दिल्ली के गांव नांगल ठाकरान में हुई थी 'उपकार' की शूटिंग
एक दौर था जब ज्यादातर हिंदी फिल्मों में गांव और खेतों के सीन हुआ करते थे. अगर ध्यान दीजिए तो अभिनेता मनोज कुमार की लगभग सभी फिल्मों में गांव और अपने देश का जिक्र तो जरूर होता था. अगर फिल्ममेकर्स के नजरिए से देखा जाए तो बेस्ट लोकेशन के तौर पर गांव से ज्यादा बेहतर फिल्मों के लिए कोई दूसरी जगह हो ही नहीं सकती. वो इसलिए क्योकिं गांव में अगर कोई फिल्म शूट होती है, तो वहां मेकर्स को सेट बनाने के लिए कोई ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. सब कुछ नेचुरल और साफ सुथरा होता है, न ज्यादा भीड़भाड़ और न ही कुछ बनावटी. इसी तरह अगर पूरे देश में बेहतर लोकेशन के लिए कोई शहर है तो वो है अपने देश की राजधानी दिल्ली.
लोकेशन शहर की हो या गांव की फिल्मों में दिल्ली का कहीं व कहीं सीन दिखाई दे ही जाता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि बॉलीवुड फिल्मों से दिल्ली का पुराना नाता है. ऐसे ही दिल्ली में एक गांव है नांगल ठाकरान, जहां के लोगों को आज भी फिल्म उपकार की शूंटिंग के कई मजेदार किस्से याद हैं. देशभक्ति पर आधारित फिल्में करने के लिए मशहूर दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार की 1967 में आई फिल्म उपकार सुपरहिट रही थी. इसी फिल्म का एक गाना मेरे देश की धरती... काफी पॉप्युलर हुआ था. इस गाने की पूरी शूटिंग दिल्ली के एक गांव नांगल ठाकरान में ही हुई थी. फिल्म में दिखाए गए गांव और खेतों के ज्यादातर हिस्सों की शूटिंग यहीं हुई थी.
जब इस गाने की शूटिंग वहां हुई थी उस समय गेहूं और सरसों की फसल से गांव पूरी तरह से हराभरा था. हाल ही में इसी गांव के रहने वाले 64 वर्षीय एक बुजुर्ग ने दविंदर सिंह ने बताया कि मेरे देश की धरती... गाने की शूटिंग उन्हीं के खेत में हुई थी. साल 1966 में उस समय गर्मियों के दिन थे. जब फिल्म की पूरी कास्ट और क्रू मेबर गांव पहुंचे थे. उन्हें देखकर गांव के सभी लोग हैरान थे, जिसमें से एक दविंदर सिंह भी थे, जो उस समय 11 साल के थे. शूटिंग के लिए फिल्म की टीम ने गांववालों से कुछ घर, खेत, हल और बैल मांगे थे. गांव के एक बड़े किसान झुमन चौधरी ने शूटिंग के लिए अपना घर और खेत दे दिया. एक और किसान अमर सिंह ने अपने बैल दे दिए. पूरे गांव ने मिलकर फिल्म की टीम की हर तरह से मदद की.
गांव में ही रहने वाले 72 वर्ष के आजाद सिंह भारद्वाज बताते हैं कि, फिल्म की टीम हर रोज सुबह के वक्त गांव पहुंचती थी और शाम को शूटिंग खत्म होने के बाद दिल्ली लौट जाती थी. जब रात के सीन की शूटिंग होती थी उस दिन पूरी टीम गांव में ही रुकती थी. उन्होंने बताया कि, मुझे अच्छी तरह याद है कि कस्मे वादे प्यार वफा...गाना कई बार शूट किया गया, जबतक की मनोज कुमार उससे संतुष्ट नहीं हो गए. उन्होंने आगे ये भी बताया कि, जब तक फिल्म की शूटिंग चली थी, गांव में देशभक्ति और त्यौहार का माहौल था. गांव के बच्चे, बूढ़े, जवान और औरतें सभी शूटिंग के लिए वहां जमा हो जाते थे.
नांगल ठाकरान गांव में फिल्म उपकार की शूटिंग के ढेरों किस्से आज भी उस गांव के लोग सुनाते हैं. 73 वर्षीय नारायण सिंह बताते हैं कि, ‘मैं स्कूल से सीधा शूटिंग देखने पहुंचे जाता था. शूटिंग देखने के लिए कई बार तो क्लास भी छोड़ देता था. फिल्म की टीम के लोग बहुत अच्छे थे और गांव के सभी लोगों से काफी घुलमिल गए थे’. फिल्म में मनोज कुमार के अलावा आशा पारेख, प्रेम चोपड़ा, प्राण, कामिनी कौशल, मदन पुरी मुख्य भूमिकाओं में थे. नारायण सिंह ने आगे बताया कि बाकी सभी लोग तो मनोज कुमार और आशा पारिख से मिलने के लिए उतावले रहते थे, लेकिन मैं कामिनी कौशल से ही बातचीत करके खुश हो जाता था. फिल्म में वो मनोज कुमार की मां का किरदार निभा रहीं थीं. दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की फिल्में मुझे पसंद थीं.
आजाद सिंह कहते हैं कि, उन दिनों कॉलेज स्टूडेंट्स फिल्म की शूटिंग देखने के लिए दिल्ली से यहां आते थे. इस गांव के ज्यादातर लोगों को फिल्म उपकार के सभी सींस याद हैं. शूटिंग के लिए घर और खेत देने वाले झूमन चौधरी का नाम फिल्म की क्रेडिट ओपनिंग में दिया गया है. 1980 में उनका निधन हो गया था. उनके परपोते पवन कुमार बड़े गर्व से ये बात बताते हैं कि मनोज कुमार ने शूटिंग के लिए घर और खेत देने के एवज में अच्छी रकम देने की पेशकश की थी लेकिन मेरे परदादा ने पैसे लेने से मना कर दिया था. पवन बताते हैं कि. फिल्म रिलीज होने के बाद मनोज कुमार ने मेरे परदादा को फिल्म देखने का निमंत्रण भेजा था. गांव के सभी लोगों ने परिवार के साथ अल्पना और फिल्मीस्तान थिएटर में ये फिल्म देखी थी. उसके बाद गांव के लोगों को ये उम्मीद थी कि अब उनके गांव का विकास जरूर होगा. लेकिन इतने साल भी अबतक कुछ नहीं हुआ.
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