "चल ज़ीरो पे चलते हैं" हुआ रिलीज़ ?

Advertisment
Latest Stories