दिल्ली के रहने वाले शाहाब अली एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं पर इनका जज़्बा, इनकी कोशिशें और कभी न हार मानने वाली आदत इन्हें असाधारण बनाती है। शाहाब कई थिएटर्स और प्ले करने के बाद फैमिलीमैन 2 जैसी सुपरहिट सीरीज़ में भी काम कर चुके हैं और 30 सितम्बर से इनकी लेटेस्ट वेब सीरीज़ एक थी बेगम 2 एमएक्सप्लेयर पर स्ट्रीम हो रही है। शाहाब से हुई हमारी मज़ेदार बातचीत के कुछ अंश आपके सामने पेश हैं – सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
हेलो शाहाब, क्या आपको बचपन से एक्टिंग का शौक था?
जी नहीं, बचपन में शौक तो छोड़िए मैंने 12th स्टैण्डर्ड से पहले फिल्म्स ही नहीं देखी थीं। हमारे घर में फिल्म्स पोस्टर्स, मैगज़ीन्स, टेलीविज़न आदि अच्छा नहीं माना जाता था। बल्कि इसे गुनाह माना जाता था। हाँ पर मेरे दोस्तों यारों के यहाँ, कई बार कुछ फिल्म्स कुछ सीन्स देख लिया करता था। बाकि इसके अलावा न मेरा कोई इंटरेस्ट था न कोई स्कोप था। बल्कि मैं इंट्रोवर्ट, थोड़ा शाय सा था। फिर कॉलेज जाने के बाद ऐसा हुआ कि एक साल मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में बिताया, वहाँ मैंने स्ट्रीट साइड प्लेज़ होते थे और वहाँ किसी ऑडिशन की ज़रुरत नहीं थी। तो मुझे ज़रा राहत की बात लगती थी, फिर वो नुक्कड़ नाटक करते वक़्त ऑडियंस की तरफ से हौसलाअफज़ाई होने लगी, लोगों को मेरे एक्ट्स अच्छे लगने लगे। जबकि मैं इतनी समझ नहीं रखता था, मुझे जो मेरे सीनियर्स कहते थे, डायरेक्ट करते थे वो मैं करने लगता था।
धीरे धीरे मैं कॉलेज की दूसरी एक्टिविटीज़ में भी शामिल होने लगा, सिंगिंग की, एक्टिंग की, लेकिन फिर कुछ ऐसी समस्याएं आने लगीं कि लगा एक्टिंग नहीं करनी चाहिए, पहले फैमिली देखनी ज़रूरी है।
लेकिन कुछ ही समय बाद मैं फिर एक्टिंग, वो थिएटर, वो फील ऑफ एक्सप्रेशन मिस करने लग गया। तब मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में अप्लाई किया क्योंकि और कोई प्राइवेट एक्टिंग स्कूलिंग मैं तब अफोर्ड नहीं कर सकता था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए भी मैंने बड़े जुगाड़ से काम किया। (हँसते हुए) आजतक किसी को बताया नहीं है पर वहाँ कुछ सीनियर्स के, जिनके अंडर आपने थिएटर किया हो, 3 रेकोमेंडेशन लाने होते थे। अब मैं सच बताऊं तो तबतक मैंने थिएटर किया ही नहीं था। मैं तो नुक्कड़ नाटक ही करता था। तो मैंने अपने कॉलेज के कुछ टीचर्स को कुछ सीनियर्स को पटाया और और उनसे लैटर लिया। लेकिन जब एग्जामिनर के सामने वो लैटर रखे तो वो पहचान ही नहीं पाए कि ये कौन है। फिर भी मैंने उन्हें समझा दिया कि ये बहुत बड़े एक्टर्स हैं।
ये 2011 की बात है, तब मैं आख़िरी राउंड तक चला गया था और वहाँ पहुँचकर सलेक्ट न हो सका। पर मैं यही सोचकर गया था कि मेरे पास खोने के लिए क्या है! नेक्स्ट इयर मैंने फिर अप्लाई किया और इस बार मेरा एडमिशन हो गया। यहाँ रहकर मैंने बहुत बहुत कुछ सीखा। फिर एनएसडी की सबसे अच्छी बात ये थी कि बाकी जगह फ़ीस लगती थी, पर यहाँ वजीफा मिलता था तो कोई दिक्कत नहीं होती थी।
तो आपकी फैमिली की तरफ से क्या रिएक्शन आता था?
फैमिली में फादर तो जैसा मैंने बताया ही, इन सब कामों के सख्त खिलाफ थे जो जब मैं कॉलेज में नाटक वगरह करता था तब घर पर बताता ही नहीं था। लेकिन मेरी माँ ज़रा लिबरल रही हैं मेरे लिए, बहुत सपोर्ट किया उन्होंने। फिर मेरे पिता की डेथ हो गयी तो परिवार की सारी रेस्पोंसिबिलिटी मुझपर आ गयी पर माँ की तरफ से मुझे हमेशा सपोर्ट मिला। हालाँकि उनको भी डर था कि मुंबई में इतने लोग जाते हैं, इस लाइन में क्या कैरियर बनेगा पर मैं सिर्फ इतना चाहता था कि मैं ट्राई तो करूँ। मैं कोशिश ही नहीं करूँगा तो कैसे बात बनेगी?
फिर आपकी फ्लाइट तक मुंबई कैसे पहुँची?
मैं कहीं न कहीं बैक ऑफ द माइंड ये सोच के चलता था कि मुझे मुंबई में कैरियर तो है, वहाँ जाकर स्ट्रगल करना मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था। लेकिन एनएसडी में मैंने सीखा बहुत कुछ, जैसा मैंने पहले ही बताया, मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था इसलिए मैंने दिल लगा के वहाँ जो सीनियर्स बताते गए, मैं सीखता गया। तब एनएसडी पासआउट होने से 4 महीने पहले ही ज़म्बूरा में काम मिल गया। यहाँ ऑडिशन आया और मैं सलेक्ट हो गया।
इसके बाद मुम्बई के एक शो मुग़ल-ए-आज़म में सलीम के रोल के लिए मुझे ऑडिशन के लिए बुलाया गया और किस्मत से मैं उसमें भी सलेक्ट हो गया। इस वक़्त भी मैं मुंबई में सेटल होने की नहीं सोच सकता था, मैं मुम्बई और दिल्ली दोनों जगह एक साथ काम कर रहा था। इसी दौरान मैंने अपनी घर की जिम्मेदारियां भी संभाल लीं। फिर मुझे फैमिलीमैन 2 के ऑडिशन में जाने का मौका मिला, कर्टसी मुकेश छाबड़ा कास्टिंग कम्पनी, मुझे ये रोल मिल गया और मैं मुम्बई अब फाइनली सैटल हो गया।
आपकी जर्नी बहुत इंटरेस्टिंग है शाहाब, अब मुझे आप ‘एक थी बेगम 2’ में अपने करैक्टर के बारे में बताइए, कि ये किरदार आपसे कितना अलग है और आपको इसके लिए क्या-क्या तैयारियाँ करनी पड़ीं?
मुझसे तो ये किरदार कम्पलीटली डिफेरेंट है, (हँसते हुए) सबसे बड़ी बात मैं कोई गैंग्सस्टर नहीं हूँ। ऑन सीरियस नोट, सबसे पहली बात कि ये एक अलग टाइम, अलग एरा की कहानी है, अस्सी-नब्बे के दशक का गैंग्सस्टर है शकील अंसारी (पात्र का नाम)। लेकिन बाकी गैंग्सस्टर्स की तरह शकील लाउड नहीं है, ये करैक्टर बहुत शांत और दिलचस्प है।
फिर इसको लेकर तैयारियों की बात करूँ तो शुरु में बहुत मेहनत करनी पड़ी। ये करैक्टर ज़रा मर्दों वाला था। शांत गंभीर और टू द पॉइंट बोलने वाले शकील की तैयारी के लिए डायरेक्टर के विज़न को समझना बहुत ज़रूरी था। फिर सबसे बड़ी मुसीबत थी कि शकील स्मोकिंग करता था और मैंने कभी सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाया था। तो ऐसी बहुत सी चीज़ें थीं जो करनी पड़ीं।
वीमेन सेंट्रिक सीरीज़ में कहीं आपको अपने करैक्टर के लिए इनसिक्यूरिटी तो फील नहीं हुई?
मैं सच बताऊं तो मैं ऐसी और बहुत सी फिल्मों में, सीरीज़ में काम करना चाहूँगा जिसमें वीमेन स्ट्रोंग करैक्टर्स हैं। मैंने एक लम्बे अरसे से देखा है कि ख़ासकर अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्मों में तो सारी मेनिनिस्म के इर्द गिर्द ही होती हैं। तो इनसिक्योर होने का तो कोई सवाल ही नहीं, बल्कि मुझे ख़ुशी हुई थी इस स्क्रिप्ट को पढ़कर कि मैं एक ऐसी सीरीज़ में काम कर रहा हूँ जिसमें वीमेन प्रोटाग्निस्ट हैं, कि ऐसे प्रोजेक्ट्स पर अब काम होने लगा है। ऐसे और भी शोज़ बनने चाहिए।
क्या आप हमारे रीडर्स को इस वेब सीरीज़, आपके किरदार शकील अंसारी और सोसाइटी से जुडी किसी बात के बारे में कोई मैसेज देना चाहेंगे?
देखिए सबसे बड़ी बात तो इस शो की ये है कि ये अंडरवर्ल्ड पर बेस्ड है और अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्म्स, सीरीज़ दर्शकों को कुछ कुछ अट्रेक्ट भी करती हैं। दूसरी बात मेरे करैक्टर कि बताऊं तो ये जानिये कि डॉन और माफिया और ड्रग लार्ड तो आपने बहुत देखे होंगे लेकिन ऐसा यूनीक करैक्टर शायद आपने नहीं देखा होगा। बाकी मैं ये बात और एड करना चाहूँगा कि अपने बच्चों को आर्ट से दूर न रखें, इन्फक्ट सिद्धार्थ मैंने अभी घर में बहुत से चेंजेस आए हैं, मेरी बहन को पेंटिंग का बहुत शौक है। वो एक स्कूल में आर्ट टीचर हैं, मेरी मदर भी अब आर्ट को लेकर खुला समर्थन देती हैं सो, चेंजेस लाने पड़ते हैं, मुझे प्राउड है कि मैं ऐसा कर सका। रीडर्स से भी गुज़ारिश है कि अपने बच्चों को उनकी फेवरेट आर्ट चुनने का मौका दें, उन्हें रोके नहीं।
बहुत बहुत अच्छा लग रहा है आपसे बात करके शाहाब, अब आप आख़िरी बात बस ये बताइए कि मायापुरी मैगज़ीन के बारे में आपने पहली बार कब सुना था और क्या तब आप इसे पढ़ पाए थे?
फर्स्ट ऑफ आल थैंक यू सो मच सिद्धार्थ इस इंटरव्यू के लिए, मायापुरी मैगज़ीन मैंने चाइल्डहुड में ही न्यूज़पेपर शॉप्स पर देखी थी। तब ऑब्वियसली पढ़ तो नहीं सकता था लेकिन मैंने तबसे ही ये मैगज़ीन देखी थी, फिर मैं दिल्ली का ही रहने वाला हूँ सो, मायापुरी से तो बहुत पुराना याराना है (हँसते हुए)
बहुत बहुत शुक्रिया शाहाब, मैं आशा करता हूँ कि ये वेब सीरीज़ तो दर्शकों को पसंद आये ही, साथ साथ इसमें आपका करैक्टर भी सुपरहिट साबित हो।
देखिए एक थी बेगम 2 30 सितम्बर से सिर्फ एमएक्स प्लेयर पर बिल्कुल फ्री