हाल ही में वेब सीरीज कॉलेज रोमांस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ टिप्पणिया दी है, और इनका स्वागत किया जाना चाहिए. कुछ ऐसे वेब शो होते है जिन्हें आप अपने परिवार और बच्चो के साथ बैठकर नही देख सकते है. उनमें अश्लीलता और अभद्र भाषा जमकर परोसी जाती है. कॉलेज रोमांस पर दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायधीश ने कहां की इस शो को सार्वजनिक नही देखा जा सकता. सिर्फ इतना ही नहीं, न्यायाधीश को खुद इसके संवाद ईयरफोन लगाकर सुनने पड़े थे. दरअसल, इन वेब सीरीजों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर बनाया जाता है, लेकिन बनाने वाले ये नही सोचते की ये सीरीज़ देश के युवाओं पर क्या असर डालेगी. ऐसी चीज़े देख कर युवाओं पर नकारात्मक असर पड़ता है और उनका मानसिक संतुलन भी खराब होता है.
आजकल ये देखने को मिल रहा है की युवाओं को अब अकेला रहना पसंद आ रहा है और इसके कारण वो चिड़चिड़े होते जा रहे है. उनके इस व्यवहार के कारण पारिवारिक माहौल खराब होता जा रहा हैं. ऐसे हालातों को ध्यान में रखते हुए सुचना प्रसारण मंत्रालय को दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए. अगर उन्हें जरूरी लगे तो इनपर रोक लगाने में हिचकना भी नहीं चाहिए. आखिर जनता के मानसिक दूषण से बचाने का काम भी तो सरकार का ही हैं.
जो लोग ओटीटी पर वाहियात चीजें बहुत मज़े लेकर देखते है वो ये बात भूल जाते हैं, बच्चे जो देखते और सुनते है, वो वही सीखते है. जिस तरह से, मंत्रो के उच्चारण से वातावरण में सकारात्मकता आती है, उसी तरह अश्लीलता से वातावरण नकारात्मक बनता है. इस नकारात्मकता का शिकार सबसे पहले मासूम बच्चे बनते है. छोटे बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते है. वो जब बार-बार अभद्र शब्द और गालियां सुनते है तो धीरे-धीरे वो उनकी भाषा का हिस्सा बना जाती है. यह बात हम सबको अब समझनी पड़ेगी की जो चीज़े पर्दे पर दिखती है वो दिमाग में ज्यादा समय तक असर डालती है. यहीं कारण है की सज़ा पाए हुए बलात्कारियों को अब अपने जुर्म का अफ़सोस महसूस नही होता है. क्या हमारी सोच अब इतनी गंदी हो गई है की हमे मनोरंजन के लिए अश्लीलता है सहारा लेना पड़ रहा है?
आपको अगर नहीं पसंद, तो मत देखियें
कुछ लोग वेब सीरीज के पक्ष में हैं. उनकी अगर मानें तो वेब सीरीज और अश्लीलता का चोली-दमन का रिश्ता होता है. उनका मानना है की कई वेब शो ऐसे भी आए है जिन्हें परिवार और बच्चों के साथ देखा जा सकता हैं. मनोविज्ञान का मानना हैं की जिससे कोई चीज़ जितनी ज्यादा छुपाई जाएगी, वो उस चीज़ की ओर उतना ज्यादा ही खिचां चला जाएगा और सेक्स भी ऐसे ही कुछ विषयों में से एक हैं. लोगों का मानना है की अगर ओटीटी पर भी निगरानी रखेंगे तो फिर बच्चे सीखेंगे कहां से. सिर्फ इतना ही नहीं, उनका ये भी कहना है की अगर किसी को नही पसंद तो वो लोग ऐसे शो ना देखे. कोई निर्माता दर्शकों से ज़बरदस्ती तो करता नहीं है उनका बनाया शो देखने के लिए.
नियंत्रण का विरोध हो
लोगों का मानना हैं की आप किसी भी वेब शो देखने वाले से उसकी पसंद पूछ लीजिए, आपको दूसरा या तीसरा जवाब एक जैसा ही मिलेगा. ओटीटी की दुनिया इतनी बड़ी और इतनी रोचक है की हर कोई अपनी पसंद के हिसाब से अपने लिए कुछ न कुछ खोज ही लेता है. कई बार ऐसा होता है की कई लोगों की पसंद एक जैसी ही होती हैं. दरअसल यह एक मात्र ऐसा प्लेटफार्म हैं- जहां गांव हो या देहात, कला हो या साहित्य, सतही सामग्री हो या गंभीर मुद्दे, सबसे जुड़ा कुछ मिल जाएगा. इसलिए लोगो का कहना हैं की वेब सीरीज़ो पर नियंत्रण लगाने का विरोध होना चाहियें.