आज से लगभग चार दशक पहले उमा देवी नामक एक ग्रामीण युवा छरहरी युवति इस जिद के साथ बम्बई फिल्म इंडस्ट्री में आई थी कि वह सिर्फ संगीतकार नौशाद के म्यूजिक पर गीत गाकर फिल्म संगीत जगत में हलचल मचा देगी परन्तु पासा पलट गया. वह गायिका उमा देवी प्रसिद्ध हास्य अभिनेत्री टुनटुन बन गयी और वह भी नौशाद की ही जिद पर.
दर्शकों को चालीस वर्षो से गुदगुदाने वाली टुनटुन आज फिल्मों में भले ही नजर न आती हो परन्तु वह आज भी रंगमंच की दुनिया में अपनी मीठी किलकारी बिखेर रही है, वह कहती है, 'दुनिया भर की सैर कर चुकी हूँ मैं, नौरोबी से दुबई तक, कनाडा से लन्दन तक, दुनिया भर में स्टेज शो करके मैं अपना वक्त आराम से काट रही हूँ.
फिल्म इंडस्ट्री में इतना लंबा समय गुजारा है आपने, इस खुशी में आपने कोई जश्न नहीं मनाया?
भला मुझे क्या जरूरत कि मैं कोई पार्टी या जश्न मनाकर लोगों को याद दिलाऊँ कि मैंने फिल्म इंडस्ट्री में इतने साल गुजारे? ऐसा तो लोग तब करते हैं जब लोग उस कलाकार को भूल गये हों. टुनटुन को तो गली गली के बच्चे आज भी पहचानते हैं.
आपको कभी किसी अवार्ड या सरकारी सम्मान की अभिलाषा नहीं हुई?
नहीं, कभी नहीं. मेरी लोकप्रियता और दर्शकों का प्यार ही मेरे लिए किसी अवार्ड या सम्मान से कम नहीं, मैंने आज तक जो कुछ भी किया, वह दर्शकों के लिए किया, अवार्ड के लिए नहीं.
आपको अपने शुरूआती दिन और फिर वह सुनहरा दौर याद आता है?
हाँ, मुझे तो एक एक बात याद है. बचपन से ही गायन के प्रति झुकाव रहा मेरा. उन दिनों लड़कियों काग गीत, नृत्य या अभिनय की दुनियां में प्रवेश करना गुनाह माना जाता था, पर मैं ठहरी एक नम्बर की जिद्दी. घर वालों की बातें न मानकर अकेली ही बम्बई चली आयी.
आपको इस बड़ी बम्बई में अकेले संघर्ष करते हुए डर नहीं लगा?
नहीं, मैं बचपन से ही बड़ी बोल्ड थी, यहाँ आकर, न रहने को मकान मिल रहा था और न काम. उस पर मेरी जिद थी कि मैं सिर्फ नौशाद की धुनों पर गाऊंगी, आप खुद समझ रही होंगी कि गांव से आयी एक अनजान लड़की के लिए यह कितना मुश्किल काम था. कहाँ मैं, कहाँ चोटी के व्यस्त संगीतकार नौशाद. पर मैं अपनी जिद पे अड़ी थी. सारा सारा दिन नौशाद की खोंज में रिकार्डिग स्टूडियो के चक्कर लगाया करती. कई बार कुछ धोखेबाज किस्म के फिल्मी लोगों ने मुझे अनाड़ी अनजान मानकर यह कहकर फँसाना चाहा कि आओ तुम्हें नौशाद से मिला दूँ. पर मैं गांव की होने के बावजूद उनके जाल में नहीं आती थी. खैर... आखिर मैंने नौशाद साहब से मुलाकात कर ही ली और उन्हें प्रभावित भी कर लिया.
'गायिका के रूप में प्रसिद्ध होने के बाद भी क्या आप नौशाद की धुन पर गाने की जिद करती रही?
हां, मेरा गाना 'अफसाना लिख रही हूँ' के हिट होते ही मेरे पास संगीतकारों की भीड़ लगने लगी पर मैंने सबको यह कहकर नाराज कर दिया कि मैं सिर्फ नौशाद साहब के लिए गाऊंगी. एक बार मेरी अनुपस्थिति में मेरे पति ने सुप्रसिद्ध निर्माता एस. एस. वासन की फिल्म 'चन्द्रलेखा' में मेरे गाने के ऑफर को स्वीकार कर लिया. पति का किया प्रोमिस रखने के लिए मुझे अन्य संगीतकार के गीत की रिकार्डिग के लिए मद्रास जाना पड़ा. बस वह एक बार मैंने अन्य संगीतकार के लिए गीत गाया था.
आपने कभी ऐसा नहीं सोचा कि अगर आप अभिनय की तरफ मुड़ने के बदले सिर्फ गायिका बनी रहती तो अच्छा होता?
नहीं क्योंकि हर रूप में मैं कामयाब रही. नौशाद साहब को यकीन था कि मैं अच्छी अभिनेत्री बन सकती हूँ इसलिए वे जिद करने लगे थे कि मैं अभिनय शुरू करूँ. मैंने भी उनसे जिद की कि अगर अभिनय की शुरूआत करूंगी तो सिर्फ दिलीप कुमार के साथ, और इस तरह फिल्म 'बाबुल' में दिलीप कुमार के साथ कामेडी रोल की शुरूआत की मैंने.
उन दिनों की याद करके कैसा लगता है?
जब अकेली होती हूँ तो उस जमाने को याद करती हूँ, जब गुरूदत्त जैसे लोग रहते थे. गुरूदत्त को अपने कलाकारों की पर्सनल समस्याओं की बड़ी फिक्र थी, एक बार घर का भाड़ा चुकाने के लिए मुझे दो हजार की जरूरत पड़ी, उन्होंने तुरन्त मुझे दे दिये. शूटिंग के दौरान कितनी हँसी मजाक होती थी. एक बार दिलीप साहब के साथ मेरा एक ऐसा सीन था कि मुझे उन्हें धक्का देना था मैंने बहुत जोर से धक्का दे दिया था, उन्हें काफी दर्द रहा कई दिनों तक फिर भी वे शूटिंग पर आते थे.. सबके साथ मजाक करते थे.
अब तक आपने जितनी फिल्मों में हास्य रोल किए उनमें आपकी अपनी पसन्द कौन सी है?
'कोहिनूर' 'राजकुमार', 'प्रोफेसर', 'उड़न खटोला' उन्होंने जवाब दिया.
पुरानी फिल्में 'दर्द', 'अनोखी अदा', 'चन्द्रलेखा' की प्रसिद्ध गायिका उमा देवी की आवाज में आज भी काफी सोज है और हास्य अभिनेत्री टुनटुन तो आज भी गुदगुदाने के काबिल है.
ओल्ड इंटरव्यू
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