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मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश

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By Mayapuri Desk
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मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश

कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में अब तक सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले स्व.पी.लंकेष के बेटे व स्व गौरी लंकेष के भाई इंद्रजीत लंकेष पत्रकार व फिल्म निर्देशक हैं।

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यूँ तो वह क्रिकेटर बनना चाहते थे और राज्य स्तर पर क्रिकेट भी खेलते थे मगर ए दुर्घटना ने उनका पूरा भविष्य ही बदल डाला और वह पत्रकार के साथ निर्देशक बन गए।

शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

फिल्म ‘शकीला’ इंद्रजीत लंकेष के करियर की दसवीं फिल्म है

मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश

इंद्रजीत लंकेश ने ही सबसे पहले दीपिका पादुकोण को अपनी फिल्म ‘ऐष्वर्या’ में अभिनय करने का मौका दिया था।

अब वह अपने करियर की दसवीं फिल्म ‘शकीला’ कोे लेकर चर्चा में हैं हिंदी सहित पाँच भाषाओं में बनी यह फिल्म 25 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई।

प्रस्तुत है इंद्रजीत लंकेश हुई  एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:

सबसे पहले ‘मायापुरी’ के पाठको को अपने संबंध में कुछ बताएं? आप क्रिकेटर बनते-बनते फिल्म निर्देशक कैसे बन गए?

यह बहुत शुरूआती बात है मैंने अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, संत श्रीनाथ के साथ राज्य स्तर पर क्रिकेट खेला है मैं विकेट कीपर व बैटमैन था।
उसके बाद जिस दिन मेरी बहन स्व गौरी लंकेश की शादी थी, उसी दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया और मेरा पैर दो टुकड़े में विभक्त हो गया।
लगभग डेढ़ वर्ष में किसी तरह से ठीक हुआ डेढ वर्ष तक तो मैं बिस्तर पर ही रहा पर अब मैं विकेट कीपिंग नहीं कर सकता था।
विकेटकीपिंग के लिए बार बार उठना व बैठना पड़ता है, मेरे पैर में लोहे की छड़ी है, इसलिए मेरे लिए यह सब करना संभव नहीं है।
इस दुर्घटना से मेरे पिता बहुत ही ज्यादा निराश हुए. उन्होंने कहा कि अब क्रिकेट खेलने की बात भूल जाओ पढ़ाई पूरी करो और फिर स्पोर्ट्स पर लिखना शुरू करो, क्योंकि तुम क्रिकेटर रहे हो. खेल की समझ है।
तब मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की उसके बाद स्पोर्ट्स पत्रकार बन गया, फिर मैंने कन्नड़ भाषा में खेल पत्रिका ‘‘आल राउंडर’’ शुरू की, जो कि बहुत जल्द सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पत्रिका बन गयी।
यह नब्बे के दशक की बात है काॅलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैं हर दिन सुबह के शो में फिल्म देखता था।
फिर अपने पिता के साथ मैंने बतौर सहायक निर्देशक काम किया. फिर वह दिन आया, जब मेरे पिता जी मेरे लिए एक फिल्म बनाने का निर्णय लिया।
जिसका निर्देशन वह मुझसे करवाना चाहते थे कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में मेरे पिता पी लंकेष एक मात्र निर्देशक हैं, जिन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है।
उन्होंने अपने जीवन में चार फिल्में बनायी और यह चारों फिल्में कमर्शियल की बजाय पैरलल सिनेमा वाली फिल्में हैं।
आप जानते हैं कि पैरलल सिनेमा से पैसा नहीं कमाया जा सकता इसलिए वह पत्रकार भी बने, खोजी पत्रकारिता में उन्होने अपना एक नाम स्थापित किया फिर उन्होंने  फिल्में बनाने का निर्णय लिया।
उन्होंने मेेरे निर्देषन में बनने वाली फिल्म की पटकथा लिखी उसके बाद फिल्म निर्माण की तैयारी शुरू हुई, पर बीच में ही हार्ट अटैक से उनका देहांत हो गया।
इस तरह एक्सीडेंटली मैं फिल्म निर्देशक बना मैं हमेषा पेशे से पत्रकार हूँ और शौकिया निर्देशक हूँ लगभग बीस वर्ष में मैंने सिर्फ दस फिल्में ही निर्देशित की हैं।
जबकि दूसरे निर्देशक इससे अधिक फिल्में निर्देशित करते हैंजब मेरे दिमाग में कोेई कहानी ऐसी आती है, जिसे कहना जरुरी लगता है, तभी मैं फिल्म निर्देशित करता हूं.
मैं फिल्म मेकिंग प्रोसेस को इंज्वाॅय करता हूँ मुझे कहानी कहना पसंद है।
मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश
आपको किस बात ने दक्षिण भारत की अभिनेत्री शकीला की बायोपिक फिल्म ‘ शकीला’ निर्देशित करने के लिए उकसाया?
मुझे उनकी कहानी काफी रोचक लगी. मुझे लगा कि इसे पूरे विष्व तक फैलाया जाना चाहिए. मुझे अहसास हुआ कि शकीला की कहानी दर्शक सुनना चाहेगा।
मैंने शकीला के साथ पहले काम किया है बतौर निर्देशक ‘ शकीला ’ मेरे कैरियर की दसवीं फिल्म है, शकीला ने खुद अपनी कहानी लिखी है।
वह एक छोटी सी जगह और छोटी कम्यूनिटी से आती हैं. उसकी माँ ने जबरन उसे फिल्म इंडस्ट्री से जोड़ा. फिर वह केरला गयी और मलयालम सिनेमा की सुपर स्टार बन गयी।
एडल्ट स्टार बन गयी. फिर कुछ ऐसा हुआ कि उसने सब कुछ खो दिया शोहरत, सुपर स्टारडम और कमाया हुआ पैसा भी खो दिया।
वह घर पर बेकार बैठी हुई थी,जब मैंने उसे अपनी एक कन्नड़ फिल्म में चरित्र अभिनेत्री के रूप में अभिनय करने के लिए जोड़ा।
उनके बारे में मुझे मेरे एक सहायक निर्देशक ने ही बताया था उस वक्त शकीला बहुत बुरे दौर से गुजर रही थी, तो उन्हें काम की जरुरत थी और मेरी फिल्म के किरदार में वह एकदम फिट बैठती थी।
ईमानदारी की बात यह है कि मैं उनके बारे में ज्यादा नहीं जानता था. मैंने उनकी फिल्में देखी नहीं थी, आप समझते हैं कि सेट पर निर्देशक कितना व्यस्त रहता है. तो शकीला से मेरी ज्यादा बात नहीं हुई थी।
उसने भी अपने हिस्से का काम पूरा किया और चली गयी उसके बाद मैंने तीन चार फिल्में बनायी फिर मुझे अपनी अन्य फिल्म के लिए शकीला की जरुरत पड़ी।
तब मैं उनसे मिलने के लिए बंगलौर गया, इस फिल्म की शूटिंग के दौरान षकीला से मेरी लंबी बातें हुई.उसने मुझे अपने जीवन की पूरी कहानी सुनायी।
उसने बताया कि कैसे वह छोटी जगह से आकर मलयालम फिल्मों की सुपर स्टार बनी कैसे उसकी फिल्में नेपाली, चाइनीज, जापानीज सहित विश्व की कई भाषाओं में डब करके रिलीज की गयीं।
कैसे उसकी फिल्में एक वर्ष तक सिनेमाघर से नहीं उतरी. इतना ही नहीं ए सेंटर से लेकर डी सेंटर तक हर जगह सिर्फ शकीला ही छायी रहती थी।
आप यकीन नहीं करेंगे, मगर उसने एक वर्ष में सौ फिल्मों में अभिनय किया था हर फिल्म के पोस्टर पर सिर्फ उसका चेहरा होता था।
पर अचानक उसकी चालिस फिल्में डिब्बें में बंद कर दी गयीं शकीला ने इंसानियत के नाते सभी चालिस फिल्मों की साइनिंग रकम भी वापस कर दी।
उसने कुछ इंवेस्टमेंट किया था, वह सारा पैसा डूब गया, उसने अपने परिवार के सदस्यों की काफी मदद की।
बाद में कुछ पैसा उसके परिवार के लोगो ने उसे ऐंठ कर उसे कंगाल बना दिया. और वह सफलता का स्वाद चखने के बाद फिर से सड़क पर आ गयी।
मुझे लगा कि इस कहानी को एक औरत के नजरिए से पूरे विश्व के सामने पेश किया जाना चाहिए फिल्म इंडस्ट्री हो अथवा कोई अन्य वर्क प्लेस हो, जब एक औरत सफलता के आयाम स्थापित करती है,तो पुरूष प्रधान समाज इस बात को बर्दाश्त नहीं करता
कोई भी पुरूष औरत का डोमीनेट करना पसंद नहीं करता मुझे अहसास हुआ कि इस कहानी के साथ हर शख्स फिल्म इंडस्ट्री ने षकीला के साथ जो कुछ व्यवहार किया उसे अथवा उसके परिवार के सदस्यों ने उनके साथ जो व्यवहार किया।
मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश
इन दो में से आपने फिल्म में किसे प्रधानता दी है?
बहुत अच्छा सवाल है. यदि मैं किसी एडल्ट स्टार पर फिल्म बना रहा हंू, तो उसमें एडल्ट सिनेमा की ही भरमार करुंगा लेकिन सही मायनों में यह शकीला नहीं है।
मेरी फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है मैंने अपनी फिल्म में शकीला की पूरी कहानी को पेश किया है, जिसमें उसकी पृष्ठभूमि, किन हालातों में वह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उसके प्र्रयास, उसकी यातनाएं, उसे किन हालातों से गुजरना पड़ा।
इसी के साथ फिल्म में कई रीयल किरदार व रीयल कहानियों को समाहित किया है।
शकीला एडल्ट स्टार रहीं,मगर कहा जाता है कि वह ऐसे दृष्य अपने बाॅडी डबल से करवाती थीं?
जी हाॅ! यह सच है देखिए, जब हम फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखते हैं, तो आपनी मांग नहीं रख सकते उस वक्त तो आपको इंडस्ट्री की ही बात माननी पड़ती है।
इसलिए शुरूआत में शकीला बाॅडी डबल का उपयोग नहीं कर पायी. मगर जैसे ही उसने सफलता पायी और अपनी शर्तें थोपनी षुरू की, वैसे ही उसने बाॅडी डबल का उपयोग करना शुरू किया था।
आपने शकीला के किरदार को निभाने के लिए रिचा चड्ढा को ही क्यों चुना?
जब मैं इस फिल्म की पटकथा लिख रहा था, उस दिन से मैंने तय कर लिया था कि मैं शकीला के किरदार के लिए शकीला जैसी दिखने वाली कलाकार का चयन नहीं करुंगा।
मुझे उसी तरह की शारीरिक बनावट वाली कलाकार की भी तलाश नहीं थी. जबकि मुझे ऐसी अदाकारा की तलाश थी, जो किरदार के साथ न्याय कर सके।
कलाकार का अभिनय ऐसा हो, जो कि परदे पर रीयल कहानी व रीयल किरदार का अहसास दिलाए इसके लिए अति प्रतिभाशाली कलाकार की जरुरत थी।
कलाकार शकीला जैसी दिखती हो, पर उसमें अभिनय प्रतिभा न हो,ऐसी कलाकार मुझे नहीं चाहिए थी।
मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश
रिचा चड्ढा कलाकार के तौर पर कैसी हैं?
वह बहुत ही रियालिस्टिक कलाकार हैं वह कभी भी ओवर द टाॅप नहीं जाती, वह कभी लाउड नहीं होती, वह कभी ओवर एक्टिंग नहीं करती।
उनके अंदर अभिनय के कई लेयर हैं वह सोचने वाली कलाकार हैं, वह अपने किरदार पर अपनी तरफ से भी काफी काम करती हैं।
कलाकार की यह खासियत हर निर्देशक के लिए खुषी की बात होती है. ऐसे कलाकार के साथ सेट पर काम करना आसान होता है।
क्या फिल्म देखने के बाद कोई कलाकार इस पर आपत्ति दर्ज करा सकता है या नहीं?
निर्देशक की हैसियत से मैं अपने दर्शकों से कुछ छिपाने का प्रयास नहीं करता.मेरी राय में दर्शक बुद्धिमान है।
मैं उनकी कल्पना षक्ति पर सवाल नहीं उठाता मैंने सीधे किसी कलाकार का नाम नहीं लिया है मगर इस तरह से उस कलाकार के किरदारों को पेष किया है कि फिल्म देखते समय दर्शक खुद बखुद समझ जाएगा कि किस कलाकार की बात की गयी है।
यह शकीला की वास्तविक कहानी है फिल्मकार के तौर पर मैंने सच कहने से गुरेज नहीं किया है।
कोरोना महामारी की वजह से दर्शक सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने के लिए जाने से डर रहा है और आप उसी वक्त अपनी इस फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज कर रहे हैं क्या यह रिस्क नहीं है?
मैं बहुत ही ज्यादा स्ट्रांग स्टेटमेंट देना चाहता हूं. मेरा दावा है कि फिल्म ‘ शकीला ’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी।
इसी आत्मविश्वास के साथ हम अपनी फिल्म को सिनेमाघर में रिलीज कर रहे हैं यदि दर्शकों ‘ शकीला’ देेखने के लिए सिनेमाघर आ गयी, तो हम कोरोना महामारी के समय दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने के लिए लाने का एक नया ट्रेंड स्थापित करने में सफल रहेंगे।
हमने अपने दर्शकों पर जिस तरह का विश्वास जताया है, उस तरह का विश्वास दर्षकों के प्रति अन्य फिल्मकार नहीं दिखा पा रहे हैं।
मुझे तो सिनेमाघर के अंदर ही फिल्म देखने में मजा आता है यदि शकीला दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर नहीं ला सकती, तो कौन लेकर आएगा?
मेरा दावा है कि फिल्म ‘शकीला’ दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींचकर लाएगी - इंद्रजीत लंकेश
हाॅलीवुड की फिल्में भारत में भारतीय भाषाओं में डब होकर रिलीज हो रही है यह भारतीय सिनेमा के लिए कितना चुनौतीपूर्ण है?
यह चुनौती जरुर है, मगर कई भारतीय फिल्में भी विदेषों में देखी जा रही हैं।
कुछ माह पहले आपने कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स का मसला उठाते हुए 15 कलाकारों के नाम एनसीबी को दिए थे उसके बाद आप विवादों में आ गए?
मैं फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हूं कई लोगों ने मेरे उपर बंदूके चलायीं, कई लोगो ने मुझे अपमानित किया, कई लोगों ने कहा कि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स का सेवन कोई नहीं करता तो मैं चुप रह गया।
जबकि मैंने सेट पर हीरो व हीरोइनों को ड्रग्स लेेते खुद देखा है नई पीढ़ी के ज्यादातर कलाकार ड्रग्स के सहारे ही चल रहे हैं।
इसीलिए मैं खुलकर सामने आया और ड्रग्स लेने वाले 15 कलाकारों के नाम पुलिस कमिश्नर को दिए क्योंकि मैं अपनी आंखों के सामने यह सब होता देख अपनी आँखें बंद नहीं कर सकत।
आप देखिए, अब तो ड्रग्स का व्यापारी स्कूली बच्चों को चाॅकलेट में ड्रग्स मिलाकर परोस रहे हैं आप कल्पना कीजिए यदि छठी या ग्यारवही में पढ़ रहे बच्चों को ड्रग्स की लत लग गयी, तो यह आगे चलकर क्या करेंगे, इनका भविष्य क्या होगा?
इन्हें तो अभी पता ही नहीं कि क्या सही है क्या गलत है वह बच्चे समझते ही नहीं कि जिसका सेवन वह कर रहे हैं, उसके परिणाम क्या हो सकते हैं।
सच कह रहा हॅूं बंगलौर शहर पूरी तरह से ड्रग कैपिटल बन चुुका है स्कूल व काॅलेज के गेट पर ड्रग्स को चाकलेट के रूप में बेचा जा रहा है।
पूरे कर्नाटक व भारत व विष्व तक यह संदेश पहुँचा अभी तक तो सिर्फ दो अभिनेत्रियों की ही गिरफ्तारी हुई है, पर एक न एक दिन ड्रग्स के सेवन व व्यापार में लिप्त सभी लोग गिरफ्तार किए जाएंगे।
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