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‘एक फ़िल्म निर्माता जो सिर्फ चार साल में बन गया 200 शाॅर्ट फिल्मों का हीरो!’

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By Mayapuri Desk
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‘एक फ़िल्म निर्माता जो सिर्फ चार साल में बन गया 200 शाॅर्ट फिल्मों का हीरो!’

करीब 40 साल पहले, कभी उनके पिताजी फ़िल्म बनाने का ख्वाब देखे थे। 20 साल बाद बेटा पिता के ख्वाबों को पूरा करने मुम्बई आता है और वापस चला जाता है क्योंकि बॉलीवुड का गणित समझ में नहीं आता।

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फिर 16 साल बाद वह कानपुर में अपने व्यवसाय को मजबूती देने के बाद, एक बार फिर बॉलीवुड का रुख करता है और इस बार वह दो फीचर फिल्में बनाकर ही वापस जाता है अपने शहर। ये ज़नाब हैं- निर्माता- अभिनेता रविन्द्र टुटेजा।

शरद राय

'मैं 200 से ज्यादा फिल्मों का मेन लीड कर चुका हूं' रविन्द्र टुटेजा

‘एक फ़िल्म निर्माता जो सिर्फ चार साल में बन गया 200 शाॅर्ट फिल्मों का हीरो!’

“ मैं वापस मुम्बई आया था 2016 में। एक फ़िल्म बनाया ’ब्यूटी विथ ब्रेन’ और दूसरी फ़िल्म बनाया ’अपरचित शक्ति’। पहली फ़िल्म छोटे बजट की थी, छोटे सर्किट और सिंगल थियेटरों में खूब बिजनेस की।

दूसरी फिल्म रही ’अपरचित शक्ति’ जिसमें हमने राजपाल यादव को हीरो बनाया। इसके बाद फिर तीसरी फीचर फिल्म बनकर तैयार है जो रिलीज होने वाली है। इस बीच मेरा एक्टिंग का भी एक ट्रैक शुरू हो गया।

अपनी फीचर फिल्मों में छोटे रोल किया था। इसी के साथ इन दिनों में, शाॅर्ट फिल्मों का दौर आगया और आज मैं 200 से ज्यादा फिल्मों का मेन लीड कर चुका हूं।“

पेश है उनसे खास बातचीत :

राजपाल यादव को हीरो बनाने की कहानी क्या थी ?

मेरे एक मित्र हैं सनी कपूर जी, जो मुझे एक कहानी सुनाए जो फ़िल्म के डायरेक्टर भी हैं, मुझे उनकी कहानी बहुत पसंद आई। एक व्यक्ति जो बहुत कमजोर है लेकिन जब उसके सहन करने की इंतेहा हो जाती है तो वह क्या कर सकता है।

इस थीम पर तैयार कहानी के हीरो के रूप में मुझे राजपाल यादव से अच्छा कोई नहीं लगा। उस वक्त मैं, सुरेन्द्रपाल, इमरान खान, सनी कपूर सब साथ थे।

सबने कहा हीरो के रूप में राजपाल यादव ही करेक्टर को सूट करते हैं और हमने उनको हीरो बना दिया। फ़िल्म बहुत अच्छी बनी।

लेकिन पिछले एक साल मे लॉकबंदी के कारण फिल्मों को प्रॉपर रिलीज नहीं मिल पा रहा है, आप देख ही रहे हैं क्या हो रहा है। इस कारण से मेरी एक और भी फ़िल्म (जिसका हम टाइटल घोषित नहीं किये हैं ) है जो बनकर रुकी पड़ी है।’’

‘एक फ़िल्म निर्माता जो सिर्फ चार साल में बन गया 200 शाॅर्ट फिल्मों का हीरो!’

एक्टिंग का शौक पहले से था या बॉलीवुड में आने के बाद लोगों ने लगा दिया?

“इत्तेफ़ाक़ से ही एक्टिंग की शुरुआत हुई है। मेरी फिल्म की शूटिंग पर एक दिन एक कलाकार नहीं आए थे, निर्देशक ने कहा आप ही कर लो।

डरते डरते कैमरे का सामना किया था। लोग ताली बजाने लगे कि बहुत अच्छा किये हो। एक शॉट में वो सीन ओके हो गया था। इस शॉट के ओके होने से मेरी भी हिम्मत बढ़ी। और फिर, मैं भी एक्टर बन गया।“ हंसते हैं टुटेजा।

सुना है आपने अब तक 1500 से अधिक शाॅर्ट फिल्मों (यू ट्यूब,वेब सीरीज व डक्यूमेंटरीज ) का निर्माण किया है और उनमें 800 से अधिक फिल्मों में एक्टिंग भी किया है?

“यह सही है और इनमें भी मैंने 200 शाॅर्ट- फिल्मों में मेन लीड रोल भी किया है।“ वह मेरी बात पूरी करते हैं। “ पिछला 2 साल शाॅर्ट फिल्मों का ही रहा है।

मैंने देखा यू- ट्यूब मार्केट धड़ल्ले से चल रहा है जहां कोई अपनी मर्ज़ी से काम करके दे सकता है। तो मैंने भी बनाना शुरू कर दिया।

इतना धड़ल्ले से मैंने काम किया कि शाॅर्ट फ़िल्म बनाने वाले मुझे फैक्ट्री कहने लगे हैं।“ वह बात जारी रखते हैं। ’’

1500 फ़िल्में- मतलब 1500 कथानक (आइडियाज़), कम समय मे, नये नये कलाकारों के साथ काम और कम बजट में काम करना यह एक बड़ी चीज है।

ना डिस्ट्रीब्यूटर का चक्कर काटने की ज़रूरत ना किसी स्टार की चमचागिरी करने की ज़रूरत। फ़िल्म डूब भी जाए तो निर्माता को अपना घर बेंचने की नौबत नहीं पड़ेगी।

“वह हंसते हैं- “मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मैं एक जनरल बात कह रहा हूं।“ टुटेजा कानपुर ( उ.प्र.) से आए एक व्यापारी पहले हैं और फिल्मों को देखने का उनका व्यापारिक नज़रिया पहले है।

‘एक फ़िल्म निर्माता जो सिर्फ चार साल में बन गया 200 शाॅर्ट फिल्मों का हीरो!’

जिन फिल्मों में आपने लीड रोल किया है, एक्टर के रूप में वो रोल करके संतुष्ट हैं?

“रोल करते हुए मैंने जाना कि कहानी के पात्र मुख्य होते हैं। एक्टर उनको पेश करता है। दर्शकों की पसंदगी कहानी के अनुसार चलती है।

मैंने हर तरह के रोल किया है और उनको जो व्यूज मिलते हैं उसको देखकर कह सकता हूं कि पसंद सब्जेक्ट और प्रजेंटेशन पर निर्भर करता है।

मेरी छोटी सी छोटी फिल्मों को मिलियन से नीचे व्यूअर्स नहीं होते। किसी को दस मिलियन, किसी को बीस मिलियन और किसी को पचास मिलियन व्यूअर्स हैं।

मेरे एक भोजपुरी एल्बम (त्ज्थ् म्यूजिक) को 2 महीने में 21 मिलियन व्यूज तथा एक शाॅर्ट फ़िल्म ’प्रिया तिवारी अरेस्टेड रेड लाइट’ को सात करोड़ लोग देख चुके हैं।’

बड़े पर्दे की बात करें। बड़े पर्दे के लिए मेकिंग और एकिं्टग की क्या योजना है ?

“बड़ा पर्दा तो बड़ा पर्दा है। सन 1980 में मेरे पिताजी की सोच थी कि वे फ़िल्म बनाएं जब मैं बड़ा हुआ वही सपना पूरा करने बॉलीवुड में आया था और वापस चला गया था।

फिर वापस 2016 में आया उसी सोच के साथ। उनका आशीर्वाद ही है कि महज चार साल में मैं इतना कुछ कर सका हूं। बड़े पर्दे पर काम करने कि तैयारी चल रही है।

समय के झंझावत से बाहर निकल कर बड़ा काम करने का वक्त आ गया है। मैं बड़े पर्दे पर काम करने के लिए तैयार हूं।“

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