एक्शन प्रेमियों के लिए विद्युत् जामवाल किसी परिचय के मोहताज नहीं है। विद्युत् की फिज़ीक, उनका स्टाइल और उनके एक्शन की बीते किसी भी एक्शन स्टार से कोई तुलना नहीं है। विद्युत् जामवाल जम्मू में एक आर्मी ऑफिसर की फैमिली में जन्में ज़रूर हैं पर बचपन से ही उन्होंने देश-विदेश में बिना रुके भ्रमण किया है। अपने नाम की तरह ही वह बिजली की तरह कभी यहाँ तो कभी वहाँ घूमते रहे हैं। तमिल व तेलुगु फिल्मों में नेगेटिव किरदार से अपना फिल्मी सफ़र शुरु करने वाले विद्युत जामवाल 15 अक्टूबर को फिल्म ‘सनक’ में लीड रोल करते नज़र आने वाले हैं। अपने नाम ‘विद्युत’ को पूरी तरह से सही साबित करते विद्युत जामवाल भारत के बेस्ट एक्शन हीरो माने जाते हैं।
इसी फिल्म रिलीज़ के शुभ अवसर पर हमारी उनसे कुछ बात-चीत हुई है, पेश है उसका मुख्य अंश – सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’
विद्युत सबसे पहले मायापुरी मैगज़ीन के इस टेलीफोनिक इंटरव्यू में आपका बहुत बहुत स्वागत है। मशहूर फैशन डिज़ाइनर नंदिता महतानी संग इंगेजमेंट करने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
तो विद्युत्, इससे पहले कि मैं आपसे आपकी अपकमिंग फिल्म ‘सनक’ के बारे में कोई सवाल पूछूं, मैं आपकी अब तक की जर्नी के बारे में जानना चाहूँगा, कैसा रहा आपका अबतक का सफ़र?
जर्नी अच्छी रही, बहुत बढ़िया रही, मैं बचपन से ही मार्शल आर्ट्स में इंटरेस्ट रखता था। मुझे लगता है हर इंडिया में हर कोई अपने बच्चे को मार्शल आर्ट्स सिखाता है, हर कोई म्यूजिक सिखाता ही है, बस बाकी सब एक एज में आकर छोड़ देते हैं, मैंने छोड़ा नहीं। बचपन से मुझे इसमें मज़ा आता था। एक सनक थी मुझे शुरु से ही, और मुझे लगता है कि सनक कोई नेगेटिव वर्ड नहीं है, सनक अगर सही तरफ है तो ये होनी चाहिए, और मुझमें ये सनक शुरु से थी क्योंकि एक आर्मी ऑफिसर का बेटा हूँ, तो देश का हर कोना देखा हुआ है, (हँसते हुए) ऐसे ऐसे कल्चर में रहे हैं, ऐसे ऐसे शहरों में रहे हैं कि क्या बताएं, मुम्बई के दोस्तों को बताता हूँ तो उन्होंने नाम भी नहीं सुना होता।
फिल्म सनक क्या हॉलीवुड फिल्म ‘जॉन क्यू’ पर बेस्ड है? क्योंकि ट्रेलर देख एक हॉस्पिटल के अलावा ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता है!
आपने सही कहा, हॉस्पिटल के सिवा इसमें जॉन क्यू से कोई सिमिलेरिटी नहीं है। इस तरह तो ये फिल्म ख़ुदा गवाह से भी इंस्पायर्ड हो सकती है। ऐसा कुछ नहीं है, फिल्म को हमने हर तरह से ओरिजिनल रखने की कोशिश की है।
बाकी एक्शन फिल्म्स के मुकाबले सनक में काम करना कितना अलग रहा?
बहुत बहुत अलग रहा, सिद्धार्थ मैं आपको बताऊं कि मैं कोशिश यही करता हूँ कि एक्शन को लेकर कोरियोग्राफी मेरी ही हो, एक्शन डायरेक्टर ज़रूर होता है, उसके साथ मिलकर हम सबसे पहले यही डिस्कस यही करते हैं कि पिछली फिल्मों से इस बार अलग एक्शन कैसे करना है? मैं इसी फिल्म में एक वाकया बताता हूँ। एरोबिक्स के वक़्त मैं बैठा यही बात कर रहा था कि वहीं बॉल पर बैठे-बैठे ही ये आईडिया आया कि हम इस तरह से उस पर्टिकुलर सीन को डायरेक्ट कर सकते हैं, सो हमने किया और मिलके वहीं वो सीन कोरोग्राफ कर लिया। फिर अबतक मैं कमांडो, आर्मी ऑफिसर्स के रोल करता आ रहा था, इसबार मैं परफेक्ट मिक्समार्शल आर्टिस्ट बना हूँ। इसलिए अबतक तो क्लियर था कि कोई दिखा उसको धायं से गोली मारी, और काम हो गया। यहाँ हैंड टू हैंड कॉम्बैट है, लड़ाई तो हम बचपन में भी बहुत करते थे, उस वक़्त क्या होता था? जो हाथ में आया फेंक के मार देते थे, ईंट हो पत्थर हो कुर्सी हो, इसमें भी वही किया है। आर्गेनिक एक्शन है इस बार तो बहुत मज़ा आया करने में और बहुत कुछ नया है।
इतने सारे आर्मी ऑफिसर्स के करैक्टर्स प्ले करने के दौरान, आपने कभी अपनी आर्मी ज्वाइन करने का नहीं सोचा?
हाहाहा, तीन जेनेरेशन्स से हमारे घर में आर्मी ऑफिसर्स हैं। मेरे फादर, उनके फादर और उनके फादर, सब आर्मी ऑफिसर रहे हैं। सो अबकी मैंने सोचा कि क्यों न लोगों को दिखाएं कि कमांडोज़ असल में होते कैसे हैं। क्यों, ज़रा देश को भी तो पता लगना चाहिए न कि हमारे कमांडोज़ किस तरह काम करते हैं, किस तरह एक्शन करते हैं।
ये बहुत अच्छी बात कही आपने विद्युत्, जिस तरह आपने बताया कि आपको बचपन से ही मार्शल आर्ट्स का शौक था, उसी तरह आपको कब लगा कि आप मॉडलिंग और एक्टिंग कर सकते हैं?
देखो सिद्धार्थ, एक टाइम जब आप अच्छे से कुछ सीख लेते हो तब समझ आता है कि ये तो दुनिया के सामने दिखाना चाहिए। इसलिए मैंने साउथ सिनेमा में, हिन्दी सिनेमा में, जहाँ भी अच्छा एक्शन रोल मिला, तो मैंने कर लिया, नेगेटिव है या पॉजिटिव, ये नहीं देखा बस कर लिया।
आपके साउथ के नेगेटिव करैक्टर्स और कमांडोज़ में आपका पहला प्रोटागोनिस्ट ब्रेक, दोनों के बीच में क्या फ़र्क रहा?
नेगेटिव रोल्स करने में मुझे कोई प्रोब्लम नहीं थी बस तब मेरे सीन्स कट जाते थे। कुछ चीज़ों की लिबर्टी भी नहीं रहती थी और मुझे एक के बाद एक, मतलब इतने ज़्यादा विलेन के रोल्स आने लगे कि संभालना मुश्किल हो गया। फिर मैं मना करता गया, मना करने लगा। फिर आख़िरकार कमांडो का रोल ऑफर हुआ और फिर तो आप देख ही रहे हैं, लेकिन मैं एक्शन करते हुए भी कोशिश करता हूँ कि रिपीट न करूँ।
विद्युत आपसे बात हो रही हो और फिज़िक की, डाइट की बात न हो तो बात अधूरी है, आप बताइए कि एक हेल्दी फिज़िक के लिए कैसी डाइट ज़रूरी है?
देखो यार सिद्धार्थ आजकल हेल्दी के तो मायने ही बदल गये हैं। आजकल बहुत से लोग पतले होने के लिए बस डाइट करने में लगे हुए हैं। कुछ लड़कियों को तो मैं ख़ुद मना करता हूँ कि तुम पतली मत हो यार तुम्हारे चेहरे की रौनक चली जायेगी। देखो फर्स्ट ऑफ़ आल, हमें ये पता होना चाहिए कि हमारी बॉडी कैसी है और उसपर क्या सूट करता है क्या नहीं करता है। अपनी बॉडी को पहचानें, न कि लोग सिर्फ वो फॉलो करने लगें जो विद्युत जामवाल करता है। किसी को पतला होना है वो डाइट करे, किसी को मसल्स बनानी हैं, वो प्रोटीन डाइट ले, लेकिन कुछ खाने पीने का मन करता है तो वो कर ले, न कि मन ही मन सोचता रहे और खाए न, मैं ये नहीं कहता कि दस रसगुल्ले खा लो, लेकिन अगर आपको रसगुल्ले खाने से ख़ुशी मिलती है, तो अपनी ख़ुशी मत मारो। हेल्दी रहने का पहला फंडा ख़ुश रहना भी है।
क्या बात कही आपने, अच्छा ज़रा फिल्म सनक की क्रू के साथ काम करना कैसा रहा? और, साउथ इंडस्ट्री में काम करने और बॉलीवुड में काम करने में, क्या बेसिक फ़र्क है?
कोई फ़र्क नहीं है भाई, यहाँ भी आलसी लोग होते हैं, वहाँ भी आलसी लोग होते हैं (हँसते हुए) यहाँ भी टैलेंट की कमी नहीं है, वहाँ भी टैलेंट की कमी नहीं है। वहाँ भी एक्स्ट्राआर्डिनरी कुछ न कुछ बनता रहता है और यहाँ भी, अरे लोग तो वही हैं न जो यहाँ या वहाँ काम कर रहे होते हैं। कोई ख़ास फ़र्क नहीं है।
सनक की कास्ट के साथ काम करने में बहुत मज़ा आया। रुकमनी मैत्रा बंगाल की जानी-मानी एक्ट्रेस है, प्रोफेशनलिस्म अब हर जगह सेम ही होता है सो उनके साथ काम करना बहुत अच्छा रहा। कनिष्क (डायरेक्टर) बहुत टाइम से मेहनत कर रहा है, बहुत अच्छा बहुत हार्ड वर्किंग पर्सन है। उसके साथ काम करना एन्जॉय करने जैसा होता है सो ओवरआल बहुत अच्छा लगा सबके ही साथ।
आपसे बात करने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा है विद्युत, पर समय की सीमा को समझते हुए मैं बस आपसे आखिरी सवाल लेता हूँ, मायापुरी मैगज़ीन के साथ कोई एक्सपीरियंस शेयर करना चाहेंगे?
बहुत बहुत पढ़ी है, मायापुरी मैगज़ीन तो मैं बचपन से देख रहा हूँ। पूरे भारत में फिरा हूँ भाई, मायापुरी मैगज़ीन तो बहुत बड़ी मैगज़ीन है, मैंने तो ऐसी ऐसी डिस्ट्रिक्ट लेवल की मैगज़ीन भी पढ़ी और जानी हैं जिनका अब किसी ने नाम भी नहीं सुना होगा। मायापुरी मैगज़ीन तो इन सब हिन्दी मैगज़ीन्स में वही दर्जा रखती है जैसे फिल्मों में अमिताभ बच्चन रखते हैं।
हमें समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया विद्युत, मैं आशा करता हूँ कि आपकी फिल्म दर्शकों को बहुत पसंद आए