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लता दीदी के साथ मेरी एक छोटी सी मुलाकात ने फिल्मों के बारे में मेरे सोचने का नज़रिया बदल दिया: रविन्द्र टुटेजा

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लता दीदी के साथ मेरी एक छोटी सी मुलाकात ने फिल्मों के बारे में मेरे सोचने का नज़रिया बदल दिया: रविन्द्र टुटेजा

-शरद राय

कुछ साल पहले जब कानपुर से मुम्बई चला था यह सोचकर की फिल्मों में कुछ करना है  तब मेरे जहन में दो चेहरे थे- अमिताभ बच्चन और लता मंगेश्कर। दोनो से मैं मिला, और जो मुलाकात का असर मेरे दिमाग मे लता दीदी ने छोड़ा था वो आज भी तरो ताज़ा है।

अब... जब टीवी पर खबर देखा की लता मंगेशकर नही रही! मेरे सामने वो नज़ारा घूम गया जब मैं मुंबई में पैडर रोड स्थित 'प्रभु कुंज' में दीदी के घर पर उनके सामने सोफे पर बैठा हुआ था।हमारे जाने के कुछ समय बाद वह बैठक में आई थी। तबतक हम चाय पी चुके थे।

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मैं एक फिल्म बना रहा था उनदिनों।एक म्यूज़िकल फिल्म थी। मेरे साथ मेरी फिल्म के निर्देशक और संगीतकार दोनो थे, या कहिए कि मैं उनके साथ लताजी के घर गया था।उनलोगों का नाम लेना इसलिए जरूरी नही की वो प्रोजेक्ट बंद हो गया था और वे लोग आज भी इंडस्ट्री में हैं। शायद मैंने फिल्मों में एंट्री फीस दिया था। लाता जी ने  मेरा परिचय निर्माता के रूप में कराए जाने पर मुझे ध्यान से देखा और फिर हम जितनी देर रहे वो मुझसे ही बात करती रही। शायद वे ताड़ गयी थी कि मैं जिन लोगों के साथ था वे 'चंटू' लोग थे, या जो भी कारण रहा हो लताजी ने सिर्फ मुझसे बात किया था। लता जी ने मेरी फिल्म की तैयारी को बड़े ध्यान से सुना, बोली- जो कहानी है उसको अमिताभ बच्चन को ध्यान में रखकर लिखा है और गाना भारत भूषण जी गा रहे हैं और उसको गवाना चाहते हो लता मंगेशकर से, यानी-मुझसे...और वह हंस पड़ी थी। लताजी अक्सर आधा मुस्कराती थी लेकिन उसदिन खूब हंसी थी। हमारी मीटिंग बर्खास्त हो गई थी।वह बोली थी -' रविन्द्र, पहले प्रोजेक्ट बनाओ , कलाकार बनाओ फिर गाने पर आओ !' वह फिल्म तो नही बनी थी।लेकिन मेरे साथ के लोगों ने लौटते समय मेरी टैक्सी में मेरे सामने उनको खूब कोसा था। अब समझ मे आता  है कि जो लोग लताजी को घमंडी कहते थे, सिर्फ बड़ों के लिए ही गाती हैं वह...जैसे आरोप लगाते रहते थे, वे ऐसे ही कहने वाले लोग होते हैं।

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फिर एक गैप के बाद मैं दुबारा मुम्बई आया। इसबार फिल्म शुरू किया 'ब्यूटी विथ ब्रेन' यह छोटी फिल्म थी जिसमे गाने की बहुत इम्पोर्टेंस नही थी। फिर दूसरी फिल्म 'अपरचित शक्ति' बनाया। फिल्म कम्प्लीट है बनकर। कोरोना के कारण रिलीज नही हो पाई है। फिल्म में राजपाल यादव हीरो हैं।  इस फिल्म में हमने एक प्रयोग किया है दक्षिण की फिल्म 'अपरचित' के जैसा ही राजपाल को लेकर। इसके अलावा मेरी एक और फिल्म है जो अंडर प्रोडक्शन है। इन फिल्मों को बनाते समय मेरे दिमाग मे हमेशा लताजी की बात याद आती थी कि 'पहले प्रोजेक्ट बनाओ!' बेशक मैं लताजी से गाना नही गवा पाया क्योंकि मेरी फिल्मों का बजट कम था। पर इसके पीछे भी सोच वही थी लता दीदी का सबक- 'पहले प्रोजेक्ट बनाओ।' बजट कम है तो प्रोजेक्ट हैवी मत बनाओ। पिछले  कुछ साल बॉलीवुड के लिए बड़े नुकशान के गुजरे हैं। फिल्म बनाना घाटे के सौदे के रूप में देखा जाने लगा था।इधर के तीन साल तो कोरोना में ही चले गए हैं। लोग छोटी छोटी यू ट्यूब फिल्में बनाने से जुड़ गए हैं। इसकी वजह भी बजट ही है।

समय के साथ, समय को समझकर मैंने भी छोटी छोटी फिल्में यू ट्यूब के लिए  बनाना शुरू किया। मुझे कामयाबी मिली। मैं अबतक 800  छोटी फिल्में बना चुका हूं। मुझे अपने इस काम से संतुष्टि है। कोरोना के समय मे भी हमने काम किया है। कम समय में, कम बजट में, नए नए कथानक और नए नए कलाकारों के साथ काम करना अच्छा लगता है।'

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'आप एक्टर भी हो, यह शुरुवात कैसे हुई?'

'यह तो इत्तेफाक से हुआ।'बताते हैं रविन्द्र टुटेजा। मेरी फिल्म ''अपरचित शक्ति' में राजपाल यादव के सामने एक अहम रोल किसी मार्केट के कलाकार को करना था जो शूटिंग के समय पहुंच नही पाए। मेरे डायरेक्टर सनी कपूर ने कहा कि मैं करलूं नही तो शेड्यूल आगे बढ़ जाएगा और खर्च बढ़ेगा। मैं ठहरा कानपुरिया व्यापारी तुरंत कैमरे के सामने खड़ा हो गया। उसके बाद जब छोटी फिल्में(यू ट्यूब फिल्में) बनाने लगा तो आर्टिस्ट की कमी पड़ने लगी। मैंने करीब दो सौ फिल्मों में एक्टिंग किया है। तरह तरह के रोल किए हैं और अबतो एकदम परफेक्ट हो गया हूं। बेशक लता दीदी का कथन 'पहले प्रोजेक्ट बनाओ' को मैं सूत्र वाक्य मानता हूं।बजट के अनुसार प्रोजेक्ट की सोच लेकर चलता हूं। अब मैं बड़े बजट पर काम करने की तैयारी में लगा हूं। कोरोना जाने का इंतेज़ार कर रहा हूं। सोचा था लताजी से ज़रूर गाना गवाने की कोशिश करूंगा। पर अफसोस दीदी नहीं रही ! यह मेरा सपना ज़िंदगी भर मुझे सालता रहेगा।

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