इनदिनों पूरे देश में शहरों और स्टेशनों का नाम बदलने की एक बड़ी मुहिम चल पड़ी है। बंबई (मुंबई), मद्रास (चेन्नई), कलकत्ता (कोलकाता), बंगलोर (बंगलुरू), गुड़गांव (गुरूग्राम) और वीटी स्टेशन (सीएसटीएम) के प्राचीन, प्रचलित नाम बदले जा चुके हैं। इलाहाबाद को ‘प्रयाग’, वाराणसी को ‘काशी’, अहमदाबाद को ‘कर्णावती’, फैजावाद को ‘अयोध्या’, लखनऊ...अलीगढ़ और दूसरे तमाम शहरों के नाम बदलने पर सर्वत्र चर्चा चल रही है। ऐसे में, ध्यान जाता है बॉलीवुड की तरफ। भारतीय फिल्मों की यह ‘मक्का’ जो समाज की हवा का रूख पलट देने की ताकत रखती है, वहां क्या हो रहा है?
एक वरिष्ठ फिल्मकार ने हंसते हुए कहा है- ‘यहां तो पहले ही नाम बदलने का रिवाज है। अब कहानी बनेगी- हीरो अपने गांव पहुंचता है और गांव का नाम भूल जाता है...! हमारी इंडस्ट्री जितनी सरलता से ऐसी बातों को अपना लेती है, उससे लोगों को सबक लेना चाहिए।’ सचमुच नाम बदलने की एक लम्बी परंपरा है बॉलीवुड में! यहां फिल्मों का नाम बदलता है, प्रोडक्शन-कंपनियों का नाम बदलता रहता है और सितारे अपना नाम और नाम की स्पेलिंग बदलते रहते हैं। यहां का ट्रेड व्यवसाय और ग्राहक यानी-दर्शक दोनों इसे सहजता से स्वीकार करते हैं। ना कोई न्यूज बनती है ना टीवी पर डिबेट होता है।
नाम बदलने की शुरूआत
दिलीप कुमार ने 3 बार नाम बदला था
देश-विभाजन की विभिषिका से जूझते सिनेमा उद्योग में एक मुतमइन माहौल बन गया था। पाकिस्तान से आये कलाकार और यहां रह गये मुसलिम कलाकार इस सोच में पड़ गये थे कि दर्शक उन्हें स्वीकार करेंगे कि नहीं? युसुफ मोहम्मद पाकिस्तान से आये कलाकार थे। बाम्बे टॉकीज की फिल्म के लिए अनुबंधित हो रहे थे। उनको कहा गया ‘नाम बदल लीजिए।’ तीन नाम बताये गये थे- वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार। ‘जहांगीर’ मुसलिम नाम था, ‘वासुदेव’ हिन्दू धर्म से जुड़ा था, युसुफ ने ‘दिलीप कुमार’ बनना पसंद किया। वह दोनों सम्प्रदायः के चहेते कलाकार बनकर रहना चाहते थे और उनकी सूझबूझ भरी सोच ‘हिट’ हो गई। फिर तो देखते ही देखते नाम बदलने का सिलसिला चल पड़ा। बदरुद्दीन ने ‘जॉनी वॉकर’ नाम रख लिया। हिट रहे। नाम बदलना प्रचलन में ऐसा आया कि हर कलाकार बॉलीवुड में आते ही नाम बदलने लग गया। बेशक तब फिल्म इंडस्ट्री मौलिक थी, हॉलीवुड की तर्ज पर बॉलीवुड नाम नहीं पड़ा था। ‘गुलजार’ बन गए सरदार पूर्ण सिंह। कुलभूषण पंडित ने अपना नाम रख लिया ‘राजकुमार’ और वकालत की पढ़ाई करके फिल्मों में काम करने आये देवदत्त पिसोरीमल आनंद बन गये ‘देव आनंद’। नकली ज्वेलरी बेंचते फिल्मों के दरवाजे पर पहुंच गये रवि कपूर को ‘जितेन्द्र’ नाम दे दिया गया। नाम बदलने चमकने की कवायद तो तब कमाल की मान ली गई जब थिएटर करने वाले जतिन खन्ना नया नाम ‘राजेश खन्ना’ को लेकर आसमान की बुलंदियां छू लिए। गोरांग चक्रवर्ती नाम का सांवला सा लड़का ‘मिथुन चक्रवर्ती’ बनते ही पहली फिल्म ‘मृगया’ से नेशनल अवॉर्ड ले लिया। बाद की कहानी सब जानते हैं। फिर भी हम बता देते हैं कि किस सितारे का असली नाम क्या है। आज के चमकते स्टार सलमान खान का असली नाम है अब्दुल राशिद सलीम खान। अजय देवगण (विशाल देवगण), अक्षय कुमार (राजीव भाटिया), कैटरीना कैफ (कैट टुरकोट्टी), सनी देओल (अजय), प्रीति जिंटा (प्रीतम जिंटा), सैफ अली खान (साजिद), महिमा चौधरी (रीतू चौधरी), गोविन्दा (गोविन्द अरूण आहूजा), मल्लिका सहरावत (रीमा लाम्बा)। ये कुछ वे नाम हैं जो पर्दे पर नाम बदलने की कसौटी में पार हो गये हैं और आज के चमकते स्टार हैं। मगर बहुत से सितारों ने आजकल पूरा नाम बदलने की बजाय नाम की लिखावट में बदलाव शुरू किया है।
स्पेलिंग बदलाव में ‘लक’ की खोज
रानी मुखर्जी ने अपने नाम (Rani Mukherji) से एक ‘H’ कम करके (Rani Mukerji) लिखना शुरू किया है। वह लाभ में रही हैं। आयुष्मान खुराना ने अपने नाम (Ayushman Khurana) को लिखना शुरू किया है- ।(Ayushmann Khurana), वही भी हिट हैं। तुषार कपूर ने नाम की स्पेलिंग में एक ‘S’ बढ़ाया है Tusshar Kapoor किया है। इसी तरह दूसरे सितारे नाम की स्पेलिंग बदले हैं जैसे - (Ajay Devgan) हो गये हैं ‘(Ajay Devgn) तथा करिश्मा कपूर अपने नाम (Karishma Kapoor) से ‘H’ बाहर करके हो गई हैं (Karisma Kapoor), सुनील शेट्टी ने नाम में ‘E’ जोड़ा है, अब वह लिखते हैं- (Suniel Shetty), सोनम ए. कपूर अब सिर्फ सोनम कपूर बन गई हैं। हृतिक ने (Ritik) में ‘H’ जोड़ा है, वे लिखते हैं- (Hrithik) , राजकुमार राव यादव ने नाम में बदलाव किया है, अब वह (Rajkummar Rao) लिखकर हिट हैं। नाम से ‘यादव’ हटा दिया और कुमार में एक ‘M’ और जोड़ दिया। करीना कपूर जब इंडस्ट्री मं आयी थी, किसी एस्ट्रोलॉजर के कहने पर नाम लिखती थी- (Kareena), लिख रही हैं। कुछ सितारों के नाम की स्पेलिंग देखिये - जावेद जाफरी (Javed Jaafery), जिम्मी शेरगिल (Jimmy Sheirgill), विवेक ओबेराय (Vivek Oberoi), सुनील शेट्टी (Suniel Shetty), रितेश देशमुख (Riteish Deshmukh) गोविन्दा की बेटी ‘नर्मदा’ ने तो पूरा नाम टीना आहूजा लिखना शुरू किया है पर उनका भाग्य टीना मुनीम अंबानी जैसा स्वरूप नहीं ले पा रहा है।
प्रदर्शन होने तक फिल्मों का नाम बदल जाता है
कहते हैं नाम में क्या है? नहीं साहब, बॉलीवुड में नाम में बहुत कुछ है। फिल्म ‘शोले’ बनने तक कई कलाकार फिल्म में काम करने से मना करते थे। फिल्म रिलीज के समय निर्माता जे.पी. सिप्पी ने ‘शोले’ (Shole) की स्पेलिंग में बदलाव करवाया (Sholey) और फिल्म की कामयाबी एक इतिहास बन गयी। इस इंडस्ट्री में फिल्मों के नाम फिल्म रिलीज होने तक बदलते हैं। कई बार फिल्म का नाम ही शुरूआत में नहीं रखा जाता। फिर कई बार टेंटिवली टाइटल रखा जाता है और रिलीज तक नाम कुछ और बन जाता है। कुछ फिल्मों के नाम कैसे बदले हैं देखिये- दाउद इब्राहिमम की बहन हसीना पारकर के जीवन पर बनी फिल्म का शुरूआती नाम था- ‘हसीना-द क्वीन ऑफ मुंबई’) फिल्म रिलीज की गई ‘हसीना पारकर’ नाम से। गुरिन्दर चड्ढा की फिल्म ‘वायसराय हाउस’ नाम से बनी थी, रिलीज हुई- ‘पार्टिशन 1947’ नाम से। इसी तरह फिलdम ‘जब हैरी मेट सेजल’ का नाम पहले ‘रिंग’ था और फिल्म ‘बिइंग सायरस’ का नाम ‘अकूरी’ था।
फिल्म ‘पद्मावती’ के ‘पद्मावत’ बनने की कहानी हर कोई जानता है। रियल लाइफ में फिल्म की रानी पद्मावती और फिल्म के अलाउद्दीन खिलजी परिवार बन गये हैं लेकिन रील लाइफ में? उनके कथित प्रेम पर पूरा देश जलने के लिए उद्दत था। यह होता है नाम का प्रभाव। कुछ समय पहले सलमान खान के जीजा आयुष शर्मा की हीरोगिरी वाली फिल्म ‘लवरात्रि’ का नाम ‘लव यात्री’ करके रिलीज किया गया था। और कुछ फिल्मों के नाम देखिए जो रिलीज किस नाम से हुई और बनाई गई थी किस नाम से-
सलमान खान की फिल्म ‘जय हो’ को बनाया गया था ‘मेंटल’ नाम से। ‘गोलियों की रामलीला’ शुरू हुई थी ‘रामलीला’ नाम से। ‘मद्रास केफे’ का शुरूआती नाम ‘जाफना’ था और ‘आर.. राजकुमार का नाम ‘रैम्बो राजकुमार’ था। ‘बिल्लू बारबर’ को हजामों के विरोध स्वरूप सिर्फ ‘बिल्लू’ करना पड़ा था। फिल्म ‘कट्टी बट्टी’ का आरंभिक नाम- ‘साली कुतिया’ था। ‘वीरजारा’ और ‘जब तक है जान’ दोनों फिल्मों को ‘यह कहां आ गये हम’ के नाम से शुरू किया गया था। रामगोपाल वर्मा की फिल्में ‘शोले और ‘आग’ का नाम दिया गया उनका नाम (राम गोपाल वर्मा की..) जोड़कर। ‘टोटल सियापा’ का नाम था - ‘अमन की आशा’ और सन्नी देओल की फिल्म ‘सिंह साब द ग्रेट’ का आरंभिक नाम था ‘सिंह साहिब द ग्रेट’। इनमें अधिकांश फिल्मों के नाम सामाजिक-सांस्कृतिक विरोध के चलते बदला गया था।
वैसे ही... जैसे इन दिनों में धार्मिक-सांप्रदायिक कारणों के चलते शहरों का नया नामकरण किया जा रहा है और विरोध के डिबेट किये जा रहे हैं। फिल्म-इंडस्ट्री मे जहां एक प्रोजेक्ट में करोड़ों रूपया लगा होता है, हल निकाल लिया जाता है। अच्छा होता लोग फिल्मवालों से सीखते!
‘‘फिल्मों के बिजनेस पर अंकों का असर होता है...’’
ज्योतिषी बिन्दू खुराना
बॉलीवुड में मशहूर एस्ट्रोलॉजर बिन्दू खुराना की पहुंच तगड़ी है। वह अंक ज्योतिष, वास्तु और हस्ताक्षर विशेषज्ञता में दक्ष हैं, कहती हैं- ‘निश्चित रूप से फिल्मों के बिजनेस पर अंक ज्योतिष का बेहद असर है। कम्प्यूटर, मोबाइल के इंटरनेटी युग में ‘न्यूमरोलॉजी’ ही अधिक व्यवहारिक माध्यम है। इसलिए लोग नाम की स्पेलिंग में बदलाव करते हैं और उनको मजबूत फल मिलता है।’ बिन्दू खुराना ने बहुत सी फिल्मों के नाम, उनके पोस्टर डिजाइन और ‘लोगो’ बदलवाये हैं, जिसमें अक्षय कुमार की हालिया रिलीज फिल्म ‘गोल्ड’ भी एक है।
वह कहती हैं- ‘मैंने कई फिल्मों की मुहूर्त और रिलीज डेट में बदलाव करवाया है और परिणाम डूबी हुई फिल्म के करोड़ों कमाने का बन गया है। दरअसल फिल्मों का पूरा गणित पैसे का होता है। हफ्ते भर में फिल्म कलैक्शन करके हट जाए, बस इसी सोच के साथ मैं पूरा गणित करती हूं। लक्ष्मी को फेवर करने वाले अंक- जिसमें स्टारों के नम्बर, निर्माता के नम्बर, दिन, तिथि, वितरक सभी का भाग्य लक्ष्मी को फेवर करे, वैसे नम्बर बनाते हैं। इसी तरह...सितारों के नाम को भाग्य से जोड़ने वाले नम्बर पर लाते हैं। किसी की जन्म तारीख नहीं बदल सकते किन्तु उनके नाम के अल्फावेट बदल कर (कभी जोड़कर, कभी निकाल कर) हम उनके नम्बर को मूल्यवान बनाते हैं। हमने ‘पीके’ फिल्म के साथ यही किया था। पहले फिल्म का नाम ‘च्मम ज्ञंल’ था, मैंने उसका नम्बर निगेटिव से पॉजिटीव बनाने के लिए नाम ‘च्ज्ञ’ कराया था, फिल्म जबरदस्त हिट हुई। आने वाले दिनों में हमने फिल्म ‘डॉन 3’ के लिए किया है, रिजल्ट देख लेना।’ न्यूमरोलॉजी और फिल्मों का सम्बन्ध बार-बार सच होता है।