2019 बॉलीवुड फिल्म
साल 2019 में कई ऐसी फिल्में आईं, जिन्होंने न सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन किया बल्कि समाज को एक खास मैसेज भी दिया। यह कहना भी सही होगा कि इस साल बॉलीवुड में एक ही जैसी फिल्मों का चलन नहीं रहा। जाति-आधारित भेदभाव से लेकर सेम सेक्स और प्यार तक, बॉलीवुड ने बहुत सी अनकही कहानियों को दर्शकों के सामने पेश किया। इन फिल्मों ने न केवल हमें प्रेरित किया बल्कि शक्तिशाली, अविस्मरणीय संदेश भी दिए। तो आइए नज़र डालते हैं बॉलीवुड की उन फिल्मों पर जिन्होंने साल 2019 में न सिर्फ दर्शकों को एंटरटेन किया बल्कि को समाज को एक स्पेशल मैसेज भी दिया...
गली बॉय
ऑस्कर 2020 के लिए भारत की ओर से फिल्म गली बॉय को ऑफिशियल एंट्री मिली है। गली बॉय एक ऐसी फिल्म है, जो रैपर नैजी और डिवाइन के जीवन पर आधारित है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे मुंबई के धारावी की मलिन बस्तियों में रहने वाले ये दोनों रैपर एक मशहूर कलाकार बन जाते हैं। जोया अख्तर द्वारा निर्देशित और रीमा कागती के साथ मिलकर लिखी गई यह फिल्म आपके सपनों को कभी न छोड़ने और अपनी खुद की किस्मत बनाने के लिए प्रेरित करती है। रणवीर सिंह द्वारा निभाया गया किरदार मुराद कैसे घरेलू परिस्थितियों में आने वाली मुश्किलों का सामना करता है और इन सबके बावजूद वो आगे बढ़ता है और कभी हार नहीं मानता है। गली बॉय एक ऐसी फिल्म है, जो आपको अपनी कहानी से आकर्षित करने के साथ-साथ अपने ट्रेंडी म्यूजिक पर थिरकने के लिए मजबूर कर देगी।
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
निर्देशक शैली चोपड़ा धर और सोनम कपूर, अनिल कपूर, राजकुमार राव और जूही चावला द्वारा अभिनीत फिल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा दो समलैंगिक लड़कियों की कहानी है, जो अपने पारंपरिक पंजाबी परिवार के सामने अपनी भावनाओं को बताने की कोशिश करती हैं। यह बॉलीवुड की उन कुछ मुख्य धाराओं वाली फिल्मों में से एक है जो सिल्वर स्क्रीन पर समान-सेक्स प्रेम को प्रदर्शित करती है। साथ ही इसकी कहानी टैलेंटेज स्क्रीन राइटर लेखक ग़ज़ल धालीवाल द्वारा सह-लिखित थी, जो एक ट्रांसजेंडर महिला हैं। यह दर्शकों को शक्तिशाली संदेश देती है जिसे तीन छोटे शब्दों में प्रस्तुत किया जा सकता है कि प्रेम ही प्रेम है।
आर्टिकल-15
अनुभव सिन्हा की फिल्म आर्टिकल- 15 में आयुष्मान खुराना, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा सहित कई कलाकरों ने इस फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया। फिल्म में समाज में फैले जाति-भेदभाव के विषय पर प्रकाश डाला गया, जिस पर अक्सर लोग बात करने से कतराते हैं। बता दें कि इससे पहले भी कई फिल्म निर्माताओं ने इस मुद्दे पर फिल्में बनाई हैं, जैसे कि नागराज मंजुले की फैंड्री और सैराट, लेकिन आर्टिकल-15 ने जाति-भेदभाव, छुआछूत और जाति-आधारित हिंसा को सिनेमा की मुख्यधारा में लाया, ठीक ऐसा ही किछ फिल्म धडक में भी दिखाने की कोशिश की गई थी। फिल्म आर्टिकल-15 की 2014 में हुए यूपी के बदायूं गैंगरेप मामले और 2016 ऊना में हुई गोलीबारी की घटनाओं सहित कई सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। फिल्म में जाति-व्यवस्था पर आवाज उठाने वाले एक पुलिस अधिकारी के बारे में हैं, जिसका कहना है कि आखिर क्यों देश में आजादी के 72 साल बाद भी जाति-आधारित भेदभाव मौजूद है। फिल्म में समानता का एक कड़ा संदेश था और दर्शकों को अपनी सदियों पुरानी मानसिकता को बदलने के लिए आग्रह।
सांड की आंख
तुषार हीरानंदानी द्वारा निर्देशित तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर द्वारा अभिनीत यह नायाब महिला प्रधान फिल्म दो शार्प शूटरों चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की कहानी है, जिन्होंने अपनी आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने पर बंदूकें उठाईं और निशानेबाजी के खेल में सबसे बुजुर्ग राष्ट्रीय चैंपियन बन गए। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे इन महिलाओं ने सीमाओं को तोड़ दिया और अपने घरों से बाहर निकलकर खुद के लिए जीना शुरु किया, वो भी उश समय जब ऐसा कुछ भी करना महुलाओं के लिए सबसे मुश्किल काम हुआ करता था। शूटर दादी के नाम से मशहूर चंद्रो और प्रकाशी दोनों महिलाएं पूरे देश के लिए प्रेरणा की मिसाल बनीं। फिल्म सांड की आंख का संदेश बहुत ही सरल था - महिलाएं अपनी इच्छानुसार कुछ भी कर सकती हैं।
द स्काई इज पिंक
शोनाली बोस की ये फिल्म लेखक और प्रेरक वक्ता आइशा चौधरी की वास्तविक जीवन की कहानी पर आधारित है, जो सिस्टिक फाइब्रोसिस के कारण 18 साल की उम्र में इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं। फिल्म में आइशा के माता-पिता, अदिति (प्रियंका चोपड़ा) और नरेन (फरहान अख्तर) की कहानी को दिखाया गया है, जो अपने बच्चे के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करने के लिए उसे अपने जीवन का मिशन बना लेते हैं। फिल्म में ज़ायरा वसीम ने आईशा का किरदार निभाया है और रोहित सराफ उसके भाई इशान के किरदार में हैं। आइशा की हालत के कारण मुश्किल समय का सामना करते हुए अपनी आपको मजबूत बनाए रखने की कोशिश कर रहे परिवार की यह दिल को छू लेने वाली कहानी आपको जरूर प्रेरणा देगी।
हालांकि, फिल्म का उद्देश्य आइसा के प्रति लोगों की सहानुभूति रखना नहीं है। इसका उद्देश्य आपको ये दिखाना है कि कैसे अपने मुश्किल समय में भी वो एक प्रेरक वक्ता के रूप में अपना बड़ा भाषण देती है। फिल्म उपदेशात्मक नहीं है लेकिन आपको ऐसे पल के साथ छोड़ती है जो आपको प्रेरित करते हैं। यह संदेश भी देती है कि परिवार और प्रेम जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने में कैसे मदद करते हैं।
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