आज, सुशांत सिंह राजपूत का जन्मदिन है और जो आप अब पढ़ने जा रहे हैं वो पहली नज़र में उनकी ज़बरदस्त सुपरहिट फिल्म 'छिछोरे' का रिव्यू लग सकता है लेकिन ये लेख सिर्फ एक फिल्म की समीक्षा तक सिमित नहीं है।
इसकी कहानी पानी बर्बाद करने से शुरु होती है। सेक्सा (वरुण शर्मा) और अन्नी (सुशांत सिंह) मिलकर रात के वक़्त सबको पानी मारने का गेम खेलते हैं। दौर नब्बे के दशक का है।
फिर कहानी फ़्लैशफ्रंट में आती है जहाँ अन्नी का बेटा राघव (मोहम्मद समद) इंजीनियरिंग कॉलेज के एंट्रेंस रिज़ल्ट को लेकर टेंशन में है। अन्नी और माया (श्रद्धा कपूर) का तलाक हो चुका है पर बच्चा बाप के साथ रहता है और माँ से मिलता-जुलता रहता है। बच्चा आईआईटी एंट्रेंस एग्ज़ाम दे चुका है। बाप अन्नी उसकी रैंक आ जाने के बाद पार्टी की हर सम्भव तैयारी कर चुका है। किस कॉलेज में पढ़ना है, क्या कैसे करना है ये सब तय हो गया है। एक शैम्पेन बॉटल भी मंगवा ली है। राघव ज़रा बहुत प्रेशर में है कि रिजल्ट आया और वो एंट्रेंस क्लियर नहीं कर पाया। अपने बाप को हीरो समझने वाला राघव ख़ुद को ज़ीरो मान अपने दोस्त के घर की बालकनी से कूद गया।
यहाँ से शुरु हुई फ़्लैशबैक (इंजीनियरिंग कॉलेज कैम्पस लाइफ) और फ़्लैशफ्रंट (हॉस्पिटल) की पैरेलल स्टोरी। बच्चे को हौसला देने के लिए अन्नी अपने कॉलेज के दिनों की कहानी सुनाता है जहाँ सेक्सा, एसिड (नवीन), डेकर (ताहिर राज) बेवड़ा (सहर्ष कुमार) और ‘मम्मी’ (तुषार पांडे) कैसे और क्यों लूज़र कहलाते थे।
यहाँ सुशांत के मुँह से एक बहुत नायाब डायलॉग सुनने को मिलता है, वो उदास होकर कहता है 'पास होने के बाद क्या-क्या करना है ये तो सबने तय कर लिया, पर फेल होने के बाद क्या? उसके बाद की क्या प्लानिंग है ये तो किसी ने बताया ही नहीं'
फिल्म पढ़ाई की बजाए स्पोर्ट्स पर फोकस करती हुई क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ती है और एक ऐसा क्लाइमेक्स दिखाती है जो शायद पहले किसी फिल्म में देखने को नहीं मिला होगा।
इन सबके इतर, सुशांत इस फिल्म में एक अनोखा टच छोड़ते हैं। तब जब सुशांत थे और अब जब सुशांत नहीं हैं; का फ़र्क़ फिल्म का पहला सीन देखते ही पता लगता है।
छिछोरे सुशांत की मील का पत्थर सरीखी फिल्म है। इसमें जहाँ एक तरफ सुशांत अपने ऑन स्क्रीन बेटे को समझाने के लिए, उसका साथ देने के लिए खड़े दिखे, उसे ये फील कराने के लिए मौजूद रहे कि वो फेलियर नहीं है बल्कि फेलियर तो उसका बाप था। वो तो बस एक एग्जाम क्लियर नहीं कर पाया, कोई बात नहीं फिर कर लेगा।
लेकिन रियल लाइफ में सुशांत को ये बताने वाला शायद कोई न मिला कि ज़िन्दगी में हुई बड़ी से बड़ी बात भी एक छोटी सी बात ही है। जिन लोगों को उसने अपनी फ़िक्र करने के लिए चुना वो शायद सिर्फ अपनी फ़िक्र करने लगे, जो वाकई उसकी फ़िक्र करते थे उनकी सुशांत को कोई फ़िक्र न रही।
सुशांत सिंह राजपूत की ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखाती है, बहुत गहरा सबक देती है कि चाँद पर ज़मीन बुक कर ली, मंगल पर घर बसाने का प्लान कर लिया उसने पर किसी के दिल में ज़रा सी जगह न बना सका। कोई ऐसा अपने क़रीब न रख सका जो उसको सुन लेता, जो उसकी ख़ैरियत पूछ लेता... ख़ैर....
एक की ज़िन्दगी का नुक़सान तो लाखों के लिए ज़िन्दगी का सबक हो जाता है। एक इंसान के नाते हम सब रोज़ एक एग्ज़ाम देते हैं, कभी फेल होते हैं कभी सिर्फ पासिंग मार्क्स आ जाते हैं तो कभी डिस्टिंक्शन खींच लाते हैं लेकिन ज़िन्दगी नहीं रुकती। चुनौतियां नहीं थमती।
इसलिए एक इंसान के नाते तुम हर आम इंसान जैसे ही इम्पेरफेक्ट होकर भी परफेक्ट थे सुशांत मगर एक एक्टर होने के नाते तुम बेस्ट थे। 40 साल के बाप का रोल भी तुमने उतनी ही गंभीरता से निभाया जितनी ज़िंदादिली से तुमने 22 साल के स्टूडेंट का करैक्टर किया था।
अब ये बात हर उन मात-पिता के लिए जो अपने बच्चों से बहुत उम्मीदें रखते हैं -
हमारे अचीवमेंट्स हमारे बच्चे जानते हैं ये अच्छी बात है, हम अपने स्ट्रगल भी बताते हैं ये भी ठीक, पर बच्चों को अपने फेलियर्स भी बताने बहुत ज़रूरी हैं ताकि वो कभी कहीं फेल हों तो उन्हें ये ही लगे कि बाप माँ की तरह हम भी दुबारा, तिबारा चौबारा ट्राई मारने के लिए अभी जिंदा तो हैं कम से कम।
सुशांत तुम फिल्मी दुनिया से कभी न भुलाए जा सकोगे।
हैप्पी जन्मदिन मुबारक... चाँद पर ज़मीन लेने वाले तुम धरती पर जबतक रहे तब भी स्टार रहे, जब गए तो भी तारा बन गए।