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निर्देशक कबीर खान के साथ लिपिका वर्मा की बातचीत के कुछ अंश

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By Lipika Varma
निर्देशक कबीर खान के साथ लिपिका वर्मा की बातचीत के कुछ अंश
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डायरेक्टर कबीर खान का इंटरव्यू

निर्देशक/स्क्रीनप्ले राइटर/सिनेमैटोग्राफर कबीर खान किसी तारीफ के मोहताज नहीं है। कबीर खान ने हालांकि अपना सेल्यूलॉयड करियर डॉक्यूमेंट्री बनाने से शुरु किया था, किन्तु अपनी पहली फिल्म,' काबुल एक्सप्रेस' (२००६) में बनाकर सभी को यह साबित कर दिया की वह बॉलीवुड में सभी लोगों का मनोरंजन करने आये है। फिल्म,'न्यू यॉर्क फिर उसके बाद ' एक था टाइगर' ,'बजरंगी भाईजान 'इत्यादि. अब कबीर वेब सीरीज में डेब्यू कर रहे हैं. अपनी आने वाली वेब सीरीज में भी उन्होंने वॉर का मुद्दा ही उठाया है। जिसका टाइटल है ,' दी फॉरगॉटन आर्मी-आज़ादी के लिए. '

आपकी जर्नी के बारे में कुछ विस्तार से बताएं ?

मैं, दरअसल, दिल्ली से बिलॉन्ग करता हूँ और बतौर डाक्यूमेंट्री फिल्मकार मैंने अपनी जर्नी शुरू की थी। मैं मुंबई केवल एक फिल्म बनाने का सपना लेकर आया था। मेरी डेब्यू फिल्म,' काबूल एक्सप्रेस' रही। इसके बाद जितनी भी फ़िल्में मैंने बनायीं हैं, यह तो मेरे लिए केवल बोनस की तौर पर ही मेरी झोली में आ गिरी हैं। जितनी भी फ़िल्में मैंने बनाई हैं, मैं केवल शुक्रगुजार हूँ, उन फिल्मों का हिस्सा बनकर। मुझे इस बात की भी ख़ुशी है, कि जिस काम को करने में मेरा चाव है, ,मैं उसी काम में लिप्त हूँ। इससे ज्यादा और मैं क्या मांगू ईश्वर से?? फिल्म बनाना मेरा पहला प्यार है। साथ ही कहानियां बोलने का मौका भी मिल रहा है। अतः मुझे कभी भी असुरक्षित महसूस नहीं हुआ है।

आगे कुछ सोचकर कबीर बोले,' मैं कभी भी अपनी फिल्मों का सीक्वल नहीं बनाऊंगा। यदि मुझे फिल्मों का निर्देशन करने नहीं मिला तो में वापस डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाना शुरू कर दूंगा, जहाँ से मैंने अपना फ़िल्मी करियर शुरु किया था। मुझे जितना काम मिला है, मैं उससे अत्यंत संतुष्ट हूँ। फ़िल्में बनाना एन्जॉय करता हूँ और मेरा यह सफर बहुत ही लाभदायक रहा। मैंने केवल एक फिल्म बनाने का सपना देखा था किन्तु ईश्वर ने मुझ अनेकोंनेक फ़िल्में बनाने के मौके दिए है।

आपको अपने परिवार से कितना सपोर्ट मिला ?

मेरा परिवार ने मेरे कैरियर को बढ़ाने में बहुत सहयोग दिया। मेरे पिताश्री रशीदुद्दीन खान (पूर्व राष्ट्रपति ज़खीर हुसैन) के भतीजे हैं. (जवाहर लाला नेहरू) जेएन यू के संस्थापक सदस्य रहे हैं। हमारा पूर्ण माहौल राजनीति से जुड़ा हुआ है। जब हम रात का भोजन साथ में डाइनिंग टेबल पर बैठकर करते हैं, उस समय हम अमूमन करंट अफेयर्स पर चर्चा किया करते हैं। इसी कारण से मेरी हर एक फिल्म में थोड़ा बहुत बैकड्रॉप राजनीति से जुड़े मुद्दे भी होते हैं।

खासकर अपने माता -पिता एवं पत्नी के बारे में कबीर कहते है ,' मेरे माता-पिता का मुझे भरपूर सहयोग रहा है। मेरी पत्नी मिनी माथुर हमेशा से मेरी साउंडिंग बोर्ड रही हैं। साथ ही मेरी कट्टर आलोचक भी हैं। वह मेरी हरेक फिल्म देखती हैं। मेरे पूरे परिवार से जो एक बहुत ही बढ़िया सपोर्ट सिस्टम रहा है मेरे लिए और हमेशा सपोर्ट मिला भी है। बस इसी सपोर्ट की वजह से मुझ जैसे एक रचनात्मक फिल्ममेकर को उड़ान भरने का मौका मिला है।

'जेएनयू' में जो हाल ही में हमला हुआ है, उस पर आप की क्या टिप्पणी है ? यह हमला एक दिल को दर्द देना वाल हमला साबित हुआ है। मैंने उन गलियों में क्रिकेट खेला है। सो मेरा उन गलियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध है। किन्तु जब कुछ गुंडों ने मुँह ढांक के छात्रों को मारा है यह देख दिल टूट सा गया। ऐसा यदि किसी और यूनिवर्सिटी में भी होता तो जाहिर सी बात है हम सभी विचलित होते। क्या इसी समाज में हम रह रहे हैं?

एक खास बात उनकी माताजी से जुड़ी बतलायी ,'  मेरी माताजी जो जेएनयू से बहुत नजदीक से जुडी हैं, उन्होंने जब यह सब टेलीविजन पर देखा तो ,उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला। उनकी आँखे और चेहरा उनके दुःख को बिना कुछ बोले ही अपनी दास्ताँ सुना रहा था. ऐसा मुझे उसी वक़्त महसूस हो गया। ऐसा लग रहा था उनके चेहरे से जैसे कुछ बहुत ख़ास मर सा रहा है। बतौर एक देश हम यह सब कैसे बर्दाश्त कर सकते है??

इन अटैक के बारे में आप का क्या सोचना है ? खासकर भारतीय लोगों पर यह अत्याचार हो रहा है क्या कहना है आपको ?

जब मजहब दिलों से निकल कर सड़कों पर आ जाये तो ऐसा मौहोल बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। जब भी धर्म की चर्चा सड़कों पर होने लगे तो जाहिर सी बात है यह नकारत्मकता ही फैलायेगी और लोगों में मतभेद पैदा करेगी। हम भारत देश के वासी है, जिन्होंने हर धर्म के लोगों के साथ मिल कर सभी त्यौहार मनाये है। बचपन से हमें यह एहसास नहीं हुआ कि यह मुस्लमान है, वह सिख या ईसाई है या वह हिन्दू है। हमने जहाँ दिवाली मनाई है वहीं ईद और क्रिसमस भी मनाया है। भारतवर्ष हर धर्म का मिश्रण है। यह भारतवर्ष की परिभाषा भी है।

आगे अपनी बात की पुष्टि करते हुए कबीर कहते है,' मैं कोई राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हूँ। बतौर एक भारतवासी मुझे बहुत पीड़ा होती है। हमे चुप करके बैठे नहीं रहना चाहिए, अपितु इन मुद्दों पर चर्चा करनी होगी।

आपकी वेब सीरीज,' फॉरगॉटन आर्मी आज़ादी के लिए, युवा पीढ़ी को क्या शिक्षा और उम्मीद दिलाती है ?

हमारी वेब सीरीज में एक संवाद है, जो आज के समय को जताती है -हमारी लड़ाई आज़ादी के लिए है और आज़ादी को कायम रखने के लिए है।' युवा पीढ़ी इस संवाद से न केवल जुड़ेगी अपितु समझेगी भी -उन्हें इस बात का एहसास होगा की कुछ तो गलत हो रहा है। अतः यह सही समय है उन्हें खड़े होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ने का और अधिकारो को पाने का।

इस वेब सीरीज में नए एक्टर्स को लेने की क्या वजह रही ?

देखिये मैं भी चाहता था, कोई बड़े स्टार्स लूं अपनी वेब स्टोरी के लिए, लेकिन अमेज़ॉन वालों ने मुझसे कहा- हमारी कहानी हमारी हीरो होती है। और नए कलाकारों को ही लेना है, क्यूंकि वो अपने साथ कोई बैगेज नहीं लाते है। हमारी कहानी ही किंग है। हालाँकि स्टार्स से बातचीत की थी और वह लोग काम करने के लिए राजी भी हो गए थे किन्तु अमेज़ॉन इस बात के लिए राज़ी नहीं हुआ।

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