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Death Anniversary Mehmood Ali : नवाबों वाली आलीशान लाइफस्टाइल जीते थे महमूद...

भले ही अनवर अली, महमूद के छोटे भाई रहे हों, लेकिन वो आज भी स्वर्गीय अभिनेता महमूद के बहुत बड़े फैन हैं. अनवर अली ने अपने बड़े भाई के बारे में बहुत सी दिलचस्प बातें बताईं जो हम आपको बताने जा रहे हैं...

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By Ali Peter John
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भले ही अनवर अली, महमूद के छोटे भाई रहे हों, लेकिन वो आज भी स्वर्गीय अभिनेता महमूद के बहुत बड़े फैन हैं. अनवर अली ने अपने बड़े भाई के बारे में बहुत सी दिलचस्प बातें बताईं जो हम आपको बताने जा रहे हैं. महमूद के छोटे भाई अनवर अली खुद भी एक अभिनेता हैं. उन्होंने महमूद की फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' में ड्राइवर राजेश का किरदार निभाया था.  उन्होंने महमूद के बारे में बहुत से यादगार किस्से हमें बताए. उन्होंने बताया कि, उस दौरान जब हीरो फिल्मों में रोमांटिक किरदार निभाना ही ज्यादा पसंद करते थे, महमूद एक प्रतिभावान कॉमेडियन के तौर पर उभरे.

Mehmood Ali hit songs

साल 1950 में आंखों को नम कर देने वाली फिल्में जैसे 'परवरिश' और 'ससुराल' ने महमूद को एक कॉमेडियन के रूप में अलग पहचान दिलाई. इसके बाद तो महमूद को फिल्में मिलती ही चली गईं. महमूद ने 'पड़ोसन', 'गोवा' और 'प्यार किये जा'जैसी बड़ी फिल्मों में काम किया. उसके बाद तो महमूद के लिए फिल्मों के ऑफर्स की लाइन ही लग गई. फिल्म 'पड़ोसन' और 'दो फूल' में उनका दक्षिण भारतीय किरदार, 'गुमनाम' में हैदराबादी बोलचाल और 'कुंवारा बाप' जैसी बड़ी फिल्मों में महमूद के कॉमिक अभिनय को एक अलग ही पहचान दिलाई.

अगर ऑफ कैमरा बात की जाए तो वो किसी रॉकस्टार से कम नहीं थे. महंगी गाड़ियों का कलेक्शन रखने वाले, विदेश से ब्रैंडेड कपड़े खरीदने वाले और हमेशा लड़कियों से घिरे रहने वाले महमूद किसी राजकुमार से कम नहीं थे, उन्हें कभी किसी को अपनी पहचान बताने की जरूरत नहीं पड़ी. अनवर अली कहते हैं कि, भाईजान ने हम सभी 7 भाई और बहनों की हमेशा बहुत देखभाल की और बुरे समय में पूरे परिवार को संभाला. उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में अशोक कुमार की 1943 में आई फिल्म 'किस्मत' से की थी. इतना ही नहीं, उन्होंने परिवार को चलाने के लिए कई छोटे-मोटे काम भी किए. काफी समय तक उन्होंने फिल्मेमकर राजकुमार संतोषी के पिता पीएल संतोषी के यहां ड्राइवर का काम किया. किशोर दा और भाईजान दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और अपने घर यानी मलाड से एक साथ फिल्मिस्तान स्टूडियो टहलने जाते थे.

हीरो से ज्यादा मिलती थी फीस

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साल 1950 में महमूद कई बड़ी फिल्मों जैसे 'दो बीघा जमीन' और 'प्यासा' में नजर आए लेकिन उन्हें असली कामयाबी 60 के दशक में आई फिल्मों जैसे 'गुमनाम', 'जौहर महमूद इन गोवा', 'पड़ोसन' और 'दो फूल' जैसी फिल्मों से मिली. इसके बाद तो उनके फिल्मी सफर आगे ही बढ़ता गया और उन्होंने 80 के दशक में 'बॉम्बे टू गोवा', 'कुंवारा बाप' और 'सबसे बड़ा रुपैया' में काम किया. इसके बाद तो भाईजान ने पीछे मुड़कर कभी देखा ही नहीं और वो आगे बढ़ते ही गए. इसके बाद राजश्री  प्रोडक्शन ने अपने होम प्रोडक्शन में बनने वाली फिल्म 'आरती' में उनके लिए एक खास किरदार की रचना की. 1962 में आई इस फिल्म में मीना कुमारी और प्रदीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी. यहां तक कि इस फिल्म के लिए भाईजान ने मीना कुमारी को टेनिस खेलना भी सिखाया था. इस फिल्म के लिए भाईजान को फिल्म में हीरो से ज्यादा फीस दी गई. 14 दिनों की शूटिंग के लिए उन्हें साढ़े सात लाख रुपए दिए गए.  

भाईजान का भड़कीलापन उनके व्यक्तिव का एक हिस्सा था. अपने आलीशान तौर तरीके, रहन-सहन और बड़े दिल वाले इंसान होने की वजह से वो एक राजा की तरह जीवन जीते थे. उन्हें महंगी गाड़ियों का कलेक्शन करने का बहुत शौक था. उनके पास 24 गाड़ियां थीं, जिनमें स्टिंग्रे, डॉज, इंपाला, एमजी और जगुआर जैसी कई गाड़ियां शामिल थीं. उन्होंने अपना एक खुद का मकैनिक भी रखा था. भाईजान जब भी विदेश जाते थे, तो वो सबके लिए वहां से ढेर सारे तोहफे लाते थे. यहां तक कि वो अपने वॉचमैन, लिफ्टमैन और पोस्टमैन को सीको की घड़ियां गिफ्ट करते थे.

सभी धर्मों में विश्वास करते थे भाईजान

इसके अलावा भाईजान को घोड़ों का बेहद शौक था. उन्होंने दो घोड़े खरीदे थे. उनका फेवरेट घोड़ा यूएस से लाया गया था. भाईजान ने उस समय के जाने माने घुड़सवार मानसिंह से शिरड़ी जाने कि लिए पूछा, उस दौरान मानसिंह का बुरा वक्त चल रहा था. इसके बाद से तो जैसे मानसिंह का समय ही बदल गया. भाईजान सभी धर्मों में विश्वास करते थे. उन्होंने कई फिल्म में अपना ऑनस्क्रीन नाम महेश रखा, जो कि भगवान शिव का ही एक नाम है. हम आजाद मैदान में एक साथ ईद की नमाज अदा करने जाते थे. लोग वहां उन्हें पहचान लेते थे लेकिन परेशान नहीं करते थे. वहां से वो जॉनी वॉकर के घर जाकर उनसे ईदी मांगते थे. उनके साथ वो भी सूफी संतों की दरगाह जैसे महिम और मलाड में मखदूम शाह बाबा और पुणे के शिवपुर में कमर अली दरवेश की दरगाह जाते थे.

घोड़ों को रखने के लिए खरीदा था फार्महाउस

भाईजान के फैंस में लड़कियों की भी कमी नहीं थी. महमूद ने अपने लिए कॉमेडी की अलग ही स्टाइल बनाई. एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें फिल्मों में हीरो से ज्यादा फीस मिलने लगी. उनका रहन-सहन और तौर-तरीका बेहद आलीशान था. उन्होंने अपने घोड़ों को रखने के लिए एक खुद का फार्महाउस भी खरीदा. उनके रग-रग में खानदानी अंदाज झलकता था. आगे बात करते हैं उनकी शादीशुदा जिंदगी की. भाईजान ने पहली शादी मीना कुमारी की बहन मधु से की थी, लेकिन उनकी ये शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. उन दोनों के 4 बेटे हैं. भाईजान ने दूसरी शादी यूएस की रहने वाली एक महिला ट्रेसी से की. जिससे उनकी मुलाकात महाबलेश्वर में 1965 आई अपनी फिल्म 'भूत बंगला' की शूटिंग के दौरान हुई थी. दोनों को एक दूसरे से प्यार हुआ और फिर दोनों ने शादी कर ली. दूसरी पत्नी से भी उनके 3 बच्चे हैं. इसके अलावा एक और बेटी भी है जिसे ट्रेसी भाभी ने गोद लिया था.

स्मोकिंग की थी लत

भाईजान जितने शौकीन थे वो उतना ही ज्यादा स्मोकिंग भी करते थे. वो शराब तो नहीं पीते थे, लेकिन सिगरेट वो बहुत ज्यादा पीते थे. बीमारी की वजह से उन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया. 1996 में आई फिल्म 'दुश्मन दुनिया का'उनकी आखिरी फिल्म थी. इसके बाद तो वो फिल्म इंडस्ट्री से बाहर ही हो गए. ज्यादा स्मोकिंग की वजह से उनके फेफड़े खराब हो गए. जिसकी वजह से उन्हें ऑक्सीजन के लिए मास्क का इस्तेमाल करना पड़ता था. वो अपना इलाज कराने के लिए ट्रेसी भाभी के साथ यूएस गए ताकि वहां उन्हें अच्छा ट्रीटमेंट मिल सके. वहां जाकर वो पूरी तरह से धार्मिक हो गए. वो कहते थे, कि उन्होंने अपनी पूरी लाइफ लोगों को हंसाते रहे, लेकिन उनके खुद के जीवन का आखिरी समय ही उनका सबसे बुरा और दुखभरा समय बन गया.

5 दिनों तक बिग बी ने नहीं किया कोई काम

23 जुलाई 2004 72 साल की उम्र में पेन्सिल्वेनिया में उनका निधन हुआ. उनके पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई के लिए फिल्मिस्तान स्टूडियो लाया गया. उनके निधन के बाद अमिताभ बच्चन ने 5 दिनों तक कोई काम नहीं किया, जब तक उनका पार्थिव शरीर मुंबई नहीं पहुंचा. अतिंम विदाई देने के बाद उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए बैंगलोर ले जाया गया.

Mehmood Ali के जीवन से जुडी एक दिलचस्प कहानी यहाँ क्लीक करके पड़े- 

महमूद भाईजान जो फिल्मों में अपनी जान डाल देते थे

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