परम पूज्य मोरारी बापू जी के कर-कमलों से आधुनिक काल के तुलसीदास, महर्षि रामानंद सागर को पुरस्कार सम्मान पुत्र प्रेम सागर ने ग्रहण किया

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By Sulena Majumdar Arora
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From the lotus feet of Param Pujya Morari Bapu ji, Tulsidas of modern times, Maharishi Ramanand Sagar received the award honor son Prem Sagar

रामचरित मानस के साथ साथ कई अन्य ग्रंथों के रचयिता, महान संत तुलसीदास जी के जन्मोत्सव के अवसर पर, भावनगर जिले के कैलाश गुरुकुल में, पूज्य मोरारी बापू जी की उपस्थिति में वाल्मिकी, व्यास तथा तुलसी पुरस्कार का आयोजन बड़े ही दिव्य वातावरण में किया गया, जहां कई महान, मूर्धन्य हस्ती, विद्वानों,  ऋषि मुनि तथा इलेक्ट्रॉनिक युग के तुलसीदास माने जाने वाले संत महर्षि, स्व. डॉक्टर रामानंद सागर, को उनके अमर, बहुमूल्य कृतियों के लिए मान्यता प्रदान करने हेतु यह दिव्य कार्यक्रम रखा गया, जो प्रति वर्ष रखा जाता है. इस वर्ष, नौ गणमान्य व्यक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए चुना गया था और गुरुवार को महुवा के कैलाश गुरुकुल में उनका सम्मान किया गया.

वाल्मीकि पुरस्कार, अयोध्या के माधवाचार्यजी महाराज, अहमदाबाद के विजयशंकर देवशंकर दयाशंकर पांड्या को प्रदान किया गया तथा आधुनिक काल के तुलसीदास माने जाने वाले महान लेखक, फिल्म एंड टीवी सीरीज निर्देशक, निर्माता, चिंतक स्व. डॉक्टर रामानंद सागर जी को प्रदान किए गए पुरस्कार को उनके सुपुत्र, सुप्रसिध्द फिल्म तथा टीवी एंड वेब सीरीज निर्माता, विश्वप्रसिद्ध सिनेमाटोग्राफर प्रेम सागर ने  स्वीकर किया.

 जब श्री प्रेम सागर को पूज्य मोरारी बापू के कर कमलों से यह पुरस्कार दिया जाने लगा तो उन्होंने अपने पुत्र धर्म का पालन करते हुए वो पुरस्कार और सम्मान, स्व. रामानंद सागर जी की तस्वीर को भेंट करते हुए कहा कि मोरारी बापू के कर कमलों से इस सम्मान, को ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ उनके पिता रामानंद सागर जी का है क्योंकि उन्हीं की ये सारी मेहनत है, उनका सारा काम है. श्री प्रेम सागर ने अपने स्पीच में कहा, इस महान सभा में, इतने सारे महान विद्वानों, महानुभावों के सामने मैं क्या कहूँ? मैं तो एक अणु से भी छोटा हूँ. आत्मिक स्तर पर बापू के आशीर्वाद से आनन्द आया. यह भाग्य सबको नहीं मिलता कि आपको एक माध्यम बनाया जाता है कि इस महान काव्य को फिर से एक नयी भाषा में लिखने के लिए. भगवान वाल्मीकि ने इसे काव्य में लिखा, तुलसी की ने पहली बार जब लिपि आई, तो लिपि में लिखा. और इस इलेक्ट्रोनिक युग में जिसे इस महाकाव्य को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से साकार करने के लिए ऊपर वाले द्वारा भेजा गया उनका नाम था चंद्रमौलि था. वो शिव भगवान जी का नाम भी है, ये सबको पता है, पहली बार रामायण को इस सृष्टि में जब शिव जी, पार्वती जी को सुना रहे थे तो वहां काग भुशुंडि जी बैठकर सुन रहे थे, फिर काग भुशुंडि जी इसे सभा में ले गए, इस तरह यह कहानी आगे बढ़ते बढ़ते तुलसीदास जी के काव्य में समाहित हुई और फिर, वो व्यक्ति जो इस इलेक्ट्रॉनिक युग में चंद्रमौलि के नाम से पैदा हुए थे, उन्हें इस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा आज की पीढ़ी के लिए, हमारे  सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए यहां भेजा गया. उन्होंने रामानन्द सागर के नाम से रामायण को टीवी पर निर्मित किया. चंद्रमौलि के नाम से पैदा हुए रामानंद जी का जब नाम संस्करण हो रहा था तब उनका नाम राम आनन्द रखा गया. ये कोई को-इन्सिडेंस नहीं हो सकता, उस वक्त कौन जानता था कि यह इंसान जो एक संघर्षरत आर्टिस्ट, संघर्षरत लेखक थे, और आगे चलकर जिन्होंने आरजू, आँखे, गीत, ललकार, चरस जैसे सुपर हिट कमर्शियल फिल्में बनाई है, वे एक दिन ’’रामायण’’की रचना करेंगे टीवी के माध्यम से.

दरअसल ये कर्म वे खुद से नहीं करते थे, बल्कि कोई शक्ति है जो उनसे करवाता था. जब पहली बार रामानन्द जी मुंबई आएँ और चर्नी रोड में गएँ तो पहली बार उन्होंने वहां विशाल सागर को देखा, वे रोड पर खड़े हो गए, जीवन में पहली बार समुद्र का इतना जल देखकर वे चकित रह गए, उन्होंने वरुण देवता के अनेक रूप देखे थे, तालाब देखा, नदी देखी लेकिन सागर की विशालता को देख वे हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले, ष्वरुण देव, मैं इस कुबेर की नगरी (मुंबई) में तो आ गया हूँ, मुझपर कृपा करो.(बोलते हुए प्रेम जी भावुक हो गए. उनके आँसू छलक पड़े) और फिर तभी एक आठ दस फुट ऊँची लहर उफान के साथ आई, और दूर सड़क पर खड़े रामानन्द जी के चरणों के इर्द गिर्द एक भंवर की तरह चक्र बनाते हुए लौट गई और उनको अध्यात्मिक रूप से संदेश मिल गया कि आज से उनका नाम सागर होगा, ये संदेश हमारे कुलजन, गुरुजन, देवजन हमें भेजते है, जो हमे समझ में नहीं आता. तो उस दिन से वे राम के आनन्द के सागर बन गए. मेरा भाग्य है कि मैं इतने महान संत, ऋषि महर्षि के पुत्र के रूप में जन्मा, पिता पुत्र के संबंध से परे, मेरा एक अलग आत्मिक संबंध था उनके साथ,  पित्र रिण चुकाए नहीं चुकता, पुत्र धर्म आप कितना भी कुछ कर लें, वो कभी सम्पूर्ण नहीं होता. ये जो किताब आज बापू जी ने इनोग्रेट की है, ये उनके जीवनी पर है. मैंने एक दिन उनसे पूछा, ष्पापाजी सागर ही क्यों? तो उन्होंने जवाब दिया, देखो, ये जो सागर अर्थात वरुण देव है, वो जात, धर्म, वर्ण, कुल, भेद, ज्ञानी अज्ञानी कुछ नहीं पूछता, सबका कल्याण करता है, उसी तरह मैंने भी तय किया कि मैं जो भी बनाऊँगा, वो सभी जात, धर्म, के लिए होगा, कोई भेदभाव कोई सीमा नहीं होगी. कोई बोर्डर नहीं होगा. मुझे याद है, जब मैं रामायण की मार्केटिंग करने लगा तो मैंने उसे कैप्शन दिया, द ग्रेटेस्ट हिन्दू एपिक. लेकिन सागर जी ने कहा, नहीं, ये हिन्दू एपिक ही क्यों? ये तो सबके लिए है. रामायण जब टेलेकास्ट होता था तो लाहौर की सड़को का ट्रैफिक बंद हो जाता था, कराची में लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे, तो क्यों हम इसे सिर्फ हिंदुओं के लिए कहें, ये सबके लिए है. रामायण किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, ये तो चार वेदों का संगम है. इसलिए ये ग्रेटेस्ट इंडियन एपिक है. भारत की सबसे  बड़ी एपिक है.ष् उस दिन से मैंने उनको मार्केटिंग का भी अपना गुरु माना . हां, यह सही है कि मैं टेक्नीकली उनके साथ रहा, बहुत से स्पेशल इफेक्ट्स दिए, पैसे नहीं थे ज्यादा, महल बनाना है तो उसका रूफ टॉप कैसे बने, रात के दृश्य में बादल कैसे दिखाया जाय, इसके लिए हमने रूई चिपका के बादल का इफेक्ट दिया. ’’रामायण’’ निर्मित करते हुए बहुत संकट भी आए, मंत्री लोगों ने, ब्यूरोक्रेसी ने रामायण को बनने से रोकने की बहुत कोशिश की, पर जाके राखो साइयां, मार सके न कोए, और रामायण बनी. लोगों ने इतना जोर लगाया. अगर आप देखेंगे,  रामायण से पहले एक पॉलिटिकल पार्टी की सिर्फ दो सीटें थी, रामायण के बाद 87 और श्कृष्णाश् के बाद 185, और आज उनकी गवर्नमेंट है, लेकिन उन्होंने आज तक रामानंद सागर को सिर्फ पद्मश्री दिया, ये एक कांटे की तरह मेरी आत्मा में चुभती है. इसलिए कह रहा हूं, बापू से दरख्वास्त है कभी इसपर विचार करें, जय श्रीराम.

 प्रेम सागर जी के इस भावनात्मक अभिव्यक्ति से अभिभूत होकर मैंने जब उनसे बातें करते हुए पूछा,ष् आप जब स्पीच दे रहे थे तो आपके हाथ में कोई कागज नहीं था, और आप जो हमेशा इंग्लिश या उर्दू हिन्दी बोलते थे, लेकिन उस स्पीच में आप कैसे इतने विशुद्ध हिन्दी बोल रहें थे?ष् इसपर उन्होंने कहा, ष्पता नहीं, माँ भगवती जी की कृपा होगी, शायद उस वक्त मेरी कुंडलिनी जागृत हो गई थी, मुझे पता नहीं, मेरे मन में जो भाव आए, मैं बोलता चला गया. कोई शक्ति थी. ष् शक्ति की बात चली तो उन्होंने कहा,ष् सचमुच कोई तो शक्ति थी वर्ना उस दिन उस महान, दिव्य कार्यक्रम में हम पहुंच ही नहीं पाते थे. दरअसल हम महुवा गुरुकुल पहुंचने के लिए दीयू से जाना चाहते थे जो एक घन्टे में हमें अपने गंतव्य स्थान पर पंहुचा देता लेकिन फ्लाइट कैंसल हो गई, कोई उपाय ना देखकर हमने सोचा, इतने महान कार्यक्रम में हम नहीं जा पाएंगे लेकिन मेरे साथ चार देवियाँ थी, मेरी दोनों बेटियाँ, मेरी पत्नी और मेरी पोती. भला देवियों के होते कौन मुझे आगे बढ़ने से रोक सकता था. तो हमने राजकोट की फ्लाइट ली जो हमें साढ़े चार घन्टे में वहां पहुँचाया. वहां इतनी भयंकर बारिश हो रही थी, बहुत रूकावटे आ रही थी, लेकिन वहां अतुल मोटर्स वालों ने हम सबकी बहुत देखभाल की और फिर हम छह घन्टे में उस प्रोग्राम के बीच में पंहुच पाए. लौटते समय भी बहुत  तकलीफें आई, आखिर हम वापसी के लिए किसी तरह एयरपोर्ट पंहुच पाए, थके हुए, ना खाया, ना पिया. लेकिन देवी माँ की कृपा से सब अकुशल वापस लौटे, बहुत कष्टकर यात्रा थी, लेकिन वहां मोरारी बापू के अश्रम पहुंचकर, जो दिव्य अनुभूति  हुई , वहां सबने हमें जो मान सम्मान, आवभगत और प्यार दिया और वो आध्यात्मिक अनुभव ने हमारे सारे कष्टों को सार्थक बना दिया. आश्रम में इतनी अच्छी व्यवस्था थी जो मैंने कभी कहीं नहीं देखी. वातावरण में ही इतनी अद्भुत, अतुलनीय तेज, उजास और पवित्रता थी कि वहां जाकर, क्रूर से क्रूर व्यक्ति भी सर झुका कर नम्र और पवित्र हो जाए.

सागर वल्र्ड कृत अपनी आगामी प्रोजेक्ट, वेब सीरीज, जय माता वैष्णो देवी की जानकारी देते हुए प्रेम सागर ने कहा कि जल्द ही ये सीरीज ओटीटी पर रिलीज होने वाली है जिसकी कहानी, पटकथा और संगीत प्रेम सागर और उनके पुत्र शिव सागर ने तैयार की है. हमारी बातचीत चल रही थी कि प्रेम जी के ऑफिस में, श्रामायणश् सीरियल में लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले एक्टर सुनील लाहीड़ी आ गए. प्रेम जी ने उनसे भी मेरा परिचय कराया और उन्हें  मायापुरी पत्रिका की शानदार सफलता की कहानी बताई और कहा कि किस तरह वे पिछले चालीस वर्षों से मायापुरी से जुड़े हुए हैं. सुनील लाहीड़ी जी ने मुझे बताया कि वे प्रेम जी को एक अद्भुत किताब भेंट करने आएँ हैं जिसका नाम है, लक्ष्मीला अर्थात लक्ष्मण और उर्मिला की प्रेम कथा पर आधारित, जिसे कानपुर की अट्ठारह वर्ष की एक छोटी सी लड़की शुभी अग्रवाल ने लिखा है जो एक ऐसे मारवाड़ी ज्वेलर फैमिली की है जहां दूर दूर तक कोई लेखक नहीं है. वो चैदह वर्ष की उम्र से इसे लिख रही है. प्रेम जी ने भी कहा कि यह बात मायापुरी जैसी पत्रिका में जरूर मेंशन करना ताकि बच्ची का उत्साह दुगना हो जाए.

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