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स्वर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर को कोटि कोटि श्रद्धा नमन

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स्वर साम्राज्ञी, स्वर कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर को कोटि कोटि श्रद्धा नमन

-सुलेना मजुमदार अरोरा

(सागर कितना भी गहरा सही, प्यासे की प्यास से बड़ा नहीं)

शब्द जब स्तब्ध हो जाए और वीना के तार बिखर पड़े तो संगीत की दुनिया बड़ी खामोशी से वीरानगी की चादर ओढ़ लेती है। इस वक्त यही हाल है फिल्मी और गैर फिल्मी जगत का।  स्वर साम्राज्ञी, भारत रत्न, स्वर कोकिला लता मंगेशकर खामोश क्या हुई कि संगीत की दुनिया ही उजड़ गई। क्या हिन्दुस्तान, क्या पाकिस्तान, क्या अमेरिका, क्या रूस, सरहद की सारी बंदिशें तोड़ कर जैसे पूरी दुनिया लतामय हो गई हैं। लगातर उनके बारे में हर माध्यम पर चर्चा हो रही है, हजारों ट्वीईट्स, हजारों संस्मरण, ढेरों दस्ताने लिखी और बोली जा रही है लेकिन यह क्या? मैं शून्य में क्यों घिर गई हूँ? टैब के कीबोर्ड पर उँगलियाँ स्थिर है, क्या लिखूं उस शख्सियत के लिए जो अपने आप में एक सागर भी है और अपने आप में आसमान भी। ऐसे में गीतकार संतोष आंनद  के मुख से सुनी वो पँक्तियाँ याद आ रही है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'सागर कितना भी गहरा सही, प्यासे की प्यास से गहरा नहीं।' माँ सरस्वती की अवतार लता मंगेशकर, जिनकी कुंडलिनी छोटी सी उम्र से ही जागृत हो गई थी, उनका विराट अस्तित्व, निश्चित रूप से किसी सागर से कम नहीं लेकिन उनकी आवाज़ और अमर गीतों के दीवानों की प्यास भी तो सागर से गहरी है जो लता दीदी के तीस हजार से ज्यादा गीतों को बारम्बार सुनते रहने के बावजूद  प्यास बुझती नहीं। पिछली तीन पीढ़ियों के संगीत प्रेमियों को कोकील कंठी के नाम पर लता मंगेशकर के सिवाय कोई दूसरा नाम पता ही नहीं और यह हमारा सौभाग्य है कि हम भी उसी काल खंड में पैदा हुए जिस काल में लता दीदी श्वास ले रहीं थीं और उसपर मायापुरी पत्रिका से जुड़ने के बाद तो जैसे मुझे अमृत मंथन से उभरा कलश ही मिल गया और मेरी मुलाकात संगीत जगत की जादूगरनी से कुछ इस तरह हो गयी जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। दरअसल मैं विश्व-प्रसिद्ध, वर्सटाइल और एवर ग्रीन गायिका आशा भोंसले जी से कई बार इंटरव्यू ले चुकी थी और कई बार उनके पेडर रोड स्थित प्रभु कुंज निवास पर जा चुकी थी जहां लता जी का भी घर था। लेकीन लता जी से कभी भेंट नहीं हो पायी थी। मैंने सुना था कि वे सिर्फ वरिष्ठ पत्रकारों को ही वे इंटरव्यू देतीं हैं। लेकिन मैंने एक तरकीब निकाल ली थी। एक दिन मश्हूर संगीतकार एस एन त्रिपाठी जी हमारे घर पर उनके जन्मदिन के अवसर पर निमंत्रित थे, लंच के दौरान मैंने उनसे लता जी से मुलाकात ना हो पाने की बात कही और फिर वो जादू हो गया जिसकी मैने इतनी जल्दी कल्पना भी नहीं की थी, त्रिपाठी दादू ने कहा कि लता जी से उनकी मुलाकात अगले दिन ही होने वाली है और मैं उनके साथ चल सकती हूँ। और जब अगले दिन मैं लता जी के घर पर उनसे मिली तो देखकर अवाक रह गई कि वे वैसी गम्भीर बिल्कुल नहीं थी जैसे दुनिया ने उनकी छवि बनाई थी। किसी मासूम बच्चे की तरह या कहिये किसी किशोरी की तरह उनका निश्छल बरताव था। जब मैंने उन्हें मायापुरी पत्रिका की एक प्रति भेंट की, तो उसी वक्त खोलकर वे पढ़ने लगी और बोली थी, 'य़ह पत्रिका तो हर जगह देखी है मैंने, दुबई में भी और लंदन में भी।' उस दिन ज्यादा बातें नहीं हो पायी थी लेकिन उन्होंने मुझे फिर कभी मुलाकात करने का वादा किया था और वाकई जब अगली बार उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने मुझे झट से पहचान लिया। इसी बात पर जब उनकी याद्दाश्त पर बातें हुईं तो वे अपनी मंत्रमुग्ध करने वाली मुस्कान के साथ बोली थी, 'जो याद रखने वाली बातें होती है वो मैं याद रखती हूँ और भूल जाने वाली बातें भूल जाती हूँ।'

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जब मैंने उनसे पूछा था कि भूल जाने वाली बातें कौन कौन सी? तो उन्होने कहा था, 'जीवन में बहुत सी बातें प्रिय होती है और बहुत सी बातें अप्रिय होती हैं जो दिल को दर्द देती हैं। शुरू शुरू में मैं कोई भी अप्रिय घटना या बात भूल नहीं पाती थी, रोती रहती थी, अकेले में, तकिया गीला करती रहती थी लेकिन फिर एक दिन मेरे मन ने मुझे डाँटा और कहा,' क्यों अपने को तकलीफ देती है,  भूलना सीखो जो बातें तकलीफ देती है। और मैंने यह कला भी सीख लिया।' मैंने लता जी से कहा था, 'यानी फोर्गिव एंड फॉर्गेट?' इसपर वे बोली थी, 'नहीं, सिर्फ फॉर्गेट।' और वही रहस्य पूर्ण लेकिन मासूम मुस्कान बिखेर दी उन्होंने जो उनके दो चोटी वाले खूबसूरत व्यक्तित्व के साथ खूब मैच कर रही थी। उनका उत्तर सुनकर मैंने पूछा था कि उनकी छवि एक बेहद शांत और नर्म स्वभाव की स्त्री का है, क्या वे वाकई इतनी शांत और कूल तेवर की है?' इसपर उन्होंने तुरन्त कहा था,' मैं भी हाड़ मांस की इंसान हूँ भई, लोग समझते हैं मैं एकदम ठंडे दिमाग की हूँ लेकिन जो मेरे करीब है वो जानते हैं कि मुझे किन किन बातों पर गुस्सा आता है, बचपन से ही मैं उन छोटी बड़ी बातों के लिए लड़ जाती थी जो मुझे गलत लगते थे, बहुत गुस्से वाली थी, लेकिन वक्त के साथ मैंने अपने तेवर पर नियंत्रण करना सीख लिया लेकिन आज भी जो बात मुझे गलत लगती है उसपर मैं अपनी नाराज़गी जरूर जाहिर करती हूँ और अपनी बात पर डटी रहती हूँ, चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए। ' उनके यह कहने पर मुझे याद आया कि मोहम्मद रफ़ी जी के साथ रॉयलटी के मुद्दे पर उनका झगड़ा जगजाहिर हुआ था, मुहम्मद रफी साहब ने सबके सामने घोषणा कर दी थी कि उस पल से वे लता के साथ नहीं गायेंगे और लता जी ने भी उसी वक्त पलटज़वाब देते हुए कहा था,' आप क्या मेरे साथ नहीं गाएंगे, मैं ही आपके साथ कभी नहीं गाना चाहती।' बाद में संगीतकार जयकिशन ने दोनों के बीच मध्यस्थता की थी और दोनों फिर गाने लगे थे। सचिन देव बर्मन के साथ भी उनका मनमुटाव कुछ ऐसा ही हुआ था, जब लता जी ने उनके किसी इंटरव्यू में यह पढ़ लिया था कि उन्होंने कहा, लता को लता मंगेशकर उनके जैसे संगीत निर्देशकों ने ही बनाया था, 'अगर लता को हम कम्पोज़र लोग इतनी अच्छी धुनें नहीं देते तो वो लता मंगेशकर नहीं बन पाती।' हालांकि यह निश्चित नहीं हो पाया था कि सचिन जी ने सचमुच ऐसा कहा था या पत्रकारों ने उनकी बात तोड़ मोड़ के लिखी थी, लेकिन चार वर्षों तक लता जी ने सचिन देव बर्मन जी के साथ काम नहीं किया था, और आखिर आर डी बर्मन जी ने मध्यस्थता कर के फिर दोनों को साथ काम करने पर राजी किया था। राज कपूर जी के साथ भी लता जी का रॉयलटी इशू पर ही मनमुटाव हुआ था लेकिन राज कपूर ने अपनी इस बहन के गुस्से को शांत करके उन्हें वापस राजी कर लिया था। बताया जाता है कि लता जी कोई भी ऐसी बात चुपचाप सहन नहीं करती थी जो सच ना हो, जैसे कि हुआ यह, राज कपूर को सफेद रंग पसंद था, उनकी सारी नायिकाएं सेट पर लगभग हमेश सफेद पोशाकों में ही आती थी, उधर लता जी को भी सफेद रंग पसंद था और वे हमेशा सफेद साड़ी ही पहनती थी। तो एक बार जब लता जी और राज कपूर की किसी गीत रिकॉर्डिंग के दौरान मुलाकात हुई थी तो राज जी ने मजाक में लता जी से कहा कि तुम मुझे प्रसन्न करने के लिए सफेद साड़ी पहन कर आती हो।' लेकिन ये बात सच ना होने के कारण लता जी ने तुनक कर ज़वाब दिया था,' जी नहीं, आपको प्रसन्न करने के लिए नहीं, मुझे भी सफेद रंग पसंद है इसलिए पहनी है।' बचपन में जब उन्हें स्कूल में भर्ती किया गया था तो पहले ही दिन वो अपनी छोटी बहन आशा भोंसले को अपने साथ स्कूल ले कर गयी थी जिसकी वजह से उन्हें टीचर से काफी डांट पड़ी थी, जिसपर लता इतनी आहत हुई कि फिर कभी स्कूल का मुँह देखना गवारा नहीं किया और उनकी बेसिक पढ़ाई और संगीत की बेसिक शिक्षा घर पर ही हुई और उनके पिता ने ही उन्हें हर प्रकार की बेसिक शिक्षा दी चाहे वह संगीत की शिक्षा हो या स्कूल की शिक्षा।

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बातों बातों में जब मैंने उनसे पूछा था कि उन्होंने भारत के इतने दिग्गज दिग्गज संगीत निर्देशकों के साथ काम किया है तो उनका सबसे पसंदीदा संगीतकार कौन है? यह सुनकर लता जी ने कहा था,'सभी अपने आप में माहिर और अद्वितीय थे लेकिन मुझे मेरा भाई, सुप्रसिध्द संगीतकार हृदयनाथ मंगेशकर और सज्जाद हुसैन जी सबसे अनूठे लगते हैं।' लता जी ने बॉलीवुड, टोलिवुड, कॉलीवुड के पिछले सत्तर सालों के नायिकाओं के लिए अपनी आवाज़ दी थी (दी है) और बॉलीवुड की बात करें तो उन्होंने मधुबाला, मीना कुमारी, निरुपारॉय से लेकर माधुरी दीक्षित, काजोल, प्रिटीजिंटा  तक को आवाज दी, जिसपर जया बच्चन जी ने कभी कहा था, 'जब तक लता जी किसी नायिका के लिए अपनी आवाज ना दे दे. तब तक वो नायिका अपने को बॉलीवुड की नायिका नहीं मान सकती।' जब मैंने लता जी से यह कहा तो शर्मीली मुस्कान के साथ वे बोली थी, 'य़ह उनका बड़प्पन हैं।' लता जी से मिलना, उनतक पहुंचाना आसान नहीं होता है किसी के लिए भी, जबकि लोग उनकी एक झलक पाने के लिए तड़पते है, उन्हें देवी मानकर जैसे मंदिर में, देवी के बहुत करीब कोई जाने की ताब नहीं ला पाता है, वैसे ही लोग उनसे चार कदम के फासले पर उनका दर्शन करते थे, तो ऐसे में लता जी का मनोभाव क्या रहता है, इस प्रश्न पर वे बोले थे, 'मैं शुरू से ही बहुत सोशल नहीं थी, काम के सिवाय यूँ ही किसी से मिलना जुलना अच्छा नहीं लगता है, लेकिन इसकी वज़ह कोई घमंड बिल्कुल नहीं है, मैं चाहे कितनी भी बड़ी स्वर सम्राज्ञी मानी जा रही हूँ लेकिन मेरे पाँव हमेशा जमीन पर ही रहते हैं, लेकिन मेरा स्वभाव ही है अपने आप में खुश रहना, मैं कभी किसी पार्टी में जाना पसंद नहीं करती, जमघट से दूर रहना अच्छा लगता है, वर्षो पहले जब पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के सामने स्टेज पर 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया था तो समारोह खत्म होने के बाद मुझे बताया गया कि शाम को होने वाले एक और समारोह में पंडित जी ने आने को कहा है। अब क्योंकि पंडित जी ने बुलाया था तो मुझे जाना ही पड़ा, लेकिन वहां भी लोगों की भीड़ से बचते हुए मैं एक अंधेरे कोने में जाकर खड़ी हो गई, फिर इंदिरा जी अपने दोनों छोटे छोटे बच्चों (राजीव गांधी और संजय गांधी) को लेकर मुझे ढूंढते हुए उस कोने में आयी और फिर हाथ पकड़कर मुझे सबके बीच ले गयी। बस मेरा स्वभाव ऐसा ही है, बचपन से आज तक।'

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बात जब बचपन और उनके उस वक्त के उम्र की उठी तो वे बोली थी,' मुझे उम्र का कभी एहसास ही नहीं होता है, कैसे इतने दशक गुजर गए पता ही नहीं चला। लगता है, कल की बात है जब मैं तेरह वर्ष की उम्र में गाने और अभिनय करने लगी थी, पहले बाबा (पंडित दीनानाथ मंगेशकर) के साथ, फिर बाबा के गुजर जाने के बाद अकेली, फिर जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त करके एक शानदार करवट बदली तो मेरी किस्मत ने भी एक जबरदस्त करवट ली और मैं मुंबई आ गई है और फिर शुरू हुआ एक अथक परिश्रम का सिलसिला। भाड़े के कमरे में माई (माँ) और छोटे छोटे भाई बहनों के साथ रहकर हर तरह के गीतों की रेकॉर्डिंग में घर से स्टूडियो तक कभी पैदल और कभी लोकल ट्रेन में जाना, उन दिनों रिकॉर्डिंग में आज के जमाने की तरह पैच रेकॉर्डिंग नहीं होती थी, इसलिए गलती हो जाने से पूरी की पूरी रेकॉर्डिंग शुरू से करना पड़ता था, रियाज़, रिहर्सल में बहुत वक्त देना पड़ता था, और रिकॉर्डिंग की पूरी टीम, यानी रिकार्डिस्ट, वाद्ययंत्र बजाने वाले गायक, गायिका, किसी से भी एक ताल की गलती हो जाने पर फिर शुरू से गाना रेकॉर्ड होता था और पूरा पूरा दिन लग जाता था।।' लता जी ने बताया था कि वे किस्मत के साथ साथ मेहनत, लगन, अथक प्रयास, रियाज, शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और काम के प्रति हद से ज्यादा जुनून और माता पिता तथा इश्वर के आशिर्वाद को अपनी सफ़लता का कारण मानती है। लता जी ने कई बार सारा सारा दिन भूखे रहकर रेकॉर्डिंग की थी, भला क्यों? दरअसल वे इतनी कम उम्र की मासूम और भोली और अपने आप में सिमटी हुई लड़की थी कि उन्हें मालूम ही नहीं था कि हर रेकॉर्डिंग स्टूडियो (जो पहले अक्सर शूटिंग स्टूडियो के अंदर ही होता था ) में एक कैंटीन भी होती है , ब्रेक के दौरान सारे के सारे लोग बाहर खाने पीने निकल जाते थे, किसी का ध्यान इस छोटी सी दो चोटी वाली बालिका पर नहीं जाती थी, जो रेकॉर्डिंग कमरे के एक कोने में भूखी प्यासी बैठी रहती थी दिन भर। उन दिनों किसी का ध्यान लता पर गया हो या न गया हो, पर ऊपर वाले का ध्यान जरूर उस नन्ही सी प्रतिभा शाली मेहनती लड़की पर गया था जो तेरह वर्ष की उम्र से पूरे घर की आर्थिक जिम्मेदारी अपने कँधों पर उठाए उठाए जी रही थी। क्या लता जी को ईश्वर से इस बात को लेकर कोई शिकायत नहीं थी कि इतनी छोटी उम्र में उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी क्यों दे दी? इस प्रश्न पर लता जी ने कहा था, 'मुझे कोई शिकायत नहीं, उल्टा मैं ईश्वर की शत शत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस लायक बनाया कि मैं सारी जिम्मेदारियाँ निभा पाई, और सच कहूँ तो जब तक मेरी माई जीवित थी तब तक वो ही हमारे सर पर छाते की तरह सबको सम्भाल रहीं थीं, मैं तो बस आर्थिक पहलू ही सम्भाल रही थी।' लता जी को कभी अकेलापन नहीं सालता? कभी विवाहित जीवन की कामना नहीं रही? इसपर उन्होंने बताया था कि,'माई ने मेरे विवाह की बहुत चिंता की थी, बहुत सारे रिश्ते खुद चलकर दरवाजे तक आए, सबने बहुत कहा पर मैं इस तरह सब कुछ बीच मंझधार में छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी, इसलिए मना कर दिया। अगर लता शादी कर लेती तो लता मंगेशकर कभी नहीं बन पाती। और जहां तक अकेलेपन की बात है तो नहीं, मेरा घर मेरे भाई, बहनों और नाते रिश्तेदारों से हमेशा भरा पूरा रहता था। हाँ, धीरे धीरे, वक्त के साथ बुजुर्गों के निधन होने और युवाओं की शादी होने पर घर के सदस्य कम होते रहे लेकिन मैं अकेली कभी नहीं रही। आशा, उषा, हृदयनाथ, उन सबके बच्चे, सभी हमेशा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। अगर कोई अपने दूसरे घर जाता भी है तो भी दिन में एक साथ चाय, नाश्ता, या लंच जरूर करते हैं आज भी।' जब लता जी से पूछा था कि आज के गायकों या गायिकाओं में वे किसे पसंद करते हैं तो उन्होने उस वक्त कविता कृष्णमूर्ति, अल्का याज्ञनिक, साधना सरगम, उदित नारायण, कुमार शानू का नाम लिया था बाद में उनके फेवरेट की लिस्ट में श्रेया घोषाल और सोनू निगम और शान भी जुड़ गए थे। फेवरेट गायकों के प्रश्न पर लता जी ने कहा था कि उनके ऑल टाइम्स फेवरेट हैं किशोर कुमार और मुकेश भैया। किशोर कुमार के बारे में वे बोली थीं, 'किशोर दा तो रेकॉर्डिंग के दौरान इतना हँसते हँसाते थे कि हँसते हँसते बुरा हाल हो जाता था और फिर मुझे उन्हें रोकना पड़ता था वर्ना सैड सॉन्ग रिकॉर्ड करना नामुमकिन हो जाता था।' लता जी किशोर कुमार की बातें करते करते हँसती जा रही थी और फिर रुमाल से उन्होंने अपनी आँखे पोंछ ली, जाने वो आँसू कैसे थे, हँसने के कारण भर आई थी या पुराने खुशनुमे दिनों की यादों ने उनका दिल कचोटा था। उनको उसी भरी आँखों में हँसते हुए, मैंने इजाजत ली थी और सोचा था कि यह कला की दुनिया कैसी होगी इस हँसता हुआ नूरानी चेहरा के बिना।

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आज देख रही हूँ कि कि कैसे खाली, सूनी और रीति हुई अनाथ सी बिखरी पड़ी हैं संगीत जगत। सरस्वती पुत्री, लता मंगेशकर, ठीक सरस्वती पूजा हो जाने के बाद 'लो चली मैं' कहकर जिस तरह पंचभूत में विलीन हो गई, उससे सब अवाक, विमूढ़ रह गए। मुंबई के आईकोनिक  शिवजी पार्क में फुल स्टेट ऑनर के साथ, तिरंगे मे लिपटी, पवित्र अग्नि में उनका पार्थिव देह विलीन होता रहा और इस कोविड काल में भी उन्हें अंतिम विदाई देने आयी हजारों चाहने वालों की भीड़ रोते रहे। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, बड़े बड़े नेता, अमित शाह, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे, अभिनेता, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर खान, अनुपम खेर, रणबीर कपूर, जावेद अख्तर, विद्या बालन, सिद्धार्थ रॉय कपूर, क्रिकेट सम्राट सचिन तेंदुलकर (जो लता जी को माँ पुकारते थे,) सब नम आँखों से अपनी लता दीदी को अलविदा नमन करते रहें और धू धू करके इतिहास बनता रहा लता दीदी का बहत्तर वर्षीय संगीत यात्रा और गूँजती रही, तीस हजार से ज्यादा हिन्दी फिल्म गीत और ढेर सारी क्षेत्रीय भाषाओं (मराठी, बंगाली, दक्षिणी, पंजाबी, ओरिया , आसामी, कोकणी भोजपुरी) के गीत फिज़ा में, वो गीत जो कानों में अनवरत रस घोलती रहती है, जैसे ऐ मेरे वतन के लोगों, आएगा आएगा आने वाला, लग जा गले, आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल, हमने देखी है, तेरे बिन जिया जाए ना, अलाह तेरो नाम, यारा सीली सीली, दिल हुम हुम करे, हवा में उड़ता जाए, सलाम ए इश्क मेरी जान, दिल तो पागल है, चलते चलते यूँ ही कोई, मेरे प्यार की उमर हो इतनी सनम, धीरे धीरे बोल कोई, बांहों ने चले आ, चाँद फिर निकला, तेरे मेरे मिलन की ये रैना, अजीब दास्ताँ है ये, देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले, गुम है किसी के प्यार मे, एक प्यार का नगमा है, प्यार हुआ इकरार हुआ, गाता रहे मेरा दिल, पिया तोसे नैना लागे, तूने ओ रंगीले, ये समा, समा है ये प्यार का, मेरा साया साथ होगा, अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी, छुप गए सारे नज़ारे, दिल की नजर से, करवटें बदलते रहे, रंगीला रे, अच्छा तो हम चलते हैं, - - - - - - - - - - - और ना जाने कितने सारे मीठे गीत है, जिसमें दर्द है, खुशी है, प्रार्थना है, भजन हैं, नयी नवेली शर्मीली षोडशी की युवा सपनों से ओतप्रोत मिठास हैं। प्यास तो बुझ ही नहीं सकती लता जी, चाहे आपके सारे गीत बारम्बार सुन ले। पूरी दुनिया आपको सुन रही थी, आप ही सो गए सुनाते सुनाते।

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