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सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

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By Siddharth Arora 'Sahar'
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सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

मेरे दोस्त सुभाष घई के साथ मेरा पहला ऑफिशियल इंटरव्यू - अली पीटर जॉन

एक आदमी जिसका बचपन बहुत मुश्किलों और तंगियों से गुज़रा था, वह आज अपनी पूरी हिम्मत और जज़्बे के साथ अपनी लेगेसी, अपनी विरासत को सही मुकाम तक पहुँचाने के लिए दृढ़ निश्चयी है। भारतीय सिनेमा की भव्यता, विशालता और मनोरंजन का दूसरा नाम सुभाष घई है। सुभाष घई ख़ुद एक विद्यालय हैं और उनका एक विश्वप्रसिद्ध फिल्मेकिंग स्कूल भी है, व्हिस्टलिंग वुड्स इंटरनेशनल। उनकी फिल्ममेकिंग कंपनी को अक्टूबर में 45 साल कम्पलीट हो चुके हैं और वो अपनी कम्पनी को एक अलग लेवल तक ले जाने के लिए तैयार हैं। मिस्टर शोमैन अच्छे और बुरे हर समय को कबूल करके उसे पीछे छोड़ ज़िन्दगी की स्लेट पर फिर नए सिरे से नई दास्तान लिखने के तमन्नाई हैं। सबसे ख़ुशी की बात तो है कि एक वक़्त लगातार 11 हिट देने वाले सुभाष घई फिर से डायरेक्शन में वापस आने वाले हैं।

मैं सुभाष घई से जिस वक़्त मिला तब वो रेस्पोंसिबल और रिफ्लेक्टिव मूड में थे

45 साल का वक्फा बहुत बड़ा होता है। बल्कि, कुछ महीनों या सालों क्या बहुत सी कम्पनीज़ हफ़्तों में बंद हो गयी हैं यहाँ, फिल्म जगत के ऐसे अनसर्टेन इतिहास में कैसे मुक्ता आर्ट्स (सुभाष घई की फिल्म निर्माण कम्पनी) इतने लम्बे अरसे तक खड़ी रही?

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

ये ऊपर वाले की महर है और इच्छाशक्ति ही जो हर हालात में कड़ी मेहनत करने का जज़्बा बनाये रखती है। हमने जीवन के हर उतार चढ़ाव में अपनी मेहनत से जी नहीं चुराया। मुक्ता आर्ट्स ने हर तरह के दिन देखे, जिसमें अच्छे दिन एक गिफ्ट रहे तो बुरे दिनों को सबक समझ फिर दुबारा, डबल एनर्जी के साथ लड़ना जारी रहा। मुक्ता आर्ट्स की रगों में सिनेमा दौड़ता है और चाहें जो कुछ हो जाए इस कमिटमेंट से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। ये कंपनी अकेले मैं ही नहीं चला रहा हूँ बल्कि बहुत सारे दृढ़ निश्चयी लोग हैं जो मेरी सिनेमा के प्रति दीवानगी से वाकिफ हैं और जानते हैं कि मेरा और मुक्ता आर्ट्स का एक ही प्राइम गोल है, सिनेमा।

आपने एक समय 11 से ज़्यादा हिट्स लगातार दीं, फिर ऐसा क्या हुआ आख़िरी की तीन फिल्मों में कि जो शोमैन का जादू है वो नहीं चला?

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

मैं कोई सुपरमैन नहीं, न ही कोई ऐसा देवता हूँ जिससे कभी कोई ग़लती नहीं होती। मैं हर दूसरे आदमी जैसा भी आम आदमी हूँ बस फ़र्क़ इतना है कि मैं ऐसी फील्ड में हूँ जहाँ मुझे हर कदम पर सावधान होना होता है और हर वक़्त ये बात दिमाग में रखनी होती है कि मैं एक फिल्म बनाने जा रहा हूँ जिसका उद्देश्य करोड़ों लोगों को संतुष्ट करना है। हर वक़्त लोगों की नज़र मुझपर लगी होती है उनकी उम्मीदें मुझसे जुड़ी रहती हैं जिसके कारण मैं दोगुना सावधान हो जाता हूँ जब मैं कोई फिल्म प्लान कर रहा होता हूँ। तबतक सब कुछ ठीक था जब तक मैं सिर्फ फिल्में बनाता था और इधर-उधर किधर क्या हो रहा है ये सब नहीं सोचता था। मैंने चार साल व्हिस्टलिंग वुड्स इंटरनेशनल स्कूल के बारे में प्लान करने और उसे बनाने में लगाए ताकि ये दुनिया के बेस्ट फिल्ममेकिंग स्कूल्स में से एक हो और मैं इसे पूरा करने में कामयाब हुआ। पर मैं नहीं जानता था कि ये कामयाबी किसी मुसीबत बुला लेगी। WWI अच्छा चल रहा था। हमारे पास स्टूडेंट्स को सिखाने के लिए हर तरह की फैसिलिटी मौजूद थी जो फिल्मेकिंग से जुड़े हर क्षेत्र को कवर करती थी, यहाँ तक की कम्युनिकेशन और मिडिया और फैशन डिजाइनिंग भी सिखाई जाती थी।  हमने कुल सत्तर बच्चों से शुरू किया था और एक टाइम ऐसा आया कि हमारे पास पाँच सौ क्या सात सौ से भी ज़्यादा बच्चे बेस्ट फैकल्टी में ट्रैनिंग लेते थे।

फिर ऐसी क्या मुसीबतें थी जिन्होंने WWI के लिए मुश्किलें बढ़ा दीं?

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

ये कहानी हर वो शख्स जानता है जो ये जानता है कि सुभाष घई क्या चीज़ है। WWI जिस ज़मीन पर बनना था दिक्कत वहाँ से शुरु हुई थी। मेरे ड्रीम स्कूल के लिए ये एक ख़तरा था और मैं ऐसी मुसीबत में फंस गया था जिसके बारे में मैंने कभी सोचा तक नहीं था।

लेकिन जिस वक़्त आप सीरियस प्रॉब्लम फेस कर रहे थे और सारी इंडस्ट्री के साथ साथ बहुत से मिडिया हाउस भी आपको सपोर्ट करने से पल्ला झाड़ चुके थे, तब भी आपकी फिल्मों के प्रति दीवानगी ने आपको संभाला था और आपने एक नहीं बल्कि तीन फ़िल्में बनाई जो थीं 'युवराज', ब्लैक एंड वाइट' और कांची और ये सख्त हैरानी की बात थी कि जिस वक़्त मॉस आपकी फिल्मों के प्रति दीवानगी रखती थी, ये  तीनों ही फिल्में बिलकुल फुस्स साबित हुईं। ऐसा क्या ग़लत रहा था जो ये नहीं चलीं?

मैं आपको सच बताऊं, सब कुछ ग़लत रहा था। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो समझता हूँ कि ये फिल्में मैंने जिस वक़्त बनाई उस वक़्त मैं मैं नहीं था, वो समय सही नहीं था। मैं उन दिनों WWI की वजह से बहुत डिस्टर्ब था और आप बेहतर जानते हो कि कोई भी क्रिएटिव काम, भले ही वो कितना टैलेंटेड शख्स कर रहा हो; टेंशन और प्रेशर में बढ़िया नहीं हो सकता। इन तीनों ही फिल्मों के निर्माण के वक़्त मैं वो सुभाष घई नहीं था जो मैं हुआ करता था। मुझे वाकई लगता है कि मुझे उस वक़्त ये फिल्म नहीं बनानी चाहिए थी जिस वक़्त मैं सारा दिन वकीलों, सरकारी अफसरों और फिनांसर्स से घिरा हुआ होता था जो हर वक़्त मेरे दिमाग में WWI से जुड़ी परेशानी से व्यस्त रखते थे। मैं कैसे एक अच्छा शॉट ले सकता हूँ या कोई गाना फिल्मा सकता हूँ या किसी डायलॉग की अच्छी सी लाइन लिख सकता हूँ जब मेरा दिमाग पहले ही किसी और काम में पूरी तरह उलझा हुआ है? मुझे फिल्म बनाते वक़्त इनसब बातों का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था और इस बेख़याली की मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और फिल्म न चलने के कारण मेरी ज़िन्दगी में चलती पहले से WWI की इतनी टेंशन पर अतिरिक्त बर्डन पड़ गयी।

अब लगता है कि WWI के केस से पूरी तरह निकल चुके हैं।

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

हांजी, कोर्ट के WWI पर हालिया फैसले के मुताबिक हमें चैन की सांस मिली है। हम अब आये हैं जहाँ हमारी क्रिएटिविटी और हमारी सांस दोनों लौट आई हैं। अब हम ऐसी मानसिक स्थिति में हैं जहाँ फिर से अच्छा काम करने के लिए तैयार हो सकते हैं, वो काम जिससे हमें दिली मुहब्बत है। अगर आप WWI में जाएँ तो देखेंगे कि हर तरह कोई न कोई एक्टिविटी हो रही है और हर कोई अपने समय को एन्जॉय कर रहा है जो एक्साइटमेन्ट का सिंबल है कि अब वहां सब किस स्टेट ऑफ़ माइंड में है।
वहां जीवन फिर से शुरू हो गया है जैसा कि पहले हुआ करता था और मुझे पूरा विश्वास है कि हम अब नए लक्ष्यों को जीतने के लिए पहुंचेंगे जिनकी कुछ समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हमने WWI में कई नई गतिविधियां शुरू की हैं जो छात्रों और फैकल्टी द्वारा समान रूप से पसंद की जाती हैं, 5वें वेद, सेलिब्रेट सिनेमा और कई मास्टर क्लास जैसी परियोजनाएं जो हमारे पास फिल्म निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों के साथ हैं। संक्षेप में, आप कभी भी दिन के दौरान किसी भी समय WWI को बेकार अवस्था में नहीं देखेंगे जो बात मुझे और मेरी बेटी मेघना को इनकरेज करती है, WWI के अध्यक्ष ने WWI में नए जीवन की सांस लेने के नए तरीकों के बारे में सोचने के लिए सभी प्रोत्साहन दिए हैं।

सुभाष घई, द शोमैन जो फिल्मकार है उसके बारे में बताइये, उनका क्या?

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

अब तक इतना गलत हो रहा था लेकिन आखिरकार अभी सब सुचारु रूप से चल रहा है और मैं भी अब स्वतंत्र रूप से सोचने के स्वतंत्र हुआ हूँ, मैं जल्द ही वापस आ रहा हूँ। मुक्ता आर्ट्स तीन फिल्मों को लॉन्च करेगी। पहली फिल्म मैं खुद द्वारा निर्देशित करूँगा और अन्य दो का निर्देशन अन्य निर्देशकों द्वारा किया जाएगा। फ़िल्मों के अन्य सभी विवरणों पर सावधानीपूर्वक काम किया जा रहा है, लेकिन एक बात निश्चित है, तीनों फ़िल्में पूरे परिवार के लिए शानदार मनोरंजन होंगी। वे मुक्ता आर्ट्स की परंपराओं का पालन करेंगे और जहां भी बदलाव की वास्तविक जरूरत है, वहां बदलेंगे। एक और बात मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि तीनों फिल्मों में कुछ अच्छे कलाकार होंगे और कुछ जिन्होंने पहले से ही मुक्ता आर्ट्स के साथ काम किया है, हमने इन तीन फिल्मों को बनाने के लिए दो सौ करोड़ का बजट रखा है।

आप मुक्ता आर्ट्स के संस्थापक, आप इस कंपनी का भविष्य कैसे देखते हैं जो फिल्म इंडस्ट्री की प्राइड जानी जाती है?

सुभाष घई, क्या वो सुनहरे दिन वापस आयेंगे मिस्टर शोमैन?

मैं हमेशा एक आशावादी व्यक्ति रहा हूं और जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैंने कभी भी असफलता की आशंका नहीं की है और फिल्मों को बनाने के लिए अपने दिल से काम किया है जो मुक्ता आर्ट्स द्वारा बनाई गई फिल्मों से हमेशा लोगों को ख़ुश किया है। अब भी यही भावना रहेगी। राहुल पुरी मुक्ता आर्ट्स के नए प्रबंध निदेशक होंगे और मुक्ता आर्ट्स की बेहतरी के लिए उनके गतिशील नए विचारों के आने के साथ मुझे यकीन है कि हम मुक्ता आर्ट्स में सफलता की नई ऊंचाइयों को मापेंगे। हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए न केवल उम्मीद कर रहे हैं या सिर्फ ही सपने देख रहे हैं, बल्कि आने वाले समय में मुक्ता आर्ट्स के लिए एक उज्ज्वल नए भविष्य का रास्ता बनाने के लिए एक निश्चित लक्ष्य तय कर नई उचाईयों को छूने के तैयारी कर चुके हैं और हम किसी भी सूरत में अब अपने बीती महिमा तक ही सिमित नहीं रहने वाले हैं।

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