मुंबई के Corona ब्लास्ट से पूरा महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि दिल्ली हाई कोर्ट भी घबरा गया है By Siddharth Arora 'Sahar' 06 Apr 2021 | एडिट 06 Apr 2021 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर जब हम डरे हुए होते हैं तो कई बार कुछ ऐसी हरकतें भी कर देते हैं जिसका कोई सीधा मतलब नहीं होता। जिसका लॉजिक से कोई लेना देना नहीं होता। इन दिनों रोज़ चार से पाँच बॉलीवुड स्टार्स Corona से संक्रमित हो रहे हैं। महाराष्ट्र से पचास हज़ार केसेज आ रहे हैं। उसमें भी अकेली मुंबई 30 से 35 हज़ार केस देकर ‘गर्व हासिल’ कर रही है। इसमें भी फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो पूरी मुंबई में आए कोरोना केसेज़ का 30% प्रतिशत हिस्सा फिल्म इंडस्ट्री के कब्ज़े में है। जब एक आम आदमी को कोई बीमारी होती है तो तबतक किसी को फ़र्क नहीं पड़ता जबतक आम आदमियों की संख्या अखबार में छपने लायक न हो जाए। उदाहरण, कोई एक आदमी मुंबई से पैदल बिहार निकल जाए, तो कोई न्यूज़ नहीं है। हाँ डेढ़ लाख आदमी सड़कों पर पैदल चलता दिखा तो उनपर फिल्में बन जाती हैं। गरीब आदमी ज़िंदा शरीर नहीं बल्कि एक आंकड़ा है, एक संख्या है और संख्याओं पर तबही ध्यान दिया जाता है जब वो अत्यधिक होने लगें। वहीं बॉलीवुड स्टार्स इंडिविजुअल वैल्यू रखते हैं। कार्तिक आर्यन को खांसी हुई तो वो न्यूज़ है, अक्षय कुमार को Corona हुआ तो वो ब्रेकिंग न्यूज़ है। ऐसा आखिर हो भी क्यों न, आखिर एक एक स्टार लाखों लोगों के दिलों में राज भी तो करता है। इसीलिए जब कोई स्टार एक लाख रुपए डोनेट करे तो ये खबर एक करोड़ लोगों द्वारा पढ़ी सुनी जाती है। लेकिन इसका उल्टा असर भी होता है। एक बॉलीवुड स्टार को जुखाम भी हो जाए तो पूरा देश ऐसे विचलित हो जाता है मानों उनकी भी नाक बहने लग जायेगी। कुछ यही हाल अब सरकारों और कोर्ट का भी लगता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने नया हुक्म दनदनाया है कि कार में अकेले बैठे आदमी को भी मास्क लगाकर बैठना होगा वरना उसे दंड देना पड़ेगा। इसका कारण है कि रास्ते में चलती आपकी प्राइवेट कार भी सही मायने में पब्लिक प्लेस है। आपको याद है कि बचपन में जब हम अपने टीचर से कोई सवाल पूछें और उन्हें जवाब न पता हो तो वो कैसे रियेक्ट करते थे? वो बहस करने के इल्जाम में छड़ी उठाते थे और सटासट बजा देते थे। फिर घुड़क के कहते थे “पढ़ाई में ध्यान दो, ज्यादा फालतू सवाल जवाब न किया करो” ऐसा वो इसलिए करते थे कि उनके मुँह में जवाब हो न हो पर हाथ में संटी ज़रूर होती थी। अब जो अवेलेबल है उसी से काम चलाना हमारे देश की पुरानी परंपरा है इसलिए वो पीट दिया करते थे। यही हाल अब सरकारों का भी हो गया है। क्या स्टेट गवर्नमेंट और क्या सेन्ट्रल, पिछले साल 6 महीने लॉकडाउन करने के बावजूद न केसेज़ कम हुए और न ही इकॉनमी बच पाई। घर-घर दाने-दाने को मोहताज भी हो गया और पडोसी के घर Corona संक्रमित मरीज़ भी मिल गए। न ख़ुदा मिला न विसाल ए यार। अब फिर Corona ब्लास्ट हो रहा है। एक दिन में एक लाख केसेज़ भी आ रहे हैं। वहीं महाराष्ट्र सरकार का सारा फोकस लोगों ने टैक्स वसूलने में लगा हुआ है। उनका मानना है कि कोरोना होता है तो हो जाए, लेकिन रेवेन्यू कम नहीं पड़ना चाहिए। चाहें बार खोलने पड़ें या कैबरे करना पड़े। जैसे मास्टर्स के पास छड़ी होती थी, वैसे ही सरकारों के पास ले दे के एक ही चीज़ बची है - मास्क। उनका सारा ज़ोर मास्क पर है। ख़ुद मंत्री-संत्री लोग भाषण देते समय या रैली निकालते समय मास्क या तो जेब में रख लेते हैं या ठुड्डी के नीचे टिका लेते हैं, पर आम आदमी गाड़ी में जाए या मेट्रो में, उसका मास्क खिसका तो मतलब 2000 रुपए फाइन। सच तो ये है कि सरकारें पूरी तरह खिसिया चुकी हैं और इतनी तेज़ी से वैक्सीनशन होने के बावजूद उनके पास Corona को रोकने का कोई प्लान नहीं है। अब ऐसे में मुँह पर बंधा एक छोटा सा कपड़े का टुकड़ा ही सरकार को डूबते में तिनके का सहारा नज़र आ रहा है। इसीलिए बिना किसी सेन्स-लॉजिक के नादिरशाही फरमान आ रहे हैं। (AIIMS के एक डॉक्टर की रिपोर्ट के अनुसार मास्क में कम से कम 300 नैनोमीटर स्पेस होता ही है और कोरोना वायरस इससे कहीं छोटा, 100 नैनोमीटर साइज़ का वायरस है, तो टेक्निकली ये मास्क उस वायरस को रोकने में अक्षम हैं।) फिर भी मास्क लगाना ज़रूरी है क्योंकि मास्क किसी और के ख़ांसी ज़ुखाम को हमारे मुँह में घुसने से तो रोक ही लेता है। मास्क लगाने से Corona का ख़तरा कम हो जाता है पर मास्क के साथ-साथ दिमाग लगाना ज़रूरी नहीं है क्या? एक अकेला आदमी बंद गाड़ी में बैठा भला किसके संपर्क में आ जायेगा जो उसे मास्क लगाना पड़ेगा? यही सरकारें कोरोना की शुरुआत में कहती थीं कि मास्क सिर्फ वो लगाएं जो Corona संक्रमित हैं। तब मास्क क्योंकि बहुत महंगे बिक रहे थे इसलिए ये फार्मूला सबको कारगर लगा था। हालाँकि केसेज़ फिर भी कम न हुए। इसके बाद सरकारों ने फरमान जारी किया जो घरों में मम्मियां करती हैं। दो बच्चे लड़ रहे हैं और एक के चोट लगी है, तो वो यह नहीं पूछतीं कि किसकी ग़लती थी। वह दोनों को सज़ा दे देती हैं क्योंकि ऐसे टाइम बचता है। कौन दलीले सुनें, कौन न्याय करे। यही काम अब सरकारें और कोर्ट कर रही हैं, उन्हें लग रहा है सारी मुसीबत की जड़ वो लोग हैं जो मास्क नहीं पहनते। सिर्फ और सिर्फ मास्क है जो मोक्ष दिला सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि कुछ दिनों बाद हुक्म आयेगा - नहाते टाइम भी मास्क पहनना ज़रूरी है क्योंकि पानी मुन्सिपल कारपोरेशन से आ रहा है तो आपका बाथरूम भी पब्लिक प्लेस है। हँसी शायद तब ख़ुद कानून की देवी को भी आ जाए अगर कोर्ट कह दे कि सोते टाइम भी मास्क लगाना अनिवार्य है क्योंकि सपने में आप घर से बाहर भी निकल जाते हैं, आपकी गली तो पब्लिक प्लेस है न। - width='500' height='283' style='border:none;overflow:hidden' scrolling='no' frameborder='0' allowfullscreen='true' allow='autoplay; clipboard-write; encrypted-media; picture-in-picture; web-share' allowFullScreen='true'> '>सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' #akshay kumar #bollywood #Karthik Aryan #Maharashtra #Corona #corona outbreak हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article