साल 2007 का वक़्त था और फिल्मफेयर अवार्ड का मंच सजा हुआ था। सैफ अली खान भी सेलेब्रिटीज़ की भीड़ में बैठे हुए थे। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में आए 16 साल हो चुके थे पर एक बार भी फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड उनके नसीब में नहीं आया था। इस बार तो नोमिनेशन में भी नहीं थे। फिर भी उनके चेहरे पर स्माइल थी। मन में कहीं कांफिडेंस था। वो कांफिडेंस जो 1991 में पहली फिल्म करते वक़्त आया था कि ‘मैं फिल्म लाइन में काम कर सकता हूँ’ उनके पिता मंसूर अली खान पटौदी भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे पहले पॉपुलर कप्तान थे। उनके दादा, इफ्तिखार अली खान पटौदी भी भारतीय टीम के कप्तान रह चुके थे। हरियाणा में पटौदी गाँव के नवाबों के खानदान के वारिस सैफ अली खान पढ़ाई लिखाई के लिए इंग्लैंड में ही रहे। उनका बचपन वहीं बीता। यूँ तो परिवार में रुपये पैसे की कोई कमी न थी फिर भी, उनके पिता का सख्त हुक्म था कि सैफ के दोस्तों को जितना पैसा उनके घरवाले जेब खर्ची के लिए देते हैं, उतना ही पैसा उन्हें भी दिया जायेगा। अच्छा ये भी बताते चलें कि सैफ यूँ तो बहुत सीधे नेचर के हैं, उन्हें ज़्यादा चालाकियाँ नहीं आतीं। लेकिन अब खर्चों का क्या करें, पैदा दिल्ली में हुए थे और रहते इंग्लैंड में हैं। याने ज़ुबान चटोरी है और शहर महंगा है, ऊपर से नवाबी खून, तो मौका पाकर सैफ अपने पिता के नोटों के बंडल से अक्सर एक-आध पौंड उड़ा लिया करते थे। एक बार उन्होंने माँ शर्मिला टैगोर के पर्स में ही हाथ साफ़ करने की कोशिश की तो पकड़े गये। वो एक एक पैसा गिन के रखती थीं। बस फिर क्या था, पड़ गये चार हाथ। पर माँ के हाथों के साथ साथ उन्हें दिल भी माँ का ही मिला था। इसलिए क्रिकेट की बजाए सैफ को एक्टिंग में कैरियर बनाने का मन होने लगा। हालाँकि इंग्लैंड में पढ़ने के बाद उन्होंने दो महिना दिल्ली में जॉब भी की लेकिन बात जमी नहीं। फिर नवाब साहब ने उन्हें मुम्बई ही भेज दिया। सन 1991 में राहुल रवैल की फिल्म बेखुदी में उन्हें लीड रोल मिला और उन्होंने शूटिंग भी शुरु कर दी। सैफ अपने तुरंत मिले ब्रेक से बहुत ख़ुश हो ही रहे थे कि राहुल रवैल ने उन्हें फिल्म से यह कहकर निकाल दिया कि सैफ अली खान को अभी डिसिप्लिन सीखने की ज़रुरत है। पर बेखुदी के सेट पर उन्होंने कुछ और ही सीख लिया। दरअसल हुआ ये कि यहीं पर उनकी नज़र अमृता सिंह से टकराई और इन दोनों ने दुनिया की परवाह न करते हुए उसी साल १९९१ में शादी कर ली। शादी होते ही सैफ की किस्मत खुली और उन्हें यश चोपड़ा की फिल्म परंपरा से डेब्यू करने का मौका मिला। इसी साल उनकी दो और फ़िल्में, आशिक आवारा और पहचान भी रिलीज़ हुई पर बदकिस्मती से तीनों फ्लॉप हो गयीं। लेकिन फिल्म परंपरा के लिए उन्हें बेस्ट डेब्यू का फिल्मफेयर अवार्ड मिल गया। सैफ को लगा, कि अब यहाँ से जर्नी आसान हो जायेगी और एक समय आयेगा जब उनके पास अवार्ड्स ही अवार्ड्स होंगे। लेकिन यश चोपड़ा ने फिर भी उनपर भरोसा रखा और अक्षय कुमार को साथ जोड़कर ये दिल्लगी बनाई जो अच्छी हिट हुई। इसके ठीक बाद ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ भी रिलीज़ हुई जिसने कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। सैफ की फ़िल्में तो हिट हुईं पर उन्हें पहचान सपोर्टिंग आर्टिस्ट या सेकंड लीड के तौर पर मिली। इसके बाद लगातार चार साल तक सैफ फ़िल्में करते रहे और फ़िल्में पिटती रहीं। एक था राजा, सुरक्षा, कीमत, तू चोर मैं सिपाही आदि ढेरों फ़िल्में आई और गयीं। अब इसे कमाल कहेंगे या नवाब मंसूर अली खान और शर्मिला टैगोर का रसूख कि सैफ को फिल्में फिर भी मिलती रहीं। यहाँ तक की क्रिटिक्स ने भी कह दिया कि सैफ का कैरियर अब खत्म है। उनके पास 1999 में आने वाली कुल चार फ़िल्में बची थीं जिनमें ये है मुंबई मेरी जान फ्लॉप और आरज़ू थोड़ी बहुत सक्सेस हुई थी। यह अक्षय कुमार के साथ उनकी 5वीं फिल्म थी। लेकिन इसी साल अजय देवगन के साथ, नुसरत फ़तेह अली खान के म्यूजिक में सजी थ्रिलर फिल्म रिलीज़ हुई ‘कच्चे धागे’ इस फिल्म ने नेम-फेम और मनी, तीनों आयामों से सैफ की झोली भर दी। हालाँकि बहुत से क्रिटिक यह भी कहते मिले कि सैफ अजय देवगन की छाया में दब गया है, पर इस फिल्म के हिट होने से सैफ के कैरियर एंड पर लगते सवाल समाप्त हो गये। इसके ठीक बाद हम साथ साथ हैं रिलीज़ हुई, इसमें बहुत बड़ी कास्ट के साथ सैफ मौजूद थे और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 1999 की सबसे ज़्यादा पैसे कमाने वाली फिल्म बनी थी। इसके बाद उन्होंने प्रीटी जिंटा के साथ ‘क्या कहना’ नाम की अच्छी फिल्म की जो बॉक्स ऑफिस पर कुछ ख़ास नहीं कर पाई। इन्हीं दिनों फरहान अख्तर अपनी पहली फिल्म के लिए कोई चुलबुला लड़का ढूंढ रहे थे। यहाँ सैफ के साथ आमिर खान और अक्षय खन्ना थे। साल 2001 फिल्म दिल चाहता है भी बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई लेकिन इस बार सैफ एक नहीं बल्कि दो-दो को-स्टार्स की परछाइयों में दबकर रह गये। इसी साल फिल्म ‘रहना है तेरे दिल में’ भी रिलीज़ हुई और ये फिल्म भी सुपर-डुपर हिट रही लेकिन इसका सारा क्रेडिट साउथ एक्टर आर-माधवन ले गये। यही हुआ जब शाहरुख़ के साथ करन जौहर की फिल्म ‘कल हो न हो’ में सैफ रोल की तारीफ तो हुई, पर फिल्म के हिट होने का क्रेडिट शाहरुख़ खान को मिला। सैफ अक्सर फिल्मफेयर अवार्ड्स में नोमिनेट होते थे लेकिन दिल चाहता है के बेस्ट कॉमेडियन और कल हो न हो के बेस्ट सपोर्टिंग के अलावा उनके पास अवार्ड्स नहीं आते थे। सबको लग रहा था कि सैफ अब सिर्फ सपोर्टिंग कास्ट में ही नज़र आयेंगे। लेकिन साल 2004 में कुछ बदलाव हुआ। सबसे पहले तो उन्होंने शादी के 13 साल और दो बच्चे होने के बाद अमृता सिंह से अलगाव कर लिया। दूसरा उनके कैरियर ने टर्न लिया। उन्होंने श्रीराम राघवन की फिल्म ‘एक हसीना थी’ में ज़बरदस्त काम किया पर इस फिल्म के कामयाब होने का सारा क्रेडिट फिल्म की लीड एक्ट्रेस उर्मिला मतोड़कर ले गयीं। लेकिन, 2004 में ही कुनाल कोहली की फिल्म ‘हम तुम’ के लिए उन्हें सीधे बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड मिल गया। हालाँकि नेशनल अवार्ड जूरी को इस फैसले के लिए बहुत क्रिटिसिज्म झेलना पड़ा। वहीँ फिल्मफेयर ने फिर एक बार सैफ के हाथ इसी फिल्म के लिए बेस्ट कॉमेडियन अवार्ड थमा दिया। अगले साल परिणिता, सलाम नमस्ते और बीइंग साइरस में सैफ की तारीफ तो बहुत हुई, पर न ये फ़िल्में चलीं और न सैफ किसी अन्य एक्टर की शैडो वाले टैग से बाहर निकल सके। इसी साल विशाल भारद्वाज विलियम शेक्सपियर के फेमस नाटक ओथेलो पर अपनी दूसरी फिल्म बनाने की घोषणा कर चुके थे। इस फिल्म में तीन लीड एक्टर्स होने थे जिनमें से एक, अजय देवगन टाइटल रोल के लिए फाइनल हो चुके थे। तीसरे रोल में विवेक ओबेरॉय फिट बैठ रहे थे। दूसरा रोल जब सैफ को ऑफर हुआ तो सैफ असमंजस में पड़ गये। क्योंकि उन्हें याद था कि कैसे कच्चे धागे में सारी लाइम लाइट अजय देवगन की ओर चली गयी थी। आखिर अजय हैं भी पॉवरफुल एक्टर। लेकिन सैफ विशाल भारद्वाज को मना भी नहीं कर सकते थे। 2007 में उसी फिल्म के सदके फिल्मफेयर अवार्ड्स में पहली बार सैफ बेस्ट विलन की कैटगरी में नोमिनेटेड थे। लेकिन इन नोमिनेशंस में नसीरुद्दीन शाह और बोमन ईरानी जैसे दिग्गज कलाकार भी शामिल थे। फिर भी सैफ निश्चिन्त थे। फिर जब अनाउंस हुआ ‘बेस्ट विलन अवार्ड्स गोज़ टू – सैफ अली खान’ तो सैफ के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान तैर गयी और मन में संतोष हुआ कि बेस्ट हीरो नहीं बन सका तो क्या हुआ, बेस्ट विलन तो मैं ही रहा न। ओमकारा के उनके करैक्टर ‘लंगड़ा त्यागी’ में कुछ ऐसी ही बात थी जिसने अजय देवगन के ओमकारा जैसे पॉवरफुल करैक्टर को भी बौना कर दिया था। सैफ की चाल, रंग-ढंग, बोल-चाल सब ऐसी बदली हुई थी कि ओमकारा में उन्हें पहचानना मुश्किल हो रहा था। इसके बाद सैफ ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। यूँ समझिए कि कोई 16 साल बाद उनको ऐसी कामयाबी हाथ लगी कि दुनिया उनकी एक्टिंग की दीवानी हो गयी। तबसे लेकर अब तक, सैफ लव आजकल, कुर्बान, आरक्षण, गो गोवा गोन, फैंटम आदि एक से बढ़कर एक कमर्शियल फ़िल्में दे चुके हैं तो आर्ट फिल्म्स में भी शेफ और लाल कप्तान जैसी फिल्मों में भी दर्शकों ने उनके हुनर का लोहा माना है। 2012 में, पाँच साल की कोर्टशिप के बाद सैफ ने करीना संग शादी कर ली और आज करीना कपूर संग उनके दो बेटे ‘तैमुर और जहाँगीर’ भी हैं। 2017 में विक्रम चंद्रा के नॉवेल ‘सेक्रेड गेम्स’ में उनका सिख किरदार सरताज भी दर्शकों द्वारा बहुत पसंद किया गया था। पिछले साल अजय देवगन के साथ रिलीज़ हुई सैफ की तीसरी फिल्म ‘तानाजी’ 2020 की मोस्ट ग्रोसिंग फिल्म साबित हुई थी। सैफ फिर एक बार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड जीत गये थे। लेकिन अपने करैक्टर्स से उलट, सैफ बहुत सिम्पल आदमी हैं। जब वह अपने गाँव पटौदी जाते हैं तो उन्हें छत पर दादी के साथ सोना पसंद आता है। अपने बेटे तैमूर के साथ कभी कभी ऑटो में सैर करने निकल जाते हैं तो कभी घंटो विडियो गेम्स खेलते रहते हैं। हम मायापुरी ग्रुप की तरफ से सैफ अली को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं देते हैं और विश करते हैं कि उनकी आने वाली फ़िल्में, भूत पुलिस, बंटी और बबली 2 और आदि पुरुष सुपर डुपर हिट जाएँ।
सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’