Happy Birthday Biswajit Chatterjee: पिताजी मुझे डाक्टर बनाना चाहते थे मगर... By Mayapuri 14 Dec 2021 in ताजा खबर New Update मायापुरी अंक 51,1975 अंग्रेजी को लोकप्रिय पत्रिका है लाइफ संसरा प्रसिद्ध इस पत्रिका में कई बरसों पहले विश्वजीत और रेखा का एक ‘चुंबन चित्र’ प्रकाशित हुआ था। लाइफ पत्रिका के इतिहास में इससे पूर्व किसी भारतीय अभिनेत्री का चित्र नहीं छपा था। रेखा जैसी नयी अभिनेत्री ने (उस वक्त की) न सिर्फ चुंबन के पक्ष में अपने बयान दिये, बल्कि स्वंय चुंबन की शुरूआत (अपनी पहली ही फिल्म ‘अनजाना सफर’) करके सबको हैरत में डाल दिया। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि विश्वजीत ने ही रेखा की खोज की थी। या यों कहें विश्वजीत ही रेखा को हिंदी फिल्मों में लाये। उन दिनों ‘पैसा या प्यार’ की शूटिंग के दौरान एक दुबली पतली मगर, आकर्षक व्यक्तित्व वाली लड़की रेखा को देखा तो हैरत में पड़ गये। वह लड़की तेलगू फिल्म ‘अम्मा की कसम’ की शूटिंग कर रही थी। विश्वजती को रेखा को बहुत पसंद आयी मुंबई लौटकर विश्वजीत ने निर्माता कुलजीत पाल और शत्रुजीत पाल को रेखा के बारे में बताया। उन्होंने तुरंत अपनी फिल्म ‘अनजाना सफर’ के लिए अनुबंधित कर लिया। और इस फिल्म के ‘चुंबन दृश्यों’ ने रेखा को जो पब्लिसिटी दिलायी, वह आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। और इसी फिल्म के बाद रेखा को एक के बाद एक फिल्में मिलती गयी। उधर विश्वजीत धीरे-धीरे फिल्मों से कटते गये। लोग उन्हें भूलते गये और एक दिन विश्वजीत के पास एक भी फिल्म नहीं रही। एक दिन मालूम पड़ा कि विश्वजीत बतौर निर्माता और निर्देशक की हैसियत से फिल्म बना रहे हैं ‘कहते हैं मुझ को राजा’ मैंने मुहूर्त पर उनसे मुलाकात की, फिर शूटिंग के दौरान मुलाकातें करता रहा। एक दिन अचानक आर.आर. पाठक से मुलाकात हो गयी तो कहने लगे, चलो विश्वजीत के घर चलते हैं, उनका इंटरव्यू कर लेना आप। अत: साथ हो लिया लगभग एक घंटे बाद पाठक की कार विश्वजीत के बंगले पर पहुंची पहले पाठक ने उनसे अपने काम की बातें की। फिर मुझे इंटरव्यू लेने के लिए बोले। मैंने उनसे कहा, आज इंटरव्यू के दौरान मेरा पहला प्रश्न यह है कि ‘कहते हैं मुझको राजा’ की क्या प्रगति है? विश्वजीत के बोलने का अपना विशेष अंदाज है। अपनी मनमोहक अदा है, वही अदा जिसकी वजह से वे अपने वक्त के लोकप्रिय कलाकार रहे हैं। उनकी फिल्में हिट हुई हैं। मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, फिल्म तो पूरी हो चुकी है। और मैं बहुत जल्द इसे रिलीज कर रहा हूं। शायद अगले महीने तक? क्या आपको विश्वास है कि ‘कहते हैं मुझको राजा’ आपकी मनचाही सफलता प्राप्त कर लेंगी? मेरा मतलब है बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म हिट होगी? मेरा सवाल उनको मुस्कुराने पर मजबूर कर देगा, इसका मुझे ख्याल नहीं था। मैं तो यही सोचता हूं कि फिल्म अवश्य हिट होगी। मैंने इस फिल्म पर बहुत मेहनत की है। बड़ी ईमानदारी से इसका निर्माण किया है। दर्शकों की रूचि का ध्यान रहा है। और दर्शकों की पसंदगी का विशेष ख्याल रखकर ही मैंने फिल्म को पूरा किया है। जहां तक मेरा विश्वास है दर्शक मेरी मेहनत को बड़े प्यार से सराहेंगे और बार-बार मेरी फिल्म देखेंगे मुझे पसंद करने वालों का एक अलग वर्ग है। मेरे पास अब भी उतनी ही फैनमेल आती हैं। जितनी कि पहले आती थी। यह दर्शकों का प्रेम ही तो है। इसीलिए मैं कह सकता हूं कि मुझे अवश्य सफलता मिलेगी। विश्वजीत के चुप होते ही मैंने पूछा, इस वक्त पुरानी पीढ़ी लगभग के सभी कलाकार अभिनय के मैदान में उतर आये, मसलन सुनीलदत्त, राजेन्द्र कुमार वगैरह-2 इन लोगों को सफलता भी मिली है, क्या आपको विश्वास है कि आप भी इसी तरह पुन: अपनी पुरानी साख पुन: जमाने में कामयाब हो जायेंगे? प्रश्न सुनकर विश्वजीत तनिक गंभीर हो गये। पलभर रूक कर बोले, इसमें कोई शक नहीं कि आजकल पुरानी पीढ़ी के कलाकारों का दौर आ गया है। दर्शक उन्हें पसंद भी कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि फिल्म ‘कहते हैं मुझको राजा’ के बाद मुझे भी दर्शक उतना ही पसंद करेंगे। जितना कि वह इन लोगों को। और तब स्वाभाविक है कि मुझे भी फिल्में मिलेंगी लेकिन अब मैं निर्देशन में अधिक रूचि लेने लगा हूं। आप यह बतायेंगे कि अभिनय में आपको अधिक आनंद मिलता है या निर्देशन में? आपका यह सवाल काफी गूढ़ है। अगर इस विषय पर बोला जाये तो आपकी पत्रिका के सारे पन्ने भर जायेंगे... मैंने तुरंत विश्वजीत की बात काटते हुए कहा, लेकिन मैंने तो सिर्फ आपके दिल की पसंद जाननी चाही है। आपको किसमें आनंद प्राप्त होता है अभिनय में या निर्देशन में? मुस्कुराते हुए विश्वजीत बोले, निर्देशन में। मैंने चौंकते हुए पूछा, निर्देशन में? क्यों? अभी तो आपने सिर्फ एक ही फिल्म का निर्देशन किया है, जबकि अभिनय आप कई फिल्मों में कर चुके हैं यह अंतर क्यों? मैंने पहले ही कहा था कि यह विषय बहुत लंबा है। खैर, मैं आपको संक्षेप में बताता हूं अभिनय एक ऐसी चीज़ है, जिससे आदमी कभी संतुष्ट नहीं होता, जबकि ‘निर्देशन’ में सारी जिम्मेदारी निर्देशक पर आ जाती है। उसे बहुत कुछ सोचना पड़ता है। कदम-कदम पर बोझ होता है। सभी कलाकारों से मनचाहा काम लेना पड़ता है। साथ ही उनके मान-सम्मान और ‘मूड’ का भी ख्याल रखना पड़ता है। विश्वजीत शायद आगे भी कुछ कुछ कहना चाहते थे, लेकिन मैंने इस विषय को जो लंबा होता जा रहा था, यही खत्म करना उचित समझा, क्योंकि मुझे अभी उनसे कुछ व्यक्तिगत बातें भी जाननी थी। अत: मैंने तुरंत पूछा, विश्वजीत जी अब मैं यह जानना चाहूंगा कि आप फिल्मों में कैसे आ गये। आपका जन्म कहां हुआ। आपके बारे में जरा विस्तार से जानना चाहता हूं? विश्वजीत बोले, इस प्रश्न का उत्तर भी बहुत लंबा हो जायेगा। मुझे पूरी कहानी सुनानी होगी। और... मैंने बात काटते हुए कहा, कोई बात नहीं, हमारे पाठक यही जानना चाहते हैं। मुस्कुराते हुए विश्वजीत ने कहना आरंभ किया, अच्छी बात है मैं जन्म से लेकर जवानी तक की पूरी कहानी सुनाये देता हूं सुनिये, तब मैं बहुत छोटा था। मेरे पिताजी फौजी डाक्टर थे। गांव-गाव में घूमना, जनसेवा करना उनकी आदत थी, बचपन से ही मुझे ‘नाटक’ किया करते थे। और साथ ही फिल्में भी दिखायी जाती थी। फिल्मों के पीछे मैं पागल था और मेरा परिवार फिल्मों का कड़ा विरोधी लेकिन मैं किसी न किसी बहाने ‘नाटक’ और विशेषकर फिल्में अवश्य देख लेता। पिताजी मेरे इस शौक से सख्त नफरत करते थे। वे चाहते थे कि मैं बड़ा होकर उन्हीं की तरह डॉक्टर बनूं और देशवासियों की सेवा करूं, लेकिन मैं तो कुछ और ही बनना चाहता था। उन दिनों मैं अशोक कुमार, सहगल और पंकज मलिक का दीवाना था। सिर्फ मैं ही नहीं, हर कोई इन्हें पसंद करता था। और यह पसंदगी सिर्फ दीवानगी तक ही नहीं सीमित थी, बल्कि लोग इनकी पूजा तक भी करते थे। और मैंने भी मन ही मन यह निर्णय किया कि मैं भी कलाकार बनूंगा। और मेरे इस निर्णय को सफल बनाने में मेरी स्वर्गीय मां और मामा ने मुझे बहुत सहयोग दिया क्योंकि ये दोनों कला के समर्थक थे। दिन बीतते रहे... कई साल निकल गये। हम कूच बिहार से कलकत्ता आ गये। मामा नाटक की दुनिया के लोकप्रिय कलाकार थे अत: अक्सर वे मुझे साथ रखते। फिर धीरे-धीरे नाटकों में छोटी-छोटी भूमिकाएं भी दिलाने लगे और मैं रंग मंच पर अपना स्थान लगा। साथ ही मैं गीत भी गाने लगा। मुझे लोग पसंद करने लगे तो बालीगंज (जहां हम रहते थे) इलाके के नाटकवाले मुझे अपने-अपने नाटकों में आमंत्रित करने लगे। मेरी भूमिकाएं बढ़ती गयी। और एक वक्त ऐसा आया कि जब मैं नाटकों में नायक की भूमिका निभाने लगा। अक्सर सब मुझे रोमांटिक रोल ही देते। और यही हाल फिल्मों का रहा। छोटे-छोटे रोल शुरू में करने के बाद मैं बंगाली फिल्मों का हीरो बन गया भाग्य ने भी साथ दिया। किस्मत साथ दे रही थी। एक दिन हेमंतकुमार जी ने मुझे अपनी हिंदी फिल्म ‘बीस साल बाद’ के लिए चुन लिया। फिल्म बनी और चली और खूब चली। इसके साथ ही मैं भी चल निकला। और काफी हिंदी बंगला फिल्मों में अभिनय किया। बंगला में तो फिल्मी और गैर फिल्मी गीत भी गाये क्या आपने किसी हिंदी फिल्मों में गीत नहीं गाये? गाया है लेकिन उतना लोकप्रिय नहीं हुआ, जितना कि बंगला फिल्मों में मेरे गीत लोकप्रिय होते हैं? यह कहकर विश्वजीत कुछ पल खामोश हुए, फिर स्वयं बोले, हां, एक बात तो बताना ही भूल गया कि पिताजी की इच्छा थी कि मैं डॉक्टर बनकर यथा शक्ति देशवासियों की सेवा करूं अत: सफलता प्राप्त करने के बाद मैंने अपनी कमायी का काफी हिस्सा गरीबों की सेवा में लगा दिया। मुझे इस बात का घमंड नहीं, गर्व है। मैंने अपनी प्यारी मां की याद में कलकत्ता में एक अस्पताल बनवाया, जो आज भी चल रहा है। इसके अलावा मैंने कलकत्ता में बस-स्टैंड पर कुछ शैड्स भी बनवाये हैं, इसलिए नहीं कि मैं कोई अहसान कर रहा हूं, बल्कि इसलिए कि संघर्ष के दिनों में इन्हीं बस-स्टेंडो पर कड़कती धूप में घंटो बस की प्रतीक्षा मैंने की थी। और अब मुसाफिरों को आराम मिलता है तो मुझे आंतरिक सुख मिलता है। और मैं अब भी प्रयत्नशील हूं कि मुझसे से सभी को सुख पहुंचे और अपने पिताजी का आदेश मानू उनका सपना साकार करूं। वाह... अचानक मेरे मुंह से निकल गया। विश्वजीत ने पूछा, और कुछ?, मैंने कहा, बस, एक सवाल और आपने फिल्मी जीवन की सर्वश्रेष्ठ फिल्म आप किसे मानते हैं? विश्वजीत ने निसंकोच बताया, ‘राहगीर’ को यह बहुत ही साफ-सुथरी फिल्म थी। मैं तो हमेशा से ग्लैमरयुक्त रोमांटिक रोल करता आया हूं, लेकिन पहली बार जब मैंने विश्वजीत व रेखा फिल्म में ‘कहते हैं मुझको राजा’ में ‘राहगीर’ में लीक से हटकर भूमिका निभायी तो सर्वत्र प्रशंसा की गयी। गुलजार ने इस फिल्म के सवांद और गीत लिखे थे। निर्देशक थे तरूण मजूमदार। इस फिल्म में मेरे अपने बेटे प्रसेनजीत ने भी एक भूमिका निभायी थी। यानी कि फिल्म में मेरे बचपन की भूमिका अदा की थी। इस वक्त विश्वजीत ‘कहते हैं मुझको राजा’ जो पूरी करके अपनी नयी फिल्म ‘रॉकी’ के निर्माण में व्यस्त हो गए हैं। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन नायक की भूमिका कर रहे हैं। #Biswajit Chatterjee #happy birthday Biswajit Chatterjee #happy birthday vishvajeet हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article