रामलीला की सीता से बॉलीवुड के सबसे खतरनाक विलेन
विलेन....यानि चालाकी, गद्दारी और धूर्धता से भरा वो किरदार जिसका काम फिल्मों में हीरो-हीरोइन को जुदा करना, उनकी जिंदगी में तकलीफें पैदा करना व घर-परिवारों में दरार लाना ही था। बॉलीवुड में कई ऐसे विलेन हुए हैं जिनका नाम सुनते ही लोग खौफ खाने लगते थे। शायद यही कारण था कि दर्शक विलेन को पसंद नहीं करते थे। लेकिन बॉलीवुड में कुछ ऐसे खलनायक भी रहे जिन्होने अपने दमदार अभिनय की अमिट छाप से लोगों के दिलों में एक ऐसी जगह बना ली कि वो जगह फिर कभी कोई ना ले पाया।
इन खलनायकों में एक नाम ‘प्राण’ का भी था। जिनका पूरा नाम था - प्राण कृष्ण सिकंदर। जिस देश में गंगा बहती है, खानदान, कश्मीर की कली, राम और श्याम जैसी फिल्मों में जहां प्राण को अपने नेगेटिव रोल के लिए लोगों की नफरत का सामना करना पड़ा तो वहीं उपकार, धरमवीर, लाखों में एक व ज़ंजीर उनके करियर की वो फिल्में रहीं जिनकी बदौलत उन्हे लोगों के दिलों में वो सम्मान व जगह मिली जिसके वो हकदार थे। प्राण ने अपने करियर में 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और हर बार उनके काम की सराहना हुई।
कई फिल्मों में प्राण का किरदार लीड हीरो से भी ज्यादा पसंद किया गया। लेकिन बॉलीवुड के इस बेहतरीन खलनायक से जुड़ा एक सच ऐसा है जिस पर यकीन करना हर किसी के लिए मुश्किल होता है। आज हम इनकी जिंदगी से जुड़ा वही वाकया आपके साथ साझा कर रहे हैं।
रामलीला में सीता बनते थे ‘प्राण’
कहा जाता है कि बॉलीवुड में अपने समय के सबसे बड़े विलेन एक रामलीला में सीता का रोल करते थे। क्यों , नहीं हुआ ना यकीन? लेकिन ये पूरी तरह सच है। जी हां...जो प्राण बड़े पर्दे पर अपने नेगेटिव रोल से लोगों के प्राण सुखा देते थे वो रामलीला में सीता का रोल निभाते थे और राम बनते थे मदन पुरी। उस दौर में मदन पुरी भी हिंदी फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाते थे।
दरअसल, दसवीं की पढ़ाई करने के बाद प्राण शिमला के माल रोड पर मौजूद दिल्ली स्टूडियो में फोटोग्राफर की नौकरी करने लग गए थे। एक्टिंग का शौक तो था ही इसलिए वहां गंज बाज़ार की रामलीला में सीता का किरदार निभाने का मौका मिला तो उस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। इसके बाद शिमला के थियेटर में भी उन्होने कई नाटकों में काम किया। उनके एक्टिंग के सफर की बुनियादी शुरूआत यहीं से हो चुकी थी।
उसके बाद 1940 में जब वो लाहौर गए तो वहां उनकी मुलाकात एक फिल्म प्रोड्यूसर से हुई और उन्हे उनकी पहली फिल्म “यमला जट” मिली जो कि पंजाबी फिल्म थी। बाद में वो मुंबई पहुंचे और फिर कभी पलट कर नहीं देखा। उन्होने जो हासिल किया उसकी बराबरी शायद ही उस दौर में बॉलीवुड का कोई और विलेन कर पाया हो।
2013 में मिला दादा साहब फाल्के पुरस्कार
बॉलीवुड में अपनी पहली फिल्म से ही लोकप्रियता हासिल करने वाले खलनायक प्राण ने आजाद', 'मधुमती', 'देवदास', 'दिल दिया दर्द लिया', 'राम और श्याम', 'आदमी', 'मुनीम जी', 'अमरदीप', 'जब प्यार किसी से होता है', 'चोरी-चोरी', 'जागते रहो', 'छलिया', 'जिस देश में गंगा बहती है', ‘ज़ंजीर’ और 'उपकार' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। यही कारण रहा कि उन्हे कई सम्मान से नवाज़ा गया। कई बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने वाले प्राण को 2013 में फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला। और इस पुरस्कार को हासिल करने के कुछ ही समय बाद 12 जुलाई, 2013 को उनका निधन हो गया।