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Siddharth Arora

By Siddharth Arora

नौशाद साहब को सन 90 के बाद पैदा हुई पीढ़ी शायद न पहचानती हो पर भारतीय संगीत के इतिहास में नौशाद साहब का नाम हमेशा सुनहरे अक्षरों से लिखा गया है. बैजू बांवरा, मुग़ल-ए-आज़म, आन, मदर इंडिया, गंगा जमना जैसी सत्तर से अधिक फिल्मों में अपने संगीत का जादू बिखेरा है.

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प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा जी का नाम, बिना लक्ष्मीकान्त जी के नाम के अधूरा है। लक्ष्मीकान्त जी का निधन तो 25 मई 1998 के दिन 60 बरस की उम्र में हो गया था लेकिन प्यारेलाल जी आज भी हमारे साथ बदस्तूर हैं व हर संभव कोशिश से अपना जीवन संगीत में लीन रखते हैं। ज़रा

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सचिन देव बर्मन यानी सचिन दा, म्यूजिक की दुनिया के बेताज बादशाह थे. सन 50 और 60 के दशकों में उनका संगीत फिल्म म्यूजिक इंडस्ट्री की विरासत की तरह है. सचिन दा संगीत जितना प्रभावशाली था, उनका व्यक्तित्व उससे भी ज़्यादा असरदार और काबिल-ए-गौर था. सचिन दा को लोग

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संगीतकार रोशन एक ऐसे शख्स का नाम है जो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. फिल्म अनहोनी, बरसात की रात, ताज महल, चित्रलेखा, अनोखी रात आदि ऐसी दर्जनों फ़िल्में हैं जिनमें रोशन का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ है. संगीतकार रोशन के दो बेटे हुए, राकेश और राजेश. उनके बड़े बे

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साल 2007 का वक़्त था और फिल्मफेयर अवार्ड का मंच सजा हुआ था। सैफ अली खान भी सेलेब्रिटीज़ की भीड़ में बैठे हुए थे। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में आए 16 साल हो चुके थे पर एक बार भी फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड उनके नसीब में नहीं आया था। इस बार तो नोमिनेशन में भी नह

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22 जुलाई 1923 में जन्में मुकेश बचपन से ही संगीत प्रेमी रहे थे. वह दस भाई बहन थे जिसमें मुकेश चंद माथुर छठे नंबर पर थे. उनके इंजिनियर पिता जोरावर ने उनकी बहन के लिए संगीत मास्टर बुलाया था पर जब संगीत मास्टर ने मुकेश की बहन के साथ साथ मुकेश को भी सुना तो उन

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बीते दिनों केदारनाथ धाम में एक लड़की द्वारा डांस करती वीडियो बनाए जाने को लेकर कुछ श्रद्धालुओं को अच्छी खासी आपत्ति हुई थी। उनका कहना था कि केदारनाथ धाम एक पवित्र स्थल है, इसे सिर्फ अपनी वीडियो पर लाइक्स-कमेंट्स के लिए इस्तेमाल करना बिल्कुल गलत है। ऐसी

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हुआ यूं था कि माचिस जलती थी और कभी पागल हवा उसे फूँक देती थी तो कभी अल्हड़ सावन उसे बुझा देता था यूं तो शायद ही कोई ज़िंदा शख्स होगा जिसे संगीत पसंद न आता होगा. या ये ज़रूर है कि संगीत को पसंद करने की सबकी पसंद अलग-अलग होती है. किसी को एक गाने में म्यूजिक पस

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यूँ तो नाम उनका ‘निर्मला नागपाल’ था पर दुनिया ने उन्हें हमेशा सरोज खान के नाम से जाना और फिल्म इंडस्ट्री ने उन्हें हमेशा ‘मास्टर जी’ के नाम से पुकारा. सरोज मास्टर जी, जो बहुत दिलदार और बहुत गुस्से वाली एक साथ थीं. 1948 में जन्मी सरोज के माता पिता बटवारे क

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सन् 90 के उतरते दशक में जब फिल्मों का म्यूजिक हल्का होता जा रहा था और नए सिंगर्स भी काम की तलाश में भटक रहे थे, तब दौर प्राइवेट एल्बम का भी आने लगा था. उस प्राइवेट एल्बम के दौर में, प्रसून जोशी का काम भी धीरे से श्रोताओं के कान में जा रहा था लेकिन, जैसा क

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