Advertisment

होली पर भरपूर दिखता है ‘किसिंग’ का नजारा... आयुष्मान खुराना

author-image
By Sharad Rai
New Update
होली पर भरपूर दिखता है ‘किसिंग’ का नजारा... आयुष्मान खुराना

शरद राय

अपनी नई फिल्म ‘शुभमंगल ज्यादा सावधान’ को लेकर आयुष्मान खुराना बेहद उत्साहित हैं कि फिल्म लोगों को पसंद आ रही है। पर पुरुष समलैंगिकता को लेकर वह निजी जिंदगी में खुद कैसा सोचते हैं? के जवाब में वह हड़बड़ा जाते हैं और घुमाकर अपनी बात कहते हैं- ‘यह मुद्दा एक सामाजिक सोच से जुड़ा है, जो अंदर ही अंदर चलता रहा हैं’ वह जस्टिफाई करते हैं अपनी बात को तर्कों से- ‘आज से दस-बीस साल पहले तक इस टॉपिक पर चर्चा करना तक गुनाह था। होमो सेक्सुएलिटी चाहे जिसे किसी फॉर्म में रही हो- ‘गे’, ‘लेस्बियन’, LGPTQ का मामला ही पर्दे के पीछे का मामला होता था। यह पहले भी था! आर्टिकल 377 के सुप्रीम कोर्ट के वर्डिक्ट के बाद लोग मुखर हो गये हैं। हमने यह फिल्म- ‘शुभमंगल...’ आज की है। कुछ साल पहले ऐसी ही सोच की फिल्म थी ‘फायर’ (शबाना आज़मी-नंदिता दास अभिनीत) जिसके पोस्टर जलाये गये थे और आज ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ को ज्यादा पसंद किया जा रहा है।’

Advertisment

वह आगे कहते हैं- ‘अब हम आते हैं ‘होली’ के टॉपिक पर। होली खेलने के दौरान हमने ऐसे कई वारदात देखे हैं जब एक पुरुष किसी दूसरे पुरुष को किस करता है या एक महिला किसी दूसरी महिला को दबाकर किस करती देखी जाती है। वहां कलर और भांग के नशे में इस बात को ध्यान नहीं देते, मगर कहीं न कहीं होली जैसे त्योहारों की रंगीनी में ज्यादा सावधानी तो टूट ही जाती है। लोग जो उस टेस्ट के होते हैं उस मूड में आ जाते हैं। होली के गीतों में भी देखिए- ‘जोगी जी धीरे-धीरे...’।’

 होली खेलते हैं आप ?

- संभल के। पिछले साल में नहीं खेली मैं देखकर आनंद लेता हूं।

 आपने हमेशा हटकर फिल्मों में अपने पात्र का चुनाव किया है जो सामाजिक वर्जनाओं का नायक है, ऐसा क्यों ?

- शायद लोग मुझे उसके लायक समझते हैं। हंसते हैं आयुष्मान। शुरू में संयोग था, ब्रेक चाहिए था। बाद में ऐसे कथानकों के लिए लोगों ने मान लिया कि मैं फिट हूं। ‘विक्की डोनर’, ‘दम लगा के हईशा’ बधाई हो, ‘बाला’ और नई फिल्म ‘शुभमंगल ज्यादा सावधान’ तक मुझे लोगों ने सामाजिक वर्जनाओं के कथानक के हीरो के रूप में पसंद किया है। मैं महसूस करता हूं कि मैं लक्की हूं कि मेरे लिए ऐसे विषय लिखे भी जा रहे हैं जो समाज में विसंगतियों के लिए जाने जाते हैं।’

 तो समाज में बदलाव लाने में आपकी ये फिल्में सफल होती दिख रही है ?

- जरूर। धीरे-धीरे असर होगा। जब सिनेमा को लोगों ने स्वीकार कर लिया तो मतलब साफ है उससे जुड़ी समस्याएं भी कॉमन होती जाएंगी। कुछ समय पहले इमरान हाशमी को ‘किसिंग’ किंग कहा जाता था, आज हर फिल्म में स्मूचिंग है और लोगों में रिएक्शन नहीं होता। फिल्में समाज पर असर डालती हैं वैसे ही जैसे हमारे त्योहार साल दर साल अपना असर गहरा करता जाता है। होली के रंग हानिकारक हैं, जब से बताया जाने लगा है लोग रंगों से बचने लगे हैं कि नहीं? मैं तो बचता हूं।’...

और पढ़े: हॉलीवुड भी कर चुका है इन बॉलीवुड फिल्मों की कॉपी

Advertisment
Latest Stories