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‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

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By Mayapuri Desk
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‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

आपका ‘भाबी जी घर पर हैं’ तक का सफर कैसा रहा?

- मेरा सफर बहुत ही इंटरेस्टिंग रहा है अभी तक. मैं भगवान का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ की उन्होंने मेरी जर्नी को इतनी शानदार,इतनी ज़बरदस्त और इतनी मज़ेदार बनायी है. हमलोग एक वेल ऑफ फैमिली से बिलॉन्ग नहीं करते थे, हम एक लोअर मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करते थे. तो हम लोग आर्थिक रूप से हमेशा कमजोर थे. मैं अपने घर पर सारे काम करता था, साथ में पढ़ाई भी करता था.  जब मैं सात या आठ साल का था तब से ही मैंने काम करना शुरू कर दिया था. सानंद वर्मा

मैंने शुरुआत खेती करने से की थी फिर पिता जी के साथ उनके बिज़नेस में सहयोग करने लगा. हालांकि मेरी पैदाइश पटना की है लेकिन जब मैं तीन महीने का था तब हम दिल्ली आ गये थे और वहीँ से मेरी प्राईमरी एजुकेशन हुई है. उसके बाद हम वापिस से परिवार के साथ पटना चले गए थे सेकेंडरी स्कूल और हाई एजुकेशन के लिए.  फिर पढ़ने के बाद हम वापिस दिल्ली आ गये जहाँ मैंने पत्रकारिता शुरू कर दी और बहुत जल्दी मुझे बहुत बड़े-बड़े मौके मिले और कुछ समय बाद फिर पिता जी का निधन हो गया और मैं मुंबई आ गया.

‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

फिर यहाँ आ कर भी मैंने पत्रिकारिता ही की. फिर धीरे-धीरे मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चला गया फिर ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री में चला गया. बहुत ही बड़े एक नेटवर्क के लिए मैंने बहुत समय के लिए काम भी किया और फिर एक दिन मुझे ये फील हुआ की मैं बेसीकली एक एक्टर और गायक हूँ. ब्रॉडकास्ट इन्डस्ट्री में मेरा कोई काम नहीं है क्योंकि मुझे लगता था कि मैं एक्टिंग ही करूँगा अब. मैंने वो शानदार जॉब को छोड़ दिया फिर मैंने बहुत अजीब-अजीब स्ट्रगल किया क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे परिवार को मेरे इस पागलपन को सहना पड़े. इसलिए मेरी जितनी भी सेविंग थी वो मैंने घर खर्ची और डे टू डे लिविंग के लिए जोड़ दी और खुद मैं पागल की तरह पचास-पचास किलोमीटर पैदल चलता था ऑडिशन देने के लिए.मैं  रोज सुबह छः बजे निकलता था घर से और रात को दस बजे तक वापिस आता था. ऐसे ही गज़ब का संघर्ष किया है मैंने।

 आपके घर वालों का कितना साथ था आपके इस स्ट्रगल में?

- घर वालों को पता था की मैं एक जुनूनी आदमी हूँ. जो मैंने सोचा है वो मैं करूँगा ही तो उन्होंने मेरा पूरा साथ दिया लेकिन अगर वो साथ ना भी देते तब भी मैं यही करता तो उन्होंने भी यही सोचा की इसका साथ देना ही सही है और डेफिनेटली मेरे परिवार ने मेरा पूरा साथ दिया.।

‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

 आपको आपका पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?

- ये सब संघर्ष के बाद मुझे एक ऐड फिल्म में कास्ट किया गया. गजराज राव जो हाल ही में बधाई हो में दिखे थे उन्होंने एक ऐड फिल्म में कास्ट किया जो कि एक साउथ इंडियन ऐड फिल्म थी. फिर उस ही दौरान मुझे एक टाटा टी की ऐड फिल्म थी और फिर उसके बाद एक और ऐड फिल्म थी आईडिया की जिसमें अभिषेक बच्चन पेड़ बने हुए हैं और मैं एक वुड कटर बना हुआ था. और मेरा एक डायलॉग बहुत फेमस हुआ कि आप प्रीपेड हो या पोस्टपेड? और इसके साथ बीच-बीच में मुझे सीरियल में कैमियो रोल मिलने लगे लेकिन मेरा सपना था फिल्मों में काम करने का लेकिन उस वक़्त मेरे दिमाग में एक बात थी कि अगर आप टीवी में काम करेंगे तो फिल्मों में काम नहीं मिलेगा और उस दौरान मैं शशांक बाली से मिला जो उस समय थ्प्त् डायरेक्ट करते थे. मैं उनसे मिला, उनको अपनी सीरियल दिखाई और उन्होंने मुझे कहा की मेरे शो में काम कर लो, तुम्हारे लिए कुछ काम है और थ्प्त् की ख़ास बात ये थी की मैं अलग-अलग गेट अप्स में आता था तो मेरा ओरिजिनल लुक बाहर नहीं आया और मुझे अपना ओरिजिनल लुक बचा कर रखना था फिल्मों के लिए. उसके बाद प्रदीप सरकार जो मर्दानी बना रहे थे उन्होंने मुझे कास्ट किया क्योंकि उनके साथ मैंने चार-पांच ऐड फिल्में की थी और लोगों ने मेरा वो रोल पसंद किया।

 भाबी जी घर पर हैं में आपको रोल कैसे मिला?

- FIR बंद होने के बाद शशांक बाली जी को लगा कि अनोखे लाल सक्सेना का जो करैक्टर है ये मैं निभा सकता हूँ तो शशांक जी ने प्रोपोज़ किया और मुझे ये रोल मिल गया और उनकी वजह से मैं सक्सेना बन गया. और अब कहा जाता है कि पूरे वर्ल्ड में ऐसा करैक्टर नहीं हैं. ये बहुत यूनिक, बहुत ही चुनौतीपूर्ण किरदार था और  दूसरा ये भी रीज़न था की उस टाइम पर ही सुशांत सिंह राजपूत को मैंने ‘काई पो चे’ पिक्चर करते हुए देखा था. तो मुझे लगा जब ये भी टीवी से आकर फिल्म कर सकता है तो मैं भी ये टीवी कर सकता हूँ. और मेरी जो वो सोच थी कि टीवी के बाद फिल्म नहीं मिलती वो खत्म हो गयी. इस शो से जो मुझे प्यार मिला उसके लिए तो मैं उम्र भर दर्शकों का आभारी रहूँगा लेकिन एक एक्टर के तौर पर मुझे सिर्फ भाबीजी नहीं करना था, मुझे और भी रोल्स करने थे और इसके लिए मैंने अपने प्रोड्यूसर्स  को भी बता दिया था की टेलीविज़न पर मैं कुछ नहीं करूँगा लेकिन अगर कोई अच्छी वेब सीरीज या फिल्म में रोल मिला तो मैं ज़रूर करूँगा और फिर वापस आ जाऊंगा भाबीजी में. क्योंकि सक्सेना का जो करैक्टर है वो काफी मोल्ड हो सकता है तो रोज़ उसका दिखना या ना दिखना कोई ऐसा ज़रूरी भी नहीं है. तो इसी के चलते मुझे विशाल भारद्वाज जी की फिल्म ‘पटाखा’ में लीड रोल मिला और फिर अनुराग कश्यप के साथ सेक्रेड गेम्स सीजन टू में मुझे बहुत अच्छा काम मिला।

‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

 आप अपने प्रोड्यूसर्स के बारे में क्या कहना चाहते हैं?

- मुझे ऐसा लगता है की हमारे प्रोड्यूसर्स बहुत ही अच्छे लोग हैं, संजय कोहली जी बहुत ही अच्छे  इन्सान हैं और उनको टीवी का कॉमेडी किंग कहा जाता है. क्योंकि उन्होंने आइकोनिक शोज प्रोड्यूस किये है. उनकी और बिनैफर जी की जोड़ी बहुत ही बढ़िया है क्योंकि उनकी जो ट्यूनिंग है आपस में वो बहुत ही अच्छी है. सब कुछ क्लियर है उनके बीच में और इस ही वजह से कोई भी कन्फ्यूज़न नहीं होता है. बड़े से बड़े प्रोडक्शन से रिलेटेड प्रॉब्लम आ जाये या क्रिएटिव से रिलेटेड कोई प्रॉब्लम आ जाये तो संजय सर और बिनैफर जी बहुत ही अच्छे से उसे सॉल्व कर लेते हैं. बहुत ही खूबसूरत जोड़ी है इनकी।

 ‘भाबीजी घर पे हैं’ के बाद आपके ज़िन्दगी में क्या बदलाव आये हैं?

- पहला चेंज तो ये आया है कि भाबी जी शो ने जो मुझे पहचान दी है वो मुझे आज तक किसी भी और काम ने नहीं दिया क्योंकि जो एक पहचान होती है वो मुझे भाबी जी से मिली है. क्योंकि अब मुझे पूरी दुनिया में लोग जानते हैं, फैन क्या होता है ये मुझे अब पता लगा है क्योंकि अब मुझे लोग मिलते हैं, फोटो खिचवाते हैं और आपके काम से जब लोग खुश होते हैं तो एक एक्टर के लिए वो सबसे बड़ी किक होती है. भाबीजी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट रहा है।

‘भाबी जी मेरे करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट  रहा है ’- सानंद वर्मा

 मायापुरी से आपकी कोई जुड़ी हुई यादें?

- मायापुरी मेरी पसंदीदा मैगज़ीन रही है क्योंकि मैं ब्लिट्ज में काम करता था तो ब्लिट्ज के साथ-साथ उनकी एक मैगज़ीन निकलती थी जिसका नाम था सिनेब्लिट्ज़ तो सिनेब्लिट्ज़ के अलावा वहां मुझे मायापुरी दिख जाती थी और मैं मायापुरी का इंतज़ार करता था की मायापुरी आई है या नहीं उधर. मायापुरी एक बहुत ही बढ़िया मैगज़ीन है और एक  अपनेपन का एहसास जुड़ा है इससे. मायापुरी हम सबके दिलों से जुड़ी हुई एक पत्रिका है और हमेशा रहेगी।

 अपने फैंस के लिए कुछ मैसेज?

- मैं अपने दर्शकां से बस यही कहना चाहूंगा कि ज़िन्दगी में फेलियर या सक्सेस इसके बारे में ज़्यादा मत सोचो और हमेशा खुश रहो. क्योंकि आप ज़िन्दगी में जितना खुश रहते हैं, आप उतने ही सक्सेसफुल है और जितना आप दुखी रहते हैं, परेशान होते हैं और दूसरों को परेशान करते हैं तो आप उतने ही फेलियर है. आप पैसे, गाड़ी और बाकी चीज़ों से अपने सक्सेस को मत जाँचिये. खुश रहिये चाहे आप मायापुरी पढ़ कर खुश रहिये या आप भाबी जी घर पे हैं देख कर खुश रहिये या बिना किसी कारण के खुश रहिये जैसे  मैं रहता हूँ, क्योंकि मेरा नाम ही है सानंद जिसका मतलब होता है हैप्पी तो बस यही मैसेज है कि हमेशा खुश रहिये।

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