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लिस्नर्स को आप जो अच्छा सुनायेंगे तो वो सुनना पसंद करेगा ही करेगा- मनन भारद्वाज

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By Siddharth Arora 'Sahar'
लिस्नर्स को आप जो अच्छा सुनायेंगे तो वो सुनना पसंद करेगा ही करेगा- मनन भारद्वाज
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नमस्कार मनन, मायापुरी मैगज़ीन इंटरव्यू में आपका स्वागत है, सबसे पहले मनन हमें यह बताइए कि बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री में आपका आना कैसे हुआ और संगीत का शौक आपको कैसे लगा?

लिस्नर्स को आप जो अच्छा सुनायेंगे तो वो सुनना पसंद करेगा ही करेगा- मनन भारद्वाज

हेलो सिद्धार्थ, जैसे हर बच्चे का अपना सपना होता है कि उसे पायलट बनना है या उसे एक्टर बनना है या डॉक्टर बनना है, ऐसे ही शायद फोर्थ स्टैण्डर्ड से ही मेरा सपना था कि मैं कम्पोज़र बनूँ। लेकिन मेरी फैमिली में सब सिविल सर्विसेज़ वाले और हाइली एजुकेटेड मेम्बर्स हैं, उन्होंने शुरुआत में तो मना ही किया, कि इसमें फ्यूचर नहीं है या फ्यूचर है भी तो स्टेबल नहीं है। पर जब उन्होंने समझा कि मेरा मन म्यूजिक में ही लगता है तो उन्होंने समझा और ज़रुरत पड़ने पर सपोर्ट भी किया। सोचिए स्कूल टाइम में कोर्स बुक में जो पोएट्री होती थी मैं उसी को कम्पोज़ कर दिया करता था।

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फिर इंडस्ट्री में आना ऐसे हुआ कि मैं ए आर रहमान को अपना आइडल मानता हूँ, जहाँ तक कोशिश हुई उनके ही नक़्शे-कदम पर चला और म्यूजिक इंडस्ट्री में हाथ पाँव मारने से पहले प्रॉपर पढ़ाई की, मुंबई से ट्रेनिंग ली। साउंड डिजाइनिंग, कम्पोजिंग आदि हर म्यूजिक से जुड़ी हर बारीकी को पहले समझा, फिर वापस गुड़गाँव आ गया। फिर मैं हमेशा से चाहता था कि मुझे ‘टी-सीरीज़’ के साथ काम करने का मौका मिले, पर मैंने स्टूडियो स्टूडियो भटकने से बेहतर यहीं, गुड़गाँव में रहकर अपना म्यूजिक बनाया और यूट्यूब पर या जो अवेलेबल प्लेटफोर्म दिखा उसपर अपलोड करना शुरु किया एंड फोर्चुनेटली मुझे टी-सीरीज़ से ही मुझे मेरे पहले गाने का ऑफर मिला।

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ए.आर.रहमान के अलावा आप किनको सुनते थे? किसे मानते थे?

जी मेरे तीन आइडल रहे हैं, रहमान साहब के अलावा जगजीत सिंह जी और उस्ताद नुसरत फतेह अली खान साहब को मैं बहुत मानता हूँ। मुझे लगता है कि मैंने अपने आइडल सही चुन लिए थे। फिर मुझे ये लगता है कि ख़ुद को मानना भी बहुत ज़रूरी है। मैं ख़ुद के म्यूजिक पर, जो अन्दर से आता है, उसपर बहुत बिलीव करता हूँ। मैं ख़ुद अपना का आइडल हूँ। मुझे लगता है कि सही दिशा में मेहनत करनी ज़रूरी है।

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आपने 90s का म्यूजिक तो ख़ूब सुना होगा?

हाँ, बिल्कुल, उस वक़्त बप्पी दा के गाने, अनु मलिक के, नदीम श्रवण आदि के गाने मेलोडियस होते थे, सुने भी बहुत थे पर जब रोज़ा (1992) आई न, मैं फैन हो गया। मुझे गूज़ बम्प्स होते थे उसके गाने सुनकर। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि मुझे यही करना है।

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उस वक़्त और आज के समय में म्यूजिक में क्या फ़र्क आया है?

देखिए मैं इतना बड़ा तो नहीं हुआ कि किसी संगीतकार पर कमेंट कर करूँ लेकिन बेसिक फ़र्क जो मुझे लगता है कि श्रोताओं को आप जो सुनायेंगे वो वही सुनने लगेंगे। हाँ तब ये कम था, आज नोटीफिकेशन्स और मोबाइल एप्स के टाइम में ये चीज़ ज़्यादा हो गयी है। पर तब भी, आपका गाना अगर अच्छा है तो आपको वो सुनाना तो पड़ता ही था। उस समय भीड़ कम थी, म्यूजिक बनाने में टाइम दिया जाता था। आज की डेट में डिमांड ज़्यादा है इसलिए जल्दी-जल्दी काम निपटाना पड़ता है। लेकिन मैं अपनी बताऊं तो ‘शिद्दत’ की एल्बम के लिए मुझे चार गाने मिले थे, मैंने इन चार गानों के लिए डेढ़ साल का समय लिया है। मैंने पूरा प्रॉपर टाइम लिया है। फिर मुझे लगता है कि हम म्यूजिक कहाँ कम्पोज़ कर रहे हैं इसका बहुत फ़र्क पड़ता है, मैं मुंबई में रहकर यही म्यूजिक बनाता तो वो अलग बनता, वही मैंने अपनी मिट्टी से जुड़कर बनाया है तो अलग बात आई है। मेरे दोस्त ज़ुबीन भाई (ज़ुबीन नोटियाल) पहाड़ों के हैं, वह जब देहरादून से गाते हैं तो वो अलग ही रंग आता है।

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क्या आपको लगता है आज के म्यूजिक, गायकी पर हावी हो रहा है?

मुझे ऐसा लगता है कि इस चीज़ के लिए हम संगीतकार भी ज़िम्मेदार हैं। उस दौर में टेक्नीकली उतने साउंड नहीं होते थे इसलिए वोकल बेस्ड सोंग्स ही बनते थे। लेकिन अब जहाँ ज़रुरत होती है वहाँ तो म्यूजिक हावी हो ही जाता है। पर ऐसा हर गाने में नहीं होना चाहिए, हमें समझना चाहिए कि किस गाने में म्यूजिक हावी करने की ज़रुरत है किसमें नहीं। बहुत से लोग कहते हैं कि यूथ की ऐसी डिमांड है पर मेरा मानना है कि यूथ बिचारा बहुत सीधा है, जो अप सुनाओगे वो सुन लेगा। ये सबसे हल्का बहाना है। उनको जो परोसे वो एक्सेप्ट कर लेगा। आजकल रिक्रिएशन का दौर चल रहा है, मैंने ‘शिद्दत’ में उस्ताद नुसरत साहब की कव्वाली ‘अँखियाँ उडीक दीयां’ रीक्रिएट किया है। देखिए, रिक्रिएशन का मकसद ये होता है कि आज से 40 साल बाद की जेनेरेशन भी हमारी रिक्रिएशन के द्वारा ही सही, उस क्लासिकल म्यूजिक से जुडी रहे।

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शिद्दत की एल्बम के बारे में ज़रा विस्तार से बताइए

इसमें चार गाने हैं, उसमें टाइटल ट्रैक जो है वो कुछ यूँ हिट हुआ है जैसे पहली बॉल पर सिक्सर लगा हो। मैंने उसके लिए कुनाल भाई से कहा आप बस मुझे अच्छे से नेरेट कर दो कि आपको क्या चाहिए, मैं एक ही बार गाना बनाऊंगा बार-बार बनाकर दूंगा कि आपको कुछ भी चेंज करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। फिर उन्होंने कहा भी यही कि मनन फर्स्ट टाइम ऐसा हुआ है कि मुझे किसी गाने में से कोई भी बदलाव करने की ज़रुरत नहीं पड़ी। मुझे अपनी यूएसपी ये लगती है कि मैं गाने कम्पोज़ तो करता ही हूँ, साथ-साथ गाता और लिखता भी ख़ुद हूँ। यूँ एक गाना पूरी तरह मैं हैंडल करता हूँ।

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आप वाकई हरफनमौला संगीतकार हैं मनन, अच्छा आप हरियाणा में ही रहते हैं, दिल्ली तो आते-जाते ही होंगे, क्या आपने पहले कभी मायापुरी मैगज़ीन पढ़ी है?

बिल्कुल मैंने इसके बारे में बहुत सुना, फिर पढ़ी भी। मुझे बहुत पसंद आई। इस बार का एडिशन (हँसते हुए) तो मैं ज़रूर पढूंगा

हमें समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मनन, मैं आशा करता हूँ कि शिद्दत के गाने सुपर हिट हों और प्रभास स्टारर अपकमिंग फिल्म ‘राधे श्याम’ में आपका वो एक गाना चार्टबस्टर बन जाए।

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सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’

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