पिछले दिनों ‘मौसम’ के सेट पर शर्मिला टैगोर से मुलाकात हुई तो अब में और ‘आविष्कार’ के सेट पर बहुत दिनों पहले मिलीं शर्मिला टैगोर में मुझे कोई अन्तर नजर नहीं आया। चेहरे पर अब तक समय और काल की रेखाएं नहीं उभरी थीं, न ही दिये की लौ की तरह जलने वाली उनकी आंखों को चमक और गरमाई ही कम हुई थी। न उनके स्तनिग्ध गालों के मादक गढ़ों में शुष्कता ही पैदा हुई थी। - पन्नालाल व्यास
उम्र शर्मीला टैगोर के लिए मानों रुक सी गयी है
आश्चर्य की बात थी कि अब तक उम्र का ठप्पा उनके किसी अंग पर नहीं लगा था। वे आज भी तरोताजा थीं-और उनके पास ऐसी ही महक फूट रही थीं जैसे वे किसी चन्दन के झरने में नहा कर आयी हैं।
इतना सब कुछ होते हुए भी यह एक सच्चाई है कि हेमा मालिनी और जीनत की तरह वे अब पहले की तरह खबरों में नहीं हैं और न हिरोईन के रूप में उनका पहले की तरह क्रेज ही रहा है।
कुछ लोगों की धारणा है कि राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी टूटते ही उनका इमेज भी बिखर गया। ‘नमक हराम’ के प्रदर्शन के बाद अपने किसी इटरव्यू में उन्होंने कह दिया था कि उस फिल्म में अमिताभ बच्चन राजेश, खन््ना से अधिक प्रभाव- शाली रहे हैं तब से राजेश उनसे खफा है और उनके साथ कार्य करने को राजी नहीं होते।
मैंने जब इन बातों की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया तो उन्होंने मुस्करा कर कहा--“हां, यह ठीक है कि मैंने ‘नमक हराम’ के संबंध में अमिताभ बच्चन के रोल की तारीफ की थी पर उसका यह मतलब नहीं है कि राजेश खन्ना के खिलाफ कोई बात कही है। मैं आज भी उन्हें फाइन एक्टर मानती हूं- ‘नमक हराम’ में अमिताभ बच्चन अपनी भूमिका में अधिक फिट हुए हैं। ऐसा हर एक्टर के साथ होता है-किसी रोल में वह फिट होता है किसी में नहीं ! मैं औरों की बात क्यों करूं-अपनी ही बताती हूँ-जिस तरह मैं ‘सत्यकाम’, ‘आराधना’, ‘सफर’, ‘अमर प्रेम’ ‘आविष्कार’, ’चरित्र हीन’, चुपके चुपके! और ‘अमानुष’ में फिट हुई हूं वैसी अन्य भूमिकाओं में नहीं।
“तो क्या राजेश खन्ना ने आपकी कहीं बात का बुरा मान लिया?”
नहीं, मैं ऐसा नहीं मानती। हम दोनों की कुछ फिल्मों के ‘फ्लाप’ हो जाने पर निर्माताओं ने ही हमारी टीम लेना बंद कर दिया हैं। इतना ही नहीं, मैं अब केवल अच्छी और मन पसन्द भूमिकाएं करना चाहती हूं, इसलिए केवल रोल और डायरेक्टर को महत्व देती हूँ। हीरो कोई भी हो ! रही राजेश खन्ना की बात उनके साथ कई फिल्मों में काम कर चुकी हूं इसलिए उनके साथ कम्युनिकेशन है और अन्डरस्टेडिंग है। जब दो व्यक्ति बार-बार साथ काम करते हैं तो दोनों को एक दूसरे का स्वभाव और मूड को समझ लेने में आसानी हो जाती है और उससे इंटीमेट सीन भी सहज भाव से हो जाते हैं। इसलिए उनके साथ फिल्म मिलती है तो भला मैं कैसे ठुकरा सकती हूं?”
क्या साथ-साथ काम करने का मतलब इमोशनल इन्वोल्वमेंट नहीं है?
शर्मिला ने गम्भीरता से कहा- “नहीं ! मैंने सुना है कई आर्टिस्ट समझते हैं कि बिना इमोशनल इन्वोल्वमेंट के वे अपने करेक्टर को सही ढंग से पेश नहीं कर सकते। पर मैंने आज तक किसी भी रोल में ऐसा महसूस नहीं किया।”
तो फिर ‘सत्यकाम’, ‘आराधना’, ‘सफर’, ‘अमर प्रेम’, ‘आविष्कार’, चरित्रहीन, ‘चुपके चुपके’, ‘अमानुष’ आदि में बिना इमोशनल इन्वोल्वमेंट के इतनी कामयाब कैसे रहीं?”
उन फिल्मों की भूमिकाओं में केवल करेक्टर के साथ इमोशनल इन्वोल्वमेंट नहीं था बल्कि उससे भी कुछ अधिक था। जिस तरह से फिलॉसफी में सेल्फ रियलाइजेशन की बात है, उसी तरह उन भूमिकाओं में कैरेक्टर रियलाइजेशन होता है। करेक्टर रियलाइजेशन के बाद ही भुमिकाएं लिविग बन जाती है।
क्षमा करे-शर्मिला जी-तो इसका मतलब यह है कि केवल चंद फिल्मों में आपका करेक्टर रियलाइजेशन हुआ है।”
बेशक।” शामिला ने बे झिझक कहा।
तो फिर कुछ फिल्मों में आपने निरर्थक महत्वहीन भूमिभाएं स्वीकार ही क्यों की?
सच-सच बता दूं।” शर्मिला ने मुस्करा कर कहा।
मैंने बड़ी उत्सुकता से कहा-“क्यों नहीं, क्यों नहीं।
शर्मिला टैगोर ने अपने बालों को संवारते हुए कहा-“मैं प्रोफेशनल आर्टिस्ट हूं इसलिए कभी-कभी फन के लिए भी कुछ काम चलाऊ रोल स्वीकार कर लेती हूं। कुछ धन कमाने के लिए कमाऊ रोल लेने पड़ते हैं। और किये भी हैं पर कुछ रोल ऐसे होते हैं जिनके लिए मैं अपने आपको कुर्बान कर देती हूं। ‘आविष्कार’ का रोल कुछ ऐसा ही था जिसे आज भी याद करते ही सिहर उठती हूं। उस रोल के लिए मैंने कोई सौदा नहीं किया क्योंकि वह रोल ही ऐसा था जिसे सुनते ही मैं कुर्बान हो गयी और जिसे साकार करने के लिए मैंने पूर्णरूप से आत्म-समर्पण कर दिया अपने आपको लुटा दिया।”
शर्मिला जी, अभी अभी आपने यह कहा है कि आप रोल को और डायरेक्टर को महत्व देती हैं तो क्या आप किसी भी नये हीरो के साथ काम कर लेंगी?”
यह सब कहानी, रोल, डायरेक्टर भर पूरे सेटअप पर निर्भर करता है। हर प्रोफेशनल आर्टिस्ट को अपनी स्थिति बनाये रखनी ही पड़ती है। आर्टिस्ट आगे बढ़ता है, पीछे नहीं लौटता।”
इस वक्त आप किन-किन हीरो के साथ आ रही हैं?
मैं धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा के साथ आ रही हूं।”
आपने अब तक अनेक हीरो के साथ काम किया है, उनमें आपकी मन पसन्द का हीरो कौन है?
जिसके साथ काम करती हूं वही रोल के अनुसार मन पसन्द हो जाता है वैसे मैं पहले बता चुकी हूं कि व्यक्तिगत रूप से मेरा किसी भी हीरो के साथ भावात्मक लगाव नहीं है।
तो राजेश खन्ना के साथ जुड़ी आपकी बातें क्या अफवाहें थीं?
हां-चूंकि उनके साथ मैं कई फिल्मों में आई और कई फिल्मों में मैंने उनके साथ इन्टीमेट सीन भी किये इसलिए इस तरह की अफवाहें उड़ना मामूली बात हैं।
आप सोचती हैं कि हीरो-हीरोईन के एफेयर्स नहीं होते?
होते क्यों नहीं-होते हैं पर उन एफेयर्स को तूल देकर उनकी घरेलू जिंदगी तक खींच लाना ठीक नहीं है।”
अफवाहें उड़ानेवालों नें तो आपको भी नहीं बख्शा है इस मामले में. उनका कहना है कि फिल्मी जीवन से आपका विवाहित जीवन संकट में पड़ गया हैं और नवाब पटौदी के साथ तलाक लेने की स्थिति पैदा हो गयी हैं क्या इस बारे में आप कुछ बतायेंगी?
हम दोनों के बीच इमोशनल एटैचमेंट ही नहीं, प्रोफेशनल अन्डरस्टैडिग भी है। वे क्रिकेट के मामले में व्यस्त रहते हुए मेरा पूरा ख्याल रखते हैं और फिल्मों में व्यस्त रहते हुए मैं उनका ख्याल रखती हूं उन्हें यह मालूम है कि मैं फिल्मों की हीरोईन हूं ग्लैमर वल्र्ड की हिरोईन हूं और मुझे अनेक हीरो के साथ इन्टीमेंट और रोमांटिक भूमिकाएं करनी पड़ती हैं। मुझे भी यह पता है कि क्रिकेट के स्टार होने के नाते उनका वास्ता कई सुन्दरियों से हो सकता है। पर मैं यह मानती हूं कि मैं उनकी बीवी हूं और वे यह मानते हैं कि वे मेरे पति हैं हम दोनों कई बार अपनी-अपनी व्यस्त जिंदगी से अवकाश ले कर पारिवारिक सुख का आनन्द लेते हैं। कभी-कभी मतभेद हो भी जाता है पर उससे घर में आग नहीं लगती और न ही हलचल होती है। इस दृष्टि से हम दोनों एक दूसरे के लिए भाग्यशाली हैं।”
क्या बात है कि इन दिनों गाॅसिपिंग कालमों में आपको अधिक चर्चा नहीं है?
क्योंकि मैं इस वक्त बहुत कम फिल्मों में आ रही हूं।”
वह क्यों?
मैंने फैसला किया है कि मैं अब केवल कुछ चुनी हुई फिल्मों में कार्य करूंगी। फन के लिए या केवल धन कमाने के लिए रोल करने की अब तमन्ना नहीं रही। बहुत फन किया बहुत कमाया। किसी बात की कभी नहीं है इसलिए अब केवल ‘सत्यकाम’, ‘आराधना’, ‘सफर’, ‘अमरप्रेम’, ‘आविष्कार’, ‘चरित्रहीन’, ‘चुपके- चुपके’ और ‘अमानुष’ जैसी-बल्कि उनसे भी और बेहतरीन फिल्मों में काम करना चाहती हूं।”
यदि उस तरह के रोल नहीं मिले तो?
कोई दुख नहीं होगा। घर है, परिवार है, मित्र हैं, पढ़ने के लिए ढेर सारी किताबें हैं“ और सैर सपाठे के लिए सारे साधन हैं। मैं जिंदगी को इन्जॉय करना जानती हूं। बोर नहीं होती, बल्कि और लोगों की भी ‘बोरियत’ दूर करती हूं।”
फिर मां बनेंगी?”
यह ईश्वरीय देन पर है। उसे कौन रोक सकता है?”
क्या आप केरेक्टर-आटर्टिस्ट बनने को तैयार हैं?
'बशर्ते वह रोल, वह करेक्टर जानदार और चुनौतोपूर्ण हो।”
इसके बाद कुछ घरेलू बातें शुरू हो गयीं. मैंने कहा, शर्मिला जी, आपकी घरेलू जिंदगी नौकरों .चाकरों पर अधिक निर्भर है या आपकी व्यक्तिगत रुचि पर ?” इस पर उन्होंने मुस्करा कर कहा-“घर मेरा है ! घर में हर बात मेरे इशारे पर होती है। भोजन क्या बनेगा, इसका कार्यक्रम मैं बनाती हूं। घर में पर्दे किस रंग के होंगें, इस का फैसला मैं ही करती हूँ।
बाइ दी वे-आपको कौन से कलर पसन्द हैं?
“हल्के और सोबर ! ”
“और खाना ?”
“एक दम हल्का !”
शर्मिला जी, जरा यह भी बताइये कि आपने अब तक अपने को किस तरह मैन्टेन किया है?”
शर्मिला ने हंस कर कहा--“ब्यूटी और हैल्थ की ओर मैं पूरा ध्यान रखती हूं। मैं समझती हूं हर स्त्री में सहज सौन््दर्य होता है पर उसे बनाये रखना और चमकाये रखना इतना सहज नहीं है। उसके लिए कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। मैं इस बारे में स्टडी” करती रहती हूँ और जो इस मामले में एक्सपर्टस हैं, उनकी भी सलाह लेती रहती हूं। उसी का नतीजा है कि मैं अब खुद ब्यूटी एक्सपर्ट हो गई हूं।”
आप आपने लड़के को क्या बनाना चाहती हैं-क्रिकेट स्टार या फिल्म स्टार?”
शायद वह क्रिकेट स्टार बने क्योंकि उसका झुकाव बाप की ओर है। फिर भी वह क्या बनेगा, आगे का समय ही बतायेगा।” कह कर शमिला टैगोर ने हाथ पर बंधी घड़ी की ओर देखा। मैं समक गया काफी समय ले चुका हूं। मैंने उठते हुए कहा ‘आज आपका काफी समय लिया। फिर कभी इसी तरह इत्मिनान से मिलेंगे।”
शर्मिला मुस्करा उठी और मुझे इस मुस्कराहट में महकते हुए गुलाब की छवि दिखायी पड़ी।